Monday 27 October 2014

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय 5/6/7

    प्रभु रचना और प्रभु 
  एक ही तो भी

अध्याय–5..

कुठालियाँ और चलनियां शब्द प्रभु का
और मनुष्य का प्रभु का शब्द एक कुठली है ।
जो कुछ वह रचता है
उसको पिघलाकर एक कर देता है,
न उसमे से किसी को अच्छा
मानकर स्वीकार करता है
न ही बुरा मानकर ठुकराता है ।
दिव्य ज्ञान से परिपूर्ण होने के
कारण वह भली- जानता है
कि उसकी रचना और वह
स्वयं एक हैं;
कि एक अंश को ठुकराना सम्पूर्ण को ठुकराना है;
और सम्पूर्ण को ठुकराना
अपने आप को ठुकराना है ।
इसलिए उसका उद्देश्य और
आशय सदा एक ही रहता है ।
जबकि मनुष्य का शब्द एक चलनी है ।
जो कुछ यह रचता है
उसे लड़ाई-झगड़े में लगा देता है ।
यह निरंतर किसी को मित्र
मानकर अपनाता रहता है
तो किसी को ठुकराता रहता है ।
और अकसर इसका कल का मित्र आज का शत्रु बन जाता है; आज का शत्रु, कल का मित्र ।
इस प्रकार मनुष्य का अपने ही विरुद्ध क्रूर और निरर्थक युद्ध छिड़ा रहता है ।
और यह सब इसलिए क्योंकि मनुष्य में पवित्र शक्ति का अभाव है;और केवल वही उसे बोध करा सकती है
कि वह तथा उसकी रचना एक ही हैं;
कि शत्रु को त्याग देना मित्र को त्याग देना है ।
क्योंकि दोनों शब्द,
शत्रु और मित्र उसके शब्द
उसके  मैं की रचना है ।
जिससे तुम घ्रणा करते हो
और बुरा मानकर त्याग देते हो,
उसे अवश्य ही कोई अन्य व्यक्ति,
अथवा अन्य पदार्थ अच्छा मानकर,
अपना लेता है क्या एक ही
वस्तु एक ही समय में
परस्पर विपरीत दो वस्तुएं हो सकती है ?
वह न एक हैं,
न ही दूसरी; केवल तुम्हारे ‘मैं ने उसे बुरा बहा दिया है,
और किसी दुसरे ;;मैं” ने उसे अच्छा बना बना ।
क्या मैंने कहा नहीं कि जो रच सकता है?
वह अ-रचित भी कर सकता है ?
जिस प्रकार तुम किसी को शत्रु बना लेते हो,
उसी प्रकार उसके साथ शत्रुता
को मिटा भी सकते हो,
या उसे शत्रु से मित्र बना सकते हो ।
इसके लिए तुम्हारे ”मैं” को
एक कुठाली बनना होगा।
इसके लिया तुहे दिव्य ज्ञान की आवश्यकता है ।
इसलिए मैं तुमसे कहता हूँ
कि यदि तुम कभी किसी वस्तु
के लिए प्रार्थना करते ही हो,
तो केवल दिव्य ज्ञान के लिए प्रार्थना करो।
छानने वाले कभी न बनना,
मेरे साथियों …
क्योंकि प्रभु का शब्द जीवन है
और जीवन एक कुठाली है
जिसमे सब कुछ एक, अविभाज्य एक बन जाता है;
सब कुछ पूरी तरह संतुलित होता है,
और सबकुछ अपने रचयिता–
पावन त्रिपुटी–के योग्य होता है ।
और इससे और कितना अधिक तुम्हारे योग्य होगा ? छानने वाले कभी न बनना, मेरे साथियों; तब तुम्हारा व्यक्तित्व इतना महान, इतना सर्वव्यापी और इतना सर्वग्राही हो जाएगा कि ऐसी कोई भी चलनी नहीं मिल सकेगी जो तुम्हे अपने अंदर समेट ले । छानने वाले कभी न बनना, मेरे साथियों । पहले शब्द का ज्ञान प्राप्त करो ताकि तुम अपने खुद के शब्द को जान सको । जब तुम अपने शब्द को जान लोगे तब अपनी चलनियों को अग्नि की भेंट कर दोगे । क्योंकि तुम्हारा शब्द और प्रभु का शब्द एक है, अंतर इतना ही है तुम्हारा शब्द अभी भी पर्दों में छिपा हुआ है । मीरदाद तुमसे परदे फिंकवा देना चाहता है ।