Friday 21 February 2014

सात रंग स्वप्न और स्वप्न के अंदर का स्वप्न (माया या महामाया ) note

संसार के शुरुआत की कल्पना और साथ ही एक विशाल महा नायक की कल्पना , नायिका , खलनायिका और इस कल्पना या फिर स्वप्न का हर नायक और खलनायक अति बलवान .....  कभी न हारने वाले नायक और नायिका ...... 



ध्यान दीजियेगा , कल्पना यानि की सपना , और सारी बिखरी हुई कड़ियों का मिलना शुरू हो जाता है , सात रंग संसार के पटल पे बिखरने लगता है , संसार का पटल यानि की मानस , मनस और मस्तिष्क का गठबंधन। ……… और शुरू होता है अंतहीन सपनो का सिलसिला। मानव मन के पास ज्ञान की पृष्ठभूमि है और कल्पना की उड़ान है। और यही है उसके गुथे संसार का ताना बाना। उसका खुद के ही जीवन से रोज रोज कुछ सीखना और वृहत से उसका मिलान करना , जमा जमा के कदम रखना , और यही है उसके अस्तित्व और उसके स्वप्न लोक की कथा।

मनोहारी स्वप्न लोक , रोजमर्रा कि तकलीफों से खुशियों से जुडी जो उसको रोज ही याद दिलाता है कि वो यहाँ सदा के लिए नहीं , फिर उसने विपरीतताओं में जीवन को बहते देखा , यहाँ से उसने संघर्ष सीखा , पर सब कुछ एक जैसा नहीं , परिस्थितिया बदली , और कथा पटकथा यहाँ तक पात्र भी बदल गए। सब कुछ अनिश्चित , जो किया था कल वो आज व्यर्थ , आज जो करें वो कल काम आएगा भी कि नहीं। पता नहीं ! इन अनिश्चित्तयों ने भय को जनम् दिया और भय ने उस महानायक को जनम दिया , महानायक के जनम से पाया गया ऐसे तो ये मानव किसी कि मानता नहीं पर महानायक का भय इसको नियमो में सिमित करता है। महानायक के साथ महाशत्रु की कल्पना भी लाज़मी है।

और इन सब जीवन की अनिश्चितताओं से जूझते हुए मस्तिष्क और मन के साथ इंसान का सामना हुआ अपनी ही अच्छाईयों और बुराईयों के साथ , जो निश्चित ही उसी भय कि उपज है जिसको अनिश्चितता कहते है , जैसे लोभ को जनम दिया उसकी हर दिन उभरती जरूरतों और उसकी रोज रोज घटती शारीरिक क्षमताओं ने , जिस कारन आवश्यकता से अधिक संग्रहण क्षमता का विकास हुआ , द्वेष वैमनस्य और हताशाओं ने जन्म दिया क्रोध को , रोज अपने आगे मिटते हुए उसके अभिन्न उसके ही जैसे अन्य प्रिय वस्तुओं ने मोह को पोषित किया। ये तो था कि संक्षिप्त में चाहत का सिलसिला , अब शुरू हुआ महत्वाकांक्षाओ का सिलसिला असीमित , पेट की उठती भूख के सामान , अंतहीन। ........... जीवन के साथ ही समाप्त होने वाले सुख और दुःख के ताने बाने।

पर सबसे ज्यादा उसको तोडा म्रत्यु के दृश्यों ने , कभी पूर्ण उम्र पे तो कभी अकाल , उसके सारे हौसले यहाँ पस्त हुए , उसकी सीमित क्षमताओ का उसको ज्ञान हुआ , तब उसकी कल्पना में महानायक का जन्म हुआ , अब महानायक है तो दूसरा सिर भी मौजूद होना ही है , यानि कि महाखलनायक , एक बार नायक और ख़लनायक को पात्र मिले तो अद्भुत गाथाओं और विजय पताका फहराने कि अलग ही दास्ताँ शुरू हो गयी। धर्म में अधर्म में सब तरफ इन्ही नायक और खलनायको कि कहानिया बुलंद हो गयी , झुकने वाले झुकते चले गए , ताकतवर और बलशाली। धर्म और प्रबल , अधर्म भी अधिक प्रबल। समाज को नैतिक कहानियों से बांधने कि चेष्टा। बालक को बालपन से चरित्र कि शिक्षा। सब सहनीय हुआ पर म्रत्यु विषय सबसे बड़ा और असहनीय हुआ , और साथ में ये भी अहसास कि कितना भी शक्ति शाली बन जाओ म्रत्यु से शक्ति शाली कोई नहीं। पर इंसान हार कैसे माने ? लगा दी अर्जी अपने महानायक के सामने , पर दाल नहीं गली। अगर दाल गल जाती तो महानायक को मनुष्य के मानस से हटा पाना असम्भव सा होता , जैसा आज भी है क्यूंकि उसे लगता है कि १% ही सही महानायक उनकी सुनते है , और महाखलनायक को धराशायी करते है। सिर्फ महाखलनायक को ही नहीं रोज मर्रा में सर उठाने वाले खलनायको को भी उनके महानायक पस्त करते है मात्र उनके आगे अर्जी लगाने भर से।

