Thursday 22 May 2014

स्वप्न - संसार ( an experience )

5 June 2012 at 11:01 AM




विचित्रताओ और  अहसासों से  भरपूर  स्वप्न - संसार  , चमत्कार भी अजब-गजब  होते है , कभी कभी लगता है , हम अपने सपनो के दृश्यों के  नियंत्रक हो गए है , तो कभी लगता है अरे रे रे रे रे रे  ये कहा मुझे बहाए लिए जा रहे है .. 


ऐसा ही एक सपना मैंने  देखा एक दम ताजा ताजा  ... आज ही सुबह  उठके  सबसे पहले अपनी खिड़की खोली  और अपनी एक दम ब्रांड न्यू  छोटी सी कार  "Nano " को सुरक्षित खड़ा पाया तो एक प्रसन्नता से गहरी सांस  ली और सुबह के रोज के कार्य करने लगे ..... सपने के अंश कुछ ऐसे थे  की दृश्य वास्तविक हो गया  , मेरे शहर के मार्केट का ढांचा  अंश मात्र  भी सपने में अलग नहीं था ..  घने और व्यस्त बाजार में  मैं अपनी छोटी सी कार  में फक्र से बैठी थी  की अचानक वो बंद पड़ गयी , साहब !!  वो भी लाल बत्ती  के चौराहे पे ... बड़े शहर में कोई मदद के लिए नहीं आया .. 


अचानक  दृश्य पलटा और गाड़ी किस तरह  से  मार्केट  की गलियों में थी वो भी तीन उंगलियों से  धक्का  देते हुए   ( Nano   थी, तो तीन उँगलियों से धक्का संभव था ) अकेले सिर्फ मैं थी  , (कारन मुझे अभी भी याद है सपने में बड़ी दुर्घटना थी , हा हा हा हा....पेट्रोल ख़त्म था उसका  ) जैसे ही गली का अंत होता था  वहीँ पे पेट्रोल पम्प था 

श्रीमान , तीन उँगलियों से धक्का दे के अपनी गाड़ी को मैं उस भीड़ से भरी  गली के उस पार ले जा रही थी , अचानक भीड़ के रेले में मैंने महसूस किया गाड़ी के स्पर्श का  का अहसास होना बंद हो गया और मै बेसहारा  सी ढूंढने  लगी अपनी जान से प्यारी कार को , सिर्फ एक ही ख्याल था  , किसी भी तरह से बस मिल जाये  मुझे  इधर देखा उधर देखा , भाग भाग के लोगो से पुछा , कही से कोई जवाब नहीं मिला , एक बात थी मुझे कार का रंग और  आकार स्वप्न में भी भली भाँती  स्मरण था  . और ये भी कुछ क्षण  बाद स्मरण आया " हे भगवान् , कागजात  तो गाड़ी में ही थे , वो भी असली वाले ....... 

पेशानी पे  पसीने की बूंदे , गला सूखने लगा घबराहट से , और सब वास्तविक  लक्षण  मेरे शरीर पे 
प्रकट  हो रहे थे .. दिन से शाम हो गयी .. कुछ पता नहीं चला .. एक ही दुःख  खाए जा रहा था लोन की किस्ते  अभी भी २०% ही दी है , प्यारी सी   छोटी सी  " मेरी कार "  , एक ही साल हुआ था , लोन की किस्ते तो चार साल  की है .. अब चोरी  हो चुकी  उस कार की बाकि किस्ते मुफ्त में चुकानी पड़ेगी , या फिर बैंक से  कोर्ट  में जाकर  लडाई  ... ऊओफ़्फ़्फ़ो .. क्या करू ... नर्वस सिस्टम ने भी साथ छोड़ दिया सा लगता था . 

और तो और ... अभी तो  घर में भी ये स्वीकार करना था की गलती कहाँ कहाँ  हो गयी मुझसे ... क्या करू कैसे सामना करू  पतिदेव का .. 


दृश्य पलटा : एन-केन प्रकारेण पहुंची , किसी कालोनी  के सामने हु  , पर अजनबी सी लग रही  है , मेरा घर नहीं दिख रहा , पर गार्ड्स  कह रहे है की ये पता तो यही है ... हे प्रभु !!  अंदर जाती हु , तो शाम का अँधेरा हो आया  और घर नहीं मिला , कालोनी के दुसरे छोर पे खड़ी हूँ .. फिर किसी  से पता पूछती हु  तो वो कहता है की ये तो शुरू में ही है ... (और  मै  मन ही मन कहती हु " वो ही तो मैं भी  सोच रही थी की मेरा घर तो शुरू में ही था ) महाशय को धन्यवाद दिया ,( अच्छा हुआ वो मुझे पहचान ही नहीं सके  हा हा हा हा हा )

 मित्रों  , घर के पास हूँ , फिर भी दूर ... पहचान ही नहीं पा  रही हु ... दृश्य  पलटे हुए है , गलियारा लम्बा सा   और होटल की तरह ,  एक कतार  में बने कमरे जैसे घर ... गलियारों में ही  लोगो ने सफ़ेद  जाली के  परदे लगा रखे थे  पीली  पीली  रौशनी  से जगमग  गलियारे ... पर.....  मेरे घर के  सामने न तो गलियारा  था  न ही ऐसे पर्दों  से सजावट , फिर भी हिम्मत नहीं हारी मैंने .. सोचती थी यही कही होगा मेरा  आशियाना .. फिर ये भी  ख्याल आया  की इतनी सजावट यानि की  कोई त्यौहार जरूर है ... और उसके साथ ही  ये भी याद आया  की नवरात्रि  है न यार !!  

फिर तो सपने में ही  वास्तविक सी लगती  आवाज़  भी आई " लता ....... "  और मेरी आँख खुल गयी ...सर  भारी  सा था , पर  सबसे  पहले उठ के अपनी कार  के दर्शन किये ... हलकी गहरी सांस  ली , और  सर पे अपने ही हलकी सी चपत भी .  और फिर गैस  पे सुबह की पहली चाय रक्खी रोज की तरह.....




 निष्कर्ष : नारद के मोह भंग जैसा सपना था मेरा .. और एक गहरा अहसास  इस छोटे सपने से जागने !पर जो लगा  क्या ऐसा  ही इस सपने जागने पर भी लगेगा " ये  प्रश्न ? " मेरे लिए और आपके लिए भी !! बहुत  सारे सवाल  हर पंक्ति  में सैकड़ों  सवाल छिपे है  ... आपके लिए भी और मेरे लिए भी !!



 !! प्रणाम !!

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