Sunday 24 January 2021

भारत के भगवान


विश्वास से शुरू होता भाव , और ये निहायत शांति और शक्ति देता विश्वास भाव समस्त दुनिया पे छा जाता है। पूरी मनुष्यता पे किसी भी विचार मजहब धर्म और व्यवस्था का आधार विश्वास।  इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता। 

क्यूंकि;  विश्वास ही आधार है मन के भय से मुक्ति का।  

कई जगह ये शृद्धा बन गया  तो कई जगह उत्पात का कारण।  

असलियत क्या है ?  ये जानने की उत्पातियों को न इस विषय  के  ज्ञान  में जिज्ञासा है  और न ही  इस समूह की  कोई योजना ही।  ये समूह किसी के मौलवी या  तो किसी के पादरी  या तो किसी राजनैतिक धार्मिक विषलेषक  से निर्देश लेते हैं और ये उसपे  सौ  प्रतिशत  ईमानदारी से कार्य करते है, आखिर  धर्म मजहब और रिलिजन का सवाल जो है , ध्यान दीजियेगा ये तीन शब्द तीन भाषाओँ के है जो एक दूसरे से बिकुल मेल नहीं खाते ।  

सोचिये , बिना सोचे  विचारे  बस एक अद्भुत विश्वास शृद्धा या कहें  ख़ास मानसिकता के उन्माद में तराशे ये सभी मस्तिष्क हैं।  

इतने असमंजस में घिरे  युवा ,  इतने  गहरे अर्थ से अनजान  , और इतना उपहास  में लिप्त , कहीं तो  हमारी अज्ञानता गहरी है ,  हमारी नासमझी हमारी समझ पे भारी है।  और जब हम ही नहीं समझेगे खुद को तो अगले को क्या ख़ाक कह पाएंगे - 'भईया  ! ये हम है है और हम ऐसे ही है , और खुद का हमें पूरा ज्ञान है , तुम्हारे उथले तर्क कमसे काम हमें तो भ्रमित नहीं कर सकते  और हमें कोई लालच भी नहीं के हम सारी बाते सर झुका के मान लें और इस आस्था के लिए हमें कोई युद्ध भी नहीं लड़ना , क्यूंकि  उस परमात्मा की सत्ता को स्थापित करने के लिए युद्ध लड़ना ही अज्ञानता है। 

संकोच कैसा ? गर्व से कहें - हम सनातनी है। 
 
आईये अब जरा मूल विषय  पे चर्चा शुरू करें तो....  सनातन धर्म में  वेद-काल या पहले कहीं  भी पहले आकार पूजन का जिक्र नहीं , हवंन का जिक्र है , मन्त्र का जिक्र है , शिक्षा और  चिकित्सा का जिक्र है  संगीत कला का जिक्र है  ब्रह्माण्ड का जिक्र है और रक्षा विज्ञानं का जिक्र भी है।  तो इस सनातन व्यवस्था को और इसकी व्यापकता को  कृपया अपनी सोच में स्थान दें । स्थान देते समय और विस्तृत समय-काल  को भी ध्यान रखें , ऐसा विस्तृत समय काल जिसने छोटे छोटे समय-काल-खण्ड  में  इंसानी उपद्रव रूप में  बहुत कुछ देखा है सीखा है  रामायणकाल से लेकर द्वापर काल  और फिर  कलियुग  काल  में  बस पिछले कई सौ  हजार सालों में।  

धर्म का एक आधार  सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति ही नहीं , आत्मिक विकास  और सामाजिक व्यवस्था भी है।  तो इस नाते धर्म को एक कुशल  नेता  के रूप में भी देखा जा सकता है। 

निवेदन है की हिंदू धर्म या किसी भी धर्म में आस्था रखने वाले पहले विचार करें उसके बाद सही या गलत  का निर्णय लें  . और खुले दिल से स्वीकार करें आत्मसात करे। 

अवतारों को लेकर कई भ्रम है ,  अज्ञानता के कारण हमारे निर्णय और तर्क भी प्रभावित हैं। 

ये बात आज की नहीं , ये बात  तब की है  जब मानव जीवन में  धर्म की आवश्यकता को जाना गया , वे बुद्धिमान व्यक्ति  बेहद श्रेष्ठ गुण वाले थे , जिन्होंने सबसे पहले स्वयं का ज्ञान किया अपनी छद्मता और सीमितता  और जन्म  से मृत्यु तक की यात्रा को जाना समझा।   एक ऊर्जा को देखा  खुद में और पुरे विश्व में। 

