Wednesday 2 April 2014

पूर्ण को पूर्ण में मिला दो तो भी पूर्ण ही बच जाता है... (thought)

पूर्ण को पूर्ण में मिला दो तो भी पूर्ण ही बच जाता है , अजूबा है ये परम का। और जब दो अपूर्ण मिलके पूर्ण बनाने का प्रयास करते है , तब भी अपूर्ण ही रहते है। 

Photo: पूर्ण को पूर्ण में मिला दो तो भी पूर्ण ही  बच  जाता है  , अजूबा है  ये परम का।     और जब दो अपूर्ण मिलके  पूर्ण बनाने का प्रयास करते है , तब भी अपूर्ण ही रहते है। 

उचित   है कि  सबसे   पहले दोनों   अपने अपने  अपूर्ण को पूर्ण कर के   फिर   मेल   करे  तो  प्रकृति के अधूरे  येन और यांग पूर्ण होंगे।  गणित  उल्टा है  , हमारे दिमाग में  आता है कि  यदि आधा आधा घेरा मिला दे तो एक घेरा पूरा हो जायेगा।  और दो  पूर्ण  मिलके  घेरा  बनाएंगे  तो दो घेरे बनेगे , एक पूर्ण  घेरा कैसे होगा ?  पर  उसके राज्य में यही गणित है ,  दो पूर्ण  मिलके ही एक पूर्ण बनते है , दो अपूर्ण  मिलके भी अपूर्ण ही रहते है।  

बेहतर    है  , हर अपूर्ण  जीव    अपनी   पूर्णता   की ओर    अगर्सर   हो , यही उसके  जन्म  और  जीवन यात्रा  से  जुड़ा  अनसुलझा बिंदु है जिसकी तरफ जिज्ञासा से  हर जीव का स्वाभाविक  रुझान  रहता  है।   और जाने   अनजाने में   वो अपने स्वाभाविक आकर्षण वश अपनी जीवन  यात्रा  की ओर उन्मुख रहता है।  

अज्ञानता और जिगयासा वश  बाहर उपलब्ध   लोगो  से प्रश्न पूछता रहता है , मेरे जन्म का उद्देश्य क्या  तुमको पता है ?  जबकि  "परम" स्वयं  जीव को  उसकी जीवन यात्रा पे ही  ले के जा रहे है , लगातार  निरंतर।  जब तक वो  अपने पूर्ण को उपलब्ध नहीं हो जाता।  
 

ॐ
उचित है कि सबसे पहले दोनों अपने अपने अपूर्ण को पूर्ण कर के फिर मेल करे तो प्रकृति के अधूरे येन और यांग पूर्ण होंगे। गणित उल्टा है , हमारे दिमाग में आता है कि यदि आधा आधा घेरा मिला दे तो एक घेरा पूरा हो जायेगा। और दो पूर्ण मिलके घेरा बनाएंगे तो दो घेरे बनेगे , एक पूर्ण घेरा कैसे होगा ? पर उसके राज्य में यही गणित है , दो पूर्ण मिलके ही एक पूर्ण बनते है , दो अपूर्ण मिलके भी अपूर्ण ही रहते है।

बेहतर है , हर अपूर्ण जीव अपनी पूर्णता की ओर अगर्सर हो , यही उसके जन्म और जीवन यात्रा से जुड़ा अनसुलझा बिंदु है जिसकी तरफ जिज्ञासा से हर जीव का स्वाभाविक रुझान रहता है। और जाने अनजाने में वो अपने स्वाभाविक आकर्षण वश अपनी जीवन यात्रा की ओर उन्मुख रहता है।

अज्ञानता और जिगयासा वश बाहर उपलब्ध लोगो से प्रश्न पूछता रहता है , मेरे जन्म का उद्देश्य क्या तुमको पता है ? जबकि "परम" स्वयं जीव को उसकी जीवन यात्रा पे ही ले के जा रहे है , लगातार निरंतर। जब तक वो अपने पूर्ण को उपलब्ध नहीं हो जाता।


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