Thursday 30 October 2014

(hindi) किताब ए मीरदाद-अध्याय - 35 / 36 /37

अध्याय-35
    परमात्मा की राह पर
          हर मार्ग प्रकाश से भर दिया जाएगा         
*************************************
   परमात्मा की राह पर प्रकाश-कण
*************************************
मीरदाद; इस रात के सन्नाटे में मीरदाद परमात्मा परमात्मा की ओर जानेवाली राह पर कुछ प्रकाश-कण विखेरना चाहता है ।
विवाद से बचो सत्य स्वयं प्रमाणित है; उसे किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है। जिसे तर्क और प्रमाण कि आवश्यकता होती है,
उसे देर-सवेर तर्क और प्रमाण के द्वारा ही गिरा दिया जाता है। किसी बात को सिद्ध करना उसके प्रतिपक्ष को खंडित करना है। उसके प्रतिपक्ष को सिद्ध करना उसका खंडन करना है। परमात्मा का कोई प्रतिपक्ष है ही नहीं फिर तुम कैसे उसे सिद्ध करोगे या कैसे उसका खंडन करोगे ?
यदि जिव्हा को सत्य का वाहक बनाना चाहते हो तो उसे कभी मूसल, विषदंत, वातसूचक ,कलाबाज या सफाई करनेवाला नहीं बनाना चाहिए। बेजबानों को राहत देने के लिये बोलो। अपने आप को राहत देने के लिये मौन रहो। शब्द जहाज हैं जो स्थान के समुद्रों में चलते हैं।
और अनेक बंदरगाहों पर रुकते हैं। सावधान रहो कि तुम उनमे क्या लादते हो; क्योंकि अपनी यात्रा समाप्त करने के बाद वे अपना माल आखिर तुहारे द्वार पर ही उतारेंगे। घर के लिए जो महत्वज झाड़ू का है, वही महत्व ह्रदय के लिए आत्म-निरीक्षण का है।
अपने ह्रदय को अच्छी तरह बुहारो। अच्छी तरह बुहारा गया ह्रदय एक अजेय गुर्ग है।जैसे तुम लोगों और पदार्थों को अपना आहार बनाते हो, वैसे ही वे तुम्हे अपना आहार बनाते हैं। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हे विष न मिले, तो दूसरों के लिए स्वास्थ्य-प्रद भोजन बनो। जब तुम्हे अगले कदम के विषय में संदेह हो, निश्छल खड़े रहो।
जिसे तुम नापसंद करते हो वह तुम्हे नापसंद करता है, उसे पसंद करो और ज्यों का त्यों रहने दो। इस प्रकार तुम अपने रास्ते से एक बाधा हटा दोगे। सबसे अधिक असह्य परेशानी है किसी बात को परेशानी समझना। अपनी पसंद का चुनाव कर लो; हर वस्तु स्वामी बनना है या किसी का भी नहीं। बीच का कोई मार्ग सम्भव नहीं। रास्ते का हर रोड़ा एक चेतावनी है।
चेतावनी को अच्छी तरह पढ़ लो, और रास्ते का रोड़ा प्रकाश स्तम्भ बन जायेगा। सीधा टेढ़े का भाई है। एक छोटा रास्ता है दूसरा घुमावदार। टेढ़े के प्रति धैर्य रखो। विश्वास-युक्त धैर्य स्वास्थ्य है। विश्वास-रहित धैर्य अर्धांग है।होना, महसूस करना, सोचना, कल्पना करना, जानना –यह हैं मनुष्य के जीवन-चक्र के मुख्य पड़ावों का क्रम। प्रशंसा करने और पाने से बचो;
जब प्रशंसा सर्वथा निश्छल और उचित हो तब भी। जहाँ तक चापलूसी का सम्बन्ध है, उसकी कपटपूर्ण कसमों के प्रति गूँगे और बहरे बन जाओ । देने का एहसास रखते हुए कुछ भी देना उधार लेना ही है। वास्तव में तुम ऐसा कुछ भी नहीं दे जो तुम्हारा है।
तुम लोगों को केवल वाही देते हो जो तुम्हारे पास उनकी अमानत है। जो तुम्हारा है, सिर्फ तुम्हारा ही, वह तुम दे नहीं सकते चाहो तो भी नहीं। अपना संतुलन बनाये रखो, और तुम मनुष्यों के लिए अपने आपको नापने का मापदण्ड और तौलने की तराजू बन जाओ।
गरीबी और अमीरी नाम की कोई चीज नहीं है, बात वस्तुओं का उपयोग करने के कौशल की हैअसल में गरीब वह है जो उन वस्तुओं का जो उसके पास हैं गलत उपयोग करता है। अमीर वह है जो अपनी वस्तुओं का सही उपयोग करता है।
बासी रोटी की सूखी पपड़ी भी ऐसी दौलत हो सकती है जिसे आंका न जा सके। सोने से भरा तहखाना भी ऐसी गरीबी हो सकता है जिससे छुटकारा न मिल सके। जहाँ बहुत से रास्ते एक केंद्र में मिलते हों वहाँ इस अनिश्चय में मत पड़ो कि किस रस्ते से चला जाये।
प्रभु की खोज में लगे ह्रदय को सभी रास्ते प्रभु की ओर लेजा रहे हैं। जीवन के सब रूपों के प्रति आदर-भाव रखो। सबसे तुच्छ रूप में सबसे अधिक महत्त्वपूर्णरूप की कुंजी छुपी छिपी रहती है।
जीवन की सब कृतियाँ महत्वपूर्ण हैं —हाँ, अद्भुत,श्रेष्ठ और अद्वितीय। जीवन अपने आपको निरर्थक, तुच्छ कामों में नहीं लगाता।
प्रकृति के कारखाने में कोई वस्तु तभी बनती है जब वह प्रकृति की प्रेमपूर्ण देखभाल और श्रमपूर्ण कौशल की अधिकारी हो। तो क्या वह कम से कम तुम्हारे आदर कि अधिकारी नहीं होनी चाहिए ?