एक ऊर्जा जो अकार रहित  निराकार  शुद्ध अग्नि का स्वरुप जो जड़ चेतन में है।  

उस एक ऊर्जा से  खुद को जोड़ के जो जो विद्वानों  ने  गहरे ध्यान काल में जो  पाया  वो साक्षात् ईश्वरवाक्य बन वेदों में उतर के आया - जिसमे जगत कल्याण था , दसो दिशाओं सहित  पञ्चप्रकति का आभार था , स्वस्थजीवन की उमंग,   गीत संगीत कला दिव्य थे , उसमे ज्ञान था , विज्ञानं था , खगोल था , चिकित्सा और गणित जीवन के भाग थे।  वो उनकी मानसिक्त उत्कृष्टता  थी जो उन्होंने उस ज्ञान को संग्रिहत किया जो वेद कहलाये  , ऋचाएं  गीत कहलायी और वो सीधा ईश्वरीय ज्ञान कहलाये।   वे ही सात अमर आदि सप्तऋषि  कहलाये जिनका शिव से सीधा संपर्क था। और ये वेद दिव्य ऊर्जा  प्रकाश से भरे मोहनी का अमृतकलश बने। 

परिवर्तन और विकास  का कहीं अंत नहीं , जब तक मनुष्य जीवन है  , ये विकास का क्रम जारी रहता है , इसीलिए बीच बीच में खुद को खंगालना आवश्यक है , वर्ना  ज्ञान पे भ्रम की धूल  पड़ने लगती है।  और फिर कथा कहानिया अपने सच होने का  भी भ्रम पैदा करती है  और  उस परम  सच  को देख पाना नामुमकिन  होने लगता है फिर उस सच को देखने के लिए  फिर किसी गुरु की शरण में या  किसी अध्यात्म की शरण में या किसी  अन्य कौटुम्बिक आध्यात्मिक परम्परा में जाना ही पड़ता है। 

कालांतर  में ये भी पाया गया की सब इंसान एक जैसे नहीं होते , उनमे गुण  और वो भी अलग अलग मापदंड के अनुसार होते हैं।  रुचियाँ अलग अलग , हर कोई एक ही काम नहीं कर सकता , हरेक की इक्छा रुचिया और बल अलग अलग है।  फिर ये भी के  सिर्फ बल या क्षमता ही नहीं  नैसर्गिक रुचियाँ भी  सभी में अलग अलग हैं एक पिता  की संताने एक जैसी नहीं  उनमे भी वैचारिक व्यावहारिक भेद है और  ऐसा विचार  अपने आप में  गहरे मनोविज्ञान का विषय था।  सभा को ध्यान में रख एक व्यवस्था बनायीं गयी। 

व्यवस्था और धर्म जिसको ध्यान में रख कर  मनुष्य के विकास के चरण तैयार किये गए , योग ध्यान ज्ञान में  शिव मुख से जाना गया  भैरव विज्ञानं जिसमे १०१ योग विधि, योग विधि अर्थात  आत्मा और देह का जोड़ , परम योग  में  परमयोगी द्वारा बताई गयी आत्म तत्वऔर धार्मिक  को जानने की विधि ।  अब आदि योगी ने बताया  गुरुओं ने दोहराया पर वो ही जाना चाहेंगे  जिनकी इस दिशा में रूचि हो।  ये भी सनातन धर्म का ही सत्य है अन्य किसी में ये स्वतंत्रता है ही नहीं। 

यहाँ हम वेद  और वेदांग ,  उपनिषद  टिप्पणी  टिका   अन्य धार्मिक कथा आदि  की पुस्तक संख्या  और लिखने वाले  अथवा सनातन धार्मिक साहित्य के  संग्रह  पे केंद्रित न हो   अपने मूल विषय पे ही  केंद्रित रहेंगे   जिसमे भारत के भगवन को स्पष्ट समझेंगे और अवतारों का वैज्ञानिक सामाजिक  अर्थ को भी समझने की कोशिश करेंगे। ये भी जान ने की कोशिश  करेंगे की सनातन धर्म  कैसे इतना पुरातन और  बिना नष्ट हुए ,  इतना अलोकिक है और दैदीप्यमान  है  , तो कोई तो वजह है  इसके पीछे ।  


