Saturday 15 March 2014

जिस दिन तुम तैयार हो जाते हो, उस दिन परमात्मा से मिलन हो जाता है। osho

"जन्मों-जन्मों से हमने दुख का अनुभव जाना, लेकिन किस कारण हमें हमारी भूल नहीं दिख पाती!'

नहीं, न तो जन्मों-जन्मों से कुछ जाना है, न तुमने दुख जाना है, अन्यथा भूल दिख जाती। यही भूल है, कि तुम समझ रहे हो कि तुमने जाना है, और जाना नहीं। अब यह भूल छोड़ो। अब फिर से अ, ब, स से शुरू करो। अभी तक तुम्हारा जाना हुआ किसी काम का नहीं। अब फिर से आंख खोलो और देखो। हर जगह, जहां तुम्हें सुख की पुकार आए, रुक जाना। 
वह दुख का धोखा है। मत जाना! कहना, सुख हमें चाहिए ही नहीं। शांति को लक्ष्य बनाओ। सुख को लक्ष्य बनाकर अब तक रहे हो और दुख पाया है। अब शांति को लक्ष्य बनाओ।

शांति का अर्थ है, न सुख चाहिए। न दुख चाहिए क्योंकि सुख-दुख दोनों उत्तेजनाएं हैं। और शांति अनुत्तेजना की अवस्था है। और जो व्यक्ति शांत होने को राजी है, उसके जीवन में आनंद की वर्षा हो जाती है। जैसा मैंने कहा, सुख दुख का द्वार है। ऐसा शांति आनंद का द्वार है।

साधो शांति, आनंद फलित होता है। आनंद को तुम साध नहीं सकते। साधोगे तो शांति को। और शांति का कुल इतना ही अर्थ है, कि अब मुझे सुख-दुख में कोई रस नहीं। क्योंकि मैंने जान लिया, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अब मैं सुख-दुख दोनों को छोड़ता हूं। जो दुख को छोड़ता हैं, सुख को चाहता है, वह संसारी है। जो सुख को मांगता है, दुख से बचना चाहता है वह संसारी है। जो सुख-दुख दोनों को छोड़ने को राजी है, वह संन्यासी है।
संन्यासी पहले शांत हो जाता है। लेकिन संन्यासी की शांति संसारी को बड़ी उदास लगेगी; मंदिर का सन्नाटा मालूम होगा। वह कहेगा, यह तुम क्या कर रहे हो? जी लो, जीवन थोड़े दिन का है। यह राग-रंग सदा न रहेगा, कर लो, भोग लो। उसे पता ही नहीं, शांति का जिसे स्वाद आ गया उसे सुख-दुख दोनों ही तिक्त और कड़वे हो जाते हैं। और शांति में जो थिर होता गया--शांति यानी ध्यान; शांति में जो थिर होता गया, बैठ गई जिसकी ज्योति शांति में, तार जुड़ता गया, एक दिन अचानक पाएगा, आनंद बरस गया।

शांति है साज का बिठाना; और आनंद है जब साज बैठ जाता है, तो परमात्मा की उंगलियां तुम्हारे साज पर खेलनी शुरू हो जाती है। शांति है स्वयं को तैयार करना; जिस दिन तुम तैयार हो जाते हो, उस दिन परमात्मा से मिलन हो जाता है। इसलिए हमने परमात्मा को सच्चिदानंद कहा है। वह सत है, वह चित है, वह आनंद है। उसकी गहनतम आंतरिक अवस्था आनंद है। 

Piv Piv Lagi Pyas - 08

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