Thursday 23 January 2014

माया महा ठगनी हम जानी (जीवन यात्रा का बहाव) - Note

जिस प्रकार अपने घर की सुंदरता को देखने के लिए 

घर से बाहर निकलना ही पड़ता है , बाहर निकल के 


ही घर की सुंदरता दिखायी पड़ती है , वर्ना सुनी सुनायी


सी बात लगती है ऐसा जैसे बाहर खड़े कुछ लोग यूँ 


कह रहे हो कि ये घर सुंदर है या हो सकता है , पर खुद


इस कथन का यकीं नहीं हो पता । 



इसी प्रकार माया के सुंदर और जटिल महल को 


समझने के लिए माया से बाहर आ के ही देखना 


सम्भव है. तभी माया और उसके गहरे प्रभाव को 


समझा और जाना जा सकता है


(ध्यान रहे, बचने के लिए आपको सतत प्रयास करना पड़ेगा क्यूंकि 

माया रुपी चादर की बुनावट अति महीन है ) 



और जिसमे सिर्फ मात्र " केंद्रित-ध्यान " ही आपका 


सहयोगी है। 

और यदि ध्यान के गहरे क्षणो में ह्रदय के तार में वो 


ही आंदोलन महसूस हो जाये तो चूकना नहीं छलांग 


लगाने में देर नहीं करना , क्यूंकि माया महा ठगनी 


हम जानी , तिरगुन फांस लिए कर डोले बोले बोले 


माधुरी बनी। सत्य है माया का कोहरा हर वख्त 

गिरफ्त में लेने को तैयार है। कभी भी किसी को भी , 


ज्ञानी अज्ञानी किसी को नहीं बख्शती। ज्ञानी को ज्ञान 


से घेरती है और अज्ञानी को अज्ञान से।



जब तक माया जनित कोहरा गहराया नहीं अर्थात 

आपमें कुछ भी आत्मिक या चेतना का अर्थ जानने 

की जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है , यही वख्त है जब पूरी 

आत्मिक शक्ति से इस कोहरे से दो दो हाथ किये जाएँ 

, समझा जाये कि मर्म क्या है आखिर इस माया का , 

वैसे इतना बुरा भी नहीं , यही तो है जो संसार को

चला रही है। वर्ना संसार का अस्तित्व ही क्या ?


पर जो समझ सके और कमल के पत्ते के सामान स्वयं 

के मस्तिष्क को माया के छल में  खुद को  लिप्त होने 


से बचा सके तो उसका कार्य पूरा हुआ , फिर माया को 

अपना काम करने दिया जाये और आप अपना 

आत्मिक उथान करे। और यदि आपका आत्मिक 

उत्थान कार्य पूरा होता सा लगे तो आस पास के 

जिज्ञासु की भी यथोचित मदद सिर्फ करुणावश करे , 

कोई बल प्रयोग न स्वयं के साथ न सामने वाले के 

साथ। 






























"सबकी जीवन यात्रा का अपना बहाव है अपनी यात्रा है" 

, इस महत्वपूर्ण विचार को अवश्य अपनी सोच का 

अंग बनाये । और विराट की शक्ति और प्रयोजन के 

समक्ष हम बहुत सिमित शक्ति वाले है. एक निश्चित 

समय के लिए आये है और चले जायेंगे , कार्य पूरा कर

पाये तो ठीक... नहीं कर पाये तो भी ठीक।


ॐ प्रणाम


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