प्रभु के शब्द के लिए समय और स्थान का कोई अस्तित्व नहीं । क्या कोई ऐसा समय था जब तुम प्रभु के साथ नहीं थे ? क्या कोई ऐसा स्थान है जहाँ तुम प्रभु के अंदर नहीं थे ? फिर क्यों बाँधते हो तुम अनन्तता को प्रहारों और ऋतुओं की जंजीरों में ? और क्यों समेटते हो स्थान को इंचों और मीलों में ?प्रभु का शब्द वह जीवन है जो जन्मा नहीं,इसी लिए अविनाशी है । फिर तुम्हारा शब्द जन्म और मृत्यु की लपेट में क्यों है ? क्या तुम केवल प्रभु के सहारे जीवित नहीं हो ? और मृत्यु से मुक्त कोई मृत्यु का स्रोत हो सकता है ? प्रभु के शब्द में सभी कुछ शामिल है उसके अंदर न कोई अवरोध है न कोई बाड़ें । फिर तुम्हारा शब्द अवरोधों और बाड़ों से क्यों इतना जर्जर है ?
मैं तुमसे कहता हूँ, तुम्हारी हड्डियाँ और मांस भी केवल तुम्हारी ही हड्डियाँ और मांस नहीं है । तुम्हारे हाथो के साथ और अनगिनत हाथ भी प्रथवी और आकाश की उन्ही देगचियों में डुबकी लगाते हैं जिनमे से तुम्हारी हड्डियाँ और मांस आते हैं और जिनमे वो वापस चले जाते है ।न ही तुम्हारी आँखों की ज्योति केवल तुम्हारी ज्योति है । यह उन सबकी ज्योति भी है जो सूर्य प्रकाश में तुम्हारे भागीदार हैं । यदि मुझमे प्रकाश न होता तो क्या तुम्हारी आँखे मुझे देख पातीं ? यह मेरा प्रकाश है जो तुम्हरी आँखों में मुझे देखता है । यह तुम्हारा है जो मेरी आँखों में तुम्हे देखता है । यदि मैं पूर्ण अन्धकार होता तो मेरी और ताकने पर तुम्हारी आँखें पूर्ण अंधकार ही होतीं । न ही तुम्हारे वक्ष में चलता श्वांस तुम्हारा श्वांस है। जो श्वास लेते हैं, या जिन्होंने कभी श्वास लिया था, वे सब तुम्हारे वक्ष में श्वास ले रहे हैं । क्या यह आदम का श्वास नहीं जो अभी भी तुम्हारे फेंफडों को फुला रहा है ? क्या यह आदम का हृदय नहीं जो आज भी तुम्हारे हृदय के अंदर धड़क रहा है ?न ही तुम्हारे विचार तुम्हारे अपने विचार हैं । सार्वजानिक चिंतन का समुद्र दावा करता है कि यह विचार उसके हैं; और यह दावा करते हैं चिंतन करने वाले अन्य प्राणी जो तुम्हारे साथ उस समुद्र में भागिदार हैं ।न ही तुम्हारे स्वप्न केवल तुम्हारे स्वप्न हैं तुम्हारे स्वप्नों में सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड अपने सपने देख रहा है । न ही तुम्हारा घर केवल तुम्हारा घर है । यह तुम्हारे मेहमान का और उस मक्खी, उस चूहे, उस बिल्ली, और उन सब प्राणियों का भी घर है जो तुम्हारे साथ उसका उपयोग करते हैं ।इसलिए, बाड़ों से सावधान रहो । तुम केवल भ्रम को बाद के अंदर लाते हो और सत्य को बाद के बाहर निकलते हो । और जब तुम अपने आप को बाद के अंदर देखने के लिए मुड़ते हो, तो अपने सामने खडा पाते हो मृत्यु को जो भ्रम का दूसरा नाम है ।