ह्रदय तरंगो की यात्रा : एक ध्यान प्रयोग:
कल्पना कीजिये कि आप अर्ध रात्रि , तारो से भरे आसमान के नीचे खड़े है ,
किसी पर्वत की सबसे ऊंची छोटी पे , एकटक तारामंडल को देख रहे है इतना अधिक
गहरा ध्यान कि आप स्वयं को भी नहीं याद रख पा रहे , मैं कहा हूँ ये सोचना भी
सुंदरता को देखने में बाधक हो रहा है।
किसी पर्वत की सबसे ऊंची छोटी पे , एकटक तारामंडल को देख रहे है इतना अधिक
गहरा ध्यान कि आप स्वयं को भी नहीं याद रख पा रहे , मैं कहा हूँ ये सोचना भी
सुंदरता को देखने में बाधक हो रहा है।
अचानक ह्रदय में एक आंदोलन , एक आंतरिक छलांग और आप तारामंडल के अंदर
प्रवेश हुआ सा पाते है , आपके चारो तरफ घूमते हुए तारामंडल , आपकी ही परिक्रमा
लगा रहे है , और आप मंत्रमुग्ध से इस कायनात की सुंदरता के बीच ,एक ओमकार
की गूँज इस शून्य वातावरण में। चलिए आगे बढ़ के देखते है क्या है और यहाँ !
तारामंडल , और भी बहुत से तारामंडल मिलके एक आकाशगंगा बना रहे है।
प्रवेश हुआ सा पाते है , आपके चारो तरफ घूमते हुए तारामंडल , आपकी ही परिक्रमा
लगा रहे है , और आप मंत्रमुग्ध से इस कायनात की सुंदरता के बीच ,एक ओमकार
की गूँज इस शून्य वातावरण में। चलिए आगे बढ़ के देखते है क्या है और यहाँ !
तारामंडल , और भी बहुत से तारामंडल मिलके एक आकाशगंगा बना रहे है।
ब्रह्माण्ड हमारे सबसे करीब , हमारे धरती के जीवन को प्रभावित करता ।.
सुंदर , विलक्षण , अद्भुत , आश्चर्यजनक । जरा और ऊपर से देखे यहाँ तो
एक से अधिक कई आकाशगंगाए है , जो अत्यधिक सुंदर है। इसको कुछ लोग
गैलेक्सी के नाम से भी धरती पे जानते है।
परम तत्व का आशीष हो तो थोडा और ऊपर से देखें !
सुंदर , विलक्षण , अद्भुत , आश्चर्यजनक । जरा और ऊपर से देखे यहाँ तो
एक से अधिक कई आकाशगंगाए है , जो अत्यधिक सुंदर है। इसको कुछ लोग
गैलेक्सी के नाम से भी धरती पे जानते है।
परम तत्व का आशीष हो तो थोडा और ऊपर से देखें !
ये क्या !! क्षण भर में , आप अपने को ऐसी जगह पाते हैं जहाँ कई आकाशगंगाए है
हमारा वाला ब्रह्माण्ड तो बहुत छोटा सा है न के बराबर , उस जैसे कई कई
ब्रह्माण्ड है , तारामंडल जैसे। हमारे रोज मर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाले
तारागण तो दिखायी नहीं दे रहे , पृथ्वी से दिखने वाले अति तेजस्वी और विशाल ,
योजन में फैले साम्राजय के अधिपति सूरज चन्द्रमा जिसने धरती के हवा और पानी
को अपने वश में किया है, यानि के ज्वालामुखी का उबाल और समुद्र का उफान ,
यानि के जीवन को अपने वश में किया है , इस स्तर से , इस ऊंचाई से या के इस
गहराई से उनका अस्तित्व भी दिखायी नहीं दे रहा !
कितना विस्तृत विशाल असीमित सौ न्दर्य है . , थोडा और आगे , ऊपर को चले !
ऐसा स्थान पे खड़े हुए है , प्रकाश की तो कमी ही नहीं , प्रकाश भी फीका है ,
ये वो स्थान है जहाँ सम्पूर्ण कई कई गेलेक्सी चक्कर काट रही है …विशाल
वर्णातीत , शब्दातीत , अब क्या शब्द दूँ इस दृश्य को शब्द नहीं बचे , दृष्टि
सीमित है पूरा वर्णन कैसे हो ? इस महिमा का , कैसे कहु कि क्या देखा ?
ऐसा स्थान पे खड़े हुए है , प्रकाश की तो कमी ही नहीं , प्रकाश भी फीका है ,
ये वो स्थान है जहाँ सम्पूर्ण कई कई गेलेक्सी चक्कर काट रही है …विशाल
वर्णातीत , शब्दातीत , अब क्या शब्द दूँ इस दृश्य को शब्द नहीं बचे , दृष्टि
सीमित है पूरा वर्णन कैसे हो ? इस महिमा का , कैसे कहु कि क्या देखा ?
और अब जहाँ हमको चलना है या के उड़ना है याके तैरना है वो स्थान
औ जगह कल्पनातीत है वो निश्चित मौन में डूबा देगी , फिर सारे शब्द
खो जायेंगे , कुछ रहेगा ही नहीं कहने को तो कैसे कहंगे ?
औ जगह कल्पनातीत है वो निश्चित मौन में डूबा देगी , फिर सारे शब्द
खो जायेंगे , कुछ रहेगा ही नहीं कहने को तो कैसे कहंगे ?