यदि मच्छर और चींटियाँ आदर के योग्य हों, तो तुम्हारे साथी मनुष्य उनसे कितने अधिक आदर के योग्य होने चाहियें ? किसी मनुष्य से घृणा न करो। एक भी मनुष्य से घृणा करने की अपेक्षा प्रत्येक मनुष्य से घृणा पाना कहीं अच्छा है।
क्योंकि किसी मनुष्य से घृणा करना उसके अंदर के लघु-परमात्मा से घृणा करना है। किसी भी मनुष्य के अंदर लघु-परमात्मा से घृणा करना अपने अंदर के लघु-परमात्मा से घृणा करना है।
वह व्यक्ति भला अपने बंदरगाह तक कैसे पहुँचेगा जो बंदरगाह तक ले जाने वाले अपने एकमात्र मल्लाह का अनादर करता हो ?नीचे क्या है, यह जानने के लिये ऊपर दृष्टी डालो। ऊपर क्या है, यह जानने के लिये नीचे दृष्टी डालो। जितना ऊपर चढ़ते हो उतना ही नीचे उतरो; नहीं तो तुम अपना संतुलन खो बैठोगे।
आज तुम शिष्य हो। कल तुम शिक्षक बन जाओगे। अच्छे शिक्षक बनने के लिये अच्छे शिष्य बने रहना आवश्यक है। संसार में से बदी के घांस-पात को उखाड़ फेंकने का यत्न न करो; क्योंकि घास-पात की भी अच्छी खाद बनती है।
उत्साह का अनुचित प्रयोग बहुधा उत्साही को ही मार डालता है। केवल ऊँचे और शानदार वृक्षों से ही जंगल नहीं बन जाता; झाड़ियां और लिपटती लताओं की भी आवश्यकता होती है।
पाखण्ड पर पर्दा डाला जा सकता है,लेकिन कुछ समय के लिए ही;उसे सदा ही परदे में नहीं रखा जा सकता, न ही उसे हटाया या नष्ट किया जा सकता है। दूषित वासनाएँ अंधकार में जन्म लेती हैं और वहीँ फलती-फूलती हैं। यदि तुम उन्हें नियंत्रण में रखना चाहते हो तो उन्हें प्रकाश में आने की स्वतन्त्रता दो।
यदि तुम हजार पाखण्डियों में से एक को भी सहज ईमानदारी की राह पर वापस लाने में सफल हो हो जाते हो तो सचमुच महान है तुम्हारी सफलता। मशाल को ऊँचे स्थान पर रखो, और उसे देखने के लिये लोगों को बुलाते न फिरो जिन्हे प्रकाश कि आवश्यकता है उन्हें किसी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती।
बुद्धिमत्ता अधूरी बुद्धि वाले के लिये बोझ है, जैसे मूर्खता मुर्ख के लिये बोझ है। बोझ उठाने में अधूरी बुद्धि वाले कि सहायता करो और मूर्ख को अकेला छोड़ दो; अधूरी बुद्धि वाला मुर्ख को तुमसे अधिक सिखा सकता है।
कई बार तुम्हे अपना मार्ग दुर्गम,अंधकारपूर्ण और एकाकी लगेगा। अपना इरादा पक्का रखो और हिम्मत के साथ कदम बढ़ाते जाओ; और हर मोड़ पर तुम्हे एक नया साथी मिल जायेगा। पथ-विहीन स्थान में ऐसा कोई पथ नहीं जिस पर अभी तक कोई न चला हो।
जिस पथ पर पद-चिन्ह बहुत कम और दूर-दूर हैं, वह सीधा और सुरक्षित है, चाहे कहीं-कहीं उबड़-खाबड़ और सुनसान है। जो मार्गदर्शन चाहते हैं उन्हें मार्ग दिखा सकते है, उस पर चलने के लिए विवश नहीं कर सकते। याद रखो तुम मार्गदर्शक हो। अच्छा मार्गदर्शक बनने के लिये आवश्यक है कि स्वयं अच्छा मार्गदर्शन पाया हो। अपने मार्गदर्शक पर विश्वास रखो।
कई लोग तुमसे कहेंगे, ”हमें रास्ता दिखाओ।” किन्तु थोड़े ही बहुत ही थोड़े कहेंगे, ”हम तुमसे विनती करते हैं कि रास्ते में हमारी रहनुमाई करो”।आत्म-विजय के मार्ग में वे थोड़े- से लोग उन कई लोगों से अधिक महत्त्व रखते हैं। तुम जहाँ चल न सको रेंगो।
जहाँ दौड़ न सको, चलो; जहाँ उड़ न सको, दौड़ो; जहाँ समूचे विश्व को अपने अंदर रोक कर खड़ा न कर सको,उड़ो। जो व्यक्ति तुम्हारी अगुआई में चलते हुए ठोकर खाता है उसे केवल एक बार, दो बार या सौ बार ही नहीं उठाओ।
याद रखो कि तुम भी कभी बच्चे थे, और उसे तब तक उठाते रहो जब तक वह ठोकर खाना बन्द न कर दे। अपने ह्रदय और मन को क्षमा से पवित्र कर लो ताकि जो भी सपने तुम्हे आयें वे पवित्र हों।
जीवन एक ज्वर है जो हर मनुष्य कि प्रवृति या धुन के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार का और भिन्न-भिन्न मात्रा में होता है; और इसमें मनुष्य सदा प्रलाप की अवस्था में रहता है।
भाग्यशाली हैं वे मनुष्य जो दिव्य ज्ञान से प्राप्त होने वाली पवित्र स्वतंत्रता के नशे में उन्मत्त रहते हैं। मनुष्य के ज्वर का रूप-परिवर्तन किया जा सकता है; युद्ध के ज्वर को शान्ति के ज्वर में बदला जा सकता है
और धन-संचय के ज्वर को प्रेम का संचय करने के ज्वर में। ऐसी है दिव्य ज्ञान की वह रसायन-विद्या जिसे तुम्हे उपयोग में लाना है और जिसकी तुम्हे शिक्षा देनी है। जो मर रहे हैं उन्हें जीवन का उपदेश दो,
