Monday 17 February 2014

विचारहीन विचारक और निर्विचार विचारक (Osho Dhyan Sutra -8)

आपके खयाल के पर्दे आपको साक्षी नहीं होने देते। आपका विचार आपको द्रष्टा नहीं होने देता। जब हम विचार को छोड़ते हैं, जब विचार को हम अलग करते हैं, तब हम साक्षी होते हैं। विचार की निर्जरा से साक्षी हुआ जाता है।

तो जब मैं कह रहा हूं, हम साक्षी हो रहे हैं, तो पूछा जाए कि कौन विचार कर रहा है?
नहीं, कोई विचार नहीं कर रहा है, मात्र साक्षी रह गया। और वह मात्र साक्षी जो है हमारा, वही हमारी अंतरात्मा है। अगर आप परिपूर्ण साक्षी की स्थिति में रह जाएं कि कोई विचार की तरंग नहीं उठती है, कोई विचार की लहर नहीं उठती है, तो आप अपने में प्रवेश करेंगे। वैसे ही जैसे किसी सागर पर कोई लहर न उठती हो, कोई लहर न उठती हो, कोई कंपन न आता हो, तो उसकी सतह शांत हो जाए और हम उसकी सतह में झांकने में समर्थ हो जाएं।

विचार तरंग है और विचार बीमारी है और विचार एक उत्तेजना है। विचार की उत्तेजना को खोकर हम साक्षी को उपलब्ध होते हैं। तो जब हम साक्षी होते हैं, तब विचार कोई भी नहीं करता है। अगर हम विचार करते हैं, तब हम साक्षी नहीं रह जाते। विचार और साक्षी में विरोध है।

इसलिए हमने पूरा प्रयास किया इस ध्यान की पद्धति को समझने में, हम असल में विचार छोड़ने का प्रयोग किए हैं। और जो हम प्रयोग कर रहे हैं, उसमें हम विचार को क्षीण करके छोड़ रहे हैं। ताकि वह स्थिति रह जाए, जब विचार तो नहीं हैं और विचारक है। यानि विचारक से मेरा मतलब, जो विचार करता था, वह तो मौजूद है, लेकिन विचार नहीं कर रहा है। जब वह विचार नहीं करेगा, तो उसमें दर्शन होगा। यह समझ लें।

जहां विचार होता है, वहां तर्क विकसित होता है। और जहां दर्शन होता है, वहां योग विकसित होता है। विचार का अनुबंध, संबंध तर्क से है। और दर्शन का अनुबंध और संबंध योग से है।

हमने कुछ और बात खोजी, हमने दर्शन खोजा और दर्शन के लिए योग को। योग पद्धति है, जिससे आपकी आंख खुलेगी और आप देखेंगे। उस देखने के लिए साक्षी का प्रयोग है। जैसे-जैसे आप साक्षी होंगे, विचार क्षीण होगा, और एक घड़ी आएगी निर्विचार की--विचारहीनता की नहीं कह रहा हूं--निर्विचार की।

विचारहीन और निर्विचार में बहुत भेद है। विचारहीन विचारक से नीचे है और निर्विचार विचारक के बहुत ऊपर है। निर्विचार का अर्थ है, उसके चित्त में तरंगें नहीं हैं और चित्त शांत है। और देखने की क्षमता उस शांति में पैदा होती है। और विचारहीन का मतलब है कि उसे सूझता ही नहीं कि क्या करे।


तो मैं विचारहीन होने को नहीं, निर्विचार होने को कह रहा हूं। विचारहीन वह है, जिसको सूझता नहीं। निर्विचार वह है, जिसको सिर्फ सूझता भर है; जिसे दिखायी पड़ता है। तो साक्षी आपको ज्ञान की तरफ ले जाएगा, स्वयं की आत्मा की तरफ ले जाएगा।


DHYAN SUTRA - 08

No comments:

Post a Comment