Wednesday 29 October 2014

(hindi) किताब ए मीरदाद - अध्याय -14 / 15

मनुष्य जन्म समय
परमात्मा और शैतान
की संवेदना लेकर आता है
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अध्याय -14
मनुष्य के काल-मुक्त जन्म पर
दो प्रमुख देवदूतों का संवाद
और दो प्रमुख यमदूतों का संवाद
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मीरदाद :- मनुष्य के काल-मुक्त जन्म पर
ब्रम्हांड के उपरी छोर पर दो प्रमुख
देवदूतों के बीच निम्न लिखित
बातचीत हुई ☜
पहले देवदूत ने कहा; एक विलक्षण
बालक को जन्म दिया है धरती ने;
और धरती प्रकाश से जगमगा रही है।
दूसरा देवदूत बोला;एक गौरवशाली
राजा को जन्म दिया है स्वर्ग ने;
और स्वर्ग हर्ष विभोर है।
पहला; बालक स्वर्ग और
धरती के मिलन का फल है।
दूसरा; यह शाश्वत मिलन है—
पिता, माता और बालक।
पहला; इस बालक से धरती
की महिमा बढ़ी है।
दुसरा; इससे अवर्ग सार्थक हुआ है।
पहला; दिन इसकी आँखों में सो रहा है।
दुसरा; रात इसके ह्रदय में जाग रही है।
पहला; इसका वक्ष तूफानों का नीड़ है।
दुसरा; इसका कंठ गीत का सरगम है।
पहला; इसकी भुजाएँ पर्वतों
का आलिंगन करती हैं।
दुसरा; इसकी उंगलियाँ सितारे चुनती हैं।
पहला; सागर गरज रहे हैं इसकी हड्डियों में।
दुसरा; सूर्य दौड़ रहे हैं इसकी रगों में।
पहला; भट्ठी और साँचा है इसका मुख।
दुसरा; हथोड़ा और अहरन है इसकी जिव्हा।
पहला; इसके पैरों में आने बाले
काल की बेड़ियाँ हैं।
दुसरा; इसके ह्रदय में उन बेड़ियों की कुंजी है।
पहला; फिर भी मिटटी के पालने
में पड़ा है यह शिशु। दुसरा;
किन्तु कल्पों के
पोतड़ों में लिपटा है यह।
पहला; प्रभु की तरह ज्ञाता है
यह अंकों के हर रहस्य का।
प्रभु की तरह जानता है
शब्दों के मर्म को।
दुसरा; सब अंकों को जानता है यह,
सिवाय पवित्र एक के,
जो प्रथम और अंतिम है।
सब शब्दों को जानता है यह,
सिवाय उस ”सिरजनहार शब्द” के,
जो प्रथम और अंतिम है।
पहला; फिर भी जान लेगा यह उस
अंक को और उस शब्द को।
तब तक नहीं जब तक स्थान
के पथ-विहीन वीरानों में
चलते-चलते इसके पाँव घिस न जाएँ;
तब तक नहीं जब तक समय के
भयानक भूमिगृहों को देखते-देखते
इसकी आँखें पथरा न जाएँ।
पहला; ओह,विलक्षण, अति विलक्षण है
धरती का यह बालक।
दुसरा; ओह, गौरवशाली, अत्यंत
गौरवशाली है स्वर्ग का यह राजा।
पहला; अनामी ने इसका नाम मनुष्य रखा है।
दुसरा; और इसने अनामी का प्रभु नाम रखा है।
पहला; मनुष्य प्रभु का शब्द है।
दुसरा; प्रभु मनुष्य का शब्द है।
पहला; धन्य है वह जिसका शब्द मनुष्य है।
दुसरा; धन्य है वह जिसका शब्द प्रभु है।
पहला; अब और सदा के लिये।
दुसरा यहाँ और हर स्थान पर।
यों बातचीत हुई मनुष्य के
काल-मुक्त जन्म पर ब्रम्हांड के
उपरी छोर पर दो प्रमुख
देवदूतों के बीच।
उसी समय ब्रम्हांड के निचले
छोर पर दो प्रमुख यमदूतों के
बीच निम्नलिखित बातचीत चल रही थी;
पहले यमदूत ने कहा;
एक वीर योद्धा हमारे वर्ग में आ मिला है।
इसकी सहायता से हम विजय प्राप्त कर लेंगे।
दूसरा यमदूत बोला; बल्कि चिडचिडा
