अध्यात्मिक गुरु , अध्यात्मिक चेतना और आप :
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चलो वहीं से शुरू करे दोबारा ; जहाँ से शुरू की थी जिंदगानी ,
जितनी बार चुकोगे मैं दोहराऊंगा तुम्हारे लिए वो ही कहानी।।
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जी हाँ, दोस्तों ,
ये वही कहानी है जिसका आप बार बार अंतिम छोर थाम के कठनाई में पड़ जाते है ,
ये कहानी उन जान बाजों की है जिनका आपने हुनर देखा और लट्टू हो गए..... उनके पहनावे पे , उनकी विषयगत महारथ पे , उनकी रूहानियत पे ; संक्षेप में जो जो हमको बाह्य रूप से दिखता है , उस दिखावट पे सम्मोहित हो गए ।
आप स्वयं ही अपने अंतर्मन और अपनी श्रध्हा को टोटलिये , कहाँ है ! किस पे है ! जिसपे भी हो , उसका जीवन वृत्त आपने जरुर पढ़ा होगा।
कोई भी ५ तत्वों से निर्मित शरीर और उसपे आपकी श्रध्हा अगर आ गयी है , तो विचारणीय है कि उसका जीवन भी घटनाओ के संयोग से यहाँ तक आया है , जैसे आपका।
आपके श्रद्धेय का जीवन वृत्त आप पढ़ें , फिर फिर पढ़े , तब तक पढ़े जब तक आपको वो छिपा हुआ सूत्र न मिल जाये। वो सूत्र बहुत सूक्ष्म रूप से वृहत जीवन वृत्तांत में छिपा हुआ है।
उदाहरण लेते है अध्यात्म के सूत्रधार गौतम बुद्धः नहीं नहीं , सिद्दार्थ बालक का सिरा पकडे , क्युकी आपभी अभी बालक ही है , तो बालक बालपन से ही तथागत का साथ पकडे , तो एक दिन सयाना भी होगा और तथागत के ही सामान तथागत स्तिथि को प्राप्त होगा , हो सकता है इसीपल, वो चेतना आपकी जागृत हो जाये।
सिर्फ एक एक करके उन चार सत्य और उन भावो के तुफानो और उनसे उत्पन्न व्यथा का घूँट पीते हुए से आपको स्वयं को आत्मसात करना होगा।
फिर आप सिद्धार्थ से तथागत बनने के लिए तैयार है , कोई चमत्कार नहीं , सिर्फ यात्रा !
इसी तरह आप अपने अन्य किसी श्रध्धेय के वृतांत से रुबरु हो सकते है यानि कि समक्ष हो सकते है। रामकृष्ण का , कृष्ण मूर्ति का , माँ शारदा , माँ आनंदमयी का , ओशो का , जीवित गुरु जग्गी वासुदेव , मूजी , इनमे से अथवा अन्य कोई भी यदि है तो उनमे से किसी के भी जीवन से आप जुड़ सकते है , सिर्फ एक ही शर्त है , उस गुरु की आज की मनःस्थति समझने के लिए आपको अपने उसी गुरु की बाल्यकाल की यात्रा से जुड़ना होगा , एकाकार होना होना होगा , ऐसे जैसे वो उनका नहीं आपका ही जीवन है।
अंत में ; ये बात आपको सदैव ध्यान रखनी है कि अन्य सब आपके लिए सिर्फ एक संज्ञा है एक व्यक्तित्व है सिर्फ और सिर्फ साधन है चाहे कितने भी उपयोगी और प्रभावशाली हो सिर्फ एक अवसर है ,ना भूले उनका अपना जीवन उनके लिए भी एक यात्रा ही है .... आपका अपना जीवन , आपकी अपनी यात्रा आपका बड़ा सत्य है आपके लिए। प्रकृति ने आपके लिए भी अवश्य सोचा है , पर हमारे उन्माद का कोई हल नहीं , हमारे सम्मोहन का कोई तोड़ नहीं , पृकृति सिर्फ अवसर देती है।
तो , क्या आप अपनी इस अद्भुत प्रायोगिक अध्यात्मिक यात्रा के लिए तैयार है ?