मनुष्य को, हे साधुओ प्रभु से अलग नहीं किया जा सकता; और इसलिए अपने साथी मनुष्य से और अन्य प्राणियों से भी उसे अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि वे भी शब्द से उत्पन्न हुए हैं |शब्द सागर है, तुम बादल हो, और बादल क्या बादल हो सकता है यदि सागर उसके अंदर न हो? निःसंदेह मूर्ख हैं वह बादल जो अपने रूप और अपने अस्तित्व को सदा के लिए बनाये रखने के उद्देश्य से आकाश में अधर टंगे रहने के प्रयास में ही अपना जीवन नष्ट करना चाहता है । अपने मूर्खतापूर्ण श्रम का उसे भग्न आशाओं और कटु मिथ्याभिमान के सिवाय और क्या फल प्राप्त होगा? यदि वह अपने आप को गँवा नहीं देता, तो अपने आपको प् नहीं सकता । यदि वह बादल के रूप में मरकर लुप्त नहीं हो जाता, तो अपने अंदर के सागर को पा नहीं सकता जो एकमात्र उसका अस्तित्व है ।मनुष्य एक बादल है जो प्रभु को अपने अंदर लिए हुए है । यदि वह अपने आप से रिक्त नहीं हो जाता, तो वह अपने आप को पा नहीं सकता । आह, कितना आनंद है रिक्त हो जाने में !यदि तुम अपने आप को सदा के लिए शब्द में खो नहीं देते तो तुम उस शब्द को समझ नहीं सकते जो की तुम स्वयं हो, जो की तुम्हारा ”मैं” ही है । आह, कितना आनंद है खो जाने में !मैं तुमसे फिर कहता हूँ, दिव्य ज्ञान के लिए प्रार्थना करो । जब तुम्हारे अन्तर में दिव्य ज्ञान प्रकट हो जाएगा, तो प्रभु के विशाल साम्राज्य में ऐसा कुछ नहीं होगा जो तुम्हारे द्वारा उच्चारित प्रत्येक ”मैं” का उत्तर एक प्रसन्न हुँकार से न दे ।और तब स्वयं मृत्यु तुम्हारे हाथों में केवल एक अस्त्र होगी जिससे तुम मृत्यु को पराजित कर सको । और तब जीवन तुम्हारे हृदय को असीम ह्रदय की कुंजी प्रदान करेगा । वह है प्रेम की सुनहरी कुंजी ।शमदाम ;– मैंने स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी की जूते बर्तन पोंछने के चिथड़े और झाड़ू में से इतनी बुद्धिमत्ता निचोड़ी जा सकती है । (उसका संकेत मीरदाद के सेवक होने की ओर था )मीरदाद :– बुद्धिमानों के लिए सब कुछ बुद्धिमत्ता का भण्डार है ।. बुद्धि हीनों के लिए बुद्धिमत्ता स्वयं एक मूर्खता है । शमदाम : — तेरी जुबान, निःसंदेह बड़ी चतुर है । आश्चर्य है कि तूने इसे इतने समय तक लगाम दिए रखी । परन्तु तेरे शब्द बहुत कठोर और कठिन हैं ।मीरदाद;– मेरे शब्द तो सरल हैं शमदाम । कठिन तो तुम्हारे कानों को लगते हैं । अभागे हैं वे जो सुनकर भी नहीं सुनते; अभागे हैं वे जो देखकर भी नहीं देखते ।शमदाम:– मुझे खूब सुनाई और दिखाई देता है, शायद जरुरत से कुछ ज्यादा ही । फिर भी मैं ऐसी मूर्खता की बात नहीं सुनूँगा कि शमदाम और मीरदाद दोनों सामान हैं; कि मालिक और नौकर में कोई अंतर नहीं ।
 * पूरा अस्तित्व ही *
       एक दूसरे की सेवा में लीन है

अध्याय 6
मीरदाद :– मीरदाद ही शमदाम का
एकमात्र सेवक नहीं है ।
शमदाम……..क्या तुम अपने सेवकों की
गिनती कर सकते हो ?