तो ; एक ऊर्जा  एक चेतना से शुरू होता है ये अद्वितीय प्रसंग , जिसे संसार के सभी मस्तिष्कों  ने सभी भाषा में  अपनी स्वीकृती  दी है।  किसी ने मक्का  से ,  किसी ने  वेटिकन  से , तो किसी ने (?) ,  यहाँ  मैं सोच में हूँ , क्यूंकि  हम  यानी सनातन धर्मी चूँकि लौकिक  धर्म में बंधे ही नहीं  तो हमारा कोई एक स्थान भी नहीं  सिवाय आदिशिव-के परम स्थान बैकुंठ  के,   हमारे यानि सनातन धर्म में  चार आश्रम , चार तीर्थ,  चार युग , चार वेदों के रचइता या आधार सात ऋषि , तीन शक्तिपुंज त्रिदेव , और इसके साथ ही शुरू होता है शक्ति का द्वित्व में विभाजन  एक जननी  एक जनक  एक  महेश  एक सती  , और ये परंपरा कायम रहती है समस्त प्राणिजगत  में स्त्री पुरुष के रूप में  और अदृश्य  शक्ति  को लें तो  देव देवता सभी में।   स्त्री पुरुष तो समाज में दिखाई पड़ते है देव देवता का स्थान है  वो दीखते नहीं पर  जागृत ऊर्जा क्षेत्र से (मंदिर से ) आशीर्वाद देते है  और लोग इनसे कल्याण की प्रार्थना करते हैं।  आप देखेंगे की ये प्रार्थनाये एक विशिष्ट शक्ति के आग्रह से जुडी हैं।   ये शक्तियां ये प्राथनाएं ही  आकार में ढाल दी गयी  तो देव और देवियां मूर्तिरूप में  बन गए ।  सनातन धर्म में माना गया सरल ह्रदय से भाव में भर  आप दीप जला भी परमात्मा का आह्वाहन करसकते है  और किसी आकार  के सम्मुख भी अपनी प्रार्थना पूजन कर सकते हैं।
यहाँ  सिर्फ सरलता सहजता और विश्वास को ध्यान में रखियेगा।   

अब आप सोचेंगे तो  इतने भक्त  इतने बड़े बड़े विद्वान  क्यों नहीं अवतार के रूप में पूजे गए ?  

दरअसल ये प्रश्न  मुझे  किसी ने किया था  की जैसे  राम है कृष्ण है  हनुमान है  वैसे पूज्यनीय  कबीर क्यों नहीं मीरा क्यों नहीं ?  कितना सरल ह्रदय का सुन्दर प्रश्न है।   तोआपको बता दू  ये मानव मन है  जो प्रकाण्डता  और कर्त्तव्य में एक प्रतिशत भी यदि कम है तो भगवान्  के पास भी उसे जगह नहीं मिलती ,  न ही उसको अवतार रूप  जाना जाता  है ,  वो कोई गुरु हो सकता है , वो एक  भक्त हो सकता है  यहाँ तक देवदूत  हो सकता है पर इश्वर या अवतार  बिलकुल  नहीं।  कारण वही  एक प्रतिशत भी इश्वर शक्ति में कम के  बात नहीं बनेगी , धार्मिक तौर पे माना गया ये उच्च आत्मा है  जिसने काफी कुछ आत्मिक उन्नति के लिए अर्जन कर लिया और  जिसके विकास की अभी अनंत सम्भावना है।  अवतारों की इस श्रृंखला में  कुछ तो स्पष्ट शक्ति है , जो  निराकार है ,  ऐसी  शुद्ध  शक्तियों  की   ध्यान में रख समाज की सुचारु  व्यवस्था के लिए  नैतिक  प्रेरणादायक कथाएं बनी ,  अपनी इस विशेष शक्ति के  कारण ही  धार्मिक कथाओं में उनका विशेष स्थान है  जिसमे उन्हें अनेक किरदार के रुप में दिखाया गया , वैसे वो मूलतः  शुद्ध शक्तिरूप है, यहाँ कथा प्रसंग को ध्यान में रखने वाली बात है. वे पौराणिक कथाएं जिनका समाज के चरित्र निर्माण में  एक निश्चित उद्देश्य है ।  फिर आते हैं ऐसे अवतार जिन्होंने  सनातन धर्म में  शास्त्र में  तरीके से  जन्म लिया , इन अवतारों को ऋषियों ने  प्रकृति से लिया , जैसे  सूरज चन्द्रमा  नवगृह राहु केतु  , जैसे  कच्छप,   जैसे मीन,   , जैसे शंख ,  फिर जैसे सिंह,  जैसे मोर , गाय ,  हाथी ,  पीपल  बरगद आदि आदि। ध्यान दीजियेगा  ये सब पूज्यनीय  प्रकति से आये  अपनी विशिष्ट शक्ति और गुण  के कारण  लोगो की प्रार्थना का आधार नहीं माध्यम बने।   इसके बाद  वे शामिल हुए जिन्होंने जन्म  ले अपने जीवन में कुछ ऐसा किया जो  बड़े काल को ही पलट गया  इनमे शक्ति की कमी नहीं थी  हौसले की कमी नहीं थी कर्त्तव्य की कमी नहीं थी ये सीधे अवतार कहलाये।  इसके बाद  इन्हे जहाँ स्थान दिया गया  वो मंदिर कहलाये ,मंदिर  जो  जागृत शक्ति का स्थान कहे गए , यहाँ से  जीव  समाज में गए  वो धर्म गुरु   अधिष्ठाता  कहलाये और इन आश्रम में जो आये  वो भी इस जागरण का हिस्सा हुए।  अनेक  मंदिर ऐसे है जिनके घेरे में ही आश्रम हैं  देवस्थान है  और भंडारा भी चलता है। 