लगा कुछ तो है , जो सबसे अलग है , यहाँ अध्यात्म ने पदार्पण किया , अध्यात्म ने मनुष्य की चेतना को नए अर्थो में प्रस्तुत किया , जो महा नायक और महा खलनायक कि कल्पना से सर्वथा अलग थी। एक चेतना और एक चेतना का प्रस्फुरण , और उस चेतना से अनेक चेतनाओं को जोड़ना , और उनको जोड़ने के लिए विभिन्न विधिया भी बनती चली गयी। जब कि आधार , सिर्फ सहजता और सरलता से आत्मस्वीकृति ही था।

क्या करे इंसान जो है इंसान को सपने देखने कि जन्मजात आदत है , उसका जन्म ही एक बड़े सपने के अंदर हुआ , और जैसे ही जन्म हुआ सो गया , फिर उठा फिर सो गया , सदियों से वर्षों से यही दिनचर्या अब उसके खून में मिल गयी , उठता है भागता है और सो जाता है , और हर बड़े सपने में छोटे छोटे सपने यूँ उसे भागते है है जैसे हर सपना वास्तविक ही हो. पर अंत में हर बड़े सपने में देखा गया छोटा सपना सपना ही साबित होता है , और इन सपनो में सपने और उनमे भी सपने देखने कि श्रृंखला अनंत है। जीवन की शुरआत एक बड़े सपने से और म्रत्यु उसी सपने का बड़ा अंत।

जैसेकभी भी इसका प्रयोग आप कर सकते है आप जब सोने जा रहे होते है तो तनिक इस जागरूकता के साथ सोएं कि मैं अब सोने जा रहा हु , जैसे ही आप नींद में गिरेंगे , ये आभास आपसे दूर हो जायेगा कि आप सोने गए थे , वो जीवन उसकी परेशानिया उनसे युध्ह , उन सपनो में भी महानायक और महा खलनायक पैदा हो जायेंगे। और सपना टूटा , तो आप स्वयं पे हँसेंगे। और इस बड़े सपने में फिर आप खो जायेंगे रोजमर्रा की भाषा में जिनको दिनचर्या कहते है

…… ज्ञानी जन कि वाणी में इसी को माया , माया का सम्मोहन या सम्मोहन निंद्रा भी कहा जाता है , ये ऎसी भयानक निद्रा है कि स्वयं आपके महानायक भी आपके आगे खड़े होक आपको समझाएं तो नहीं समझा पाएंगे , आप उनसे भी कहेंगे , स्वामी पहले मेरी ये इक्षा पूरी करो फिर मैं आपकी बात और आपकी सत्ता को मानु!

जाने अनजाने अपने इसी महानायक भाव के अंर्गत हम अपने सद्गुरु का चयन और पद प्रदान करते है , यही कारन है कि सदगुरु वो चाहे याके ना चाहे , उसको भगवान् का दर्ज मिलता ही मिलता है , समर्थक बनते ही बनते है और चूँकि समर्थन है तो असहमति भी जरुर है , तो धाराएं भी बनती है। उनके बाद मूर्तियां बनती ही बनती है , और एक नयी पूजा का अध्याय शुरू होता ही होता है ....... और फिर वही कहानी फिर वो ही चक्का माया का बिना रुके घूमता ही रहता है। 





माया महा ठगनी हम जानी , तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले माधुरी बानी , माया महा ठगनी हम जानी।। जरा इसको कबीर जी ने इस तरह से पूरा कहा है > 
तिरगुन फांस लिए कर डोले
बोले माधुरी बनी
केसव के कमला वे बैठी
शिव की भवन भवानी
पंडा के मूरत वे बैठी
तीरथ में भाई पानी
योगी के योगिन वे बैठी
राजा के घर रानी
काहु के हीरा वे बैठी
काहु के कोड़ी कानी
भक्तन के भक्तिन वेह बैठी
ब्रह्मा के ब्राह्मणी
कहे कबीर सुनो भाई साधो
यह सब अकथ कहानी 


इसी जागृत स्वप्न निंद्रा को कथा कहनियों में विशेष स्थान मिला है , जो जादू टोने सी लगती है , लुभावनी , मनोहारी , बच्चे देखते है हँसते है , कुछ के नए सपने शुरू हो जाते है। और आप और हम इनको अनदेखा करते है , जैसे हमारी पहचान ही नहीं।

एक प्रश्न आपके लिए , ये स्वयं आपसे ही पू
छियेगा और स्वयं को ही जवाब भी देना है। क्या सचमुच सत्य इतना दुरूह है , या हम सरल होने से घबराते है , सहजता हमको डराती है क्युकि हमको आवरण ही पसंद है 

आज इतना ही 

ॐ प्रणाम

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