Thursday 20 February 2014

प्रकृति में और आपके जीवन में सात रंगो की उपस्थिति स्वाभाविक :(Note )

प्रकृति प्राकृतिक है ....... वो आपकी इक्छा से नहीं , अपनी पृकृति से कार्य करती है , नियम से कार्य करती है , उसका नियम सार्वभौमिक है , बृहमांड से बाधित है , इसलिए यदि आपकी इक्छा में और आपके कार्य में फर्क होगा तो आपको एक बार न भी पता चले , प्रकर्ति से छुप नहीं सकता , वो भी आपकी प्रकृति अनुसार आपको दुगना करके वापिस कर देती है , इसलिए कोई भी छल और बल या कपटता यहाँ काम नहीं करती , सिर्फ और सिर्फ अंतर्मन का समर्पण और सच्ची प्यास … वो सब समझती है , और इंतजार में भी है जिस छन आपअपने कृत्यों से खाली होने लगते हो और आपमें संज्ञान प्रवेश करता है प्रकृति हर छण तत्पर है वो थकती नहीं और न ही उसके रुकने का कोई समय , जिस क्षण वो आपको खली पाती है भरने का कार्य शुरू करदेती है आपके लिए दुगना तिगुना करके आपका ही भाव आपको वापिस कर देतीहै , जैसे बहता हुआ जल , जैसे ही गड्ढा देखता है भरने लगता है उसको भर के ही आगे बढ़ता है वैसे ही आपको भी गड्ढा तैयार रखना है , उसका जल तो निरंतर बह रहा है।

बस ध्यान देने वाली बात ये है , आप में आज जो भी भाव प्रवेश कर रहा है , आपको वो ही दुगना करके वापिस मिलेगा। तो भावो के प्रवेश स्थल पे ही आपको पहरेदार बिठाना है। 



यही कारन है कि आपसे कहा जाता है सकारात्मक तरंगो को स्थान दीजिये , सकारात्मकता का स्वागत कीजिये , सकारात्मक तरगों को अपने आस पास अपने प्रारंभिक प्रयास द्वारा प्रवेश दीजिये , बाद में ये स्वयं आपके चारो तरफ अपना घेरा बना लेंगी , और प्रकर्ति के नियम से आप परिचित है ही। फिर उन क्षणो में आप के अंदर आपके आस पास सिर्फ और सिर्फ सकारात्मक कि तरंगे ही होगी , नकारात्मकता उन तरंगो को छूटे ही नष्ट हो जायेगी। 

आपने अक्सर सुना होगा सायकोलॉजिस्ट से और बड़े बुजुर्गो से भी , कि बालक कभी वो नहीं पालन करते जो आप आज्ञा देते है , बालक आपके व्यक्तिव का अनुसरण करते है , यानि कि जो आप चाहते है वो आपकी इक्षा है , और इक्षाएं तो अनंत है ,ये तो जल में उठी तरंगों के सामान है , अनगिनत , और सतही , इक्षाओं के पूरा होने न होने की कोई गारंटी नहीं।आपकी इक्षाओं के अनुपात में। आपकी इक्षाओं का आदर हो सकता है प्रयास हो सकता है , पर उनका पूरा होना विचार की एक अलग धारा है शब्दो से ज्यादा प्रभावी तरंगे होती है , आप क्या कह रहे है और क्या कर रहे है इसमें फर्क है , आपका कर्म ज्यादा प्रबल है और प्रकृति निष्पक्ष जो आपके कर्मो से उत्पन्न तरंगो को द्विगुणित करके आपको ही लौटाएगी। आपके बालक के लिए आपका व्यक्तित्व ज्यादा प्रेरणा दायक है , ज्यादा प्रभावी है , इसलिए हर बालक अपने माता पिता का जाने या अनजाने में अनुसरण करता है , कहीं न कहीं अति सूक्ष्म रूप से ये स्वभाव संस्कार रूप में उसके अंदर प्रवेश करता जाता है और साड़ी उम्र उस से जुड़ा रह कर आपको ही वापिस ब्याज रूप में लौटता है । 

प्रकृति तो बालक से भी ज्यादा संज्ञानी है उससे कैसे कुछ भी छुप सकता है। आपकी चाहत और आपके कर्म में तुरंत भेद कर लेती है , चाहत को परे कर कर्म का फल लौटाने लगती है। आपका वयक्तित्व सिर्फ आपके घर को ही नहीं आपके आस पास पर्यावरण को भी प्रभावित करता है। आप जहा जहांजाते है आपकी तरंगे आपके साथ साथ चलती है। इस लिए आपकी चाहत और आपके कर्मो में फर्क दिखायी पड़ता है। 


