Friday 7 February 2014

धर्म और अध्यात्म की जड़ें - note

कुछ लिखने का दिल किया हमारे प्रचलित सनातन धर्म और उनके अनुयायियों को लेकर , अलग अलग तरह की बातें पिछले कुछ समय में जो सामने आयीं है।

पहले तो ये स्पष्ट हो जाना चाहिए कि सनातन धर्म क्या है और अध्यात्म से इसका रिश्ता कैसा है ! फिर आगे चर्चा को बढ़ाएंगे 



सनातन धर्म हिन्दू धर्म की मुख्य धारा है..... हिन्दूधर्म की इस मुख्य धारा के मुखिया वेद है जिनको इंडो आर्यन सिविलाइज़ेशन के समय से जाना गया (गौर कीजिये शब्द जाना गया पे), यहाँ ; इस कालावधि से ही सामवेद , ऋग्वेद और अथर्ववेद का प्रचार और प्रसार के इतिहास में वर्णन मिलता है , मूर्ति पूजा का वर्णन है , मंदिरो का निर्माण का वर्णन है । 





आर्यों ने भारत में प्रवेश किया और साम्राज्य स्थापित किया , वैदिक काल का सुनहरा काल वही माना जाता है लगभग 1500 से 1000 BCE . . के आस पास। वैसे तो यदि इतिहास में और गहरे उतरे  और प्राप्त राजनीति से चिन्हित  मानवीय समाज की सीमा  की बात करे तो पाएंगे  धरती पे शुरुआती मात्र एक राजा था जो महर्षि भी था " मनु -महाराज "  फिर  धरती के तीन टुकड़े राज्य रूप में हुए  मनु  की अपनी  मुँहबोली बेटी  के तीन पुत्रों के बीच  वेदों में जिक्र है , माने वेद  मात्र  आर्यकाल में  पुनः प्रतिष्ठा  को प्राप्त हुए , उनकी अपनी रचना और पुरानी  है. संभवतः  इसीलिए  ये ब्रह्मा के वाक्य कहे गए   , इनकी उत्पति  का इतिहास इतना ही मिलता है। 

बहरहाल हम यहाँ  पुनः प्रतिष्ठा  पाए से  चर्चा कर रहे है , क्यूंकि  इस पुनः प्रतिष्ठा काल से  आज तक  के संपर्कसूत्र जुड़े है    



*ऋग -वेद (“मंत्रो का संकलन है देवताओंकी प्रतिष्ठा का वर्णन है , इस में शिव कि उपासना का जिक्र है )
*साम -वेद ( इसमें संगीत का महत्त्व गायन के रूप में ज्ञान मंत्रो द्वारा मिलता है )
*यजुर -वेद ( इसमें बलि सूत्रो का वर्णनं मिलता है मंत्रो के रूप में है )
*अथर्व -वेद (“ इसमें जादुई मंत्रो का समावेश है अर्थ नीति का वर्णन है और पुजारियों द्वारा वर्णित विभिन्न जातियों का जिक्र है ).

below click a link to read संक्षेप  में  about Vedas and their different time zone servings

                      

जिनका उद्देश्य ये आम जन साधारण को विश्वास दिलाना था कि प्रकति का संतुलन आवश्यक है , वो जीव जंतु पे दया करना और पालन करना आवशयक है जो हमारी मदद करते है। गुरु शिष्य परंपरा भी वैदिक काल की देन है। मंत्रो द्वारा पांच तत्वो के संतुलन को आवश्यक बताया गया था। एक चिकित्सा कि आयुर्वेद धारा भी वेदो से ही निकली है 



इस सनातन धारा में , पुजारी और मुख्य पुजारी का होना आवश्यक है सनातन धर्म के मुख्या पुजारी का तत्कालीन राजाओं को दिशानिर्देश देते हुए भी देखा गया यानिकि इस पुजारियों का राजतन्त्र में अति सम्मान था , परन्तु रीतियों के पालन के लिए , आम व्यक्ति के क्षमता के बाहर था इस भाषायी और कर्म कांड के दुष्कर जाल में स्वयं सही गलत का ज्ञान बना पाना।

                                                                        


अध्यात्म : अध्यात्म एक ऐसी धारा है जिसमे धार्मिक कट्टरवाद से अलग आत्मा को सीधा परमात्मा से जोड़ा गया है। संसार में कहीं पे वास हो , किसी जाती धर्म से हों , अध्यात्म सबको अंगीकार करता है , सब को स्वीकार करता है ।

जैसा मानव समाज का संतुलन है कि कुछ सच्चे जो परा स्वार्थ भाव से जुड़े होते है और कुछ सांसारिक स्वार्थी तत्व का मिलन हो ही जाता है। यहाँ भी ऐसे ही तत्व जुड़ गए। जिनसे अध्यात्म को कुछ छींटे भी लगे। 



