Wednesday 5 February 2014

क्या प्रार्थनाओं में शक्ति है ? : जिज्ञासा / संशय - Note

क्या प्रार्थनाओं में शक्ति है ?


मस्तिष्क की एक अनवरत उठने वाली जिज्ञासा। जिज्ञासा का अपना अस्तित्व और महत्त्व है , पर देखने वाली बात है कि जिज्ञासा का आधार क्या है ? आपका ह्रदय भाव जिज्ञासा का आधार है तो वो परा स्वार्थी होगा , और यदि मस्तिष्क जिज्ञासा का आधार है तो वो कुछ तर्कों को सुनके और दे के शांत नहीं होगा , संशय की लहरे आती रहेंगी जाती रहेंगी अनवरत। और आप इस संशय के जाल में जकड़े ही रहेंगे।

ओशो के भाव सुने ध्य़ान से : " तुम्हारी प्रार्थनाएं, तुम्हारी स्तुतियाँ अगर गौर से खोजी जायें तो तुम्हारी वासनाओ के नये नये आडंबर हैं ।मगर तुम मौजूद हो । तुम्हारी स्तुति में तुम मौजूद हो । और तुम्हारी स्तुति परमात्मा की स्तुति नहीं ,परमात्मा की खुशामद है , ताकि किसी वासना में तुम उसे संलग्न कर लो ; ताकि उसके साहरे कुछ पूरा हो जाये जो अकेले अकेले नहीं हो सका ।"

और रूमी का भाव ले तो तो उसके दीवानेपन में ही उसकी प्रार्थनाएं शामिल है। संसार के लिए प्रेम और करुणा शामिल है। कबीर भी ऐसे ही मतवाले है जिनके भाव ही प्राथनाएं है।

सीधा सा ख्याल है , आप स्वयं को परखिये (मस्तिष्क और ह्रदय दोनों को ) आपका भाव यदि आकाश कि तरफ उठ गया है तो प्रार्थना है , आपका भाव यदि सांसारिक इक्षाओं कि तरफ मुड़ गया है तो वासना है। फिर इसका प्रार्थना से कोई सम्बन्ध न रह गया।

किसी भी जादू होने कि सम्भावना कि इक्षा को होते हुए देख पाना ही सांसारिक प्रार्थना है , जिसमे आपकी ही इक्षाएं शामिल है। इस इक्षा में यदि आप शक्ति खोज रहे है तो कह सकते है कि प्रयास में शक्ति है। प्रयास आपको शक्ति देते है।

ओशो ने कहा है " तुम परमात्मा का आश्रय किसलिए खोजते हो कभी तुमने ख्याल किया ? कभी विशलेषण किया ? परमात्मा का भी आसरा तुम किन्हीं वासनाओ के लिए खोजते हो | कुछ अधूरे रह गये है स्वप्न ; तुमसे तो किये पुरे नही होते , शायद परमात्मा के सहारे पुरे हो जाये | तुम तो हार गये ; तो परमात्मा के कंधे पर बन्दुक रखकर चलाने की योजना बनाते हो। तुम थक गये और गिरने लगे ; अब तुम कहते हो , प्रभु अब तू सम्हाल । असहाय का सहारा है तू । दीन का दयाल है तू । पतित पावन है तू । हम तो गिरे । अब तू सम्हाल । इसे अगर गौर से देखोगे तो इसका अर्थ हुआ ,तुम परमात्मा की भी सेवा लेने के लिये तत्पर हो अब । यह कोई प्रार्थना न हुई । यह परमात्मा के शोषण का नया आयोजन हुआ । वासना तुम्हारी है, वासना की तर्पित की आकांक्षा तुम्हारी है । अब तूम परमात्मा का भी सेवक की तरह उपयोग कर लेना चाहते हो । अब तुम चाहते हो , तू भी जुट जा मेरे इस रथ में । मेरे खिंचे नहीं खींचता , अब तू भी जुट जा । अब तू ही जुटे तो ही खींचेगा । हांलाकि तुम कहते बड़े अच्छे शब्दों में हो ।"

