Friday 25 July 2014

ये कैसा उपहास है स्वयं से !

आपो गुरु आपो भवः 

ये कैसा  उपहास  है स्वयं से  , स्वयं के विश्वास  से और उस परमात्मा से ? अवश्य ही ये अज्ञानता की  गहनतम छाया  है, जो सत्य देखने नहीं दे रही , सत्य तो यही है  आपके समक्ष  , अभी  और इसी जगह ।  

नीचे लिखे  सामान्य से वार्तालाप को पढ़ें , आपको अज्ञानता  के दर्शन हो जायेंगे , और ये अत्यंत सामान्य है  अगर दरसिहति बाहर खुलती हो   ही  बुद्धि भी भागती  है, वस्तुतः  यात्रा  तो उलट  सारी  अंदर को है , और वंचित फल न मिलने से  व्यक्ति और ज्यादा व्यथित  होते जाते है 

Umesha Kant :  Guruvar ji Sadar Pranaam  Khoji SatGuru ka kab bulava aayega ! Ke intzaar me ! Telepathy message awaiting 

Shivputra Chaitanya :  Umesha Kant ji, khush rahiye............ " निरंतर प्रतीक्षा" ....... ek din uchit samay aane par ''प्रतीक्षा" ............purn hoti hai..


क्या  ऐसा  आपके भी साथ तो नहीं होता  ?  

सामान्य सी दिखती  करोडो के दिलों की एक बेचैनी  के शिकार कहीं आप भी तो नहीं ? 

आश्चर्य  में डूब जाती हूँ जब ऐसे भाव को देखती हूँ।   



सुनिए  बांसुरी की आवाज , आपके ही अंदर से तो आ रही है , कान्हा फूंक रहे है , और तान आपके अंदर से उठ रही है।  ये बेचैनी  माया की छाया मात्र है।  

ऐसा क्या है  जो  आपके पास  नहीं , सब तो है , प्रकृति ने तो कोई भेदभाव किया ही नहीं , कहीं भेद है तो हमारी समझ का , हमारे दिमाग का।  जो पागलों की तरह भागता है , ढूंढता है  बिलखता है , काबू में ही नहीं आता। कहीं ये खोज में बाधा  हमारा अपना मन ही तो नहीं !!

क्या आपको पता है ? अध्यात्म के अभ्यास  के पहले चरण से  आखिरी चरण तक  गुरु  आपको क्या कहता है ? " ध्यान "

क्या है ये ध्यान ? आपकी अपनी अंतरयात्रा , जिसमे आप  अपने भाव और अपने  तर्क शक्ति से  हमले खाते  भी है , और पलट वार  करते भी है। 

धीरे धीरे अभ्यास  से  आपके वार  और मस्तिष्क के वार काम होते जाते है यानी चित्त  स्थिर होने लगता है। साक्षी भाव  सशक्त होने लगता है। भी आप  अपना सामर्थ्य  समझ पाते है , और  वस्तु स्थति को यथावत स्वीकार कर , परमात्मा के सम्मुख  शत प्रतिशत समर्पण करते है।  

और जिस दिन आप  समर्पण करते है , आप स्वयं अपने गुरु बन जाते है , फिर आप संसार में गुरु नहीं खोजते , नहीं भटकते।  आपका अपना विचलित ह्रदय (मन ) जिस पल शांत होता है आप स्वयं में एक सुगंध का अनुभव करते है।  

उसके पहले आपको सलाह दी जाती है , ध्यान कीजिये , स्वयं को जानने का प्रयत्न कीजिये।  उचित खान पान और दिन चर्या ऐसी हो  जो आपको अच्छी लगे।  ध्यान दीजिये , स्वयं से लड़ाई नहीं करनी , प्रेम करना है , स्वयं को सुझाव देना है।  जबरदस्ती की भाषा  आपका ह्रदय नहीं समझता !




ढूंढिए !!  ढूंढिए अपने ही अंदर , जिसको आप बाहर  ढूंढ़  रहे है वो सब आपके अपने ही अंदर है।  बाहर  जंगल में भटकते मृग सामान आप भटक भटक के समाप्त  हो जायेंगे।  और वो नहीं मिलेगा। 

बैठिये , अपने साथ।  अंतरयात्रा कीजिये।  वो खजाना  आपके अंदर ही है। मांस  और बहते खून के  अंदर , उछलते  सांस लेते  दिल के अंदर , दौड़ते मस्तिष्क  के अंदर , और आपके सुक्ष्म्  शरीर  के अंदर , वो चेतना आपमें ही है।  आप ही समर्थ  है इस ऊर्जा को उस ऊर्जा से जोड़ने में।  

बाहर  जिसको भी आप पूछेंगे  वो भी  आपको आपके ही अंदर का रास्ता दिखायेगा।  

फिर भी आपका  स्वयं पे अविश्वास  आपको भटका रहा है।  

स्वयं  सद्गुरु  भी तभी प्रकट होते है जब दिल की जमीन भीग  जाती है , और उपजाऊ  जमीन पाते ही किसान बीज डाल देता है , जो सुन्दर पुष्प का पौधा  बनता है , फल देता है , और आपका जीवन सुगंध से भर जाता है न सिर्फ आपका जीवन अपितु , आस पास भी महक  फैलती  है , जिसके फैलने  का आपको पता भी नहीं चलता।  

पर वो जमीन तो तैयार होनी है , वो अवसर तो आना है , और यकीं मानिये वो अवसर आते ही  आप स्वयं अपने गुरु बन जाते है , प्रकृति आपकी सहायता करती है। 

थोड़े  से कष्ट से  यदि आप हार मान रहे है , तो  चक्र साधिये , चक्र ध्यान कीजिये !  ह्रदय  और अज्ञान चक्र को साधिये।   श्वांस  पे  ध्यान साधिये , श्वांस की सधी चाल  आपको  बहुत कुछ संयत कर जाएगी।  

अवसर पहचानिए !  कभी कभी अवसर हमारे  पास से निकल जाते है , और हम पहचान नहीं पाते।  

एक एक  पल को जीना  है , सुख है तो सुख , दुःख है तो दुःख , भरपूर जीना है।   पर साक्षी भाव से।  तभी आपकी अंतर्दृष्टि विकसित ही सकती है।  

अंतर्दृष्टि  विकसित होगी तो  वो गुरु भी स्पष्ट होगा !  सभी कड़ियाँ  जुडी है  आपसे में , केवल  विचलन से कुछ हासिल नहीं। 

प्रकृति को जानिए , उससे  घनिष्टता  बनाइये , आपसे उसका  करोडो वर्षो का नाता है , लगातार वो आपके लिए कार्य कर रही है।  और आप !!  भटक भटक के , खुद भी परेशान है , और सबको विचलित कररहे है।  

संयम ,  धैर्य   एकाग्रता  और लक्ष्य की प्राप्ति सब साथ ही चलते है।  

संकेत के लिए : अंतरयात्रा कीजिये  आपके गुरु  आपके देव  आपके अराध्या , आपके परमात्मा  वही छुपे बैठे है ! 

अंत में :  मूल मन्त्र  है खुश रहना  और दूसरों को भी खुश रखना , हर पल को पूरा जीना।  



ॐ 


1 comment:

  1. Dear friends if any one feel ignorance in surrounding please spread message for well being , against aimless wandering , be wise be safe , One must have to Settle aimlessly in center of heart finally !

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