जो जी रहे हैं उन्हें मृत्यु का। किन्तु जो आत्म विजय के लिए तड़प रहे हैं, उन्हें दोनों से मुक्ति का उपदेश दो।वश में रखने और वश में होने में बड़ा अंतर है। तुम उसी को वश में रखते हो जिससे तुम प्यार करते हो।
जिससे तुम घृणा करते हो, उसके तुम वश में होते हो। वश में होने से बचो। समय और स्थान के विस्तार में एक से अधिक पृथ्वियाँ अपने पथ पर घूम रहीं हैं। तुम्हारी पृथ्वी इस परिवार में सबसे छोटी है, और यह बड़ी हृष्ट-पुष्ट बालिका है। एक निश्चल गति—–कैसा विरोधाभास है।
किन्तु परमात्मा में संसारों की गति ऐसी ही है।यदि तुम जानना चाहते हो कि छोटी-बड़ी वस्तुएँ बराबर कैसे हो सकती हैं तो अपने हाथों की अँगुलियों पर दृष्टी डालो। संयोग बुद्धिमानों के हाथ में एक खिलौना है; मुर्ख संयोग के हाथ में खिलौना होते हैं। कभी किसी चीज की शिकायत न करो।
किसी चीज की शिकायत करना उसे अपने आपके लिये अभिशाप बना लेना है। उसे भली प्रकार सहन कर लेना उसे उचित दण्ड देना है। किन्तु उसे समझ लेना उसे एक सच्चा सेवक बना लेना है।
प्रायः ऐसा होता है कि शिकारी लक्ष्य किसी हिरनी को बनाता है परन्तु लक्ष्य चुकने से मारा जाता है कोई खरगोश जिसकी उपस्थिति का उसे बिलकुल ज्ञान न था। ऐसी स्थिति में एक समझदार शिकारी कहेगा, ”मैंने वास्तव में खरगोश को ही लक्ष्य बनाया था, हिरनी को नहीं। और मैंने अपना शिकार मार लिया। ”लक्ष्य अच्छी तरह से साधो।
परिणाम जो भी हो अच्छा ही होगा। जो तुम्हे पास आ जाता है, वह तुम्हारा है। जो आने में विलम्ब करता है, वह इस योग्य नहीं कि उसकी प्रतीक्षा की जाये। प्रतीक्षा उसे करने दो।जिसका निशाना तुम साधते हो यदि वह तुम्हे निशाना बना ले तो तुम निशाना कभी नहीं चूकोगे चूका हुआ निशाना सफल निशाना होता है। अपने ह्रदय को निराशा के सामने अभेद्य बना लो।
निराशा वह चील है जिसे दुर्बल ह्रदय जन्म देते हैं और विफल आशाओं के सड़े-गले मांस पर पालते हैं। एक पूर्ण हुई आशा कई मृत-जात आशाओं को जन्म देती है। यदि तुम अपने ह्रदय को कब्रिस्तान नहीं बनाना चाहते तो सावधान रहो, आशा के साथ उसका विवाह मत करो।
हो सकता है किसी मछली के दिए सौ अण्डों में से केवल एक में से बच्चा निकले। तो भी बाकी निन्यानवे व्यर्थ नहीं जाते। प्रकृति बहुत उदार है, और बहुत विवेक है उसकी विवेकहीनता में।
तुम भी लोगों के ह्रदय और बुद्धि में अपने ह्रदय और बुद्धि को बोने में उसी प्रकार उदार और विवेकपूर्वक विवेकहीन बनो। किसी भी परिश्रम के लिए पुरस्कार मत माँगो। जो अपने परिश्रम से प्यार करता है,
उसका परिश्रम स्वयं पर्याप्त पुरस्कार है।
सृजनहार शब्द तथा पूर्ण संतुलन को याद रखो। जब तुम दिव्य ज्ञान के द्वारा यह संतुलन प्राप्त कर लोगे तभी तुम आत्म-विजेता बनोगे, और तुम्हारे हाथ प्रभु के हाथों के साथ मिलकर कार्य करेंगे।
परमात्मा करे इस रात्रि की नीरवता और शान्ति का स्पन्दन तुम्हारे अंदर तब तक होता रहे जब तक तुम उन्हें दिव्य ज्ञान की नीरवता और शान्ति में डुबा न दो।
यही शिक्षा थी मेरी नूह को।
यही शिक्षा है मेरी तुम्हें।
अध्याय-36
नौका-दिवस तथा उसके धार्मिक अनुष्ठान
जीवित दीपक के बारे में बेसार
के सुलतान का सन्देश
*************************************
नरौंदा ; जबसे मुर्शिद बेसार से लौटे से लौटे तब से शमदाम उदास और अलग-अलग सा रहता था। किन्तु जब नौका- दिवस निकट आ गया तो वह उल्लास तथा उत्साह से भर गया और सभी जटिल तैयारियों का छोटी से छोटी बातों तक का,
नियंत्रण उसने स्वयं संभल लिया।
अंगूर-बेल के दिवस की तरह नौका-दिवस को भी एक दिन से बढ़ाकर उल्लास- भरे आमोद-प्रमोद का पूरा सप्ताह बना लिया गया था जिसमे सब प्रकार की वस्तुओं तथा सामान का तेजी के साथ व्यापार होता है।
इस दिन के अनेक धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं; बलि चढ़ाये जाने वाले बैल का वध, बाली-कुण्ड की अग्नि को प्रज्वलित करना, और उस अग्नि से वेदी पर पुराने दीपक के स्थान पर नये दीपक को जलना। इस वर्ष दीपक भेंट करने के लिए बेसार के सुलतान को चुना गया था।
उत्सव के एक दिन पहले शमदाम ने हमें और मुर्शिद को अपने कक्ष में बुलाया और हमसे अधिक मुर्शिद को सम्बोधित करते हुए उसने ये शब्द कहे;शमदाम:> कल एक पवित्र-दिवस है ;
