Monday 7 April 2014

डाइरेक्टर'स-टाइम_कट (Note)

कहाँ से शुरू करू ? चलो कल्पना करें , एक दौड़ता तेज रफ़्तार चीता , मिनट में वो तो दौड़ गया , जंगल में गायब हो गया , पर हमारे पास एक ऐसी फ़िल्म छोड़ गया जिसको हम बार बार पीछे करके देख सकते है। सम्भवतः ऐसी कोई शक्ति हमारे पास अपने लिए होती नहीं , परन्तु विज्ञानं ने हमे कुछ समझने के लिए ऐसे यंत्र बना के दिए है , जिनसे प्रतीक रूप में बहुत कुछ समझने कि कोशिश करते है , ऐसा ही महसूस करो तो आसान और व्याख्या करो तो कठिन शब्द है " इस पल " को समझाना। कैसे समझायेंगे ? घड़ी तो काटेंगे , सुई को रोकेंगे , न कुछ भी करेंगे लेकिन वो भाव जो एक एक पल को काटता है वो व्याख्या नहीं कर पाएंगे। "चित्र" आपने देखें है आपके भी जरुर खींचे होंगे , ये चित्र उस पल का वास्तविक अभ्व्यक्ति है , वो पल जो अब नहीं है , वो पल जिस पल में शॉट क्लीक हुआ था , वो पल अब नहीं है , पर चित्र में वो पल सिमट गया है। अब चल चित्र को लीजिये , चल चित्र कई चित्रो का ऐसा समूह है जो लगातार निर्विरोध खिंचा गया है , और जब उसको रोल किया जाता है तो पूरी कथा ऐसी जीवंत होती है जैसे जीवन की गति। 


Photo: डाइरेक्टर'स-टाइम_कट :
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कहाँ से शुरू करू ? चलो  कल्पना  करें , एक दौड़ता तेज रफ़्तार  चीता ,   मिनट में  वो तो दौड़ गया , जंगल में गायब हो गया , पर हमारे पास  एक ऐसी  फ़िल्म  छोड़ गया  जिसको हम  बार बार  पीछे करके  देख सकते  है।  सम्भवतः ऐसी कोई शक्ति हमारे पास  अपने लिए होती नहीं , परन्तु  विज्ञानं ने हमे  कुछ समझने के लिए  ऐसे यंत्र बना के दिए है  , जिनसे प्रतीक रूप में  बहुत कुछ समझने कि कोशिश करते है , ऐसा ही   महसूस करो तो आसान  और व्याख्या करो तो  कठिन  शब्द है " इस पल "  को समझाना।  कैसे समझायेंगे ? घड़ी तो काटेंगे  , सुई को रोकेंगे , न कुछ भी करेंगे लेकिन वो भाव  जो एक एक पल को काटता  है वो  व्याख्या  नहीं कर पाएंगे।  "चित्र" आपने  देखें है  आपके  भी जरुर खींचे होंगे , ये चित्र  उस पल का  वास्तविक  अभ्व्यक्ति है , वो पल जो अब नहीं है , वो पल जिस पल में शॉट  क्लीक  हुआ था , वो पल अब नहीं है , पर चित्र में वो पल सिमट गया है।  अब चल चित्र को लीजिये , चल चित्र  कई चित्रो का ऐसा समूह है  जो  लगातार  निर्विरोध  खिंचा गया है , और जब उसको  रोल  किया जाता है  तो पूरी  कथा  ऐसी जीवंत होती है  जैसे  जीवन  की गति।  

हम सब का जीवन  भी  ऐसा ही है , करोङो  छोटे छोटे चित्रो को  जैसे  गति के साथ चला दिया गया हो ..... तो हमारा जीवन कथामय लगता है  , घटनाओ  से भरा लगता है "ध्यान दीजियेगा" लगता है , है नहीं।    वस्तुतः  जब हम समय  को   बहुत करीब से देखते है , पल और घडी में  विभाजित  कर पाते है  तो पाते है कि  वास्तव में  ये भी  अलग अलग चित्र है  जीवन के  , " उस पल का वो सच था , इस पल का ये सच है "  ये भी समझ में आने लगता है  कि पल में जीना होता क्या है !  

