Monday 30 March 2020

महिषासुरमर्दिनि स्त्रोतम by Guru Adi Sankaracharya

Mahishasuramardini Stotra is a devotional stotra of Goddess Durga written by Guru Adi Sankaracharya (2000 BC). This devotional verse is addressed to Goddess Mahisasura Mardini, the Goddess who killed Demon Mahishasura (buffalo demon).
Kevin Sidharta Illustrator and Asset artist
Devi Durga flame Taken from https://youtu.be/385POboPIz8


अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते । भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥ सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥ अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते । मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥ अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते । निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥ अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते । दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥ अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे । दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥ अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते । शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥ धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके । कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥ सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते । धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥ जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते । नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥



अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते । सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥ सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते । शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥ अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्ग जराजपते त्रिभुवनभुषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते । अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥ कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले । अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥ करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते । निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥ कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥ विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते । सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते । जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥ पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् । तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥ कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम् भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् । तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥ तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते । मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥ अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते । यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

In The End of Devi Mahishasurmardani,  Prayers from Shankari Or Raj Rajeshwari Or Devi Durga Or Devi Bhagvati 
Pahimam Sree Raja Rajeswari Kripakari ShankariPahimam Sree Raja Rajeswari Kripakari Shankari
PallaviPahi maam Sri raja Rajeswari,Krupakari, Sankari,
AnupallaviEhi sukham dehi Simhavahini ,Daya pravahini , mohini
CharanamBhanda, Chanda , munda Khadini ,Mahisha banjani, Ranjani ,Niranjani ,Panditha Sri Guha dasa poshini,Subashini, Ripu Bheeshani , Vara Bhooshani



Meaning (approximate):* My (“maam”) obeisances (“paahi”) to the goddess Raja Rajeshwari, who is the kind one (“krupakari”)* and the wife of Shankara (“shankari”). She is the one who bestows (“dehi”) unsurpassed happiness(“ehi sukham”). She is the one who rides (“vahini”) on a lion (“simha”). She is a river of kindness, and*the enchanting one. She is the one who destroyed (“khandani”) the demons: Bhanda, Chanda, Munda* and Mahisha. She is the entertaining one (“Ranjani”) and the spotless one (“Niranjani”). She is the one* who takes care (“poshani”) of the learned “guhadaasa” (the composer). She has sweet (“su”) voice and* speech (“bhashini”). She is the one who defeats (“bheeshani”) enemies (“ripu”) and grants(“bhushani”) boons (“vara”). 


English meaning

Pallavi

Protect me, Sri raja Rajeswari,

Who does merciful acts and is the wife of Sankara.



Anupallavi

Grant me unsurpassed pleasure, Oh rider on the lion,

In whom mercy flows like a tide and who is very pretty.



Charanam

Killer of Chanda, Munda and Bhandasura,

Killer of Mahisha, attractive goddess,

The spotless one who encourages the learned Guhadasa,

The Goddess who can speak sweetly,

Who is fearsome to her enemies and decorates us with boons.



Sunday 29 March 2020

नाड़ी-अनुभव


मोटा मोटा सभी जानते है रीढ़ सीढ़ी  रखना , श्वांस गहरी और गंभीर लेना , अनेक बिमारियों और मानसिक उत्तेजना को संतुलित करती है ।  नहीं तो थोड़े से विज्ञान के माध्यम से शरीर दर्शन सूत्र लेके जान सकते हैं।  की देह में रीढ़ का महत्त्व क्या है। अलावा की आपके बैठक को सीधा रखती है , रीढ़ की गुरियां बहुत कुछ अनकहा अपने में समेटे हैं।

इसमें  रीढ़ के भीतर एक जीवन - प्रवाह है  मांस मज्जा से अलग ऊर्जा प्रवाह है।   जिसका एक छोर  रीढ़ के निचले हिस्से से  सांप के फैन की शक्ल का और दूसरा  गर्दन के पास  पूँछ की तरह हड्डी की शक्ल में  सर की हड्डी में  जा  फंसता  है , प्राण ऊर्जा  जो वायु का रूप है  वो दाएं और बाएं नासिका छिद्रों से अंदर को और बाहर को बहती है,   जिसे प्राण वायु का अबाध बहना कहते हैं।

ये प्राण वायु  को थोड़ी साधना से  नाक के दोनों पोरों में बहती  सांस  के माध्यम से जाना जा सकता है  ये बायीं और की नासिका से आती जाती सांस ठंडी  यानि चन्द्रमा और स्त्री ऊर्जा को संकेत करती है  जबकि दायीं और  की गर्म , सूर्य और कार्मिक उत्तेजना को इशारा करती है ,  यहाँ संतुलन के लिए निश्चित नाड़ी में निश्चित प्राण प्रवाह  देने की विधि जिसे अनुलोम-विलोम विधि कहते हैं।