हम सभी को यही शोभा देता है कि उसकी पवित्रता को बनाये रखें। पिछले झगड़े कुछ भी रहे हों, आओ उन्हें हम यहीं और अभी दफना दें। यह नहीं होना चाहिए कि नौका की प्रगति धीमी पद जाये, या हमारे उत्साह में कोई कमी आ जाये। और परमात्मा न करे कि नौका ही रुक जाये। मैं इस नौका का मुखिया हूँ।
इसके संचालन का कठिन दायित्व मुझ पर है। इसका मार्ग निश्चित करने का अधिकार मुझे प्राप्त है। ये कर्तव्य और अधिकार मुझे विरासत में मिले हैं ; इसी प्रकार मेरी मृत्यु के बाद वे निश्चय ही तुममें से किसी को मिलेंगे। जैसे मैंने अपने अवसर की प्रतीक्षा की थी,
तुम भी अपने अवसर की प्रतीक्षा करो। यदि मैंने मीरदाद के साथ अन्याय किया है तो वह मेरे अन्याय को क्षमा कर दे।
मीरदाद : मीरदाद के साथ तुमने कोई अन्याय नहीं किया है लेकिन शमदाम के साथ तुमने घोर अन्याय किया है।
शमदाम : क्या शमदाम को शमदाम के साथ अन्याय करने की स्वतंत्रता नहीं है ?
मीरदाद : अन्याय करने की स्वतंत्रता ? कितने बेमोल हैं ये शब्द ! क्योंकि अपने साथ अन्याय करना भी अन्याय का दास बनना है; जबकि दूसरों के साथ अन्याय करना एक दास का दास बन जाना है। ओह, भारी होता है अन्याय का बोझ।
शमदाम; यदि मैं अपने अन्याय का बोझ उठाने को तैयार हूँ तो इसमें तुम्हारा क्या बिगड़ता है ?
मीरदाद : क्या कोई बीमार दांत मुँह से कहेगा कि कि यदि मैं अपनी पीड़ा सहने को तैयार हूँ तो इसमें तुम्हारा क्या बिगड़ता है ?
शमदाम : ओह, मुझे ऐसा ही रहने दो, बस ऐसा ही रहने दो। अपना भरी हाथ मुझसे दूर हटा लो, और मत मारो मुझे चाबुक अपनी चतुर जिव्हा से। मुझे अपने बाकी दिन वैसे ही जी लेने दो जैसे मैं अब तक परिश्रम करते हुए जीता आया हूँ। जाओ, अपनी नौका कहीं और बना लो, पर इस नौका में हस्तक्षेप न करो। तुम्हारे और मेरे लिए, तथा तुम्हारी  और मेरी नौकाओं के लिए यह संसार बहुत बड़ा है।
कल मेरा दिन है। तुम सब एक ओर खड़े रहो और मुझे अपना कार्य करने दो —
क्योंकि मैं तुममें से किसी का भी
हस्तक्षेप सहन नहीं करूँगा।
ध्यान रहे शमदाम का प्रतिशोध उतना ही भयानक है जितना परमात्मा का। सावधान ! सावधान !
मीरदाद ; शमदाम का ह्रदय अभी तक शमदाम का ही ह्रदय है।उस क्षण एक लम्बा और प्रभावशाली व्यक्ति, जो सफ़ेद वस्त्र पहने हुए था, धक्कम धक्का करते कठिनाई से अपना रास्ता बनाते हुए वेदी की ओर आता दिखाई दिया।
तत्काल दबी आवाज में कानों-कान बात फ़ैल गई कि यह बेसार के सुल्तान का निजी दूत है जो नया दीपक ले कर आया है ;
और सब लोग उस बहुमूल्य निधि की झलक पाने के लिए उत्सुक हो उठे। ओरों की तरह यह मानते हुए कि वह नए वर्ष की बहुमूल्य भेंट लेकर आया है शमदाम ने बहुत नीचे तक झुककर उस दूत को प्रणाम किया।
लेकिन उस व्यक्ति ने शमदाम को दबी आवाज से कुछ कहकर अपनी जेब से एक चर्म-पत्र निकला और, यह स्पष्ट कर देने के बाद कि इसमें बेसर के सुल्तान का सन्देश है
जिसे लोगों तक खुद पहुँचाने का
उसे आदेश दिया गया है,
वह पत्र पढ़ने लगा :”बेसार के भूतपूर्व सुलतान की ओर से आज के दिन नौका में एकत्रित दूधिया पर्वतमाला के अपने सब साथी मनुष्यों के लिए शांति-कामना और प्यार। नौका के प्रति गहरी श्रद्धा के आप सब प्रत्यक्ष साक्षी हैं।
इस वर्ष का दीपक भेंट करने का सम्मान मुझे प्राप्त हुआ था, इसलिए मैंने बुद्धि और धन का उपयोग करने में कोई संकोच नहीं किया ताकि मेरा उपहार नौका के योग्य हो। और मेरे प्रयास पूर्णतया सफल रहे; क्योंकि मेरे वैभव और मेरे शिल्पकारों के कौशल से जो दीपक तैयार हुआ, वह सचमुच एक देखने योग्य चमत्कार था।
‘लेकिन प्रभु मेरे लिए क्षमाशील और कृपालु था, वह मेरी दरिद्रता का भेद नहीं खोलना चाहता था। क्योंकि उसने मुझे एक ऐसे दीपक के पास पहुंचा दिया जिसका प्रकश चकाचौंध कर देता है और जिसे बुझाया नहीं जा सकता, जिसकी सुंदरता अनुपम और निष्कलंक है।
उस दीपक को देखकर मैं इस विचार से लज्जा में डूब गया कि मैंने अपने दीपक की कभी कोई कीमत समझी थी। सो मैंने उसे कूड़े के ढेर पर फेंक दिया।
‘यह वह जीवित दीपक है जिसे किसी के हाथों ने नहीं बनाया है। मैं तुम सबको हार्दिक सुझाव देता हूँ कि उसके दर्शन से अपने नेत्रों को तृप्त करो,
उसी की ज्योति से अपनी
मोमबत्तियों को जलाओ।
देखो वह तुम्हारी पहुँच में है।
उसका नाम है मीरदाद।
प्रभु करे कि तुम उसके प्रकाश के योग्य बनो। ”.
अध्याय  -37
       जो आत्म विजय के लिए तड़फ रहे है
       वह आए और नौका पर सवार हो जाए