तो ; सनातन धर्म इस तरह से किसी एक स्थान से शुरू हो नहीं सकता , ये तो एक विचारधारा है  एक संस्कृति है जो  व्याप्त है अपनी सत्यता के साथ बृह्माण्ड में। 

जहाँ तक मक्का  और वेटिकन  की बात है  कमतर या  अधिकतर की बात नहीं , बात है की हम चाहते क्या हैं ! तो ये  एक व्यवस्था  चाहते है  समाज में  इसलिए   इनकी बुनावट ऐसी है जिसमे  निर्देश है संगठन  के लिए  उसे और बढ़ने के लिए उपाय हैं , सहयोग है  क्यूंकि इनका विचार निजता में नहीं  वर्चस्व में है  फैलने में है ।   सनातन को समझें तो  वो सुव्यवस्था तो चाहता है  पर निजता की अनुमति है और आत्मा परमात्मा  का मिलान अंतिम परिणीति  जिसे निर्वाण या मोक्ष  कहा गया। 

बहरहाल ; इन सबके बाद  यदि आप सोचेंगे तो फिर गोल-गोल  घूम के आएंगे  की ऊर्जा के एक होने की बात।  एक ऊर्जा  जो निराकार है  इसे बाद सभी अन्य धर्म समाज को संचालित करने में व्यस्त  हो जाते है  वही सनातन और गहरा , और गहरा अपने विचार ध्यान और योग से होता ही चला जाता है।  स्त्री पुरुष देव देवी  , और इनके सम्बन्ध परमात्मा के सम्बन्ध है।  इसीलिए तलाक जैसा शब्द भारत  के सनातन धर्म में नहीं  , सिर्फ कोर्ट और संविधान में है।  यहाँ हर सम्बन्ध प्रेम और पवित्रता से शुरू होता है फिर माता पिता हो बेटा हो बेटी हो , पति हो पत्नी हो।   यहाँ धर्म में भी प्रेम है करुणा है सरलता है और जागरण है। यहाँ संतो का विशिष्ट स्थान इसीलिए क्यिंकि वो ईश्वर का मार्ग दिखा सकते हैं। चार युग में रहते  सोलह गुण , सोलह संस्कार , जीवन की कठनाईयों की अपने में समेटते चार आश्रम  , ऋषि अनुसार कर्म से बंधे चार वर्ण  , अध्यात्म को इंगित करते चार तीर्थ ,  उत्सव  ऋतुएँ  और ऋतुओं से बढ़ी कृषि , पूरे जीवन की व्यवस्था की व्यवस्था  सनातन धर्म में।  

ध्यान दीजीयेगा  की सीए सुंदर धर्म में राजनीती  के लिए कोई स्थान नहीं , सरलता सजगता का आह्वाहन है , आपको कण में भी इश्वर दर्शन संभव है  और ऐसे ज्ञान दर्शन  से भी मुक्ति मिल सकती है।  ऐसे में किसी अपराध किसी क्लिष्ट का कोई स्थान नहीं।  फिर भी  मनुष्य जन्म में अच्छाई और बुराई दोनों को स्वीकार किया गया।  और इनके स्वीकार के साथ ही , धर्म एक आह्वाहन  बालपन सी सरलता  ज्ञान की सजगता और आत्मिक जागरण का हुआ । जिसको आध्यात्मिक गुरुओं ने बेहतर समझाया।  

