Wednesday 28 May 2014

विश्व एक खोज

आह !! अद्भुत !! ये विस्तार, दो दशमलव  दो लाख  वर्षो  का  मानव इतिहास .. 
11 July 2013 at 12:26 PM
(ब्रह्माण्ड  पे अंकित  प्रश्न  का  अद्भुत चित्र)
(ब्रह्माण्ड पे अंकित प्रश्न का अद्भुत चित्र)

पहला कदम इस धरती  पे  , कल्पना  से परे सौंदर्य , असमान , धरती , नदिया , फूल , पहाड़ , झरने , अन्य  बंधू जीव .. और हम । अचानक अन्य जीव  के आक्रमण से  पहले डर का जनम  हुआ , असुरक्षा  ने घेरा डाला , वहा से  बचे  तो   फिर भूख ओ  प्यास  लगी ,  मौसम बदला ,  गर्म हवाए  बदली सर्द हवाओ में  अब सब डराने वाले दृश्य थे  सुन्दरता खो गयी , ऊँचे  गिरते  धसते पहाड़ , तेज गहरी विध्वंस  मचाती  नदिया , ऊपर से आग  , नीचे पानी , और फिर तेज हवाए , आस्मां से  आक्रमण करते जीव , धरती पे आक्रमणकारी जीव , और  समंदर  के भयानक जीव ,  

" आश्रय "  सुरक्षा  का प्रथम ख्याल  डर ही तो  था , फलस्वरूप  मिलते जुलते  एक प्रजाति के कुछ लोग इकट्टा हुए , सोच समझ के साथ रहना शुरू हुआ (समाज का प्रथम सूत्रपात ) उनमे से  कुछ ज्यादा फुर्तीले  बलशाली  लोगो ने सभाल ली  जिम्मेदारी  अन्य को  सुरक्षा देने की (राजतन्त्र  का सूत्रपात ), बाहरी ताकतों से सुरक्षा मिली , पर  उपरी  और  ज़मीं की अंदरूनी पाताली  ताकतों से कैसे सुरक्षा मिले , शुरू हुआ  तंत्र  मंत्र  का सिलसिला (पूजा उपासना का सूत्रपात ), कबिलियाई  अपने अपने रीती रिवाज़ के प्रति  अति आस्थावान  कट्टर  हुए  तो  धर्म का  सूत्रपात  हो गया ,  अपने अपने काबिले के प्रति प्रेम आस्था  बढ़ी  तो , आपसी जंग शुरू हो गयी , कमजोर  हारने लगे , ..

अब यहाँ  प्रश्न  मौलिक जरुरतो  पूरा करना मात्र नहीं रह गया था . मामला धार्मिक  सामाजिक  और  राजनैतिक  हो गया था । भाई बंधू जन  ने सुरक्षा  और मजबूत करनी उचित समझी  अपने ही  लोगो की सुरक्षा के लिए , अपने ही जैसे लोगो से । कबीला धर्म का उदय हुआ , अपने काबिले  के लिए  मरने वाले  विशेष  सम्मान के अधिकारी  बने , अपने  काबिले के समाज में  विशेष दर्जा  मिला । और दूसरी तरफ  आक्रमण करने वाले  अपने काबिले में सम्मान का  अधिकारी  बने , उनको विशेष दर्जा मिला ।( प्रथम युध्ह और युध्ह  के महत्त्व का सूत्रपात ). अब सिर्फ अन्य जीव और प्राक्रतिक सुरक्षा  के डर का विषय नहीं रहगया था , अब विषय बदल चुका   था .

वख्ति  बदलाव , युद्धों  के इतिहास  के फलस्वरूप काबिले देशों  में  बदल  गए .. पर  डर  वही का वही था , जिस डर पे विजय हासिल करने के लिए इतना सब किया , वो डर  सिर्फ वस्त्र  बदल के  अब भी साथ था . बल्कि  अबतो  दृश्य  ये था  की जो डर से बचने का वादा  किये थे  वो ही डर बन गए . डर नहीं गया , रूप बदलता  गया , डर नहीं गया .


डर का तो  अलाम  ये है की चूहे कुत्ते , बिल्ली मच्हर , काक्रोच , मकड़ी , छिपकली .. दिन रात , हवा पानी , ऊँचाई , गहराई ... अतीत - वर्तमान - भविष्य  की तिगडी  , प्राकर्तिक उपद्रव , अपक्रतिक उपद्रव , अपने ही समाज के उपद्रव , आस पास  बने कबिलियाई  समाज के उपद्रव .. 