************************************
मुर्शिद लोगों कोआग और
खून की बाढ़ से सावधान करते हैं..
बचने का मार्ग बताते हैं,
औरअपनी नौका को जल में उतारते हैं
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
मीरदाद : क्या चाहते हो तुम मीरदाद से ? वेदी को सजाने के लिए सोने का रत्न-जड़ित दीपक ?
परन्तु मीरदाद न सुनार है, न जौहरी, आलोक-स्तम्भ और आश्रय वह भले ही हो।
या तुम ताबीज चाहते हो बुरी नजर से बचने के लिये ? हाँ, ताबीज मीरदाद के पास बहुत हैं, परन्तु किसी और ही प्रकार के।
या तुम प्रकाश चाहते हो ताकि अपने-अपने पूर्व-निश्चित मार्ग पर सुरक्षित चल सको ?
कितनी विचित्र बात है। सूर्य है तुम्हारे पास, चन्द्र है, तारे हैं, फिर भी तुम्हे ठोकर खाने और गिरने का डर है ? तो फिर तुम्हारी आँखें तुम्हारा मार्गदर्शक बनने के योग्य नहीं हैं ; या तुम्हारी आँखों के लिए प्रकाश बहुत कम है। और तुममे से ऐसा कौन है जो अपनी आँखों के बिना काम चला सके ?
कौन है जो सूर्य पर कृपणता का दोष लगा सके ? वह आँख किस काम की जो पैर को तो अपने मार्ग पर ठोकर खाने से बचा ले,
लेकिन जब ह्रदय राह टटोलने का व्यर्थ प्रयास कर रहा हो तो उसे ठोकरें खाने के लिये और अपना रक्त बहाने के लिये छोड़ दे ?
वह प्रकाश किस काम का जो आँख को तो ज्यादा भर दे, लेकिन आत्मा को खाली और प्रकाशहीन छोड़ दे ? क्या चाहते हो तुम मीरदाद से ?
देखने की क्षमता रखनेवाला ह्रदय और प्रकश में नहाई आत्मा चाहते हो और उनके लिए व्याकुल हो रहे हो, तो तुम्हारी व्याकुलता व्यर्थ नहीं है।
क्योंकि मेरा सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा और ह्रदय से है।इस दिन के लिए जो गौरवपूर्ण आत्म-विजय का दिन है, तुम उपहार-स्वरुप क्या लाये हो ?
बकरे, मेढ़े और बैल ? कितनी तुच्छ कीमत चुकाना चाहते हो तुम मुक्ति के लिये ! कितनी सस्ती होगी वह मुक्ति जिसे तुम खरीदना चाहते हो !किसी बकरे पर विजय पा लेना मनुष्य के लिए कोई गौरव की बात नहीं।
और गरीब बकरे के प्राण अपनी प्राण-रक्षा के लिए भेंट करना तो वास्तव में मनुष्य के लिये अत्यंत लज्जा की बात है। क्या किया है तुमने इस पवित्र-दिन की पवित्र भावना में योग देने के लिये,
जो प्रकट विश्वास और हर परख में सफल प्रेम का दिन है ? हाँ, निश्चय ही तुमने तरह-तरह की रस्में निभाई हैं, और अनेक प्रार्थनाएँ दोहराई हैं।
किन्तु संदेह तुम्हारी हर क्रिया के साथ रहा है, और घृणा तुम्हारी हर प्रार्थना पर ”तथास्तु”कहती रही है। क्या तुम जल-प्रलय का उत्सव मानाने के लिये नहीं आये हो ? पर तुम एक ऐसी विजय का उत्सव क्यों मानते हो जिसमे तुम पराजित हो गये ?
क्योंकि नूह ने अपने समुद्रों को पराजित करते समय तुम्हारे समुद्रों को पराजित नहीं किया था, केवल उन पर विजय पाने का मार्ग बताया था।
और देखो तुम्हारे समुद्र उफन रहे हैं और तुम्हारे जहाज को डुबाने पर तुले हुए हैं। जब तक तुम अपने तूफ़ान पर विजय नहीं पा लेते, तुम आज का दिन मानाने के योग्य नहीं हो सकते। तुममे से हर एक जल-प्रलय भी है,
नौका भी और केवट भी। और जब तक वह दिन नहीं आ जाता जब तुम अपनी किसी नहाई-सँवरी कुँआरी लंगर डाल लो, अपनी विजय का उत्सव मानाने की जल्दी न करना।तुम जानना चाहोगे कि मनुष्य अपने ही लिये बाढ़ कैसे बन गया।
जब पवित्र-प्रभु- इच्छा ने आदम को चीर कर दो कर दिया ताकि वह अपने आप को पहचाने और उस एक के साथ अपनी एकता का अनुभव कर सके,
तब वह एक पुरुष और एक स्त्री बन गया—एक नर-आदम और एक मादा-आदम। तभी डूब गया वह कामनाओं की बाढ़ में जो द्वैत से उत्पन्न होती हैं—कामनाएँ इतनी बहुसंख्य,
इतनी रंग-बिरंगी, इतनी विशाल, इतनी कलुषित और इतनी उर्वर कि मनुष्य आज तक उनकी लहरों में बेसहारा बह रहा है।
लहरें कभी उसे ऊंचाई के शिखर तक उठा देती हैं तो कभी गहराइयों तक खींच ले जाती हैं। क्योंकि जिस प्रकार उसका जोड़ा बना हुआ है, उसकी कामनाओं के भी जोड़े बने हुए हैं। और यद्यपि दो परस्पर विरोधी चीजें वास्तव में एक दूसरे की पूरक होती हैं, फिर भी अज्ञानी लोगों को वे आपस में लड़ती-झगड़ती प्रतीत होती हैं और क्षण भर के युद्ध-विराम की घोषणा करने के लिये तैयार नहीं जान पड़तीं।
यही है वह बाढ़ जिससे मनुष्य को अपने अत्यंत लम्बे, कठिन द्वैतपूर्ण जीवन में प्रतिक्षण, प्रतिदिन संघर्ष करना पड़ता है। यही है वह बाढ़ जिसकी जोरदार बौछार ह्रदय से फूट निकलती है और तुम्हे अपनी प्रबल धारा में बहा ले जाती है। यही है वह बाढ़ जिसका इंद्रधनुष तब तक तुम्हारे आकाश को शोभित नहीं करेगा जब तक तुम्हारा आकाश तुम्हारी धरती के साथ न जुड़ जाये और दोनों एक न हो जाएँ।
