Saturday 15 February 2014

सम्बोधि के दीप -=Note

बड़ा सुंदर शब्द है , सम्बोधि के दीप , यानि कि संज्ञानता की तरंग , यानि कि वो क्षण जब स्वप्न विदा लेने को है , यानि कि वो पल , जब मय कि मदहोशी टूट रही है , वो मय जो संसार से जोड़ के रखती है , जिसपे पूरा दायित्व है , सभी सु स्वप्न और दु स्वप्न , यानि कि अच्छे और बुरे सारे भावो को गति देने का , सपने दिखने का , उनको रंगीन बनाने का । 




जब ये रंग टूटते है तभी वो रंग उभरते है जिनको आप खोज रहे है , टूटने का ये अर्थ नहीं कि कि आप उदासी में आ जाये , नहीं नहीं , टूटने से अर्थ सिर्फ पर्दा उठने से है , जैसे एक सपना टूटा और आप नींद से उठे तो देखा खिड़की से झांक के कि
भोर का तारा निकला हुआ है , थोड़ी देर में सूरज भी निकलेगा। और निकलता भी है। पर ये लौकिक है तो सिर्फ २४ घंटे का समय मिलता है और समय चक्र फिर खुद को दोहराता है। यही नियम है , यही साल दर साल सिलसिला चलता रहता है जब तक आपकी साँस चल रही है , या फिर जब तक आपकी मदहोशी। । 






दो में से कोई भी एक टूटी तो आप स्वतंत्र हो जाते है। अब ये आपकी इक्षा और प्रकृति की इक्छा कि आपके लिए वो अवसर देती है और आप कितना उपयोग कर पाते है क्यूंकि प्रकृति का ये नैतिक दायित्व तो है नहीं कि वो आपको ज्ञानी जरुर बना दे । फिर भी प्रकर्ति हार नहीं मानती स्वाभाव से , वो फिर से अपने कार्य में संलग्न हो जाती है क्यूंकि यही उसके लिए प्राकृतिक है । समझ हमारी है ,पात्रता और ग्राह्यता हमारी है। 







वैसे ज्ञानी बनके न कोई फ़ायदा न नुकसान , सिर्फ दिल की प्यास है , आप सच को समझना चाहते है या फिर नहीं। सच समझ के भी जीवन में क्या बदलाव आएगा ? कर्म और उनका पिछला लेखा जोखा वैसा ही रहेगा। हो सकता है आपकी जिस्मानी तकलीफे भी कम न हो। न आपकी आयु कम और ज्यादा होगी। फिर क्या होगा ? किसी_किसी को चमत्कार कि आशा होती है वो निराश हो जाते है , कुछ त्रिकाल दर्शी बनना चाहते है , वो भी निराश होते है , कुछ का उद्देश्य सिर्फ ये कि कोई तीनो जन्मो का लेखाजोखा बताने वाला ज्ञानी संज्ञानी मिल जाये , वो भी यहाँ पे आके निराश ही होते है। क्यूंकि यहाँ दिखावा न दिया जाता है न लिया जाता है , सीधी बात कही और सुनी जाती है अत्यंत सरल शब्दो में , सरल चरित्र के साथ। सिर्फ और सिर्फ वास्तविकता आपकी और हमारी , ऐसी वास्तविकता जिसका ज्ञान होते ही आपके अंदर के सारे प्रपंच स्वयं नष्ट होने लग जाते है। 



एक फ़ायदा होगा जो पुरे जीवन के प्रवाह को मोड़ सकता है वो भी सिर्फ आपके मानसिक प्रवाह को , आपके अपने मस्तिष्क से उठने वाली ऐसी तरंगे जो आपको और आपके आस पास के वातावरण को कष्ट दे रही है , वो बदल जाएँगी , जिनका सीधा असर आपके अपनी जीवन शैली पे होगा , आपका विचार अच्छा होगा , आपका व्यक्तित्व शांत होगा , आप मीठा बोलंगे, जिस कारन जो सुनंगे वो खुश होंगे, एक सुगन्धित वातावरण आपके आस पास होगा। इसका सीधा असर आपके मानसिक स्वस्थ्य पे होगा। मन अच्छा तो शरीर तो अच्छा होना ही है , 




एक सच (परम ) का साथ मिलने से , सच में आपका कल्याण तो होता ही है आपके आस पास का वातावरण भी सुवासित होता है। आपकी आंतरिक सहनशक्ति न सिर्फ आपको शक्ति देती है बल्कि आपके अस्स पास भी स्वस्थ ऊर्जा का प्रवाह करती है। 






अध्यात्म के अनेक लाभ है , अनगिनत , बस इक्षा सच्ची होनी चाहिए , क्यूंकि इसीसे यदि आप लौकिक लाभ के चक्कर में पड़े तो ये फेर भी बड़े बड़े दिखलाती है। माया से इसकी बनती नहीं। 



ॐ प्रणाम

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