ये समय  भी  ऐसे ही  हजारो   पलो क्षणो  से मिल कर  एक  चलचित्र बनाता है (हमारे समझने के लिए )  अब ऐसा करे  इन हजारो पलो को एक बार अलग अलग कर के देखे , अनुभव करे (क्यूंकि  आपकी  बाह्य  उन्मुख  जागृत आँखे  आपका  भावात्मक सहयोग चाहती है )  एक एक पल  महीन होता जा रहा है , और भी पतला  , छोटा  इतना छोटा  कि   जल की धार  अगर  १२ इंच की दूरी तय  कर रही है  तो  उसके दस हजार  चित्र  अलग अलग  समय के  सामने बिखर जाये ,  जैसे कोई पक्षी उड़ा  तो  जमीं से  असमान तक कि उड़ान में  कितने चित्र आपके आगे बिखरेंगे , कल्पना कीजिये , कि पल कितना  सूक्ष्म है , और ऐसे ही असंख्य पालो से आपके  जीवन का चलचित्र चलरहा है।  

एक बार आपने कल्पना कर ली उस पल कि और  उस एक पल में  घडी भर को भी रुक गए , तो आपको सब समझ आ जायेगा।  कि "पल में जीना "  है क्या ? 

पल में जीना तो बहुत बड़ी बात है , इस पल को समझना  उससे भी बड़ी घटना है , क्यूंकि  तब आप स्वयं अपने  गुजरे हुए  , चल रहे  और आने वाले पलो के चित्रकार हो जाते है।  आप स्वयं उन पलो में रुक के   उनको सवार सकते है ,  फिर आप  समय के साथ डोलते नहीं।  समय आपको विचलित नहीं करता।  आप  स्वयं  सारे घटना क्रम के प्रति जागरूक  और जिम्मेदार हो जाते है।  

और समय के खेल का भी अहसास होने लगता है ,  वास्तव में  जो गया  वो अर्थ हीन  हो जाता है , जो  आया ही नहीं उसको लेकर चिंताए  व्यर्थ हो जाती है , सिर्फ  वो एक पल  रह जाता है  जिसमे पक्षी  के   उड़ान भरने के हजारो पल  की  मात्र  एक कड़ी है। यही जीवन है , चलचित्र तो  अपने आप बनेगा  बिना प्रयास के , हजारो  बहती हुई घटनाये  स्वतः  चलचित्र का निर्माण कर रही है। 

इसको आप  डाइरेक्टेर'स-कट   भी कह सकते है।       

इन पलों में उतर  के  जरा  देखिये तो सही ! 

आपका ध्यान आपका सहयोगी हो सकता है। 

(जैसे मध्यांतर  में  पिक्चर  के साथ   साथ  यात्रा  करते हुए  आगे और पीछे  कि पिक्चर  का अंदाजा मिल ही जाता है , वैसे ही आपके जीवन का चलचित्र  का मध्यान्ह  आपका सहयोगी हो सकता है )

चूँकि  परमात्मा  का नाम ही बृहत्  है ,  असीमित  है , उसके  हर कार्य को समझने के लिए  विस्तृत  दृष्टिकोण  बनाना होगा,   हम एक  हाल में  एक , दो , तीन  पिक्चर  चला सकते है ,  वो लाखो करोडो  चलता है , एक साथ।   हा हा हा हा हा  एक फर्क है , हम व्यवसाय करते है ,  हर सोच और कार्य फायदे और नुक्सान से जुड़ा है , वो व्यवसाय नहीं करता।   अब ये अलग सवाल है कि तो फिर वो करता क्यूँ है ? अगर फ़ायदा गिना सके तो समझना आसान हो जाता है , और यदि  नहीं गिना  सके तो उसके भाव और कार्य को  समझने में भी कठिनाई आएगी। 

पर जैसे जैसे  सृष्टि  अपने रहस्य खोलेगी , सब सहज लगेगा  और  अपनी सीमितता भी महसूस होगी ,  सर्वज्ञता  कम होगी , शक्ति  प्रत्यारोपण कम होगा , तर्क कम होगा , प्रश्न कम होंगे।

ॐ ॐ ॐ



हम सब का जीवन भी ऐसा ही है , करोङो छोटे छोटे चित्रो को जैसे गति के साथ चला दिया गया हो ..... तो हमारा जीवन कथामय लगता है , घटनाओ से भरा लगता है "ध्यान दीजियेगा" लगता है , है नहीं। वस्तुतः जब हम समय को बहुत करीब से देखते है , पल और घडी में विभाजित कर पाते है तो पाते है कि वास्तव में ये भी अलग अलग चित्र है जीवन के , " उस पल का वो सच था , इस पल का ये सच है " ये भी समझ में आने लगता है कि पल में जीना होता क्या है ! 


