Monday 3 February 2014

पृकृति के अवसर , नियति और तथागत ( सिध्धार्थ ) - Note



सिध्धार्थ के जीवन में घटने वाली घटनाओं  ने उनके मन और मस्तिष्क पर  जो प्रभाव डाला  औसके फलस्वरूप  कुछ विश्लेषण उन्होंने किये  एक  प्रभाव  उन पर  तत्कालीन  वेद  और उनसे  बंधे  संस्कारो  और रस्मों  के  प्रति भी  था , जो सिर्फ वेदों तक सीमित  नहीं रह गया  सम्पूर्ण धर्म और धर्म ग्रन्थ और उनकी कट्टरवादिता से उपजे  विरोध को दर्शाता है -  उनके अनुसार  वेद पुराण  (कुरान  या बाइबिल ) ऐसे ही है जैसे कुछ इंसानो द्वारा  एक इंसान की आँखों पे  रस्मो की पट्टी बांध के  ग्रंथो  की जंजीरों में जकड के   संसार रुपी  गहरी  खायी में लटका दिया जाये ,  और उसको  कहा जाये  यदि  वो  आँखों को खोल  सके  तो  जंजीर  तोड़ के बाहर  आ सकता  है।  परन्तु  जैसे ही वो प्रयास करेगा  खायी में गिर के दम तोड़ देगा , नहीं तो लटके लटके मर ही जायेगा।  धर्म का स्वरुप ऐसा ही है , जो जन्म से मृत्यु तक का  खाका  खींच देता है।


ताबड़ तोड़ , पृकृति  ने उनके साथ उनकी यात्रा में   सहयोग कुछ इस तरह से किया , जबकि  उनकी कुंडली में नक्षत्र  सन्यास  योग बनाते  थे  तो  ज्योतिषियों  द्वारा राजा शुध्दोदन को उनको (सिध्धार्थ को) जन्म के समय  ही  सांसारिक दुखो से बचाने की सलाह दी गयी थी ,  बाकि तो कष्ट  तो  प्राबद्ध से  अपने अपने  अंतराल  से समयानुसार अपने अपने  वक्त  पे आये जिन्होंने उनके ह्रदय तार पे आंदोलन किया ....  पर एक बार क्रमशः  ताबड़तोड़  आये जिसने उनके ह्रदय को उद्वेलित ही नहीं परिवर्तित भी कर दिया ,  एक बालक  जिससे  वो अक्सर बात किया करते थे , एक दिन रोता हुआ आया  और बोला  मेरा भाई  कुछ बोल नहीं रहा  सांस भी नहीं ले रहा , पिता जी नदी किनारे ले गए  , आप चलो मेरे साथ ।  सिद्धार्थ  जब उसके साथ  नदी तट  पर गए  तो उन्होंने शव  देखा जिसको उसके पिता नदी में प्रवाह कर रहे थे  , और  अधिक पैसा न होने के कारन परपरागत  तरीके से दाह संस्कार नहीं कर पानेकी  असमर्थता  प्रकट करके विलाप कर रहे थे -  धन न होने के कारन मुझे अपने पुत्र को नदी में बहाना पड़ रहा है ,  यदि धन होता  तो पंडित  आता  अग्नि देता  मन्त्र पड़ता  तो मेरे पुत्र को भी मोक्ष मिल जाता ".   उनको  सिद्धार्थ ने  समझाया कि  वास्तव में वेद  संस्कार और उनके अर्थ क्या  है  ये मन्त्र   बोलने मात्र से ऐसा नहीं कि जीव मोक्ष को प्राप्त हो जायेगा। और जीवन के  वास्तविक मूल्यों को समझाया   परन्तु ये दृश्य उनके  ह्रदय में उतर गया।


फिर वो महल आये , वह उनकी पत्नी यशोधरा  ने  उनको  पिता बनने का  सुखद समाचार सुनाया , वो अति प्रसन्न होके ये  समाचार अपनी माता से  बाँटना चाहते थे ,  माता को तलाशते   जब उनके कक्ष तक आये तो पता चला  उनके माता पिता तो रेवा नदी के तट पे पूजा के लिए गए है , वे यशोधरा  के साथ  तुरंत नदी तट पर गए  , जहा एक और रहस्योद्घाटन हुआ  कि  दरअसल कि ये माता उनकी वास्तविक माता न हो के   सिर्फ धाय माँ  है  और वहाँ नदी के तट पे  उनकी  मृत  माता की  श्राध्द का  पूजन आयोजन था।   ये झटका बहुत बड़ा था उनके लिए , मिट्टी  के बने शरीर की  बार बार जीवन और बारम्बार मृत्यु के इस सुचना जाल ने उनको घेर लिया।  और वो अत्यंत उदासीन हो गए  …।

और जब उनके स्वयं  के   पुत्र का जन्म  हुआ  ………  तब तो जैसे  वे स्वयं ही  साक्षी हो गए  तमाम जीवन और मृत्यु  के इस   चक्र  खेल  के।  जिसकी  आने कि सुचना मात्र से वो खिल उठे थे उसके ही जन्म ने  उनको  वैराग्य  में धकेल दिया।


जीवन की क्षणभंगुरता  , भावनाओ की अस्थिरता  , और  संसार के दुःख  और उनसे निवृति कि प्यास ने उनके कदम  उसी तरफ मोड़ दिए  , जिस तरफ पृकृति अपनी पूरी शक्ति से  प्रयास कर रही थी और इस तरह तथागत का मार्ग प्रशस्त हुआ।


बुद्धम  शरणम् गच्छामि
धम्मम  शरणम् गच्छामि 
संघम शरणम् गच्छामि 

ॐ 

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