Wednesday 26 March 2014

स्वयं का अनुभव; एक बूंद इत्र ,कीमत हजारों फूलों से भी ज्यादा (Osho )

पलटू का वचन महत्वपूर्ण है। छोटा, लेकिन ऐसे जैसे कोई कुंजी हो कि बड़े से बड़े ताले को खोल 

दे,कि ताले को खोल कर एक पूरे साम्राज्य का मालिक तुम्हें बना दे। सूत्र तो छोटे ही होते हैं। 


लेकिन सूत्रों में छिपे हुए रहस्य बड़े होते हैं। एक-एक सूत्र एक-एक शास्त्र बन सकता है। सूत्र


तो यूं है जैसे कोई हजारों गुलाब के फूलों को निचोड़े और एक बूंद इत्र बने। लेकिन उस एक 


बूंद इत्र की कीमत हजारों फूलों से भी ज्यादा है। उस एक बूंद इत्र की सुगंध, हजारों फूल जो 


काम न कर सकें, कर सकती है।




पलटू सीधे -सादे आदमी हैं, पंडित नहीं हैं, शास्त्रों के ज्ञाता नहीं हैं, लेकिन स्वयं का अनुभव किया

है। और वही शास्त्रों का शास्त्र है। वेद से चूके तो कुछ खोओगे नहीं; अपने से चूके तो सब गंवाया।


कुरान आई या न आई चलेगा, लेकिन स्वयं की अनुभूति तो अनिवार्य है।


जो अपने को बिना जाने इस जगत से विदा हो जाते हैं, वे आए ही नहीं; आए तो व्यर्थ आए; 

उन्होंने नाहक ही कष्ट झेले। फूल चुनने आए थे और कांटों में ही जिंदगी बिताई। आनंद की 


संभावना थी, ऊर्जा थी, बीज थे, भविष्य था, लेकिन सब मटियामेट कर डाला। जिससे आनंद


बनता उससे विषाद बनाया। जो अमृत होता उससे जहर निर्मित किया। जिन ईंटों से स्वर्ग का


महल बनता उन्हीं ईंटों से, अपने ही हाथों से, नरक की भट्टियां तैयार कीं। और चूक छोटी सी,


चूक बड़ी छोटी सी--कि अपने को बिना जाने जीवन की यात्रा पर चल पड़े; अपने को बिना पहचाने


जूझ गए जीवन के संघर्ष में; अपने को बिना पहचाने हजार-हजार कृत्यों में उलझ गए; खूब 


बवंडर उठाए, आंधियां उठाईं, तूफान उठाए; दौड़े, आपाधापी की, छीना-झपटी की; मगर यह पूछा


ही नहीं कि मैं कौन हूं, कि मेरी नियति क्या है, कि मेरा स्वभाव क्या है।



और जब तक कोई व्यक्ति अपने स्वभाव को न जान ले, जो भी करेगा गलत करेगा; और जिसने 


स्वभाव को जाना, वह जो भी करेगा सही करेगा। 



इसलिए मैं तुम्हें नीति नहीं देता हूं और न कोई ऊपर से थोपा गया अनुशासन देता हूं; देता हूं


केवल एक प्यास--एक ऐसी प्यास जो तुम्हें स्वयं को जानने के लिए उद्वेलित कर दे, जो 


तुम्हारे भीतर एक ऐसी आग जलाए कि न दिन चैन न रात चैन, जब तक कि अपने को न 


जान लो। और जिसने भी अपने को जाना है, फिर कुछ भी करे, उसका सारा जीवन सत्य का


जीवन है। लोग पहचानें कि न पहचानें, लोग मानें कि न मानें, स्वभाव की अनुभूति के बाद,


सत्य की किरणें वैसे ही विकीर्णित होने लगती हैं जीवन से, जैसे सुबह सूरज के ऊगने पर 


रात विदा हो जाती है, और पक्षियों के कंठों में गीत आ जाते हैं, और फूलों में प्राण आ जाते हैं।


रात भर सोए पड़े थे, आंखें खोल देते हैं। पंखुरियां खुल जाती हैं, गंध विकीर्णित होने लगती है। 


ऐसे ही स्वयं का अनुभव परम का अनुभव है। 


Apui Gai Hira - 01

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