Saturday 3 May 2014

निरंतर प्रवाहशील सकारात्मक ऊर्जा और नकारात्मक ऊर्जा

जागृत अवस्था मे तो कोइ विचारवान मानव अग्नि मे अपना शरीर तो क्या उँगली तक नहीं डालेगा , जरूर ये कार्य सम्मोहन की अवस्था मे सम्पन्न हो जाता होगा । प्रकति का दिया मौलिक स्वभाव है की चेतना संवेदनशील है , सहज अपना ह्रास नहीं करती। मूर्छा की अवस्था या गहन सम्मोहन की अवस्था में ही परघाती या आत्मघाती स्थति बनती है। पर ये अवस्था एकदम से नहीं आती , थोड़ा थोडा करके ये अवस्था मस्तिष्क और मन पे काबू पाती है । एक भी संज्ञानता का विचार पूर्ण मूर्छा / पूर्ण सम्मोहन की स्थति को आने से रोकता है।

अतिरेक अवस्थाओं मे विवेकपूर्ण विचार साथ छोड़ देते है क्रोध , द्वेष , मोह , लोभ , अहंकार आदि ऐसे ही दानव की श्रेणी मे डाले गये है। क्यूंकि किसी भी प्रकार से ये लाभकारी नहीं , जहां जन्म लेते है वो जन्म स्थान जल के राख हो जाता है , और जहा तक इनका प्रभाव जाता है वो सब वातावरण दूषित हो जाता है। मूल उद्गम स्थल तो ज्वालामुखी जैसा होजाता है , जहा सिर्फ़ लावा और राख बचती है। पर ये भी त्याज्य नहीं , उपयोगी है प्रकृति का दिया कोइ गुन निरर्थक नहीं सार्थक है , योगी ज्ञानी या पिपासु इन दुर्गुणों का भी उपयोग दवा स्वरुप अंतरयात्रा में स्वचेतना को समझने के लिये करते है ......



मित्रो , ऊर्जा का रूप दोनो ही है सकारात्मकता भी और नकारात्मकता भी , दोनो मे से स्थिर कोई भी नहीं, लहरो की तरह आती है और चली भी जाती है। इसको ऐसे भी समझा जा सकता ..... नकारात्मकता से पीछा छूटे तो सकारत्मकता कि उपस्थिति पहले से ही मौजूद है , यदि सकारात्म ऊर्जा क्षीण होती है तो नकारात्मक ऊर्जा की उपस्थिति भी ऐसी ही है।

एक ऊर्जा जहाँ एक तरफ जीवन शक्ति बढाती है वहीं दूजी जीवन ऊर्जा को समाप्त करती है। एक ऊर्जा शारीरिक मानसिक स्वस्थ्य बढाती है तो दूजी कई बिमारियों के लिये स्वादिष्ट निमंत्रण है। समय रहते बुद्धि की युक्ति से इस अवस्था पे काबू संभव है। क्यूंकि विनाशकाल यदि हावी होगया तो बुद्धि भी साथ छोङ देती है। और जब ये तूफान गुजर जाते है तो ग्लानि दुख शोक संताप मे डूबी बुद्धि निःसहाय हो जाती है।

गुणों का संचय करना ही शुभ है , शुभ परिणाम वाली सकारात्मक ऊर्जा का भी संचय और पालन लालन निरंतर जतन से करना पड़ता है। संसार के जितने भी धर्म है ये सब चुकने वाले है ,कल्याण के लिये इनको पोषित करना पड़ता है। इसी संचय के प्रयास मे ज्ञानी जान तप करते है निरंतर ह्रास होती शक्त्यिों को पुनर्जागृत करते ही रहते है। बिलकुल वैसे ही जैसे एक बगीचा कितनी भी मेह्नत और जतन से बनाया , उसी मौसम मे सुन्दर प्रभाव देगा नए दूसरे मौसम के लिये फ़िर से बागवानी करनी पड़ेगी , ये प्रयास ही ज्ञानी का स्वभाव बन जाता है। फिर स्वभाव वश , गुणात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती रहती है। और नकारात्मक ऊर्जा को आश्रय नहीं मिल पता। ये तो उदाहरण मात्र है , वास्तविकता मे भी सभी कुछ जो भी सांसारिक निर्माण के अंतर्गत आता है सभी कुछ सहेजना पड़ता है , वर्ना जीव तत्व मे जीवन का ह्रास तो निरंतर हो ही रहा है। इसी प्रकार सद्गुणों का भी पोषण जतन से करना पड़ता है , मनुष्य मे स्वभाववश गुण दोषो का प्रवाह निरंतर बहता रहता है।

मित्रो ! ध्यान देने वाली बात ये है कि , प्रयास ज्ञानी या अज्ञानी सभी के लिये समान गुणवत्ता उत्पन्न करने वाले है , यदि ज्ञानी प्रयास छोड़ दे तो सामान्य प्रकृति का परिवर्तन गुण तो कार्य कर ही रहा है। पंचतत्व युक्त देह मे दोनो गुण का वास है , एक की अनुपस्थति मे दूसरे के दर्शन हो जाते है , जैसे प्रकाश की एक किरण जली तो अंधकार गायब। और इसी प्रकार जब अंधकार का अस्तित्व छाता है तो धीरे धीरे , सम्पूर्ण प्रकाश एक साथ कभी समाप्त नहीं होता ,उजाले एक भी किरण यदि है तो प्रकाश का अस्तित्व दिखाई पड़ता है फ़िर गुप्प स्याह अँधेरे अस्तित्व के उपर छा जाते है । बिलकुल यही कार्य शैली मानव गुणों की भी है ,प्रकाश की एक भी किरण अंधकार से लड़ती है , और जब तक एक भी किरण अस्तित्व मे है अंधकार अस्तित्व को घेर नहीं सकता। हालांकि प्रकाश क्षीण पड़ सकता है।

शायद इसीलिए ये कहा ग़या है कि उजाले के समक्ष अंधकार शक्तिहीन है और सिर्फ उजाले की अनुपस्थिति ही अंधकार की उपस्थिति है। ज्ञान की एक किरण घने से घने अंधकार को क्षण मे नष्ट कर देती है ; किन्तु अज्ञानता एक साथ सम्पूर्ण उजाले को नष्ट नहीं कर सकती ,अज्ञानता तो ज्ञान रूपी पे जलकुम्भी की तरह हावी होती जाति है धीरे धीरे। परन्तु स्थिति उपायविहीन नहीं।

यदि दिया (देह ) है और उसमे तेल (जीवन शक्ति ) भी है तो दिए में अग्नि का प्रस्फुटन संभावित है। किन्तु उसको जलाये रखना प्रयासयुक्त है।

प्रयास : 

१- इन्द्रियां प्रवेश द्वार है , बिना इनकी अनुमति के कोइ भी ऊर्जा प्रवेश कर ही नहीं सकती , ये भी तप है की वाणी से " एक भी नकारात्मक शब्द ना निकले " चूँकि वाणी सीधा भाव को छू के निकलती है , इसलिए इस तप के पोषण से तरंगित विचार सरल और सहज हो जायेंगे। जिनका सीधा प्रभाव बाहर निकलने वाली तरंगो पे पड़ेगा और स्वतः आस पास सकारात्मक ऊर्जा का घेरा बन जायेगा।

असीम शुभकामनाये

ॐ ॐ ॐ

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