Saturday 24 May 2014

विलक्षण " ॐ " अविश्वसनीय

महान आश्चर्य देखा ......

हजारो शब्दों की माला बनाई , लाखो फूलों की खुशबु से सजाया पृथ्वी के कोने कोने से करोड़ों लोगो ने भिन्न भिन्न भाषा से चुन चुन के , गद्य और पद्य लिखे बोले , विभिन्न भिन्न भिन्न  मान्यता वाले  सुदृढ़  धर्म बने , धर्मशास्त्र ग्रंथो को सम्पूर्ण शाब्दिक सौंदर्य से सजाया , मन्त्र बनाये , गीत लिखे , सब किया , पर अंत में जब सम्पूर्ण किये हुए कार्य को इकठा  कर के सम्पूर्ण रूप से  देखा , तो सिर्फ "  " लिखा दिखा , बार बार उसी की व्याख्या की  उसी को जाना , उसी को पाया और वो भी मात्र एक शब्द " " के साथ . फिर भी भर्मित रहे , फिर भी भटकते ही रहे , ढूंढते ही रहे  ,जबकि  इसके अतिरिक्त और कुछ कहा ही नहीं गया , और कुछ सुना ही नहीं गया , और कुछ देखा ही नहीं जा सका , सभी विषयों के अंत में शुरू में , सभी कलाओं के अंत में शुरू में , सभी ज्ञान विज्ञानं के अंत में शुरू में , तर्क में वितर्क में सुतर्क में ,... एक ही है एक ही है .................................."ॐ "  


ज्ञान विज्ञानं उपलब्धिया और  और तर्क वितर्क पे याद आया  की माना प्रजाति की  असलियत  को थोड़ा  संक्षेप में समझा जाये , मनुष्य भी अद्भुत प्राणी है ......

मोर से  नृत्य सीखा ,  नदी से  बहना , पर्वत से अटल रहना  और सम्पूर्ण  प्रकर्ति  से  पूर्ण  कला भाव से जीना, हजारो साल  चिड़ियों की तरह चहचहाते रहे हैशेर की तरह दहाड़ते रहे है, और गिरगिट की तरह रंग बदलते रहे हैतितलियों की तरह सुगंध के चारो तरफ उड़ते रहे, कभी बिल्ली की  और कभी चूहे की तरह दुबके और कभी शिकार किया। कभी लोमड़ी  कभी सियार की तरह चालाकियां, कभी घोडा तो कभी गधाअंत में जब खोज तो पाया ज्यादातर बंदर का ही  जीवन जी पाये .... 

हम तो इतने महान है की  भोग  का  जीवन भी इन्ही से सीख के जीते है और  योग भी इन्ही से सीखा है। नक़ल में महारथ हासिल  है ,  तो अपना जीवन जिया ही कब ,  जिसने जो सीखा दिया मान लिया  लिया , स्वयं के अनुभव से  जानने की कोशिश ही नहीं की , फिर भी रौब  भी इन्ही पे दिखाते है ,क्यूंकि शक्ति प्रदर्शन भी तो हमारे ही खून में है।  इसके अतिरिक्त एक  दो विशिष्ट  व्यक्तित्व  को छोड़ के  आम आदमी ने  यदि कुछ नया  किया हो तो कोई बताये  जरा !

कभी आपने गौर किया है !  दुर्गुण सीखने नहीं पड़ते और सगुन सीखने  के लिए  गुरु  होते है , पाठशालाएं  होती है , विशेष  आध्यात्मिक   धार्मिक  संस्थान होते है  , जहाँ  सगुन  जैसे   गुणों  का  बीजारोपण किया जाता है , आभार  महसूस करना , करुणा करना  , प्रेम करना  आदि आदि गुणों के पाठ  दिन में दो चार बार याद कराये जाते है......  घृणा  क्रोध लोभ  मोह अहंकार   पैदाइश से ही  बीज रूप में   होते है  पर सम्मान  संस्कार अधिकतर को  सीखने पड़ते है।   अज्ञानता के लिए खिड़की  दरवाजे दीवालें भी  नहीं होते  नहीं कोई उसूल  और तहजीब  पर  ज्ञान के दरवाजे खोलने पड़ते है क्योंकि  ज्ञान का दिया  सात  पर्दो के पीछे जलता है।  

ऐसा है मानव का गौरवशाली  इतिहास।  मानव के इतिहास और विकास पे चर्चा फिर कभी , अभी की विशालता  और अखंडता पे कुछ पंक्तियाँ  भाव रूप में बांटना चाहती  हूँ




अद्भुत विलक्षण जगत का  ... वो पालनहार देखा
संकुचित हो सिमटा अ  उ  म  में ,  बना पूर्ण
विस्तृत हुआ तो फैलता गया फैलता ही गया बन व्योम ....

फुकी जो बांसुरी में तान तो ,ब्रह्माण्ड नृत्य_लीन हुआ
हम सबकी बिसात ही क्या जो कह सकें उसे कुछ भी
नजरे फेरी जो पल भर को उसने, धुआं धुआं वर्चस्व हुआ ...

वामन अवतार का अर्थ है क्या ! अब समझ आता है 
उसके ही अंदर रह के कहाँ बहार का क्या दिख पाता है
वो बोला, देना है तो दान दो सिर्फ चार कदम जमीन का ...

उसके ही अंदर रह के जीव को मान हुआ अपने ही ऊपर
उसी से कहा दम्भ में ,' अभी लो ! नाप लो चार कदम जमीं 
अधूरे का घमंड करना था चकनाचूर,व्यवस्था देखो प्रभु की ...

वामन बन संकुचन किया अपना ही , फिर विस्तार किया
इस विस्तार में समेट लिया एक एक कदम पे तीनो लोक
एक कदम अभी भी था रखना, उस घमंडी का सर झुक गया ...

प्रतीक है कथाये , समझ सको तो समझ लो , मानो न मानो
तर्क से खोजोगे कुछ नहीं मिलेगा , भाव से ढूँढोगे ॐ दिखेगा
वामन के संकुचन में , उसी के विस्तार में समाये तीनो लोक ...

बिलकुल वैसे ही जैसे नेति नेति के  इस अंत में वो  ही मिलेगा 
और पाते जाओ पाते जाओ , उस के अंत में भी वो ही खड़ा मिलेगा 
इस शुन्य से उस शुन्य तक , इस छोर से उस छोर तक वो ॐ ही है ..

आरम्भ -  मध्य - अंत .... के विस्तार में समाया ओमकार सूक्ष्म
कालातीत बना, विषयातीत हुआ, सार्वभौम फिर कण कण में समाया
फूलों  में सुगंध, जल में बूँद, हवा में अहसास रूप वसता पूर्णता के साथ .....

मानो ॐ का उच्चारण करते ही उस पूर्ण को सम्पूर्ण रूप से कह दिया 

सम्पूर्ण बीज मन्त्रों का ...  बीज मन्त्र है ॐ ...


है न .. अचरज दोस्तों ,



सभी  मित्रों को हार्दिक शुभकामनाये

No comments:

Post a Comment