और पाखंडी कायर कहो इसे।
और विश्वासघात ने इसके माथे
पर डेरा डाल रखा है।
लेकिन भयंकर है यह अपनी कायरता
और विश्वासघात में।
पहला; निडर और निरंकुश है इसकी दृष्टि।
दुसरा; अश्रुपूर्ण और दुर्बल है
इसका ह्रदय। किन्तु भयानक है
यह अपनी दुर्बलता और आँसुओं में।
पहला;पैनी और प्रयत्नशील है इसकी बुद्धि।
दुसरा; आलसी और मंद है इसका कान।
किन्तु खतरनाक है यह अपने
आलस्य और मंदता में।
पहला; फुर्तीला और निश्चित है इसका हाथ।
दुसरा; हिचकिचाता और सुस्त है
इसका पैर। परन्तु भयानक है
इसकी सुस्ती और डरावनी है इसकी हिचकिचाहट।
पहला; हमारा भोजन इसकी नाड़ियों के लिए फौलाद होगा। हमारी शराब इसके लहू के लिए आग होगी।
दुसरा; हमारे भोजन के डिब्बों से यह हमें मारेगा।
हमारे शराब के मटके यह हमारे सर पर तोड़ेगा।
पहला; हमारे भोजन के लिये इसकी भूख और हमारी शराब के लिये इसकी प्यास लड़ाई में इसका रथ बनेंगे।
दूसरा; अंतहीन भूख और अमित
प्यास इसे अजेय बना देंगी
और हमारे शिविर में यह विद्रोह पैदा कर देगा।
पहला; परन्तु मृत्यु इसका सारथी होगी।
दुसरा; मृत्यु इसका सारथी होगी तो यह अमर हो जायेगा।
पहला; मृत्यु क्या इसे मृत्यु के सिवाय कहीं ओर ले जायेगी?
दुसरा; हाँ, इतनी तंग आ जायेगी मृत्यु इसकी निरंतर शिकायतों से कि वह आखिर इसे जीवन के शिविर में ले जायेगी।
पहला; मृत्यु क्या मृत्यु के साथ विश्वासघात करेगी?
दुसरा; नहीं जीवन जीवन के साथ वफादारी करेगा।
पहला; इसकी जीव्हा को दुर्लभ और स्वादिष्ठ फलों से परेशान करेंगे।
दुसरा; फिर भी यह तरसेगा उन फलों के लिए जो इस छोर पर नहीं उगते।
पहला; इसकी आँखों और नाक को हम सुंदर और सुगंधमय फूलों से लुभायेंगे|
दुसरा; फिर भी ढूंढेंगी इसकी आँख अन्य फूल और इसकी नाक अन्य सुगंध ।
पहला; और हम इसे निरंतर मधुर किन्तु दूर का संगीत सुनायेंगे।
दुसरा; फिर भी इसका कान किसी अन्य संगीत की ओर रहेगा।
पहला; भय इसे हमारा दास बना देगा।दुसरा; आशा भय से इसकी रक्षा करेगी।पहला पीड़ा इसे हमारे आधीन कर देगी।
दुसरा; विश्वास इसे पीड़ा से मुक्त कर देगा।
पहला; हम इसकी निद्रा पर उलझनों से भरे सपनों की चादर डाल देंगे, और इसके जागरण में पहेलियों से भरी परछाईयाँ बिखेर देंगे।
दूसरा; इसकी कल्पना उलझनों को सुलझा लेगी और परछाईयों को मिटा देगी।
पहला; यह सब होते हुए भी हम इसे अपने में से एक मान सकते हैं।
दुसरा; मान लो इसे हमारे साथ यदि तुम चाहो तो; किन्तु इसे हमारे विरुद्ध ही मानो।
पहला; क्या यह एक ही समय में हमारे साथ और हमारे विरुद्ध हो सकता है ?
दुसरा; रणभूमि में यह एकाकी योद्धा है।
इसका एकमात्र शत्रु इसकी परछाईं है।
जैसे परछाईं का स्थान बदलता है,
वैसे ही युद्ध का स्थान भी बदल जाता है।
यह हमारे साथ है जब इसकी परछाईं इसके आगे है। यह हमारे विरुद्ध है जब इसकी परछाईं इसके पीछे है। पहला; तो क्या हम इसको इस तरह से न रखें की इसकी पीठ हमेशा सूर्य की ओर रहे ?
दुसरा; परन्तु सूर्य को हमेशा इसकी पीठ के पीछे कौन रखेगा ?
