Tuesday 28 January 2014

धोबी बन के या जुलाहा बनके ; चुनाव आपका - ध्यान प्रयोग - Note



एक छोटा सा ध्यान प्रयोग 

विचार करे ; शुरुआत से यानि की वैदिक काल से चले आ रहे विभिन्न ग्रन्थ रूप में एकत्रित विभिन्न सामाजिक धार्मिक और अध्यात्मिक व्यवस्थाये , सब बीज रूप में है , मंत्र रूप में है। एक बीज से वृक्ष बनने कि सम्भा
वना जैसे है , इन्हीं में ही अन्य अध्यात्मिक ग्रंथो को भी स्थान मिलता है जो अत्यंत कम शब्दो में अधिक से अधिक को समेटने की चेष्टा की गयी है , ये भी बीज रूप ही है उदाहरण के लिए ऋषियों ने कहा या मीरदाद ने कहा या कबीर ने कहा , या फिर मीरा ने गाया , बुध्ह के द्वारा कहेगए , महावीर द्वारा कहे गए , सभी बीज रूप है। कम से कम शब्दो में अधिक से अधिक कहा गया। ऐसा जान बूझके नहीं बल्कि उस स्तर पे विचरने वालो कि मजबूरी यही है कि शब्द बचते ही नहीं , जो है नहीं उसको रूप या फिर आवाज कैसे दी जाये ?

यहाँ रजनीश (ओशो ) जैसी आत्म उन्नत जीवात्माओं का महत्त्व हो जाता है कि वो जिज्ञासु और परम के बीच पुल के सामान से दिखते है , जब वो एक छोटे से छोटे भाव की गहरी से गहरी व्याख्या करते है। एक एक व्यक्ति के मनोभाव का ज्ञान और मानसिक गांठो को एक एक करके खोलने का प्रयास करते हुए से दिखते है। यहाँ रजनीश उन सब प्रबुध्ह से अलग है , ये बीजो को खोल के जिगयासु के सामने रखने का प्रयास करते दिखते है , जबकि उन सबने इत्र की सुगंध जैसा कहा। और वेद और उनकी ऋचाएं भी यही कहती है महामंत्र के रूप में। मन्त्र भी इसीलिए मन्त्र है क्यूंकि बीज रूप है।

बात नयी नहीं बार बार एक ही बात घुमा घुमा के कही गयी है अपने अपने अनुभव के अनुसार।

धागे फैले पड़े है चारो तरफ ; इक्षा , फैसला और संकल्प आपका , कहीं से भी एक धागा पकड़ लो और उधेड़ना शुरू करदो , गुच्छा बनाना मत भूलना वर्ना फिर से उलझने कि सम्भावना है और ज्यादा घनी मेहनत के बाद सुलझेगा।

एक काम जो पूर्व निश्चित है आपके पूर्व जन्मों और इस जनम के साथ कि ये चादर तो उधेड़नी ही है। ये कार्य तो पूरा करना ही पड़ेगा अब ये चुनाव आपका कि कब और कौन से धागे से शुरुआत करनी है।  धोबी बन के या जुलाहा बनके ; आपका चुनाव



शुभकामनाये

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