वास्तव में सनातन परंपरा को  किसी एक वेटिकन  या एक मक्का  में बांधना संभव ही नहीं।  इसमें कोई  दो राय  नहीं  के  उस एक ऊर्जा से जुड़ व्यवस्था तो सबने दी , पर  एक ऊर्जा से जुड़ ये विस्तार  ये गहराई  कण कण में पंचतत्व,  कण कण में केंद्र ,   कण कण में ऊर्जा  , कण कण से निर्मित इस देह में  ईश्वरतत्व ,  सिर्फ सनातन  से मिली ,  जिनमे उस एक शक्तिपुरुष का अवतरण भी शामिल है  देव देवी  गुरु  भक्त अनेक अनेक  ईश्वर के रंग में रंगे  हैं। फिर ऐसे भी है  जिन्होंने परमात्मा से एकलयता स्थापित की  मीरा कबीर  सूर तुलसी  ऐसे कुछ उदहारण हैं।  

युग बढ़ते गए , समय चलता गया ,  इसी तरह सनातन और गहराता गया। 


इसी शृद्धा  और विश्वास पे समय समय पे  विशेष परिस्थति की मांग होने पे  विशेष देव या देवी से विशेष बल की याचना / प्रार्थना  भी की जाती रही उदहारण दूँ  तो मुग़ल युद्ध  ब्रिटिश युद्ध इसके अतिरिक्त  जब राजा आपस में ही एक दूसरे पर चढ़ाई किया करते थे  शक्ति के आह्वाहन का विशेष पूजन होता था , तो इस प्रकार धीरे धीरे  समय के साथ  देव देवी रूप  पूजन के कलेवर भी  उद्देश्य के साथ ढलते गए।   इनमे विशेष तौर पे  भक्त हनुमान  जिन्हे बजरंगबली कहा गया   जो ब्रह्मचर्य साधना में  विशेष स्थान रखते है और  देवी की आदि शक्ति एक ही है  ऐसे में भवार्चन में  माँ दुर्गा  जिनके नव रूप  स्थापित हुए  जो शिव  के अवतार शंकर की अर्धांगनी  पुत्रों की माता  आदि अ नेक रूप अनेक पूजन  सामाजिक अर्थ।   वीरता की देवी   राक्षसों का मर्दन करने वाली दुर्गा  , माँ काली  रक्त बीज से  राक्षस  का संहार करने वाली , विशेष स्थान मिला।   अपने अतुलनीय क्षमता  और युगपरिवर्तन के कारन राम अवतार हुए पति सीता देवी  लक्ष्मण भारत आदि भाई  बंधू  हनुमान भक्त सेवक।  और इनका रामदरबार विशेष उल्लेखनीय है। पुराण , रामायण ,  श्री भगवद  और उसका अंश गीता  धर्मशास्त्र हैं। 

आप समझ सकते हैं ये मनुष्य किन किन  और कैसी  जटिलताओं से गुजरा होगा मानव समाज में  जो देव देवी के इतने रूप प्रार्थनीय  और आराध्य हुए , सभी से अलग अलग समय में प्रार्थना  भी सम्मलित है।  पर सबसे प्राचीन प्रार्थना है  जो वेदों में है जो मन्त्र स्वरुप है जो  शक्ति  से तरंगित है। कहते है  सीधा परमात्मा से संवाद होता है। 

तो जब भी आपके सनातन धर्म या अवतारों पे अज्ञानी प्रश्न  करें , आप बिना सकुचाये अपने ज्ञान से उन्हें सही उत्तर दें। आपका अपने धर्म को अपने जन्म को सनातन धर्म  समझना अत्यावश्यक है। 
आपकी इसी मानव परंपरा  में  नागा बाबा  परंपरा , मौनी बाबा परंपरा  , संत आश्रम  परंपरा , अखाडा परंपरा , तीन लाख से ऊपर संस्कृत  साहित्य की पुस्तके , आयुर्वेद , सांख्य ,   ऋषि मुनियो के अनुभव के  संकलन स्वरुप  अष्टांग योग। 