पहला एक पहेली है यह योद्धा।
दुसरा; एक पहेली है यह परछाईं।
पहला; स्वागत है इस एकाकी शूरवीर का।
दुसरा; स्वागत है इस एकाकी परछाईं का।
पहला; स्वागत है इसका जब यह हमारे साथ है।
दुसरा; स्वागत है इसका जब यह हमारे विरुद्ध है।
पहला; आज और हमेशा।
दूसरा; यहाँ और हर जगह।
यों बातचीत हुई ब्रम्हांड के निचले सिरे पर दो प्रमुख यमदूतों के बीच मनुष्य के काल-मुक्त जन्म पर।

हवा की तरह स्वतंत्र तथा
लचीले बनो
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अध्याय┉15
  शमदाम मीरदाद को नौका से
       बाहर निकाल देने का प्रयत्न करता है
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नरौन्दा: मुर्शिद ने अभी अपनी बात पूरी की ही थी कि मुखिया की भारी-भरकम देह नीड़ के द्वार पर दिखाई दी।
और ऐसा लगा जैसे उसने हवा और रौशनी की राह बंद कर दी हो। और उस एक क्षण के लिए मेरे मन में विचार कौंधा कि द्वार पर दिखाई दे रही आकृति कोई ओर नहीं है, केवल उन दो प्रमुख यमदूतों में से एक है जिसके बारे में मुर्शिद ने हमें अभी-अभी बताया था।
मुखिया की आँखों से आग बरस रही थी, और उसका चेहरा क्रोध से तमतमा रहा था। वह मुर्शिद की ओर बढ़ा और एकाएक उन्हें बाँह से पकड़ लिया। स्पष्ट था कि वह उन्हें घसीट कर बाहर निकालने का यत्न कर रहा था।
शमदाम: मैंने अभी- अभी तुम्हारे दुष्ट मन के अत्यंत भयानक उदगार सुने हैं । तुम्हारा मुंह विष का फव्वारा तुम्हारी उपस्थिति एक अपशकुन है । इस नौका का मुखिया होने के नाते मैं तुन्हें इसी क्षण यहाँ से चले जाने का आदेश देता हूँ ।
नरौन्दा: मुर्शिद इकहरे शरीर के थे तो भी शांतिपूर्वक अपनी जगह डटे रहे, मानो वे विशालकाय हों और शमदाम केवल एक शिशु । उनकी अविचलित शांति आश्चर्य-जनक थी । उन्होंने शमदाम की ओर देखा और कहा;-
मीरदाद: चले जाने का आदेश देने का अधिकार केवल उसी को है जिसे आने का आदेश देने का अधिकार है। मुझे नौका पर आने का आदेश क्या तुमने दिया था शमदाम ?
शमदाम: वह तुम्हारी दुर्दशा थी जिसे देखकर मेरे ह्रदय में दया उमड़ आई थी, और मैंने तुम्हे आने की अनुमति दे दी थी ।
मीरदाद : यह मेरा प्रेम है, शमदाम, जो तुम्हारी दुर्दशा को देखकर उमड़ आया था। और देखो, मैं यहाँ हूँ और मेरे साथ है मेरा प्रेम। परन्तु अफ़सोस तुम न यहाँ हो न वहां | केवल तुम्हारी परछाईं इधर-उधर भटक रही है | और मैं सब परछाइयों को बटोरने और उन्हें सूर्य के ताप में जलाने आया हूँ |
शमदाम: जब तुम्हारी साँस ने वायु को दूषित करना शुरू किया उससे बहुत पहले मैं इस नौका का मुखिया था । तुम्हारी नीच जिव्हा कैसे कहती है कि मैं यहाँ नहीं हूँ ?
मीरदाद: मैं इन पर्वतों से पहले था, और इसके चूर-चूर होकर मिटटी में मिल जाने के बाद भी रहूंगा । मैं नौका हूँ, वेदी हूँ, और अग्नि भी। जब तक तुम मेरी शरण में नहीं आओगे, तुम तूफ़ान के शिकार बने रहोगे। जब तक तुम मेरे सामने अपने आप को मिटा नहीं दोगे, तुम मृत्यु के अनगिनत कसाइयों की निरंतर सां दी जा रही छुरियों से बच नहीं पाओगे । और यदि मेरी कोमल अग्नि तुम्हे जलाकर राख नहीं कर देगी, तुम नरक की क्रूर अग्नि का ईंधन बन जाओगे ।
शमदाम: क्या तुम सब ने सुना ?
