Tuesday 11 March 2014

Note - भारतीय दर्शन एक वैज्ञानिक दृष्टि : क्या दर्शन की गहराई तथा दृष्टि धर्म तथा अध्यात्म से भी ज्यादा वैज्ञानिक अथवा प्रमाणिक !

दर्शन मुख्य रूप से जाना जाता है रहस्यमयी ब्रह्माण्ड में विचरने और मन्थन_ साक्ष्य द्वारा प्रमाण जुटा के मानवीय जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए प्रयास रत श्रेष्ठ ऊर्जाओं के अनवरत प्रयास के लिए ......

अपने बौद्धिक मनन चिंतन प्रवृत्ति द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचने की प्रक्रिया ही दर्शन कहलाती है । 

प्रकृति और शक्ति का दिया कुछ भी साधारण नहीं , व्यर्थ तो बिलकुल नहीं ; हर एक का कुछ न कुछ अर्थ अवश्य है . दार्शनिक भाषा में इसको " कार्य से कारण की उत्पत्ति " के सन्दर्भ में भी समझा जा सकता है ,अपने शरीर से ही शुरू कर सकते है , उत्पत्ति, कार्य और कारण की क्रमबद्धता है , एक दूसरे में गुथे हुए है एक दूसरे से। इसी नेति नेति की क्रिया को अपनाते हुए दार्शनिक विचारों कि क्रमबद्ध से पीछे जाते हुए आहिस्ता आहिस्ता अनसुलझे रहस्य को उजागर कर पाते है , और कई मानसिक उथल पुथल यहाँ विश्राम पाती है।

कार्य से कारण का अटूट सम्बन्ध ; एक क्षीण होता है तो दूसरा स्वयं ही शक्तिहीन हो जाता है -

कारण - अस्तित्व के होने का कारण अवश्य है
कार्य - कारण से कार्य की उत्पत्ति और कार्य से कारण की उत्पत्ति की अनंत अंतहीन श्रृंखला।

ईश्वर की वो सत्ता जो मनुष्य ने जानी है वो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और विनाश के कहीं अति मध्य में है। क्यूंकि आदि और अंत में विचारों का कोई स्थान नहीं। बृह्मांड के मध्य में अनंत कारन और कार्य की अंतहीन श्रंखला।

स्वयं की शरीर की महत्वपूर्ण इन्द्रिय संरचना हो , या फिर शरीर का तंत्र जाल , हाथ पैर उंगलियां और , मस्तिष्क , नेत्र , कर्ण तथा इनमे बसी अदृश शक्तियां , स्वास तंत्र की प्रणाली , शरीर के केंद्र में स्थित नाभि स्थल तो अति रहस्यमयी शक्तियोंसे भरा है और सम्पूर्ण संतुलन का सञ्चालन यही से होता है , इसी केंद्र को संतुलन आधार माना गया भावनात्मक रूप से ह्रदय को। रीढ़ तथा इसमें फैला इंगला पिंगला का जाल ... 




दर्शन शास्त्रियों द्वारा केंद्र का स्थान अति महत्वपूर्ण माना गया , सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए केंद्रित- संतुलन को आधार माना गया ,चाहे वो शरीर हो या कोई स्थान का हो या फिर देश और पृथ्वी का , ब्रह्माण्ड जनित हर एक का केंद्र अति महत्त्व पूर्ण माना गया , संतुलन और ऊर्जा उपार्जन में। और इन्ही के संतुलन में जीवन है खुशहाली है। वैज्ञानिकों ने भी केंद्र को सबसे अधिक शक्ति शाली माना है , और सर्वाधिक सक्रिय तथा शक्ति शाली चुम्बकीय शक्ति से उसे परिभाषित किया है।

कई स्थान और सन्दर्भ में पे आपको विज्ञानं और दर्शन के सिद्धांत मिलते जुलते से लगेंगे ,खोज की राह पे आगे बढ़ने के लिए प्रमाण और तर्क का दोनों शास्त्र सहारा लेते है। फर्क सिर्फ यहाँ है कि दर्शन , तरंगित जगत के प्रमाणो के साथ जोड़ से जोड़ मिलते हुए आगे बढ़ता है , और विज्ञानं स्थूल जगत के प्रमाणो के सहारे अपनी खोज को वस्त्र देता है।

यही आधार है कि जहाँ तक दार्शनिक विचार की दृष्टि जाती है , केंद्र की उपस्थिति मिलती है। यहाँ विज्ञानं भी सहमत है , केंद्र समस्त ऊर्जा का स्रोत है। पृथ्वी का अपना केंद्र है इसी प्रकार सौरमंडल का भी केंद्र है , समस्त आकाशगंगाओं का अपना केंद्र है . और अवश्य ही कोई ऐसा मध्य केंद्र है जिससे ये समस्त ब्रह्माण्ड संचालित है। उसी केंद्र को परम का शब्द दिया गया है , ईश्वर अति पवित्र है , अतः परम पवित्र ऊर्जा को ईश्वर का नाम भी दिया गया , हिन्दू समाज में इसे शिवा का , यानिकि परम ऊर्जा का नाम दिया गया , परन्तु नारीत्व के बिना सृजन असम्भव हुआ इसीलिए शक्ति यानि कि देवी शब्द का सृजन हुआ। धरती उसी ऊर्जा का प्रकटीकरण है और न सिर्फ धरती का प्रकटीकरण , धरती स्वयं ऊर्जा के संयोग से चराचर जीवों का कारण है इसीलिए धरती माता के रूप में जानी गयी।

इसीलिए विज्ञानं और दर्शन दोनों कहते है ,' खोज की राह में एक सूत्र भी महत्वपूर्ण है , निष्कर्ष तक आने के लिए , आगे बढ़ने के लिए और पिछला समझने के लिए ,शिवा और शक्ति का दिया कोई भी सूत्र छोड़ने जैसा नहीं।


और यही से दर्शन को "अद्वैत-द्वैत वाद " का सूत्र मिला , दो द्वैत शक्तियां मिल के एक अद्वैत ही है अथवा एक अद्वैत शक्ति संसार संचालन के लिए दो भागो में बिभक्त हो द्वैत रूप में जानी गयी। यही ईश्वर है यही इशवर कि परिभाषा। मानव संसार में जाती समूहों के अनुसार विभिन्न शक्ति जागरण के लिए भिन्न भिन्न शक्तियों को विभिन्न देवी देवताओं की साधना का नाम मिलने लगा , और साधन और साध्य बना मानव।

यहाँ विषय_फल स्वरुप भारतीय दर्शन ने
" कारण और कार्य " के सूत्र को जनम दिया ,

इसी प्रकार एक और सूत्र है , "
जहाँ जहाँ धुंआ है वहाँ वहाँ आग " अर्थात , यदि कही कुछ भास् (प्रतीत ) हो रहा है वहाँ कोई न कोई स्रोत अवश्य है।

इसकी सारता को समझंगे अगले अंक में …

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