और ये यही नहीं रुकता  ये ज्ञान आपको  आपसे और आपकी ही सात देहो से परिचय करवाता है , आपकी ही देह की मेरु में बैठे  सात चक्र   के माध्यम  से  आपको   निर्वाण  की और ले चलना , ये सात  चक्र  जिसमे आपके सारे  दोष  और सारे गुण  समस्त कमजोरिया और शौर्य से परिचय  करवाना , और ये आश्वासन  की  इन्हे जानने मात्र से ही आप मुक्त हुए , अद्भुत आश्वासन है सनातन धर्म का ,   और  आपके अपने जिवंत सात आकाश जिनमे विचरण करता नारद मुनि सा मन , कितना कुछ कहने की व्यवस्था  सनातन धर्म में।  

 ये  खगोलशास्त्र  जिसने नक्षत्रीय गणना  सहित ज्योतिष  गृह नक्षत्र , इसके बाद कला संस्कृति  आदि शामिल है।  आज कल  जो आधुनिक  आश्रम आदि है  उनका पहला मुख्य काम तो आपको  तनाव मुक्त  जीवन देना है  आपमें  आपका ही बचपन जागृत हो उसके पाद अष्टांग योग  और विज्ञानं भैरव   में  दिए शिव के सूत्र   पे जीवन ढालते ढालते आप निर्वाण को और बढ़ें , और नहीं भी  तो कम से कम तनावमुक्त जीवन तो जियें ही  , बस  इसी प्रयास में आप अपनी उम्र बिता देते हैं।   और अपने ही धर्म से अनजान रह जाते हैं।  

अपना मंथन / चिंतन  स्वयं कीजिये , यही सनातन धर्म का आग्रह और सहयोग है।  
संसार में अन्य  किसी और धर्म में  सामाजिक व्यवस्था के साथ  ये  निजता के सहयोग की व्यवस्था नहीं। सोचिये ; और गर्व कीजिये , के आपके धर्म में कितना  बंधनमुक्त विस्तार का आकाश  है। 

अगली इसी व्यवस्था की परंपरा में  जो वेदों से  आयी है  जिसे  स्वर्णिम वैदिक काल भी कहा जाता है ,  इसमें भी  विकास के चरण में मिश्रण हुए , जो मुग़ल काल में तहस नहस हुई और ब्रिटिशकाल में मटियामेट किया , नालंदा जैसे विश्विद्यालय नष्ट हुए।   ब्रिटिशकाल ने  कुछ इमारते दी  कुछ इमारते  मुग़ल काल ने दी , पर जो विध्वंस किया वो कही अधिक था , जिसने  सनातनी  संस्कृति  पे चोट की  , और वो प्रहार आज तक जारी है।

मुग़लकाल इतिहास में ब्रिटिशकाल के  इतिहास  में खुल के जिक्र है  ऐसे-ऐसे धर्म परिवर्तन  के नाम पे  अनेक सहूलियत देने का प्रलोभन या  न मैंने पे दारुण उत्पीड़न हत्या आदि होते रहे।   

आधुनिक  काल में  मिशनरी समाजसेवी  संस्था के रूप में  व मौलवी  मुल्ला के रूप में  मुझे नहीं मालूम क्यों पर धर्मपरिवर्तन का कार्यान्यवन आपराधिक हद तक जारी है , यानी सामदाम दंड भेद  किसी भी तरीके से  पर धर्मपरिवर्तन होना है।  जबकि सनातन धर्म  अपनी उत्पत्ति के काल और कारणों  से इन सबसे  अलग है। 

हिन्दुओं की शक्ति बने  अपनी शक्ति बढ़ाये ज्ञान से समझ से।   

इन सब व्यर्थ के तर्कों से  बचने के लिए आपको न सिर्फ शक्ति संयम  अपितु अपने  ज्ञान को भी धार देनी ही होगी, ध्यान रखिये के आपका  सनातन धर्म बहुत गहरा है  बहुत विशाल है  और प्राचीनतम  संस्कृति का वारिस है। आपके अपने  आपके सभी जिज्ञासा और ज्ञान का समाधान आप से ही निकलता पाया गया ,   याद कीजिये  गणपति और कार्तिकेय का विश्वविजय संकल्प बलशाली वीर योद्धा  कार्तिकेय का विश्व भ्रमण पे निकल जाना  और बुद्धिमान गणपति का अपनी माता की परिक्रमा कर विश्विजय हासिल करना !! 