सुना नहीं क्या तुमने ? मेरा साथ दो, साथियों ।
आओ, इस प्रभु-निंदक पाखंडी को नीचे
खड्ड में फेंक दें ।
नरौन्दा: शमदाम फिर तेजी से मुर्शिद की ओर बढ़ा और घसीटकर उन्हें बाहर निकाल देने के इरादे से उसने एकाएक बांह से पकड़ लिया।
परन्तु मुर्शिद न विचलित हुए न अपनी जगह से हटे; न ही कोई साथी तनिक भी हिला। एक बेचैन ख़ामोशी के बाद शमदाम का सिर उसकी छाती पर झुक गया और मंद स्वर में मानो अपने आपसे कहते हुए वह नीड़ से निकल गया ”मैं इस नौका का मुखिया हूँ , मैं अपने प्रभु-प्रदत्त अधिकार पर डटा रहूंगा।” मुर्शिद बहुत देर तक सोचते रहे, पर कुछ बोले नहीं। किन्तु जमोरा चुप न रह सका।
जमोरा; शमदाम ने हमारे मुर्शिद का अपमान किया है । मुर्शिद, बतायें हम उसके साथ क्या करें ? हुक्म दें, और हम पालन करेंगे।
मीरदाद; शमदाम के लिये प्रार्थना करो, मेरे साथियों।
मैं चाहता हूँ कि उसके साथ तुम केवल इतना ही करो। प्रार्थना करो की उसकी आँखों पर से पर्दा उठ जाये और उसकी परछाईं मिट जाये |
अच्छाई को आकृष्ट करना उतना ही आसान है जितना बुराई को। प्रेम के साथ सुर मिलाना उतना ही आसान है जितना घृणा के साथ।अनंत आकाश में से,
अपने ह्रदय की विशालता में से शुभ कामना लेकर संसार को दो। क्योकि हर वस्तु जो संसार के लिये वरदान है तुम्हारे लिए भी वरदान है। सभी जीवों के हित के लिये प्रार्थना करो। क्योकि हर जीव का हर हित तुम्हारा भी हित है। इसी प्रकार हर जीव का अहित तुम्हारा भी अहित है।
क्या तुम सब अस्तित्व की अनन्त सीढ़ी की गतिमान पौड़ी के सामान नहीं हो? जो पवित्र स्वतंत्रता के ऊँचे मंडल पर चढ़ना चाहते हैं, उन्हें विवश होकर दूसरों के चढ़ने के लिए सीढ़ी की पौड़ी बनना पड़ता है।
तुम्हारे अस्तित्व की सीढ़ी में शमदाम एक पाँवरी के अतिरिक्त और क्या है ? क्या तुम नहीं चाहते तुम्हारी सीढ़ी मजबूत और सुरक्षित हो ?
तो उसकी हर पाँवरी का ध्यान रखो और उसे मजबूत और सुरक्षित बनाये रखो।
तुम्हारे जीवन की नीव में शमदाम एक पत्थर के अतिरिक्त और क्या है ? और तुम उसके और प्रत्येक प्राणी के जीवन की इमारत में लगे पत्थर के अतिरिक्त और क्या हो ? यदि तुम चाहते हो तुम्हारी इमारत पूर्णतया दोष रहित हो, तो ध्यान रखो शमदाम एक दोष-रहित पत्थर हो।
तुम स्वयं भी दोष-रहित रहो, ताकि जिन लोगों की ईमारत में तुम पत्थर बनकर लगो उनकी इमारतों में कोई दोष न हो। क्या तुम सोचते हो कि तुम्हारे पास दो से अधिक आँखें नहीं हैं ?
मैं कहता हूँ कि देख रही हर आँख, चाहे वह धरती पर हो, उससे उपर हो, या उसके नीचे, तुम्हारी आँख का ही भाग है। जिस हद तक तुम्हारे पड़ोसी की नजर साफ़ है, उस हद तक तुम्हारी नजर भी साफ़ है।
जिस हद तक तुम्हारे पड़ोसी की नजर धुंधली हो गई है, उसी हद तक तुम्हारी नजर भी धुंधली हो गई है।
यदि एक मनुष्य आँखों से अँधा है तो तुम एक जोड़ी आँखों से वंचित हो जो तुम्हारी आँखों की ज्योति को और बढ़ातीं। अपने पड़ोसी की आँखों की ज्योति को संभालकर रखो,
ताकि तुम अधिक स्पष्ट देख सको। अपनी दृष्टि को संभालकर रखो, ताकि तुम्हारा पड़ोसी ठोकर न खा जाये और कहीं तुम्हारे द्वार को ही न रोक ले।
जमोरा सोचता है शमदाम ने मेरा अपमान किया है। शमदाम का अज्ञान मेरे ज्ञान को अस्त-व्यस्त कैसे कर सकता है ?