मध्य में सुषम्ना  संतुलन को इशारा करती है , जब मन स्थिर  सांस गहरी  और मध्य में स्वतः चलने लगे  वो संतुलन की और इशारा करती है।

इन साँसों के  चलने के तरीके में  पंचतत्व का गुणात्मक  वास है धरती तत्व की मौजूदगी में  सांस शांत और गंभीर।  जलतत्व में कम गहरी और अग्नितत्व सक्रीय है तो सांस उत्तेजित हो के चलती है।


कहते है जब आपकी साँसे किसी भी कारन विकार से ... तेज तेज चलती  हो तो उन्हें गंभीर बनाना आपके स्वस्थ्य के लिए लाभदायक है।


श्वांस गंभीर होते ही  सुष्मन में जीवन प्रवाह होने लगता है।   इड़ा और पिंगला  मूल  या मुक्ति युक्ति से उठ  योग युक्तियों को  छूती हुई  आज्ञा तक जा के नासिका से बाहर निकलती है  और पुनः प्राणवायु  रस्ते अंदर आती हैं।  जबकि सुष्मना  का ऊर्जा प्रवाह सहस्त्र को  बढ़ चलता है।

ये जो मुक्ति योग है  यहाँ से  दोनों इड़ा और  पिंगला सर्पनी की तरह ऊपर को उठती है  और हर चक्र पे युति योग  बनाती  संतुलन साधती  ऊपर को बढ़ती  बाहर को  और ऐसी ही अंदर को  फिर मूल तक जाती है।

और हर चक्र  मानव के नाना प्रकार के गुणदोष , ज्ञान , भाव,  और भय से जुड़ा है।

योग में निर्देश है इड़ा और पिंगला के अनेक संतुलन हैं  और पांच तत्वों  की गहराई के साथ  मिल कर  इनके मध्य में रहते हुए  साँसों के माध्यम से  ऊर्जा प्रवाह में संतुलन करना श्रेयसकर है।   और इस संतुलन के साथ  लोक कार्य  में संलग्नता  सर्वोत्तम है।  किन्तु  एक बार यदि  मध्य में ऊर्जा का प्रवाह  संतुलन से  होने लगे तो वो स्थति हर  साधक के लिए सर्वोत्तम है  उस शक्ति को  भौतिक कार्यों में खर्च न करें। 

और  इस संतुलन का पता भी हमारी साँसे ही देती हैं  यानी दोनों नासिका पट में साँसों का प्रवाह एक सामन।  और एक एक आती जाती सांस गहरी गंभीर।

शुभकामनाये। 

Wednesday 25 March 2020

त्राटक


त्राटक शब्द का अर्थ – 
त्राटक शब्द का अर्थ होता है किसी एक विशेष वस्तु पर अपनी नजरो से लगातार देखते रहना.  
त्राटक क्रिया हठ योगा का एक प्रकार है. यह हठ योगा के सात अंगो में से एक अंग षटकर्म की एक क्रिया है. 
हठयोग में इस क्रिया का वर्णन दृष्टि को जाग्रत करने की शक्ति के रूप में किया गया है. आँखों को
आत्मा का प्रवेशद्वार माना जाता है. त्राटक साधना द्वारा आँखों को आत्मा और मन के बीच संपर्क स्थापित
करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है. त्राटक मेडिटेशन शरीर को शक्ति और शुद्धी प्रदान करने के लिए 
की जाती है.

आज के जमाने में त्राटक क्रिया का महत्व IMPORTANCE OF TRATAK KRIYA 

आधुनिकीकरण के इस जमाने में मानव के जीवन में तनाव, अवसाद, अशांति, नकारात्मक विचार भी
शामिल हो गए है. कई तरह की रिसर्चे सामने आई है जिनसे पता चला है की मानव कई सारी उर्जा और समय
अनावश्यक विचारो को सोचने में लगा देता है. ऐसी स्थिति में त्राटक साधना द्वारा वह अपने विचारो और
उर्जा को सही दिशा प्रदान कर सकता है. इस मेडिटेशन  से आप अनचाहे और नकारत्मक विचारो को अपने
जीवन से बाहर फेंक पायेंगे. त्राटक क्रिया से आपका फोकस बढेगा, अशांति दूर होगी और आप तनावमुक्त
जीवन जी पाओगे.

