Saturday 25 January 2014

ज्यूँ की त्यूं धर दीनी चदरिया - Note

सम्पूर्ण बुनावट के हजारों धागों का एक भी सिरा दिख जाये और तुम 

उसको पकड़ भी लो , क्यूंकि फिसलन है इस बुनावट में बहुत फिसलन 


है बहुत चिकनाहट है , छोर फिसल_फिसल जाता है , पहली बात 


कि एक तो  सिरा मिलता नहीं ,  यदि  सावधानी है और  मिल भी   


गया तो फिसल जाता है , और समय अनुकूल हो और सिरा दिखा जाये 


,  तो बस पकड़ लिया .... कस के .... एक दम जोर से दोनों हाथो से ...


बस अब छोड़ना नहीं … अब मौका चूकना नहीं ...... अब वख्त है   


इसकी  घनी  बुनावट को खोलने का , एक भी छोर मिल जाये तो पूरी


चादर खुल  जायेगी .... 





उस परमात्मा की सारी पहेली का का सारांश बस इतना ही है की इस चादर के तार तार को अलग थलग कर के एक किनारे संभल के रख देना है बस तुम्हारा काम समाप्त ! 




अजब चादर है जीतनी बार खोली फिर से नयी बुनावट की हो जाती है , और इस से भी ज्यादा जादू ये की अपनी अपनी चादर खुद ही खोलनी और तहानी पड़ती है। तो चलो इस खेल में शामिल हो के जाओ शुरू ! 




सुनी सुनायी बात लगती है ना ! मुझे भी  पर क्या करू नवीनता तो परिवर्तन में होती है , जो चद्दर आज भी वैसी की वैसी तही रखही है उसमे कैसी नवीनता ……







आज पता चला की उसने हमे एक कुशल जुलाहा बनाने का पूरा प्रबंध किया है ... 



हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा  (laud laugh)


मुझे तो समझ आ गया उसका सारा खेल ,            


तो .... जीत .... पक्की .... और .... खेल .... आसान .....


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