पर ये होगा कब ? कैसे ? जबकी नकारात्मकता आपका साथ नहीं छोड़ रही , वो बिंदु जहाँ आपकी चेतना (समझ ) आपके साथ है और नकारत्मकता-हताशा आपके दिमाग पे दस्तक दे रही है , आपको स्वयं से लड़ाई लड़नी पड़ रही है , वो ही क्षण है जब संज्ञान ने आपका साथ नहीं छोड़ा है , और वो अंदर से कमजोर तो है पर साँसे बाकी है , यही क्षण है , जब आपकी इक्षा है कि इस स्थति से बहार आया जाए , प्रकर्ति आपके उस भाव के भी साथ थी और आपको दुगना करके वापिस दे रही थी , प्रकृति आपके इस भाव के साथ भी है , और दुगना करके वापिस दे रही है , पर जब तक रंग मिले रहेंगे , उनका प्रभाव पता नहीं चलता , इंद्रधनुष जैसे रंग हैं जब साथ छोड़ते है तो धीरे धीरे एक रंग जाता है दूसरा आता है , कल्पना कीजिये लाल रंग तेजस्विता का है पर लाल रंग क्रोधः का भी रूपक है , यदि लाल रंग नकारात्मक है और आपके अथक प्रयास से वो आपका साथ छोड़ने को राजी है , और आपने अगले रंग नीला उसका स्वागत किया है वो आप में प्रवेश कर रहा है। एक स्थति ऐसी होती है जहा ये रंग मिल रहे होते है फिर धीरे से विदा लेने वाला रंग गायब हो जाता है और प्रवेश ले रहा रंग अपना प्रभाव पूर्ण रूप से डाल पता है। 

यही है भाव : जिसको साधुजन ( संज्ञानी ) कहते है प्रकृति आपको अवसर देती है , निरंतर ...... आप चूकेंगे ; वो फिर से आपको अवसर देगी। भाव रुपी रंगो का आना जाना , पूर्ण प्राकृतिक है ये भी चंचल है। कब जाने आपके अंदर कौन सा रंग प्रवेश कर जाये ,और फिर सम्पूर्ण प्रकृति दोगुना तिगुना करके आपको आपका ही भाव देने लगे , आप फिर से उसी फेर में फंस जायेंगे ..... इस के लिए जागरूकता का मंत्र है : सगजता और संतुलन की साधना , ये भी सच है कि जब तक आपके अंदर एक भी लौकिक फेरा बाकी है और आप अभी प्रयास रत है तो फेरों के प्रवेश की सम्भावनाये रहती है। पर एक जागरण कि स्थति वो भी है जब आपको प्रयास कि आवश्यकता नहीं , अब वो स्तिथि जीवन हो गयी , सजगता आपका व्यक्तिव बन गयी सरलता आपकी आत्मा का वस्त्र बन गयी , फिर सांसारिक रंग आयेंगे जायेंगे पर आपको प्रभावित नहीं कर पाएंगे। 

और आश्चर्य की प्रकृति रंगो से भरी है स्वाभाविक रूप से तो हर जीवन में रंग तो रहेंगे ही , हर रंग अपने एक सिरे में सकारात्मकता का प्रभाव लिए हुए है और अगले सिरे में नकारत्मकता का प्रभाव शामिल है , इनमे संज्ञान ही जागरूकता / सजगता है इनके प्रवाह को समझाना और स्वीकार करना सरलता है , और समर्पण सहजता। और आपका प्रयास लगातार आपकी जागरूकता से प्रकर्ति अपनी स्वाभाव अनुसारआपको द्विगुणीत कर आपको आपका ही भाव लौटाती है। और इस तरह अंततोगतवा आप प्रकर्ति के आशीर्वाद के पात्र बनते है। 

यही है एक संज्ञानी की जीवन यात्रा का पथ , और इसमें जलते हुए दिए , और खुशबूदार पुष्प निरंतर उस आत्मा का स्वागत करते है ...............

सात रंग प्रकृति में उनका समावेश और आप पे उनका प्रभाव इस पर चर्चा बाद में करेंगे , अभी इतना ही। 

ध्यान आपकी अंतर्यात्रा को सफल ..... सहज ..... सरल ..... और..... सुगम करे , इसी कामना के साथ ... 

ॐ प्रणाम

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