जबसे आदम ने अपने आपको हौवा में बोया है, मनुष्य बवण्डरों और बाधों की फसलें काटते चले आ रहे हैं। जब एक प्रकार के मनोवेगों का प्रभाव अधिक हो जाता है, तब मनुष्यों के जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है, और तब मनुष्य एक या दूसरी बाढ़ की लपेट में आ जाते हैं ताकि संतुलन पुनः स्थापित हो सके।
और संतुलन तब तक स्थापित नहीं होगा जब तक मनुष्य अपनी सब कामनाओं को प्रेम की परात में गूँधकर उनसे दिव्य-ज्ञान की रोटी पकाना नहीं सीख लेता।
अफ़सोस ! तुम व्यस्त हो बोझ लादने में; व्यस्त हो अपने रक्त में दुखों से भरपूर भोगों का नशा घोलने में; व्यस्त हो कहीं न ले जाने वाले मार्गों के मान-चित्र बनाने में; व्यस्त हो अंदर झाँकनेका कष्ट किये बिना जीवन के गोदामों के पिछले अहातों से बीज चुनने में।
तुम डूबोगे क्यों नहीं मेरे लावारिश बच्चो ? तुम पैदा हुए थे ऊँची उड़ाने भरने के लिये, असीम आकाश में विचरने के लिये, ब्रम्हाण्ड को अपने डैनों में समेत लेने के लिये। परन्तु तुमने अपने आप को उन परम्पराओं और विश्वासों के दरबों में बंद कर लिया है
जो तुम्हारे परों को काटते हैं, तुम्हारी दृष्टी को क्षीण करते हैं और तुम्हारी नसों को निर्जीव कर देते हैं। तुम आने वाली बाढ़ पर विजय कैसे पाओगे मेरे लावारिस बच्चो ? तुम प्रभु के प्रतिबिम्ब और समरूप थे,
किन्तु तुमने उस समानता और समरूपता को लगभग मिटा दिया है। अपने ईश्वरीय आकर को तुमने इतना बौना कर दिया है कि अब तुम खुद उसे नहीं पहचानते। अपने दिव्य मुख-मण्डल पर तुमने कीचड़ पोत लिया है, और उस पर कितने ही मसखरे मुखौटे लगा लिए हैं।
जिस बाढ़ के द्वार तुमने स्वयं खोले हैं उसका सामना तुम कैसे करोगे मेरे लावारिस बच्चो ? यदि तुम मीरदाद की बात पर ध्यान नहीं दोगे तो धरती तुम्हारे लिए कभी भी एक कब्र से अधिक कुछ नहीं होगी, न ही आकाश एक कफ़न से अधिक कुछ होगा।
जबकि एक का निर्माण तुम्हारा पालना बनने के लिए किया गया था, दूसरे का तुम्हारा सिंहासन बनने के लिए। मैं तुमसे फिर कहता हूँ कि तुम ही बाढ़ हो, नौका हो और केवट भी। तुम्हारे मनोवेग बाढ़ हैं। तुम्हारा शरीर नौका है। तुम्हारा विश्वास केवट है।
पर सब में व्याप्त है तुम्हारी संकल्प- शक्ति और उनके ऊपर है तुम्हारे दिव्य ज्ञान की छत्र-छाया।यह निश्चय कर लो कि तुम्हारी नौका में पानी न रिस सके और वह समुद्र- यात्रा के योग्य हो; किन्तु इसी में अपना जीवन न गँवा देना; अन्यथा यात्रा आरम्भ का समय कभी नहीं आयेगा, और अंत में तुम वहीँ पड़े-पड़े अपनी नौका समेत सड़-गल कर डूब जाओगे।
यह भी निश्चय कर लेना कि तुम्हारा केवट योग्य और धैर्यवान हो। पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि तुम बाढ़ से से स्रोतों का पता लगाना सीख लो, और उन्हें एक-एक करके सुख देने के लिए अपनी संकल्प-शक्ति को साध लो। तब निश्चय ही बाढ़ थमेगी और अंत में अपने आप समाप्त हो जायेगी।
जला दो हर मनोवेग को, इससे पहले कि वह तुम्हें जला दें। किसी मनोवेग के मुख में यह देखने के लिए मत झाँको कि उसके दांत जहर से भरे हैं या शहद से। मधु-मक्खी जो फूलों का अमृत इकट्ठा करती है उनका विष भी जमा कर लेती है।
न ही किसी मनोवेग के चेहरे को यह पता लगाने के लिए जाँचो कि वह सुन्दर है या कुरूप। साँप का चेहरा हौवा को परमात्मा के चेहरे से अधिक सुंदर दिखाई दिया था। न ही किसी मनोवेग के भार का ठीक पता लगाने के लिए उसे तराजू पे रखो। भार में मुकुट की तुलना पहाड़ से कौन करेगा ?
परन्तु वास्तव में मुकुट पहाड़ से कहीं अधिक भारी होता है। और ऐसे मनोवेग भी हैं, जो दिन में तो दिव्य गीत गाते हैं, परन्तु रात के काले परदे के पीछे क्रोध से दांत पीसते हैं, काटते हैं और डंक मारते हैं।
ख़ुशी से फूले तथा उसके बोझ के नीचे दबे ऐसे मनोवेग भी हैं जो तेजी से शोक के कंकालों में बदल जाते हैं। कोमल दृष्टी तथा विनीत आचरण वाले ऐसे मनोवेग भी हैं जो अचानक भेड़ियों से भी अधिक भूखे,
लकड़बग्घों से भी अधिक मक्कार बन जाते हैं। ऐसे मनोवेग भी हैं जो गुलाब से भी अधिक सुगंध देते हैं जब तक उन्हें छेड़ा न जाये, लेकिन उन्हें छूते और तोड़ते ही उनसे सड़े-गले मांस तथा कबरबिज्जू से भी अधिक घिनौनी दुर्गन्ध आने लगती है।