शुभकामनाये
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चलो वहीं से शुरू करे दोबारा ; जहाँ से शुरू की थी जिंदगानी ,
जितनी बार चुकोगे मैं दोहराऊंगा तुम्हारे लिए वो ही कहानी।।
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जी हाँ, दोस्तों ,
ये वही कहानी है जिसका आप बार बार अंतिम छोर थाम के कठनाई में पड़ जाते है ,
ये कहानी उन जान बाजों की है जिनका आपने हुनर देखा और लट्टू हो गए..... उनके पहनावे पे , उनकी विषयगत महारथ पे , उनकी रूहानियत पे ; संक्षेप में जो जो हमको बाह्य रूप से दिखता है , उस दिखावट पे सम्मोहित हो गए ।
आप स्वयं ही अपने अंतर्मन और अपनी श्रध्हा को टोटलिये , कहाँ है ! किस पे है ! जिसपे भी हो , उसका जीवन वृत्त आपने जरुर पढ़ा होगा।
कोई भी ५ तत्वों से निर्मित शरीर और उसपे आपकी श्रध्हा अगर आ गयी है , तो विचारणीय है कि उसका जीवन भी घटनाओ के संयोग से यहाँ तक आया है , जैसे आपका।
आपके श्रद्धेय का जीवन वृत्त आप पढ़ें , फिर फिर पढ़े , तब तक पढ़े जब तक आपको वो छिपा हुआ सूत्र न मिल जाये। वो सूत्र बहुत सूक्ष्म रूप से वृहत जीवन वृत्तांत में छिपा हुआ है।
उदाहरण लेते है अध्यात्म के सूत्रधार गौतम बुद्धः नहीं नहीं , सिद्दार्थ बालक का सिरा पकडे , क्युकी आपभी अभी बालक ही है , तो बालक बालपन से ही तथागत का साथ पकडे , तो एक दिन सयाना भी होगा और तथागत के ही सामान तथागत स्तिथि को प्राप्त होगा , हो सकता है इसीपल, वो चेतना आपकी जागृत हो जाये।
सिर्फ एक एक करके उन चार सत्य और उन भावो के तुफानो और उनसे उत्पन्न व्यथा का घूँट पीते हुए से आपको स्वयं को आत्मसात करना होगा।
फिर आप सिद्धार्थ से तथागत बनने के लिए तैयार है , कोई चमत्कार नहीं , सिर्फ यात्रा !
इसी तरह आप अपने अन्य किसी श्रध्धेय के वृतांत से रुबरु हो सकते है यानि कि समक्ष हो सकते है। रामकृष्ण का , कृष्ण मूर्ति का , माँ शारदा , माँ आनंदमयी का , ओशो का , जीवित गुरु जग्गी वासुदेव , मूजी , इनमे से अथवा अन्य कोई भी यदि है तो उनमे से किसी के भी जीवन से आप जुड़ सकते है , सिर्फ एक ही शर्त है , उस गुरु की आज की मनःस्थति समझने के लिए आपको अपने उसी गुरु की बाल्यकाल की यात्रा से जुड़ना होगा , एकाकार होना होना होगा , ऐसे जैसे वो उनका नहीं आपका ही जीवन है।
अंत में ; ये बात आपको सदैव ध्यान रखनी है कि अन्य सब आपके लिए सिर्फ एक संज्ञा है एक व्यक्तित्व है सिर्फ और सिर्फ साधन है चाहे कितने भी उपयोगी और प्रभावशाली हो सिर्फ एक अवसर है ,ना भूले उनका अपना जीवन उनके लिए भी एक यात्रा ही है .... आपका अपना जीवन , आपकी अपनी यात्रा आपका बड़ा सत्य है आपके लिए। प्रकृति ने आपके लिए भी अवश्य सोचा है , पर हमारे उन्माद का कोई हल नहीं , हमारे सम्मोहन का कोई तोड़ नहीं , पृकृति सिर्फ अवसर देती है।
तो , क्या आप अपनी इस अद्भुत प्रायोगिक अध्यात्मिक यात्रा के लिए तैयार है ?
शुभकामनाये
yes yes yes DIDI PRANAM
ReplyDeletePranam Bhayi ji
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