यहाँ हम पाते है की प्रयासो में शक्ति है अवश्य है , ये प्रयास और प्राथनाएं मिल के चमत्कार भी करती है ( सांसारिक उपलब्धिओं ) पर। परन्तु प्रकृति की शक्ति की तुलना में हम बहुत सीमित है। प्रकृति की मंशा समझना बहुत आवश्यक है। उसने हमारे लिए जो भो सोचा है , उसके लिये वो सतत क्रियाशील रहती है। और प्रकर्ति नियमित है वो भटकती नहीं। वो सतत हमको उस राह के लिए प्रशस्त करती रहती है , अवसर देती रहती है , जब तक हम अपने कदम न डाल दे , उस राह पे। हमारा कोई चुनाव नहीं है।

प्रकृति और शिवा आपकी प्राथनाएं तभी सुनते है जब वो आपके लिए आपकी राह में सहायक हो। यदि विपरीत प्रार्थनाये है तो 
प्रकृति अनसुनी कर देती है।



गौर फरमाईयेगा !!  


उन( प्रकृति और शिवा)  का  आपकी इस संसार में रह के की गयी क्षणिक लहरो के सामान उद्वेलित इक्षाओं से कोई लेना देना नहीं , आपका स्वाभाव आपकी इक्षाएं मात्र  आपकी कार्मिक गठरी का भार संकेत करतें  है। यदि आप पुनर जनम को मानते है तो भी और यदि नहीं मानते है तो भी। यदि आप पुनर्जन्म को मानते है तो तो आप कर्मो का जाल जन्म जन्मान्तर का स्वयं ही रच लेंगे। यदि नहीं मानते तो भी इतना तो मानते ही है कि प्रयास ही आपके हक़ में है। फल आपके इक्षानुसार हो भी सकते है और नहीं भी। 

कितने भी वैज्ञानिक विचार हो , पर इतना तो मानते ही है कि नक्षत्रो का प्रभाव इस पृथ्वी पर है , हमारे स्वभाव पर है , हमारे स्वास्थ्य पर है। स्वभाव यानि की जुड़े हुए कार्मिक बंधन। स्वभाव ही प्रेरित करते है इक्षाओं को पूरा करने के लिए , और इक्षाशक्ति आपकी मानसिक शक्ति है। और मन धकेलता है वासनाओं में। वासनाओ की अतृप्ति यानि की लौकिक प्रार्थनाओ का उदय। जिनके पूरा होने या न होने की कोई सुनिश्चितता नहीं। क्यूंकि प्रकृति आपके रोज मर्रा के जीवन को नहीं कुछ बड़ा कर रही है आपके लिए। रोज मर्रा का जीवन तो आपके नक्षत्र और उस से उपजा आपका स्वभाव कार्यरत है। 

कई कई नक्षत्री घटनाओ का अद्भुत संयोग है ये प्रकर्ति और प्रकृति में उपजे जीवन , जन्म से नियत नक्षत्रो के स्वभाव वश उपजे कार्मिक सयोग और हमारा अपना स्वभाव जो उन नक्षत्रो के भी अती सूक्ष्म तरंगो से तरंगित संयोगो का संयोग है हमारे दिन प्रतिदिन घटने वाली घटनाओ का संयोग । सब कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि अपने पूर्व निश्चित पथ पे अग्रसर है , जैसे सभी नक्षत्र घूम रहे है अपनी धुरी पर , वैसे ही धरती पे जीवन भी नृत्य कर रहे है। मनुष्य जान सका , इस विज्ञानं को या परा ज्ञान को। अपने तर्कों द्वारा विज्ञानं आगे बढ़ा , और तर्कों के पार भी बहुत कुछ है , इसको बढ़ाया अध्यात्म ने। नक्षत्रो की गंडना का रहस्य सुलझाया , तो जन्मो जन्मो के कर्म जाल में उलझ गया। 



कुछ दीवानो ने पाया ये जीवन जी लो प्रेम से आभार से सम्पूर्ण स्वीकृति से यही काफी है,
यही प्रार्थना है। 

क्षणभंगुरता को मान लो .... जान लो , ये अध्यात्म का पहला चरण है। 

आज में जीना अभी में जीना हर तरीके से सुंदर है। प्रार्थनाये है तो करुणावश करना , आभार देते हुए करना। 

आज ये एक पहला कदम संभल के डालंगे , और एक एक कदम सम्भाल सम्भाल के डालंगे तो अपने आप ही सुंदर चाल बनेगी। सुंदर भाव जागेंगे , सुंदर कर्म बनंगे। तो राहें अपने आप सुंदर हो जायेगी। 

इस के पार जानने का न सामर्थ्य है और न ही औचित्य। 
ॐ प्रणाम

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