क्या कोई गरुड या बाज है;
क्या कोई देवदार या बरगद है;
क्या कोई पर्वत या नक्षत्र है;
क्या कोई महासागर या सरोवर है;
क्या कोई फ़रिश्ता या बादशाह है
जो शमदाम की सेवा न कर रहा हो ?
क्या सारा संसार ही शमदाम की सेवा में नहीं है ?
न ही मीरदाद शमदाम का एक मात्र स्वामी है ।
शमदाम, क्या तुम अपने स्वामियों
की गिनती कर सकते हो ?
क्या कोई भृंगी या कीट है;
क्या कोई उल्लू या गौरैया है;
क्या कोई काँटा या टहनी है;
क्या कोई कंकर या सीप है;
क्या कोई ओस-बिंदु या तालाब है;
क्या कोई भिखारी या चोर है
जिसकी शमदाम सेवा न कर रहा हो ?
क्या शमदाम सम्पूर्ण संसार की सेवा में नहीं है ?
क्योंकि अपना कार्य करते हुए
संसार तुम्हारा कार्य भी करता है ।
और अपना कार्य करते हुए
तुम संसार का कार्य भी करते हो ।
हाँ……..
मस्तक पेट का स्वामी है;
परन्तु पेट भी मस्तक
का कम स्वामी नहीं ।
कोई भी चीज सेवा नहीं कर सकती
जब तक सेवा करने में
उसकी अपनी सेवा न होती हो ।
और कोई भी चीज सेवा नहीं करवा सकती
जब तक उस सेवा से
सेवा करने वाले की सेवा न होती हो ।
शमदाम…..मैं तुम से और सभी से कहता हूँ,
सेवक स्वामी का स्वामी है,
और स्वामी सेवक का सेवक ।
सेवक को अपना सिर न झुकाने दो ।
स्वामी को अपना सिर न उठाने दो ।
क्रूर स्वामी के अहंकार को कुचल डालो ।
शर्मिन्दा सेवक की शर्मिन्दगी को जड़ से उखाड़ फेंको |
याद रखो,शब्द एक है ।
और उस शब्द के अक्षर होते हुए
तुम भी वास्तव में एक ही हो ।
कोई भी अक्षर किसी अन्य अक्षर से श्रेष्ठ नहीं,
न ही किसी अन्य अक्षर से अधिक आवश्यक है ।
अनेक अक्षर एक ही अक्षर हैं,
यहाँ तक कि शब्द भी ।
तुम्हे ऐसा एकाक्षर बनना होगा
यदि तुम उस अकथ आत्म-प्रेम के
क्षणिक परम आनंद का अनुभव
प्राप्त करना चाहते हो
जो सबके प्रति,सब पदार्थों के प्रति, प्रेम है ।
शमदाम…
इस समय मैं तुमसे उस तरह बात नहीं कर रहा हूँ
जिस तरह स्वामी सेवक से अथवा सेवक स्वामी से करता है; बल्कि इस तरह बात कर रहा हूँ
जिस तरह भाई भाई से बात करता है ।
तुम मेरी बातों से क्यों इतने व्याकुल हो रहे हो ?
तुम चाहो तो मुझे अस्वीकार कर दो ।
परन्तु मैं तुम्हे अस्वीकार नहीं करूंगा ।
क्या मैंने अभी-अभी नहीं कहा था
कि मेरे शरीर का मांस
तुम्हारे शरीर के मांस से भिन्न नहीं है ?
मैं तुम पर वार नहीं करूँगा,
कहीं ऐसा न हो कि मेरा रक्त बहे ।
इसलिए अपनी जबान को म्यान में ही रहने दो,
यदि तुम अपने रक्त को बहने से बचाना चाहते हो ।
मेरे लिए अपने ह्रदय के द्वार खोल दो,
यदि तुम उन्हें व्यथा और पीड़ा
के लिए बंद कर देना चाहते हो ।
ऐसी जिव्हा से
जिसके शब्द कांटे और जाल हों
जिव्हा का न होना कंहीं अच्छा है ।
और जब तक जिव्हा दिव्य
ज्ञान के द्वारा स्वच्छ नहीं
की जाती तब तक उससे निकले
शब्द सदा घायल करते रहेंगे
और जाल में फँसाते रहेंगे |
हे साधुओ…….