 वस्तुतः इतना विस्तार है की ये समाजव्यवस्था से बहुत  ही ऊपर है।  समाज को व्यवस्था मिले वो मात्र इसके नन्हे से वर्ण विभाग में है और  इसकी संस्कृति में  जिसमे परिवार सम्बन्ध धार्मिक आचरण को बल दिया गया।  

इसकी पूर्णता सृष्टिलेकर  एक मन्त्र के विधिवत उच्चारण में छिपी है।  शुक्ल यजुर्वेद  के शांतिपाठ में  वर्णित ये पूर्णमंत्र - 'पूर्णमिदं पूर्णमदः  पुर्णत पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवैषिष्य्ते' में है 
 
महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद से लेकर यजुर्वेद तक में मिलता है। वहीं शिवपुराण सहित अन्य ग्रंथो में भी इसका महत्व बताया गया है  अद्भुत  मन्त्र और इसके रचयिता की इक्छा , इस जीवन काल में समस्त भय  रोग से मुक्ति  और जीवन काल के बाद भी  मृत्यु सहित समस्त भय से मुक्ति  और पूर्ण निर्वाण की प्राप्ति , -  
महामृत्युंजय मंत्र
  • ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ' ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् '  ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ !!

छोटे छोटे मन्त्र  धर्म ही नहीं  सनातन का अर्थ कहने में समर्थ हैं , ये मूल मन्त्र  जड़ से जोड़ा गया, पवित्र विद्युत् तरंग  जिसका प्रवाह मूल चक्र से  उठता   वाणी और भाव समस्त  चक्र के सभी दोषो पे विजय पाता  हुआ सहस्त्र की ओर उठता है   जिसका  श्री भगवती और श्री भगवत  दोनों को विशेष पूज्यनीय भाव दिया गया , प्रकति में इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा -  
मूल मंत्र 
ॐ सच्चिदानंद परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा |
 श्री भगवती समेत। ..... श्री भगवते नमः ||
 (हरी ओम् तत् सत्)

कहने का मात्र इतना अर्थ , आधुनिक काल में जब के  युवा वर्ग  में  अज्ञानता हर तरफ  से बढ़ रही है , त कनिकी विज्ञानं के ज्ञान  के नीचे  अपनी अज्ञानता के कारण धर्म अमर्यादित  हो रहा है , चारो तरफ  से  धर्म  को दबाने के लिए दमनकारी स्वार्थी  कुटिल शक्तियां सर उठा कर  अपने अपराध के नीचे  कुचलना  चाह  रही हैं।  

जानिए अपने धर्म के उद्भव  काल  से  उठते  सौंदर्य को , जानिये इसकी दिव्य चेतना को जो आपको संकेत करता है , परमसत्ता की ओर , सनातन जो कहता है  आपका ज्ञान  चाहे विज्ञानं  हो या कला  या कौशल , वस्तुतः आपका नहीं  ये उस  दिव्य चेतना का अंश है  , सनातन धर्म  का संकेत  ये  कला ये   गीत चित्र नृत्य  संगीत इश्वर से आती हुई  और उसी की तरफ लौटी हैं ,  धर्म ज्ञान इश्वर से आता हुआ  और उसी की तरफ को लौटता अपना वर्तुल पूरा करता है , ऐसे ही विज्ञान और तकनिकी   लोक हित के लिए है।   परमात्मा से भेजा गया संगीत के स्वर का  प्रथम सप्तक  और प्रथम नाद रूप में इश्वर के वाद्य से निकलते।  अब ये ज्ञानभागीरथी अवतरण ही तो है।   जिसे शंकर ने अपनी जटाओं में संभाला है और लोक कल्याण के लिए नन्ही सी  धार  ही  पृथ्वी को दी।  पृथ्वी  जिसे सनातन धर्म में   समस्त चराचरजगत की जननी  माता का सम्मान और पूजन दिया गया।  

सनातन  की कितनी गहरी सोच है  वास्तव में ये धर्म से ऊपर है  अनंत है  - इसकी सुरक्षा  हो  इसका संरक्षण हो  , संतो का सम्मान हो , इसका गौरव कायम  रहे ।  यही मंगलकामना। 

जानिये 

सोचिये 

समझिये 

इसको सुरक्षित करिये 

🙏🪔

आभार , प्रणाम।