एक कीचड़ – भरा नाला दुसरे नाले को आसानी के साथ कीचड़ से भर सकता है। परन्तु क्या कोई कीचड़-भरा नाला समुद्र को कीचड़ से भर सकता है ?
समुद्र कीचड़ को सहर्ष ग्रहण कर लेगा तथा उसे तह में बिछा लेगा, और बदले में देगा नाले को स्वच्छ जल।
तुम धरती के एक वर्ग फुट को–शायद एक मील को—गंदा, या रोगाणु-मुक्त कर सकते हो। धरती को कौन गंदा या
रोगाणु-मुक्त कर सकता है ?
धरती हर मनुष्य तथा पशु की गंदगी को स्वीकार कर लेती है और बदले में उन्हें देती है मीठे फल तथा सुगन्धित फूल, प्रचुर मात्रा में अनाज तथा घांस।
तलवार शरीर को निश्चय ही घायल कर सकती है। परन्तु क्या वह हवा को घायल कर सकती है,
चाहे उसकी धार कितनी ही तेज और उसे चलाने वाली भुजा कितनी ही बलशाली क्यों न हो ?
अन्धे और लोभी अज्ञान से उत्पन्न हुआ अहंकार नीच और संकीर्ण आपे का अहंकार होता है जो अपमान कर सकता है और करवा सकता है,
जो अपमान का बदला अपमान से लेना चाहता है और गंदगी को गंदगी से धोना चाहता है। अहंकार के घोड़े पर सवार तथा आपे के नशे में चूर संसार तुम्हारे साथ ढेरों अन्याय करेगा। वह अपने जर्जरित नियमों, दुर्गन्ध–भरे सिद्धान्तों और घिसे-पिटे सम्मानों के रक्त-पिपासु कुत्ते तुम पर छोड़ देगा।
वह तुम्हे व्यवस्था का शत्रु और अव्यवस्था का कारिन्दा घोषित करेगा। वह तुम्हारी राहों में जाल बिछायेगा और तुम्हारी सेजों को बिच्छू-बूटी से सजायेगा। वह तुम्हारे कानों में गालियाँ बोयेगा और तिरस्कारपूर्वक तुम्हारे चेहरों पर थूकेगा। अपने ह्रदय को दुर्बल न होने दो।
बल्कि सागर की तरह विशाल और गहरे बनो, और उसे आशीर्वाद दो जो तुम्हे केवल शाप देता है।
और धरती की तरह उदार तथा शान्त बनो और मनुष्यों के ह्रदय के मैल को स्वास्थ्य और सौन्दर्य में बदल दो। और हवा की तरह स्वतंत्र और लचीले बनो।
जो तलवार तुम्हे घायल करना चाहेगी वह अंत में अपनी चमक खो बैठेगी और उसे जंग लग जायेगा।
जो भुजा तुम्हारा अहित करना चाहेगी वह अंत में थककर रुक जायेगी। संसार तुम्हे अपना नहीं सकता, क्योंकि वह तुम्हे नहीं जानता। इसलिए वह तुम्हारा स्वागत क्रुद्ध गुर्राहट के साथ करेगा।
परन्तु तुम संसार को अपना सकते हो, क्योंकि तुम संसार को जानते हो। अतएव तुम्हे उसके क्रोध को सहृदयता द्वारा शान्त करना होगा,
और उसके द्वेष-भरे आरोपों को प्रेमपूर्ण दिव्य ज्ञान में डुबाना होगा।
और जीत अंत में दिव्य ज्ञान की ही होगी।यही शिक्षा थी मेरी नूह को।यही शिक्षा है मेरी तुम्हे।
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2 comments:

  1. संसार तुम्हे अपना नहीं सकता, क्योंकि वह तुम्हे नहीं जानता। इसलिए वह तुम्हारा स्वागत क्रुद्ध गुर्राहट के साथ करेगा।
    परन्तु तुम संसार को अपना सकते हो, क्योंकि तुम संसार को जानते हो। अतएव तुम्हे उसके क्रोध को सहृदयता द्वारा शान्त करना होगा,
    और उसके द्वेष-भरे आरोपों को प्रेमपूर्ण दिव्य ज्ञान में डुबाना होगा।
    और जीत अंत में दिव्य ज्ञान की ही होगी।यही शिक्षा थी मेरी नूह को।यही शिक्षा है मेरी तुम्हे।
    👌👌👌👏👏👏🙏🙏🌹🌹

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