मेरा आग्रह है कि तुम अपने ह्रदय को टटोलो ।
मेरा आग्रह है कि तुम उसके अंदर के
सभी अवरोधों को उखाड़ फेंको ।
मेरा आग्रह है कि तुम उन
पोतड़ों को जिनमे तुम्हारा ;
मैं; अभी लिपटा हुआ है
फेंक दो,
ताकि तुम देख सको
कि अभिन्न है तुम्हारा ‘मैं’
प्रभु के शब्द से जो
अपने आपमें सदा शांत है
और अपने में से उत्पन्न हुए
सभी खण्डों–ब्रम्हान्डों के साथ
निरंतर एक- स्वर है ।
यही शिक्षा थी मेरी नूह को ।
यही शिक्षा है मेरी तुम्हे है …
नरौन्दा;–इसके बाद हम सबको अवाक
और लज्जित छोड़कर मीरदाद
अपनी कोठरी में चला गया ।
कुछ समय के मौन के बाद,
जिसका बोझ असह्य हो रहा था,
सभी साथी उठकर जाने लगे और
जाते जाते हर साथी ने मीरदाद के
विषय में अपना विचार प्रकट किया ।
शमदाम;– राज-मुकुट के स्वप्न देखने वाला एक भिखारी ।
मिकेयन:- यह वही है जो गुप्त रूप से हजरत नूह की नौका में सवार हुआ था ।
इसमें कहा नहीं था, ”यही शिक्षा थी मेरी नूह को ?”
अबिमार:- उलझे हुए सूत की एक गुच्छी ।
मिकास्तर :- किसी दुसरे ही आकाश का एक तारा ।
बैनून :- एक मेधावी पुरुष, किन्तु परस्पर विरोधी बातों में खोया हुआ ।
जमोरा :- एक विलक्षण रबाब जिसके स्वरों को हम नहीं पहचानते ।
हिम्बल :- एक भटकता शब्द किसी सहृदय श्रोता की खोज में
हर शब्द को प्रार्थना
   में ढाल दो प्रभु मार्ग के लिए

अध्याय -7
मिकेयन और नरौंदा
रात को मीरदाद से बातचीत करते हैं
जो भावी जल-प्रलय का संकेत देता है और
उनसे तैयार रहने का आग्रह करता है
***************************************
नरौन्दा :- रात्रि के तीसरे पहर की
लगभग दूसरी घडी थी
जब मुझे लगा कि
मेरी कोठरी का द्वार खुल रहा है
और मैंने मिकेयन को धीमे स्वर में कहते सुना….
क्या तुम जाग रहे हो, नरौन्दा ?””
इस रात मेरी कोठरी में नींद का
आगमन नहीं हुआ है……मिकेयन
‘ न ही नींद ने आकर मेरी आँखों में बसेरा किया है । और वह क्या तुम सोचते हो कि वह सो रहा है ?””
तुम्हारा मतलब मुर्शिद से है ?….
तुम अभी से उसे मुर्शिद कहने लगे ?
शायद वह है भी ।
जब तक मैं निश्चय नहीं कर लेता
की वह कौन है,
मैं चैन से नहीं बैठ सकता ।
चलो…..
इसी क्षण उसके पास चलें ।
हम दबे पाँव मेरी कोठरी से निकले और मुर्शिद की कोठरी में जा पहुंचे ।
फीकी पड़ रही चांदनी की कुछ किरणें
दीवार के उपरी भाग के एक छिद्र से
चोरी छिपे घुसती हुई
उसके साधारण-से बिस्तर पर पड़ रहीं थीं
जो साफ़-सुथरे ढंग से धरती पर बिछा हुआ था । स्पस्ट था कि उस रात उस पर कोई सोया न था ।
जिसकी तलाश में हम वहां आये थे,
वह वहां नहीं मिला ।
चकित, लज्जित और निराश हम लौटने ही लगे थे
की अचानक…..
