एक तो जितने जोर से भीतर श्वास की चोट की जाती है, हमारे शरीर में छिपी हुई प्राण-ऊर्जा जगती है। शायद आपको पता न हो कि हम सबके शरीरों में--हमारे शरीर में ही नहीं, जीवन के समस्त रूपों में--जो ऊर्जा छिपी है, वह विद्युत का ही रूप है, इलेक्ट्रिसिटी का ही रूप है। हमारा शरीर भी चल रहा है जिस शक्ति से, वह विद्युत का ही रूप है। वह आर्गनिक इलेक्ट्रिसिटी उसे हम कहें, वह जीवंत विद्युत है। इस विद्युत को जितनी ज्यादा आक्सीजन मिले, उतनी तीव्रता से जगती है।इसलिए बिना आक्सीजन के आदमी मर जाएगा। और बिलकुल मरते हुए आदमी को भी अगर आक्सीजन दी जा सके तो हम उसे थोड़ी-बहुत देर जिंदा रख सकते हैं।
इस दस मिनट में इतने जोर से श्वास लेनी है कि आपके भीतर की सारी वायु बाहर चली जाए और बाहर से ताजी वायु भीतर चली आए। आपके शरीर के भीतर आक्सीजन का अनुपात बदल डालना है। वह अपने आप बदल जाता है। और चोट इतने जोर से करनी है कि शरीर में जो शक्ति सोई हुई है, वह उठने लगे।
पांच मिनट के प्रयोग में ही कोई साठ परसेंट लोगों के शरीरों के भीतर कंपन शुरू हो जाएगा। वह आपको बहुत स्पष्ट मालूम पड़ने लगेगा कि कोई चीज वाइब्रेट करती हुई उठने लगी है। योग ने उसे कुंडलिनी कहा है। अगर हम विज्ञान से पूछेंगे तो उसे वह बॉडी इलेक्ट्रिसिटी कहेगा। वह कहेगा, वह शरीर की विद्युत है।
Yog, Naye Aayam (05)
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