ये समय भी ऐसे ही हजारो पलो क्षणो से मिल कर एक चलचित्र बनाता है (हमारे समझने के लिए ) अब ऐसा करे इन हजारो पलो को एक बार अलग अलग कर के देखे , अनुभव करे (क्यूंकि आपकी बाह्य उन्मुख जागृत आँखे आपका भावात्मक सहयोग चाहती है ) एक एक पल महीन होता जा रहा है , और भी पतला , छोटा इतना छोटा कि जल की धार अगर १२ इंच की दूरी तय कर रही है तो उसके दस हजार चित्र अलग अलग समय के सामने बिखर जाये , जैसे कोई पक्षी उड़ा तो जमीं से असमान तक कि उड़ान में कितने चित्र आपके आगे बिखरेंगे , कल्पना कीजिये , कि पल कितना सूक्ष्म है , और ऐसे ही असंख्य पालो से आपके जीवन का चलचित्र चलरहा है। 


एक बार आपने कल्पना कर ली उस पल कि और उस एक पल में घडी भर को भी रुक गए , तो आपको सब समझ आ जायेगा। कि "पल में जीना " है क्या ?


पल में जीना तो बहुत बड़ी बात है , इस पल को समझना उससे भी बड़ी घटना है , क्यूंकि तब आप स्वयं अपने गुजरे हुए , चल रहे और आने वाले पलो के चित्रकार हो जाते है। आप स्वयं उन पलो में रुक के उनको सवार सकते है , फिर आप समय के साथ डोलते नहीं। समय आपको विचलित नहीं करता। आप स्वयं सारे घटना क्रम के प्रति जागरूक और जिम्मेदार हो जाते है। 


और समय के खेल का भी अहसास होने लगता है , वास्तव में जो गया वो अर्थ हीन हो जाता है , जो आया ही नहीं उसको लेकर चिंताए व्यर्थ हो जाती है , सिर्फ वो एक पल रह जाता है जिसमे पक्षी के उड़ान भरने के हजारो पल की मात्र एक कड़ी है। यही जीवन है , चलचित्र तो अपने आप बनेगा बिना प्रयास के , हजारो बहती हुई घटनाये स्वतः चलचित्र का निर्माण कर रही है। 


इसको आप डाइरेक्टेर'स-कट भी कह सकते है। 


इन पलों में उतर के जरा देखिये तो सही ! 


आपका ध्यान आपका सहयोगी हो सकता है। 


(जैसे मध्यांतर में पिक्चर के साथ साथ यात्रा करते हुए आगे और पीछे कि पिक्चर का अंदाजा मिल ही जाता है , वैसे ही आपके जीवन का चलचित्र का मध्यान्ह आपका सहयोगी हो सकता है )


चूँकि परमात्मा का नाम ही बृहत् है , असीमित है , उसके हर कार्य को समझने के लिए विस्तृत दृष्टिकोण बनाना होगा, हम एक हाल में एक , दो , तीन पिक्चर चला सकते है , वो लाखो करोडो चलता है , एक साथ। हा हा हा हा हा एक फर्क है , हम व्यवसाय करते है , हर सोच और कार्य फायदे और नुक्सान से जुड़ा है , वो व्यवसाय नहीं करता। अब ये अलग सवाल है कि तो फिर वो करता क्यूँ है ? अगर फ़ायदा गिना सके तो समझना आसान हो जाता है , और यदि नहीं गिना सके तो उसके भाव और कार्य को समझने में भी कठिनाई आएगी। 


पर जैसे जैसे सृष्टि अपने रहस्य खोलेगी , सब सहज लगेगा और अपनी सीमितता भी महसूस होगी , सर्वज्ञता कम होगी , शक्ति प्रत्यारोपण कम होगा , तर्क कम होगा , प्रश्न कम होंगे।

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