Sunday 30 March 2014

बोधि_वृक्ष से झरते पत्ते और सहज ध्यान (Note )

सहज यानि कि स्वाभाविक बिना प्रयास के जो ध्यान लग जाये , वो सहज ध्यान है , इस ध्यान में उतरने कि प्रेरणा भी आप स्वयं के अंदर से ही पाते है , बहुत ही कोमल प्रवाह है तरंगो का और गतिशील , और शुरूआती दौर में एक झटके में ही विलुप्त भी हो जाती है , यदि वैचारिक उथल पुथल में तूफ़ान है , किन्तु प्रयास में कमी न पाके फिर ये ध्यान सहज हो जाता है। जैसे ही एक एक ज्ञान दीप के जलना शुरू होते ही , ये तरंगे स्वयं सहज संतुलित हो जाती है। और यहाँ से आप अपने अंदर एक परिवर्तन अनुभव कर सकते है किन्तु ये परिवर्तन ठहराव नहीं है , शुरुआत है। 

Photo: बोधि_वृक्ष  से  झरते पत्ते और सहज ध्यान :
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सहज यानि कि स्वाभाविक  बिना प्रयास के जो ध्यान लग जाये , वो सहज ध्यान  है , इस ध्यान में उतरने कि प्रेरणा  भी आप स्वयं के अंदर से ही पाते है  , बहुत ही कोमल  प्रवाह है  तरंगो का  और गतिशील , और शुरूआती  दौर में  एक झटके में ही  विलुप्त भी हो जाती है , यदि   वैचारिक  उथल पुथल  में तूफ़ान है , किन्तु  प्रयास   में कमी न पाके  फिर ये ध्यान सहज  हो जाता है।  जैसे ही  एक एक ज्ञान दीप के जलना  शुरू  होते ही ,  ये तरंगे  स्वयं  सहज  संतुलित हो जाती है।  और यहाँ से आप अपने अंदर  एक परिवर्तन  अनुभव कर सकते है  किन्तु  ये  परिवर्तन  ठहराव नहीं है , शुरुआत  है।  

ध्यान  में उतरते ही , कुछ समय के अंदर  ही क्षणिक परिवर्तन (सामायिक  , क्यूंकि अभी  स्थिर नहीं है , आयेंगे   राहत देंगे  परन्तु  अस्थिर  है इसलिए लुप्त हो जायेंगे)  अनुभव किये गए है , जैसे उसी दृष्टि के साथ  अंतर्दृष्टि के विकास की प्रक्रिया  शुरू हो जाती है , शुरुआत में , किसी  लेखन कला  के नजरिये से  या  कवी के  काव्यात्मक  दृष्टिकोण नहीं  वरन  वास्तविक दृष्टि के साथ  वस्तु और जीवन  में भेद नज़र आने लगता है , जैसा  हम सभी जानते है  कि  उन्ही शब्दो  के  समूह के साथ  भाव कैसे अपना खेल खेलते है  इस लिए शब्दो  के  संयोजन कि चालाकियों  में ज्यादा  समय नहीं  बिता के  भावो के मूल को  और सहजता , सरलता  को  समझना है ।   यहाँ भी आप देखेंगे कि  आपके आस पास ज्यादा कुछ नहीं बदला , बस आपकी  जीवन दृष्टि   या अंतर्दृष्टि में सहजपरिवर्तन आने लगा है।  इसके साथ ही इस यात्रा पे  चलते चलते , आपको वो हर  भाव जो अति कष्टप्रद लगा करता था , हास्यास्पद  लगने लगता है।  

ये सब  भी बहुत शुरूआती परिवर्तन है , क्यूंकि आगे कि यात्रा में  स्वतः एक एक करके  बोधि_वृक्ष  के पत्ते   जैसे जैसे सूखते जाते है , ये सांसारिक  भाव  स्वयं ही आपसे छूटते जाते है।  बिना प्रयास के। 

ॐ ॐ ॐ

ध्यान में उतरते ही , कुछ समय के अंदर ही क्षणिक परिवर्तन (सामायिक , क्यूंकि अभी स्थिर नहीं है , आयेंगे राहत देंगे परन्तु अस्थिर है इसलिए लुप्त हो जायेंगे) अनुभव किये गए है , जैसे उसी दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि के विकास की प्रक्रिया शुरू हो जाती है , शुरुआत में , किसी लेखन कला के नजरिये से या कवी के काव्यात्मक दृष्टिको
ण नहीं वरन वास्तविक दृष्टि के साथ वस्तु और जीवन में भेद नज़र आने लगता है , जैसा हम सभी जानते है कि उन्ही शब्दो के समूह के साथ भाव कैसे अपना खेल खेलते है इस लिए शब्दो के संयोजन कि चालाकियों में ज्यादा समय नहीं बिता के भावो के मूल को और सहजता , सरलता को समझना है । यहाँ भी आप देखेंगे कि आपके आस पास ज्यादा कुछ नहीं बदला , बस आपकी जीवन दृष्टि या अंतर्दृष्टि में सहजपरिवर्तन आने लगा है। इसके साथ ही इस यात्रा पे चलते चलते , आपको वो हर भाव जो अति कष्टप्रद लगा करता था , हास्यास्पद लगने लगता है। 

ये सब भी बहुत शुरूआती परिवर्तन है , क्यूंकि आगे कि यात्रा में स्वतः एक एक करके बोधि_वृक्ष के पत्ते जैसे जैसे सूखते जाते है , ये सांसारिक भाव स्वयं ही आपसे छूटते जाते है। बिना प्रयास के। 



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