अपने मनोवेगों को अच्छे और बुरे में मत बाँटो, क्योंकि यह एक व्यर्थ का परिश्रम होगा। अच्छाई बुराई के बिना टिक नहीं सकती; और बुराई अच्छाई के अंदर ही जड़ पकड़ सकती है। एक ही है नेकी और बदी का वृक्ष। एक ही है उसका फल भी। तुम नेकी का स्वाद नहीं ले सकते जब तक साथ ही बदी को भी न चख लो।
जिस चूची से तुम जीवन का दूध पीते हो उसी से मृत्यु का दूध भी निकलता है। जो हाथ तुम्हे पालने में झुलाता है वही हाथ तुम्हारी कब्र भी खोदता है। द्वैत की यही प्रकृति है, मेरे लावारिस बच्चो।
इतने हठी और अहंकारी न हो जाना कि इसे बदलने का प्रयत्न करो। न ही ऐसी मूर्खता करना कि इसे दो आधे-आधे भागों में बाँटने का प्रयत्न करो ताकि अपनी पसंद के आधे भाग को रख लो और दूसरे भाग को फेंक दो। क्या तुम द्वैत के स्वामी बनना चाहते हो ? तो इसे न अच्छा समझो न बुरा। क्या जीवन और मृत्यु का दूध तुम्हारे मुंह में खट्टा नहीं हो गया है ?
क्या समय नहीं आ गया है कि तुम एक ऐसी चीज से आचमन करो जो न अच्छी है न बुरी, क्योंकि वह दोनों से श्रेष्ठ है ? क्या समय नहीं आ गया है कि तुम ऐसे फल की कामना करो जो न मीठा है न कड़वा, क्योंकि वह नेकी और बदी के वृक्ष पर नहीं लगा है ?क्या तुम द्वैत के चंगुल से मुक्त होना चाहते हो ?
तो उसके वृक्ष को—नेकी और बदी के वृक्ष को—अपने ह्रदय में से उखाड़ फेंको। हाँ, उसे जसद और शाखाओं सहित उखाड़ फेंको ताकि दिव्य ज्ञान का बीज, पवित्र ज्ञान का बीज जो समस्त नेकी और बदी से परे है, इसकी जगह अंकुरित और पल्लवित हो सके।
तुम कहते हो मीरदाद का सन्देश निरानन्द है। यह हमें आने वाले कल की प्रतीक्षा के आनन्द से वंचित रखता है। यह हमें जीवन में गूँगे, उदासीन दर्शक बना देता है, जबकि हम जोशीले प्रतियोगी बनना चाहते हैं। क्योंकि बड़ी मिठास है प्रतियोगिता में, दाव पर चाहे कुछ भी लगा हो।
और मधुर है शिकार का जोखिम, शिकार चाहे एक छलावे से अधिक कुछ भी न हो। जब तुम मन में इस तरह सोचते हो तब भूल जाते हो कि तुम्हारा मन तुम्हारा नहीं है जब तक उसकी बागडोर अच्छे और बुरे मनोवेगों के साथ है।
अपने मन का स्वामी बनने के लिये अपने अच्छे-बुरे सब मनोवेगों को प्रेम की एकमात्र परात में गूँध लो ताकि तुम उन्हें दिव्य ज्ञान के तन्दूर में पका सको जहाँ द्वैत प्रभु में विलीन होकर एक हो जाता है। संसार को जो पहले ही अति दुःखी है और दुःख देना बन्द कर दो। तुम उस कुएँ से निर्मल जल निकालने की आशा कैसे कर सकते हो जिसमें तुम निरन्तर हर प्रकार का कूड़ा-करकट और कीचड़ फेंकते रहते हो ?
किसी तालाब का जल स्वच्छ और निश्चल कैसे रहेगा यदि हर क्षण तुम उसे हलोरते रहोगे ?दुःख में डूबे संसार से शान्ति की रकम मत माँगो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हे अदायगी दुःख के रूप में हो। दम तोड़ रहे संसार से जीवन की रकम मत मांगो, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हे अदायगी मृत्यु के रूप में हो।
संसार अपनी मुद्रा के सिवाय और किसी मुद्रा में तुम्हे अदायगी नहीं कर सकता, और उसकी मुद्रा के दो पहलू हैं। जो कुछ माँगना है अपने ईश्वरीय अहम् से माँगो जो शान्तिपूर्ण ज्ञान से से इतना समृद्ध है।
संसार से ऐसी माँग मत करो जो तुम अपने आप से नहीं करते। न ही किसी मनुष्य से कोई ऐसी माँग करो जो तुम नहीं चाहते कि वह तुमसे करे।
और वह कौन-सी वस्तु है जो यदि सम्पूर्ण संसार द्वारा तुम्हे प्रदान कर दी जाये तो तुम्हारी अपनी बाढ़ पर विजय पाने और ऐसी धरती पर पहुँचने में तुम्हारी सहायता कर सके जो दुःख और मृत्यु से नाता तोड़ चुकी है और आकाश से जुड़कर स्थायी प्रेम और ज्ञान की शान्ति प्राप्त कर चुकी है ?
क्या वह वस्तु सम्पत्ति है, सत्ता है, प्रसिद्धि है ? क्या वह अधिकार है,प्रतिष्ठा है, सम्मान है ? क्या वह सफल हुई महत्त्वाकांक्षा है, पूर्ण हुई आशा है ? किन्तु इन में से तो हरएक जल का एक स्रोत है जो तुम्हारी बाढ़ का पोषण करता है।
दूर कर दो इन्हे,मेरे लावारिस बच्चो, दूर, बहुत दूर। स्थिर रहो ताकि तुम उलझनो से मुक्त रह सको। उलझनों से मुक्त रहो ताकि तुम संसार को स्पष्ट देख सको। जब तुम संसार के रूप को स्पष्ट देख लोगो, तब तुम्हे पता चलेगा कि जो स्वतन्त्रता, शान्ति तथा जीवन तुम उससे चाहते हो, वह सब तुम्हें देने में वह कितना असहाय और असमर्थ है।
