Thursday 29 May 2014

हम यहां पर अजनबी हैं ( Osho )

अजनबी


तुम्हें इस सत्य को स्वीकारना होगा कि तुम अकेले हो--हो सकताहै कि तुम भीड़ में होओ, पर तुम अकेले जी रहे हो; हो सकताहै कि अपनी पत्नी के साथ, गर्लफ्रेँड के साथ, ब्वॉयफ्रेँड के साथ, लेकिन वे अपने अकेलेपन के साथ अकेले हैं, तुम अपने अकेलेपन के साथ अकेले हो, और ये अकेलेपन एक-दूसरे को छूते भी नहीं हैं, एक-दूसरे को कभी भी नहीं छूते हैं। 

हो सकताहै कि तुम किसी के साथ बीस साल, तीस साल, पचास साल रहते हो--इससे कोई फर्क नहीं पड़ताहै, तुम अजनबी बने रहोगे। हमेशा और हमेशा तुम अजनबी होओगे। इस तथ्य को स्वीकारो कि हम यहां पर अजनबी हैं; कि हम नहीं जानते कि तुम कौन हो, कि हम नहीं जानते कि मैं कौन हूं। मैं स्वयं नहीं जानता कि मैं कौन हूं, तो तुम कैसे जान सकते हो? लेकिन लोग अनुमान लगाते हैं कि पत्नी ने पति को जानना चाहिए, पति यह अनुमान लगाताहै कि पत्नी को पति ने जानना चाहिए। सभी इस तरह से बरताव कर रहे हैं जैसे कि सभी को मन को पढ़ने वाला होना चाहिए, और इसके पहले कि तुम कहो, तुम्हारी जरूरत को, तुम्हारी समस्याओं को उससे जानना चाहिए। उसे जानना चाहिए--और उन्हें कुछ करना चाहिए। अब यह सारी बातें नासमझी हैं।

तुम्हें कोई नहीं जानता, तुम भी नहीं जानते, इसलिए अपेक्षा मत करो कि सभी को तुम्हें जानना चाहिए; चीजों की प्रकृति के अनुसार यह संभव नहींहै। हम अजनबी हैं। शायद संयोगवश हम साथ हैं, लेकिन हमारा अकेलापन होगा ही। इसे मत भूलो, क्योंकि तुम्हें इसके ऊपर कार्य करना होगा। सिर्फ वहां से तुम्हारी मुक्ति, तुम्हारा मोक्ष संभवहै। लेकिन तुम इससे ठीक उल्टा कर रहे हो : कैसे अपने अकेलेपन को भूलो? ब्वॉयफ्रेँड, गर्लफ्रेँड, सिनेमा चले जाओ, फुटबाल मैच देखो; भीड़ में खो जाओ, डिस्को में नाचो, स्वयं को भूल जाओ, शराब पीओ, ड्रग्स ले लो, लेकिन किसी भी तरह से अपने अकेलेपन को, अपने सचेतन मन तक मत आने दो--और सारा रहस्य यहीं परहै। तुम्हें अपने अकेलेपन को स्वीकारना होगा, जिसे तुम किसी भी तरह से टाल नहीं सकते। और इसके स्वभाव को बदलने का कोई मार्ग नहींहै। यह प्रामाणिक वास्तविकताहै। यह तुम हो।

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