इससे पहले कि हमारी आँखे द्वार पर
उसके करुणामय मुख की झलक पातीं,
उसका कोमल स्वर हमारे कानो में पड़ा ।
मीरदाद :- घबराओ मत, शांति से बैठ जाओ ।
शिखरों पर रात्रि तेजी से प्रभात में विलीन
होती जा रही है ।
विलीन होने के लिए यह घडी बड़ी अनुकूल है ।
मिकेयन :- ( उलझन,और रुक-रुक कर) इस अनाधिकार प्रवेश के लिए क्षमा करना ।
रात- भर हम सो नहीं पाये ।
मीरदाद:- बहुत क्षणिक होता है
नींद में अपने आपको भूल जाना ।
नींद की हलकी-हलकी झपकियाँ लेकर
अपने को भूलने से बेहतर हैं
जागते हुए ही अपने आपको
पूरी तरह से भुला देना । ….
मीरदाद से तुम क्या चाहते हो ?…
मिकेयन:- हम यह जानने के लिए आये थे
की तुम कौन हो ।
मीरदाद:- जब मैं मनुष्यों के साथ होता हूँ
तो परमात्मा हूँ ….
जब परमात्मा के साथ
तो मनुष्य ।
क्या तुमने जान लिया मिकेयन ?
मिकेयन:- तुम परमात्मा की निंदा कर रहे हो ।
मीरदाद:- मिकेयन के परमात्मा की-शायद हाँ,
मीरदाद के परमात्मा की बिलकुल नहीं ।
मिकेयन:- क्या जितने मनुष्य हैं उतने ही परमात्मा हैं
जो तुम मीरदाद के लिए एक परमात्मा की
और मिकेयन के लिए
दुसरे परमात्मा की बात करते हो ?
मीरदाद:- परमात्मा अनेक नहीं हैं ।
परमात्मा एक है ।
किन्तु मनुष्यों की परछाइयाँ
अनेक और भिन्न-भिन्न हैं ।
जब तक मनुष्यों की परछाइयाँ
धरती पर पड़ती हैं,
तब तक किसी मनुष्य का
परमात्मा उसकी परछाईं से बड़ा नहीं हो सकता ।
केवल परछाईं -रहित मनुष्य ही
पूरी तरह से प्रकाश में है ।
केवल परछाईं-रहित मनुष्य ही
उस एक परमात्मा को जानता है ।
क्योंकि परमात्मा प्रकाश है,
और केवल प्रकाश ही
प्रकाश को जान सकता है ।
मिकेयन:- हमसे पहेलियों में बात मत करो ।
हमारी बुद्धि अभी बहुत मन्द है ।
मीरदाद:- जो मनुष्य परछाईं का पीछा करता है,
उसके लिये सबकुछ ही पहेली है ।
ऐसा मनुष्य उधार ली हुई रौशनी में चलता है,
इसलिए वह अपनी परछाईं से ठोकर खाता है ।
जब तुम दिव्य ज्ञान के प्रकश से चमक उठोगे
तब तुम्हारी कोई परछाईं रहेगी ही नहीं ।
शीघ्र ही मीरदाद परछाइयाँ
इकट्ठी कर लेगा
और उन्हें सूर्य के ताप में जला डालेगा ।
तब वह सब जो इस समय तुम्हारे लिए पहेली है,
एक ज्वलंत सत्य के रूप में
सहसा तुम्हारे सामने प्रकट हो जायेगा,
और वह सत्य इतना प्रत्यक्ष होगा
कि उसे किसी व्याख्या की आवश्यकता नहीं होगी..
मिकेयन :- क्या तुम हमें बताओगे नहीं
कि तुम कौन हो?
यदि हमे तुम्हारे नाम का–
तुम्हारे वास्तविक नाम का—
तथा तुम्हारे देश
और तुम्हारे पूर्वजों का ज्ञान होता
तो शायद हम तुम्हे अधिक
अच्छी तरह से समझ लेते ।
मीरदाद :- ओह, मिकेयन !