कई ऐसे व्यक्ति आये जिनको अध्यात्म के ज्ञान होने से वैराग्य हुआ। ऐसा वैराग्य हुआ कि , अपनी लौकिक जिम्मेदारीओं को नज़रअंदाज कर दिया , किस का बेटा बेटी किसी की पत्नी , परन्तु वैराग्य का बुखार चढ़ गया। . ऐसे सद गुरु को जनता कैसे स्वीकार करे , तो अपनी पहचान छुपानी पड़ गयी , ये कह के कि अध्यात्म में प्रवेश के बाद नाम परिवर्तन जरुरी है।

ऐसे ही एक गुरु है आसाराम जी और दूसरे गुरु है स्वामी आशुतोष जी महाराज 
जिनसे अध्यात्म  धर्म को मैल लगा है  ,आसाराम के चरित्र से दाग लगा तो आशुतोष जी के जिम्मेदारियों से पलायन  का दाग लगा , आशुतोष जी के बारे में चिकित्सा विज्ञानं कहता है कि वो देह त्याग कर चुके , उनके प्राण विहीन शरीर को  ०  डिग्री  तापमान पे सुरक्षित  रखा है आज आठवां दिन है 28 जनवरी 2014  को    रात  2  बजे  ह्रदय गति रुकने से उनके प्राण निकले थे।  अब वो संसार में नहीं पर उनके भक्त कहते है कि वो समाधि में है।

अध्यात्म के संसार में   समाधि के भी प्रमाण मिले है पर मस्तिष्क और अन्य अंग कार्य करते रहते है बस शिथिल हो जाते है। यहाँ अंग काम ही नहीं कर रहे खाल ने रंग बदलना शुरू कर दिया है। . और अब तो पता चला कि स्वामी जी कि अति वृध्द हालत में पत्नी भी है और युवा बालक भी है। जिनका स्वामी जी ने वैराग्य के बुखार में युवावस्था में ही त्याग कर दिया था।

ये कैसा अध्यात्म ?

और ये कैसे भक्त ?



कैसा दिमाग ? और क्या चाहत ? 

क्या ये भगोड़ापन नहीं ? और अध्यात्म के नाम पे सम्पदा जमा कैसे हुई ? कौन बेवकूफ थे जिन्होंने इतना धन दिया ? गुरु के ऊपर प्रश्न चिह है तो साधक भी प्रश्न के घेरे से बाहर नहीं। कई सवाल खड़े हो जाते है , ऐसे अध्यात्म पे और पागलो की तरह ऐसे गुरु के पीछे भागने वालो के ऊपर भी।


तभी ये ख्याल भी आता है " आप्पो गुरु आपो भवः " जैसा तथागत स्वयं कह गए , जरुर उनको कुछ तो महसूस हुआ होगा !


जोड़ना  ही है तो आत्मा को मूल  से जोड़ो , विश्वास करना ही है  तो व्याख्याओं पे नहीं  मूल  ग्रन्थ पे करो। इसअध्यतम कि धारा के  जनक  सिध्धार्थ  पे विश्वास करो।





सोचिये ........  समझिये  !!!  अपनी जिम्मेदारियों से भागिए मत . विचार कीजिये आपको क्या चाहिए अध्यात्म से ?  अध्यात्म अपने अमृत की वर्षा करेगा आप भीगेंगे , वास्तविकता को जानेंगे भी...  पर भागेंगे नहीं। 

ये मुझे पक्का विश्वास है। जो सन्यासी भगोड़ा है वो सन्यासी हो ही नहीं सकता। 

सन्यास तो यही पे है उसी स्थिति में जिसमे आप है। 

सन्यास तो सन्यासी की भावदशा का नाम है , जिसमे वो दायित्व पुरे करते हुए अपना जीवन जीता है साक्षी भाव से। निर्लिप्त भाव से।

ॐ प्रणाम


Disclaiment: 
Dear Reader s, 
The note never claims of historical evidence of Hindu religion and Aryans are foreigners were or not ...this mind churning is political-geographical, and with time political boundaries get change so that nation name also  ... no discussion of on political geography, It's story of re-establishment of temples and Vedas in Peoples minds.  
As per my knowledge, Earth establishment get found in the human development world in three basic ruling parts, after one king the sage Manu, this evidence in Hindu history before Vedic period 
(but details are in Vedas, it means  If we found Manu's existence, simply existence of Vedas bit older;  may be start-up of Vedas get to start with Sage Manu time, gradually collection get rich with more wise collection, of course, it's not writing of one time sitting  but today whom we know as period  it's different and later time zone
On that time, Aryans + Sanatani were not in existence and lime light.  For Readers information - 1- Existence of Aryans mapped in geography and brought up of Sanatan-dharma marked  in Indian-History 2- Snatani existence  get to start  with late old Sage Shankracharya's great effort  to unite Hindus again, he also  makes  panth for youth as warrior saver religion, to save innocents with in his temple-premises or ashram ,  Simply it is the story of re-establishment Hinduism's honour and finds a connection with Aryans that time religion was in the different form ...as today it is totally different. Nothing is related to this blog with Britishers and their colonial minds ...

 Sure; YOU Will ENJOY IN Reading, A BIT You  MAY  Gain ALSO, IF NOT Destructed Politically 

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