यही वो जगह है जहा पे जब कोई ध्यानी आता है , मौन हो जाता है , प्रेमी आता है
तो रूमी कबीर और मीरा बन जाता है ,भक्त अपनी इस यात्रा में सर्वस्व लुटा के
परम के प्रति समर्पित हो जाता है इस गहराई को जाने और उन पवित्र तरंगो को
छूने का प्रयास करें , यही वो परम गंगा जी का स्नान है , जिस से आत्मा का स्नान हो जाता है।
तो रूमी कबीर और मीरा बन जाता है ,भक्त अपनी इस यात्रा में सर्वस्व लुटा के
परम के प्रति समर्पित हो जाता है इस गहराई को जाने और उन पवित्र तरंगो को
छूने का प्रयास करें , यही वो परम गंगा जी का स्नान है , जिस से आत्मा का स्नान हो जाता है।
कोई लौकिक धर्म नहीं है यहाँ पे , सारे भेद बहुत नीचे रह जाते है , सारे मानसिक क्लेश
नीचे रह जाते है , सारे शारीरिक कष्ट पीछे छूट जाते है। यहाँ बस एक मुक्त आत्मा
अपने अति सूक्ष्म रूप में अपने परम से संपर्क करती है , और पाती है ये तो धागा तो
नाभि से जुड़ा ही हुआ था। है ना ! वहीं पे घूम के आगे गोल गोल। और यही उसकी
भी इक्छा है कि आप अपनी यात्रा पुरे ध्यान और ज्ञान से पूरी करे !
ॐ
इस ध्यान के बाद यदि किसी ने कुछ भी ऐसा देखा जिसको शब्द दे सकता है
तो जरुर प्रयास करें, जरुर दें।
चलिए अब वापिस चलते है , उसी रास्ते , जिस से आये थे , पहले उस दृश्य को
आभार देते है फिर उन गैलक्सी को पार करते हुए उन गैलक्सी का आभार ,
अब आकाश गंगाओं के मध्य से अपनी वाली आकाशगंगा में प्रवेश करना है ,
निकलने से पहले हर आकाशगंगा को आभार करते हुए, और फिर उसके बाद
अपने ब्रह्माण्ड में प्रवेश करना है , आभार अपने ब्रह्माण्ड का और अब अपने
आभार देते है फिर उन गैलक्सी को पार करते हुए उन गैलक्सी का आभार ,
अब आकाश गंगाओं के मध्य से अपनी वाली आकाशगंगा में प्रवेश करना है ,
निकलने से पहले हर आकाशगंगा को आभार करते हुए, और फिर उसके बाद
अपने ब्रह्माण्ड में प्रवेश करना है , आभार अपने ब्रह्माण्ड का और अब अपने
सौरमंडल में प्रवेश पुरे आभार के साथ और आहिस्ता आहिस्ता अपने धरती ,
धरती के दृश्यों को आभार धरती से बहुत कुछ लिया है उन सबके प्रति आभार ,
गोल गोल घूमती पृथ्वी पे ..................................................................
आपको अपने देश , शहर और फिर अपने घर के कमरे तक वापिस आना है।
आपके अपने जीवन में जो भी आपको बहुत छोटा सा महत्वहीन सा लगता है ,
विचार कीजिये कितना बड़ी ऊर्जा है
आपके अपने जीवन में जो भी आपको बहुत छोटा सा महत्वहीन सा लगता है ,
विचार कीजिये कितना बड़ी ऊर्जा है
जिसका परिणाम आप और हम है।
इस परम पवित्रता को ह्रदय में स्थान दीजिये।
गहरी आठ दस सांसो के बीच आँखे खोल अपने चारों तरफ देखिये।
यदि आपका ध्यान सही दिशा में हुआ है तो जो दृश्य आपने देखा और महत्त्व आपने
समझा है तो सबसे पहले आपको इस दिव्य शरीर का महत्त्व समझ में आएगा ,
इस शरीर का मंदिर सदृश होना आपको दिखायी देगा।
सांसारिक और असांसारिक तथ्यों में भेद कर पाएंगे आभार महसूस कर पाएंगे उस
ऊर्जा का जिसके कारन आप है। संसार के प्रति आपकी दृष्टि अवश्य बदलेगी।
समझा है तो सबसे पहले आपको इस दिव्य शरीर का महत्त्व समझ में आएगा ,
इस शरीर का मंदिर सदृश होना आपको दिखायी देगा।
सांसारिक और असांसारिक तथ्यों में भेद कर पाएंगे आभार महसूस कर पाएंगे उस
ऊर्जा का जिसके कारन आप है। संसार के प्रति आपकी दृष्टि अवश्य बदलेगी।
माया के जाल खुद बा खुद धूमिल होते से लगने लगेंगे।
स्वयं को निर्भार होता हुआ पाएंगे
(समय और बैठक का कोई निश्चित समय नहीं , मन का राजी होना आवश्यक है ,
और फिर जब तक आपका दिल चाहिए इस अध्यात्मिक यात्रा पे निकल सकते है )
और फिर जब तक आपका दिल चाहिए इस अध्यात्मिक यात्रा पे निकल सकते है )
बस इतना ही !
दृष्टि से दृष्टा और दृश्य बदल जायेंगे
भाव से अभिवयक्ति महक जायेगी
गुल ओ गुलशन अपनी ही जगह पे रहेंगे
मात्र एक सोच से कायनात बदल जायेगी ||
दृष्टि से दृष्टा और दृश्य बदल जायेंगे
भाव से अभिवयक्ति महक जायेगी
गुल ओ गुलशन अपनी ही जगह पे रहेंगे
मात्र एक सोच से कायनात बदल जायेगी ||
ॐ प्रणाम
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