मीरदाद को अपनी जंजीरों में बाँधने
और अपने पर्दों में छिपाने का
तुम्हारा यह प्रयास ऐसा ही है
जैसा गरुड को वापस उस खोल में
ठूंसना जिसमे से वह निकला था ।
क्या नाम हो सकता है
उस मनुष्य का
जो अब ‘खोल के अंदर ‘ है ही नहीं ?
किस देश की सीमाएँ
उस मनुष्य को
अपने अंदर रख सकती हैं
जिसमे एक ब्रम्हाण्ड समाया हुआ है ?
कौन-सा वंश उस मनुष्य को अपना कह सकता है जिसका एकमात्र पूर्वज स्वयं परमात्मा है ?
यदि तुम मुझे अच्छी तरह से
जानना चाहते हो, मिकेयन,
तो पहले मिकेयन को अच्छी तरह से जान लो ।
मिकेयन :- शायद तुम मनुष्य का चोला पहने एक कल्पना हो ।
मीरदाद :- हाँ लोग किसी दिन कहेंगे कि मीरदाद केवल एक कल्पना था ।
परन्तु तुम्हे शीघ्र ही पता चल जायेगा कि यह कल्पना कितनी यथार्थ है—
मनुष्य के किसी भी प्रकार के यथार्थ से कितनी अधिक यथार्थ ।
इस समय संसार का ध्यान मीरदाद की ओर नहीं है ।
पर मीरदाद संसार को सदा ध्यान में रखता है ।
संसार भी शीघ्र ही मिरदाद की ओर ध्यान देगा…..
मिकेयन:- कहीं तुम वही तो नहीं जो गुप्त रूप से नूह की नौका में सवार हुआ था ?
मीरदाद:- मैं प्रत्येक उस नाव में गुप्त रूप से सवार हुआ व्यक्ति हूँ जो भ्रम के तूफानों से जूझ रही है ।
जब भी उन नौकाओं के कप्तान मुझे सहायता के लिये पुकारते हैं,
मैं आगे बढ़कर पतवार थाम लेता हूँ ।
तुम्हारा ह्रदय भी,चाहे तुम नहीं जानते,
दीर्घकाल से उच्च स्वर में मुझे पुकार रहा है ।
और देखो !
मीरदाद तुम्हे सुरक्षित खेने के लिए यहाँ आ गया है ताकि अपनी बारी आने पर तुम संसार को खेकर उस जल-प्रलय से बाहर निकल सको
जिससे बड़ा जल-प्रलय कभी देखा या सुना न गया होगा ।
मिकेयन:- एक और जल-प्रलय ?
मिरदाद :- धरती को बहा देने के लिए नहीं,
बल्कि धरती के अंदर जो स्वर्ग है उसे बाहर लाने के लिए ।
मनुष्य का निशान तक मिटा देने के लिए नहीं,
बल्कि मनुष्य के अंदर छिपे
परमात्मा को प्रकट करने के लिए ।
मिकेयन :- अभी कुछ ही दिन तो हुए हैं जब इंद्रा-धनुष ने सात रंगों से हमारे आकाश को सुशोभित किया था,
और तुम दुसरे जल-प्रलय की बात करते हो |
मीरदाद:- नूह के जल-प्रलय से अधिक विनाशकारी होगा यह जल-प्रलय जिसकी तूफानी लहरें अभी से उठ रही हैं ।
जल में डूबी धरती के गर्भ में वसंत का वादा होता है । लेकिन अपने ही तप्त लहू में उबल रही धरती ऐसी नहीं होती ।
मिकेयन:- तो क्या हम समझें कि अन्त आनेवाला है ? क्योंकि हमें बताया गया था
कि गुप्त रूप से नौका में सवार होने वाले व्यक्ति का आगमन अन्त का सूचक होगा ।
मीरदाद:- धरती के बारे में कोई आशंका मत करो । अभी उसकी आयु बहुत कम है,
और उसके वक्ष का दूध उसके अंदर
समा नहीं रहा है ।
अभी और इतनी पीढियां
उसके दूध पर पलेंगी
कि तुम उन्हें गिन नहीं सकते ।
न ही धरती के स्वामी मनुष्य
के लिए चिंता करो,
क्योंकि वह अविनाशी है ।
हाँ…….