कितने ही डर  बन गए गए है , उस एक डर  ( जो जंगली जानवरों से शुरू हुआ था ) पे विजय पाने के लिए ..  

आज भी हम डरे हुए है  वो सभी डर  जो पहले थे  आज भी  है , वक्ती प्रगति के  साथ  डर की  संख्या  बदती ही जा रही है , पुरुष  डरे है स्त्री डरी है  , बच्चे  डरे  है , जीव जंतु डरे है , इंसान  जीवो से डरे है जीव इंसानों से डरे है ,  और आगे चले तो   घर डरे है  समुदाय डरे  है , प्रदेश  डरे  है ,  देश  डरे  है , कमजोर डरे है , बलशाली डरे  है , धर्म डरे है , पुजारी , मौलवी , पादरी  सभी डरे  है ।  डर से सुरक्षा  देने के नाम पर  क्या क्या नहो हुआ सैन्य बल बन गए  हर देश (काबिले )  में ,  जो मर रहे है  देश के लिए   और जो मार रहे  है  देश के नाम पे , सभी अपने  अपने  कबीलों  में सम्मानित  किये जा रहे है ।  विशेष  हथियार  भी बनगए है  जो पलक झपकते  ही  हमको दो लाख  वर्ष पूर्व  पहुंचा सकते है । ये विकास और ये विकास की यात्रा  या फिर हमारी  उपलब्धि |

तीन हज़ार  वर्षो में पंद्रह  हज़ार  युद्धों का लेख जोखा  इतिहास में कैद  है .. उसके पहले की  लक्खो वर्षो  की छोटी बड़ी लड़ाईयों का कोई  आंकड़ा नहीं , पर अंदाज़ा तो लगाया ही जा सकता है ।

मुझे  तो लगता है , ये डर ही सबसे बड़ा  छलावा है , जो इस मानव रुपी  जीव की राह में आया  वो भस्म हो गया , ये सब कुछ नष्ट  कर देगा  अपने ही डर से , और तो और  खुद स्वयं ये  मानव भी  अपनी ही  आग में भस्म हो रहे है ,  शहीद  और जेहाद के नाम पे , धर्म और मजहब के नाम  पे .. सुलगता , झुलसता , सिसकता !!  आधुनिक  समाज ( कबीला )

ये है हमारा  आज !! 

इन सब में  ये विचार  करना  तो रह ही गया - क्या आप  अपने डर पे विजय हासिल कर सके ?  क्या  उस शुरूआती बलिष्ठ  व्यक्ति ने आपको वांछित  आपकी  सुरक्षा  दी ? क्या  अन्य उस शुरूआती  बलिष्ठ  व्यक्ति ने आपकी  धर्म  की स्थापना  के उध्हेय्श्य  से अवगत कराया , या  इन सभी ने सिर्फ  कई और  नए डर  थाली में परोसे ।  और अब आप अपने ही लाखों  वर्ष  बनाये नीतियों  में उलझ गए है ,

और अपने साथ ही आपने अन्य जीव  ओ   प्रक्रति को भी नहीं बक्शा ।

( घर की स्त्री की तरह गाय को देवी / गौ माता का दर्जा दे डाला , भैंस , बकरी , सभी का दोहन किया , बैल घोड़े ,  गधे  कुत्ते  , आदि , " मनुष्यों के मित्र "  मनुष्यों द्वरा  कहे गए , परिणाम है  मनुष्यों की मित्रता की कीमत जो वो चूका रहे है , शायद वे ही जानते होंगे । जंगली जानवर अजायब घरो में कैद  लोगो का मनोरंजन कर रहे है । और हम व्यवसाय कर रहे है ... उनसे (द्वारा )  और उनपे (जरिये ). बहुत बड़े व्यवसायी है हम , मित्र कहना तो छलावा है , जिस दिन  उनकी जरुरत नहीं रही , उनकी जगह मशीन  ने ले ली , फिर ? हम कितने धूर्त है  कितना छल  कर सकते है  , इसका हमे  शायद खुद भी अंदाजा नहीं . )


रामायण की एक चौपाई है – सुर नर मुनि सब की यह रीती, स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती। ... यह संसार की रीति है। चौपाई लिखते समय तुलसी  जी ने  कुछ तो महसूस जरुर किया होगा ।




क्या  आप  अपने ही  विचारो पे पुनर विचार जरुरी  नहीं समझते ? 



Om Pranam !! 

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