संसार तुम्हे दे सकता है केवल एक शरीर—द्वैतपूर्ण जीवन के सागर में यात्रा के लिये एक नौका। और शरीर तुम्हे संसार के किसी व्यक्ति से नहीं मिला है। तुम्हे शरीर देना और उसे जीवित रखना ब्रम्हाण्ड का कर्तव्य है। उसे तुफानो का सामना करने के लिये अच्छी हालत में,
लहरों के प्रहार सहने के योग्य रखना, उसकी पाशविक वृतियों को बाँधकर नियंत्रण में रखना—यह तुम्हारा कर्तव्य है, केवल तुम्हारा। आशा से दीप्त तथा पूर्णतया सजग विश्वास रखना जिसको पतवार थमाई जा सके, प्रभु-इच्छा में अटल विश्वास रखना जो अदन के आनन्दपूर्ण प्रवेश-द्वार पर पहुँचने में तुम्हारा मार्गदर्शक हो—यह भी तुम्हारा काम है, केवल तुम्हारा।
निर्भय संकल्प हो, आत्म-विजय प्राप्त करने तथा दिव्य- ज्ञान के जीवन-वृक्ष का फल चखने के संकल्प को अपना केवट बनाना—-यह भी तुम्हारा काम है, केवल तुम्हारा।मनुष्य की मंजिल परमात्मा है।
उससे नीचे की कोई मंजिल इस योग्य नहीं कि मनुष्य उसके लिये कष्ट उठाये। क्या हुआ यदि रास्ता लम्बा है और उस पर झंझा और झक्कड़ का राज है ?
क्या पवित्र ह्रदय तथा पैनी दृष्टि से युक्त विश्वास झंझा को परास्त नहीं कर देगा और झक्कड़ पर विजय नहीं पा लेगा ?जल्दी करो, क्योंकि आवारगी में बिताया समय पीड़ा-ग्रस्त समय होता है। और मनुष्य, सबसे अधिक व्यस्त मनुष्य भी, वास्तव में आवारा ही होते हैं।
नौका के निर्माता हो तुम सब, और साथ हो नाविक भी हो। यही कार्य सौंपा गया है तुम्हे अनादि काल से ताकि तुम उस असीम सागर की यात्रा करो जो तुम स्वयं हो, और उसमे खोज लो अस्तित्व के उस मूक संगीत को जिसका नाम परमात्मा है।
सभी वस्तुओं का एक केन्द्र होना जरुरी है जहाँ से वे फ़ैल सकें और जिसके चारों ओऱ वे घूम सकें। यदि जीवन—-मनुष्य का जीवन—-एक वृत्त है और परमात्मा की खोज उसका केन्द्र, तो तुम्हारे हर कार्य का केंद्र परमात्मा की खोज ही होना चाहिये; नहीं तो तुम्हारा हर कार्य व्यर्थ होगा, चाहे वह गहरे लाल पसीने से तर-बतर ही क्यों न हो।पर क्योंकि मनुष्य को उसकी मंजिल तक ले जाना मीरदाद का काम है, देखो !
मीरदाद ने तुम्हारे लिए एक अलौकिक नौका तैयार की है, जिसका निर्माण उत्तम है और जिसका संचालन अत्यन्त कौशलपूर्ण। यह दयार से बनी और तारकोल से पुती नहीं है; और न ही यह कौओं, छिपकलियों और लकड़बग्घों के लिये बनी है।
इसका निर्माण दिव्य ज्ञान से हुआ है जो निश्चय ही उन सबके लिए आलोक-स्तम्भ होगा जो आत्म-विजय के लिये तड़पते हैं। इसका संतुलन-भार शराब के मटके और कोल्हू नहीं, बल्कि हर पदार्थ हर प्राणी के प्रति प्रेम से भरपूर ह्रदय होंगे। न ही इसमें चल या अचल सम्पत्ति, चाँदी, सोना, रत्न आदि लदे होंगे,
बल्कि इसमें होंगी अपनी परछाइयों से मुक्त हुई तथा दिव्य ज्ञान के प्रकाश और स्वतन्त्रता से सुशोभित आत्माएँ। जो धरती के साथ अपना नाता तोड़ना चाहते हैं, जो एकत्व प्राप्त करना चाहते हैं,
जो आत्म-विजय के लिए तड़प रहे हैं, वे आयें और नौका पर सवार हो जायें।
नौका तैयार है। वायु अनुकूल है।
सागर शान्त है।
यही शिक्षा थी मेरी नूह को।
यही शिक्षा है मेरी तुम्हे।


****इति ***
previous link :- 


view  from start  अध्याय - 1/2/3/4 

13 comments:

  1. Best book ever I read...Nice work of someone to provide here...

    ReplyDelete
  2. It's not a book but something else...

    ReplyDelete
    Replies
    1. ABSOLUTELY !

      Its Something Else

      Delete
    2. यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक पुस्तक है .....प्रणाम ......

      Delete
    3. प्रणाम .... सच ,उचित आभास

      Delete
    4. 🕉अहोभाव प्रभु
      🕉🌹🙏

      Delete
  3. Great contribution, lataji ...to be technical voice of Mirdad ......pranam

    ReplyDelete
  4. Thanks ..may light find us all

    ReplyDelete
  5. thanks ,i am finding this book in hindi version,got it ,thank za lot

    ReplyDelete
  6. some unknown pasted link then i explored and get surprised , just for clarification..... i dont know which book you find ! if it is hard cover may be original , but if you find under { https://drive.google.com/file/d/1iC7fvl-TNNLiRyFo2m9mbtanqJJFMDZ8/view } this link this is saved by google what is i blogged and create pdf . actually that is duplicate from here.

    ReplyDelete
  7. It is not a book but something else

    ReplyDelete