अमिट है मनुष्य ।
हाँ…अक्षय है मनुष्य ।
वह भट्ठी में प्रवेश मनुष्य–
रूप में करेगा और निकलेगा परमात्मा बनकर ।
स्थिर रहो ।
तैयार रहो ।
अपनी आँखों, कानों और जिव्हाओं को
भूखा रखो,
ताकि तुम्हारा ह्रदय उस पवित्र भूख का
अनुभव कर सके
जिसे यदि एक बार शांत कर दिया जाये
तो वह सदा के लिये तृप्त कर देती है ।
तुम्हे सदा तृप्त रहना होगा,
ताकि तुम अतृप्तों को तृप्ति प्रदान कर सको ।
तुम्हे सदा सबल और स्थिर रहना होगा,
ताकि तुम निर्बल और डगमगाने
वालों को सहारा दे सको ।
तुम्हे तूफ़ान के लिये सदा तैयार रहना होगा,
ताकि तुम तूफ़ान-पीड़ित बेआसरों को आसरा दे सको । तुम्हे सदा प्रकाशवान रहना होगा,
ताकि तुम अन्धकार में चलनेवालों को
मार्ग दिखा सको ।
निर्बल के लिए निर्बल बोझ है;
परन्तु के लिए एक सुखद दायित्व ।
निर्बलों की खोज करो;
उनकी निर्बलता तुम्हारा बल है ।
भूखे के लिए भूखे केवल भूख हैं;
परन्तु तृप्त के लिए कुछ देने का शुभ अवसर ।
भूखों की खोज करो; उनकी भूंख तुम्हारी तृप्ति है ।
अंधे के लिए अंधे रास्ते के पत्थर हैं; परन्तु आंखोंवालों के लिए मील-पत्थर ।
अंधों की खोज करो; उनका
अन्धकार तुम्हारा प्रकाश है ।
नरौन्दा:- तभी प्रभात की प्रार्थना के लीये आह्वान करता हुआ बिगुल बज उठा ।
मीरदाद:- जमोरा एक नये दिन के आगमन का बिगुल बजा रहा है–एक नये चमत्कार के आगमन का जिसे तुम गवां दोगे उठने–बैठने के बीच,
जंभाइयां लेते हुए, पेट को भरते
और खली करते हुए,
व्यर्थ के शब्दों से अपनी
जिव्हा को पैनी करते हुए और
ऐसे अनेक कार्य करते हुए
जिन्हें न करना बेहतर होता,
और ऐसे कार्य न करते हुए
जिन्हें करना आवश्यक है |
मिकेयन:- तो क्या हम प्रार्थना के लिये न जायें ? मीरदाद:- जाओ ! करो प्रार्थना
जैसे तुम्हे सिखाया गया है । जैसे भी हो सके प्रार्थना करो, किसी भी पदार्थ के लिय करो ।
जाओ ! तुम्हे जो कुछ भी करने के आदेश मिले हैं
वह सब कुछ करो जब
तक तुम आत्म- शिक्षित और आत्म-
नियंत्रित न हो जाओ,
जब तक तुम हर शब्द को
एक प्रार्थना, हर कार्य को
एक बलिदान बनाना न सीख लो ।
शांत मन से जाओ ।
मीरदाद को तो देखना है
कि तुम्हारा सुबह का खाना
पर्याप्त तथा स्वादिष्ट हो ।

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6 comments:

  1. मजा आ गया जी
    प्रणाम .....

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    1. _()_ प्रणाम, ऐसा लगा जैसे अपने वांछित कर्तव्य पे एक और कदम बढ़ा सके, धन्यवाद।

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    2. फेस्बूक पर भी आप ऐसे अद्भुत पुस्तकों के लिंक शेयर करती हैं

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    3. you are welcome to join , its readers community https://www.facebook.com/groups/Call4BookReaders12.06.2013/?ref=bookmarks

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  2. Bhut bhut dhanyavad upload karne ke liye aur humari saadhna ko safal banane ke liye kya aap aur aise mahan granthon ko upload kar sakti hain?

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