Tuesday 23 February 2016

WISDOM looking backward ! step by step ...

Let's start to count steps , backward :-

KEEP IN  MIND THESE ARE STEPS OF WISDOM STAIRCASE AND EACH STEP IS NOT PLAY, ITS LIFE , MOVE CAREFULLY WATCHFULLY AND CONSCIOUSLY )

0 * Start with where is God is no more different identity and they appears two but they are one ..... and after that next -

9 * If highly enlightened soul says with life ,' they are more from yogi and philosophy ', its means they walk through and now they here .

8 * If yogi say with experiences ,' they are not philosopher ' , its only means they were before.

7 * If Philosopher says with logical mind ,' they are not ritually religious '. its only means now they are more wise and thoughtful .

6 * If Religious says with aggression ,' they are not as common public ' , it only mean they were before and now they moves forward .

5 * If common person says with pride ,' Listen Man ! its my achievement ...!! " further no need to explain , the person already on ground .

and for 4-3-2-1 * the road is very slippery , falling , running , moving so fast ... can't stay much at one place .


~~~~~~~ Now in middle of walks of wise ; before to reach yogi .... the wisdom river split in two one is spiritual and philosophical and another is Scientist , actually both are twins grin emoticon or two leg of one body , they can move forward with all joining hands like emoticon one is on fly upon galaxies with another is works on ground with proves . just alike twins either equally qualitative or they are best rivals forever opposite by owning separate " minds " through birth by one mother .

Monday 22 February 2016

ऐ भाई ! जरा देख के चलो।

बड़ा सहज सवाल और जवाब है की ~

* अगले जनम में कुछ सही / गलत कर्म फल युक्त करेंगे या नहीं, इसका कोई निश्चय है की नहीं !
( कोई मस्तिष्क की अभ्यासी धारणा उस महान अनिश्चित की )

या पिछले जन्म का आज भोग हो रहा है की नहीं !
( उत्सुकता अज्ञान की और सहज ही न समझ आने वाले गोल गोल जवाब ज्ञान के ) .

धारणा और ध्यान के अलावा मस्तिष्क अपनी उत्सुकता अग्नि की जलन को कैसे शांत कर सकता है ! सिवाय जन्म चक्र कारन निवारण को "समूल" समझने के ! जिसे योग साधना भी कहते है !

चलिए ; आज दोनों को ही जानने की कोशिश करते है !

कारन ~ कर्म बंधन चक्र , गुरुत्व से आत्मिक जुड़ाव , और सुख दुःख दर्द की छटपटाहट
निवारण ~ * धारणा * ध्यान * समाधी
फल ~ परम शांति , पहले कर्म और कर्मफल अर्थात भाग्य चक्र फिर जन्मचक्र से मुक्ति... !

* क्या आपको ये आत्मिक मानसिक पीड़ा अवस्था किसी बीमारी के लक्षण नहीं लगते ! जिसकी दवा की जा रही है !
और इलाज होते ही मर्ज गायब ! 

फिर न मरीज न न मर्ज और न ही डॉक्टर !

जब आपकी हमारी अवस्था उस सत्य को छुएगी या पहुंचेगी तो अपनी स्थति पे और संसार की उलझन पे चिर प्रतीक्षित ठहाका स्वतः निकलेगा , ये भी सत्य है !

क्यूँ ! 

क्यूंकि उस चक्र से बाहर ...... कोई भी अवस्था नहीं ......... कोई विचार नहीं ..... कोई धरना ध्यान से भरी .... स्वतंत्रता नहीं। और यही इसी चक्र के केंद्र में जन्म / फल के चक्र का अस्तित्व भी है। उसी में भगवन और भक्त अभक्त सभी डोल रहे है। कोई भी बाहर नहीं !

हमारे भगवन बड़े संकल्प के साथ जन्म ले रहे है और हम जैसे छोटे छोटे  संकल्प के साथ छोटे छोटे  जन्म  मरण चक्र   में  गोते लगा  रहे  हैं  । जिसका जैसा योग चक्र ( aura ) का घेरा , उसका वैसा ही जन्म का संकल्प और उसे पूर्ण करने के प्रयास। छोटा है तो एक दिन ( १ मिनट ) में ही पूरा नहीं तो १ घंटा / २४ घंटा / १ वर्ष / या १०० दस करोड़ वर्ष , तो कोई युग परिवर्तन नाम के कर्म से युगदृष्टा / देश- काल - संस्कृति का भाग्यविधाता बन के जुड़ गया है । कहीं मान या अभिमान का प्रश्न ही नहीं ! प्रश्न है स्वतंत्रता का और चक्र को तोड़ने का। जिसने तोडा वो स्वतंत्र। अभी नहीं तो इस राह पे एक एक चक्र टूटते ही जायेंगे और अंत में बचेगा बड़ा सा स्वतंत्र-विस्तृत-शून्य।

ऐसा शून्य जिसको कोई भी माया लिप्त संसारी जीव या साधु वास्तव में नहीं चाहता। क्यूं कि फिर न सीखने को कुछ है , न ही सिखाने को , न कोई धर्म न कोई रिश्ता , न कोई भक्त , न कोई भगवन। न कोई गुरु , न कोई चेला। सारी दुकानें , सारे राग द्वेष के व्यापार-व्यवहार बंद।

कैसा भी हो ! किसी का भी हो ! विश्वास का टूटना पीड़ा देता है। 

और जो विश्वास जन्म से जुड़ा हो , जो विश्वास बुद्धि से जुड़ा हो , जो विश्वास भाव से जुड़ा हो , जो विश्वास सम्बन्ध से जुड़ा हो , वो टूटे (या कोशिश हो ) तो लाउडस्पीकर से भी नहीं जुड़ता ....!

बल पराक्रम का खूनखराबा दंगा फसाद राजनैतिक और धार्मिक कारणों से जुड़ जाना , स्वाभाविक है।

पर अंत  में  " दाग "  ऐसे  वैसे  कैसे  और जैसे भी हों उनका धुल जाना , अच्छा ही है !

 एक ही  भाव  ,'  ऐ भाई ! जरा देख के चलो ।'

संकेत :- ये चक्र अपना ही है , दर्शन अपना है , " यथा दृष्टि तथा सृष्टि " इसी को समझने समझाने में तमाम योगी ध्यानी और अभ्यासी प्रयासरत है। पर ये भी सच है .... भाव की नाव का भव-सागर में बड़ा महत्त्व है। जो जिस कारन से / जिस भाव से भवसागर में उतरता है ; उसी को और भी बल युक्त करके पुनः उपलब्धि को प्राप्त हो जाता है। फिर वो चाहे राजनैतिक हो / धार्मिक हो / या सांसारिक - धार्मिक राजनैतिक दार्शनिक कलात्मक या वैज्ञानिक। और इसी कारन अपना ही मत हर बार और भी प्रबल हो खुद से ही मिलता है।

* और हमें  यानि कि  हमारे मस्तिष्क / भाव को लगता है की " देखा हम ही सही ! " 

 ( हैं न अद्भुत संतुष्टि साधन )