Thursday 23 January 2014

कुछ कहने को नया है ही नहीं - note

मैं कुछ नया कह ही नहीं सकती , कुछ कहने को नया है ही नहीं , वो ही जो श्री राम और श्री कृष्णा ने बताया , रूमी नेऔर फरीद ने महसूस किया जो नानक ने पाया , जो कबीर ने लिखा , और जो मीरा ने गाया , वो ही कहना है फिर से। जो गुरु परंपरा से चले आ रहे सद गुरुओं ने कहा , जो बुध्ह और महावीर ने कहा जो उसी दोहराने की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ओशो ने कहा और उनके बाद भी उसी क़तर में लगे हुए ज्ञानी जन वो ही आज भी कह रहे है , क्यूंकि जिस तार के हिलने से उनके ह्रदय की तरंगे आंदोलित हुई , वो ही तार सभी में है तरंगे भी है , सिर्फ आंदोलन वो नहीं। तो कहना भी वही सुनना भी वही है , सिर्फ अगर कुछ नया है तो आपमें और मुझमे आंदोलन का बहना नया है।

इसी ह्रदय के आंदोलन के लिए मुझे बार बार वो ही दोहराना है। बार बार उस महल के उन दो दरवाजो द्वारा उस महल में प्रवेश के वो ही उपाय बताने है , और बार बार उन कीमती गुणो को बचाने के लिए छन्नी भी लगानी है ताकि जो कीमती है वो रह जाये बाकी बह जाये।

इस कामना के साथ.................................. 



" सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया , सर्वे भद्राणि पश्यन्तु , मा कश्चित् दुखभाग्भवेत। 

ॐ प्रणाम

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