Monday 20 January 2014

बुध्ह दृष्टि , घाटी और हम - Note

जब हम जब ऊंचाई पे खड़े हो कर वह से नीचे नजर झुकाते है तो समस्त घाटी में होने वाली हलचल का सजह दृश्य मिल जाता है , ठीक उसी प्रकार सिर्फ अपने स्थान पे खड़े हुए इंसान को नीचे चलने वाली सूक्ष्म चींटी के रास्ते और रस्ते कि दुश्वारियां से स्पष्ट दिख जाती है, जो चींटी नहीं देख सकती। . ठीक वैसे ही विकसित आत्म ऊर्जा वाले बौध्हिक समृध्हशील ज्ञानी के लिए आनेवाला उत्सुक साधारण इंसान और उस इंसान की जिज्ञासा , उसके प्रश्न और उसकी सोच और कृत्य उद्घोषणा कर देते है कि अभी वो किस घेरे में उलझा हुआ है कहाँ और कितना आत्म अभ्यास और ध्यान उसके लिए आवश्यक है। पर इसका ये अर्थ कदापि नहीं की आप उस बुधः व्यक्ति के आचरण को बिना सोचे समझे और अनुभव किये पालन करना शुरू कर दे। अपना संज्ञान अपने साथ ही रखे , उसका संज्ञान उसके अनुभव आपको भवसागर पार नहीं करा सकते। उसके लिए आपका अपनी स्वयं की और स्वयं के लिए बनायीं नाव पे बैठना औए खेना (चलाना ) आवश्यक है। हाँ , मित्र भाव रखिये , करुणा रखिये , क्यूंकि वो भी आप जैसा ही अपनी नाव स्वयं चला रहा है आभार उस बुध्हात्मन का इसलिए क्यूंकि 
अपने साथ वो आपकी नाव को भी दिशा देने का प्रयास कर रहा है। 

( वैसे तो सभी असाधारण है और परमात्मा की अनुपम कृति है किन्तु जो अभी पंच इंद्रियों के भौतिक सुख भोग चक्र में उलझे है अपनी सम्भावना से अपरिचित है जिज्ञासु है पर साहसी नहीं ; इसलिए ऐसे प्रिय आत्मन के लिए साधारण शब्द का उपयोग सिर्फ उदाहरण के लिए किया गया है )

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