त्राटक मेडिटेशन के क्या लाभ होते है. BENEFITS OF TRATAK MEDITATION 

त्राटक मेडिटेशन का प्रयोग वैसे तो ज्यादातर आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है लेकिन इसके
अलावा भी इस योग के कई लाभ होते है. जिनका मन बहुत चंचल होता है, मन में हर समय तरह तरह के विचार
आते है, जो मन को एकाग्रचित नहीं रख पाते.  उनके लिए त्राटक साधना बहुत उत्तम होती है. त्राटक साधना से
हमारा शरीर स्वस्थ रहता है. त्राटक मेडिटेशन का इस्तेमाल अपनी याददाश्त और फोकस पॉवर बढ़ाने के लिए
किया जाता है. यह योग आँखों के लिए भी बहुत अच्छा होता है और इससे आँखों की रौशनी बढती है. नेत्र संबंधी
रोगों को ठीक करता है. मन को शांत रखता है. जिन लोगो का मन अशांत रहता है उनके लिए ये बहुत लाभदायक
होता है.

त्राटक साधना के प्रकार KINDS OF TRATAK MEDITATION  

3 TYPES OF TRATAK SADHNA {त्राटक साधना के 3 प्रकार होते है} 

INNER TRATAK (इनर त्राटक)
यह साधना आँखों को बंद करके की जाती है. इस मेडिटेशन में आपको अपने अन्दर ही ध्यान एकाग्र करना
 होता है. इसमें पीठ को सीधा रखते हुए बैठ जाए और अपनी तीसरी आँख (दोनों आँखों के बीच का हिस्सा) पर फोकस करना होता है. इससे आपको तीसरी आँख में थोडा दर्द अनुभव होगा जो की समय के साथ धीरे 
धीरे गायब होता जायेगा. यह मैडिटेशन नकारात्मक विचारो को दूर करने, बुधिमत्ता बढ़ाने  में उपयोगी होता है.
MIDDLE TRATAK (मिडिल त्राटक)
त्राटक मेडिटेशन में आपको अपनी आँखों को खुला रखना होता है. इसमें आपको किसी मोमबत्ती या लैंप फ्लेम
या किसी बिंदु पर बिना पलके झपकाए ध्यान केन्द्रित करना होता है. इससे आपकी आँखों को थोडा जलन का
अनुभव हो सकता है. इसमें बाधा पहुचने पर आप इसे बंद करके दोबारा ध्यान चालु कर सकते है. इसके नियमित
अभ्यास से आँखों में कम जलन होना शुरू हो जाता है. इससे आपकी आँखों की रोशनी बढती है और  स्मरण शक्ति
तेज होती है. यह साधना ध्यान लगाने वाली वस्तु को अपनी आँखों से लगभग बीस बाईस इंच की दुरी पर रखकर 
की जानी चाहिए.
OUTER TRATAK (आउटर त्राटक)
इस साधना में चाँद सूरज या सितारों को देखकर ध्यान केन्द्रित किया जाता है. यह दोपहर या रात के समय
किया जा सकता है.   यह मन को शांत रखता है, एकाग्रता बढ़ाता है. मानसिक विकारो को दूर करता है और

त्राटक मेडिटेशन को करने की विधि TRATAK MEDITATION VIDHI

  • त्राटक के लिए किसी अँधेरे या शांत कमरे का चुनाव कीजिये,
  • अपनी रीढ़ की हड्डी और शरीर को सीधा करते हुए बैठ जाइये, इनर त्राटक के लिए अपनी आँखों को बंद कीजिये और अपनी तीसरी आँख पर ध्यान केन्द्रित कीजिये और मिडिल त्राटक  के लिए किसी वस्तु जैसे की मोमबत्ती या लैंप फ्लेम को 25 या 30 इंच की दुरी पर अपने आँखों के समानांतर ही रखिये और इस पर ध्यान केन्द्रित कीजिये यानी की लगातार देखना है.

त्राटक मेडिटेशन मे इन बातो का रखे ध्यान

  • त्राटक के निरंतर अभ्यास से आपकी बिना आँख झपकाए देखने की अवधि बढ़ेगी.
  • ये अभ्यास आप ज्यादा से ज्यादा दस मिनट तक कर सकते है. जो की निरंतर अभ्यास से ही संभव है.शुरुआत में आँखों में जलन या आंसू निकल सकते है. पर समय के साथ धीरे धीरे आप अनुभव करेंगे की आप ज्यादा देर तक बिना पलक झपकाए अपना ध्यान केन्द्रित कर पा रहे है.
  • एक बार में दस मिनट से ज्यादा त्राटक का अभ्यास आँखों को नुकसान भी पंहुचा सकता है,  ३ या ४ बार दोहराया जा  सकता है। 
  • त्राटक के परिणाम लाभदायक होते है और लम्बे समय तक अनुभव किये जाते है