धर्म की यात्रा पर निकले व्यक्ति को इसे एक बुनियादी सूत्र समझ लेना चाहिए कि स्वास्थ्य को मांगना, अस्वास्थ्य को नहीं। क्योंकि अस्वस्थता को मांगोगे तो और अस्वस्थ हो जाओगे। सुंदर को चाहना, असुंदर को नहीं। असुंदर को एक बार मांगा, तो उसी में लिप्त होने लगोगे। उसी में तुम्हारा धंधा जुड़ जाएगा। प्रेम को मांगना, सहानुभूति को नहीं। प्रेम चाहिए हो, तो तुम्हें पहले प्रेम के योग्य बनना पड़ता है। इस फर्क को समझ लो। प्रेम मुफ्त मिलता। प्रेम के लिए योग्यता चाहिए , पात्रता चाहिए। पात्रता यानि कि प्रेम में होने कि सम्भावना यानि कि बीज का होना , और योग्यता यानि कि उस बीज को पोषण दे के बड़ा करना। परम स्वास्थ्य होगा तुम्हारे भीतर, तो ही भीतर धुन पैदा होगी। परम प्रेम को पाना हो तो योग्यता चाहिए, परम सृजन की इक्षाशक्ति चाहिए।
आसानी से मिलने वाली वस्तु है सहानुभूति , बहुत आसानी से मिलेगी , पर आसानी पे मत राजी होना। सहानुभूति मुफ्त में मिल जाती है, सहानुभूति के लिए कुछ भी नहीं करना होता।
तुमने कहानी सुनी होगी, बड़ी पुरानी कहानी है कि एक स्त्री ने कंगन बनवाए सोने के। वह हरेक से बात करती, जोर—जोर से हाथ भी हिलाती, कंगन लुनी बजाती, लेकिन किसी ने पूछा नहीं कि कहां बनवाए? कितने में खरीदे? आखिर उसने अपने झोपड़े में आग लगा ली। जब वह छाती पीट—पीटकर रोने लगी तब एक महिला ने पूछा, अरे, हमने कंगन तो तेरे देखे ही नहीं! उसने कहा कि नासमझ, अगर पहले ही पूछ लेती तो घर में आग लगाने की जरूरत तो न पडती। आज झोपड़ा जलता क्यों?
तुम हंसना मत।
तुमने भी बहुत झोपड़े इसी तरह जलाए हैं, क्योंकि तुम्हारे कंगन को कोई पूछ ही न रहा था। तुमने न मालूम कितनी बार सिरदर्द पैदा किया है, बीमार हुए हो, रुग्ण हुए हो, उदास और दुखी हुए हों , घर जलाए क्योंकि तुम्हारे सौंदर्य की कोई चर्चा ही न कर रहा था। तुम्हारी बुद्धिमानी की कोई बात ही न कर रहा था। तुम्हारी योग्यता का कोई गीत ही न गा रहा था। कोई प्रशंसा तुम्हारी तरफ आ ही न रही थी। कोई ध्यान दे ही न रहा था।
ये कहानियां साधारण कहानियां नहीं हैं। ये हजारों साल के मनुष्य के अनुभव का निचोड़ हैं। यह कहानी किसी ने गढ़ी नहीं है। इसका कोई लेखक नहीं है। यह निचोड़ है यह हजारों —हजारों साल के मनुष्य के अनुभव का निचोड़ है। इसे खयाल रखना।
तुम पूछते हो, ‘क्या विषाद की लंबी श्रृंखला ही मेरे भाग्य में लिखी है? ऐसा लगता है, विषाद में भी थोड़ा मजा ले रहे हो। लंबी श्रृंखला, विषाद, बड़े बहुमूल्य शब्द मालूम होते हैं। जैसे तुम कोई विशेष काम कर रहे हो। इस गंदगी में रस मत लो। अन्यथा यह गंदगी तुमसे चिपट जाएगी। रस से चीजें जुड़ जाती हैं। फिर तोड़ना मुश्किल हो जाता है। फिर अगर तुमने विषाद को ही अपना चेहरा बना लिया और इसी के आधार पर लोगों से सहानुभूति मांगी, लोगों का हृदय माँगा , प्रेम मांगा, तो फिर तुम इसे छोड़ कैसे पाओगे? क्योंकि तब डर लगेगा कि रकार विषाद छूटा, तो यह सब प्रेम भी चला जाएगा। यह सब सहानुभूति, यह लोगों का ध्यान, यह सब खो जाएगा। फिर तो तुम इसे पकड़ोगे। फिर तो तुम इसकी अतिशयोक्ति करोगे। फिर तो तुम इसे बढ़ाओगे। फिर तो तुम इसे बढ़ा—चढ़ाकर दिखाओगे। फिर तो तुम इसे गुब्बारे की तरह फैलाओगे और तुम शोरगुल भी खूब मचाओगे कि मै बड़ा दुखी हूं मैं बड़ा दुखी हूं।
लेकिन तुम कभी खयाल करो। जब लोग दुख की चर्चा करते हैं, तुम जरा उनका खयाल करना। वे क्या कहते हैं, उस पर उतना ध्यान मत देना, कैसे कहते हैं, उस पर ध्यान देना; तुम पाओगे, वे रस ले रहे हैं। उनकी आंखों में तुम चमक पाओगे। तुम पाओगे, उन्हें भीतर एक गर्हित सुख मिल रहा है। जब लोग अपने दुखों का लोगों से वर्णन करने लगते हैं, तब तुम देखो, उनके जीवन में कैसी चमक आ जाती है। वे बड़े कुशल हो जाते हैं वर्णन करने में। अदा ले _ ले कर कहने लगते हैं। और अगर तुम उनकी बातों में रस न लो, तो वे दुखी होते हैं। अगर तुम उनकी बातों में रस न लो, तो तुम पर नाराज होते हैं। वे तुम्हें कभी क्षमा न कर पाएंगे।
दूसरों की फिकर छोड़ दो, अपने पर तो खयाल रखना कि जब तुम अपने दुख की चर्चा करो तो भूलकर भी किसी तरह का स्वाद मत लेना, अन्यथा तुम उसी दुख में बंधे रह जाओगे। फिर तुम चिल्लाओगे बहुत, लेकिन छूटना न चाहोगे।
फिर तुम कारागृह में बंद रहोगे, शोरगुल बहुत मचाओगे, लेकिन कारागृह के अगर दरवाजे भी खोल दिए जाएं तो तुम निकलकर भागोगे नहीं। अगर तुम्हें बाहर भी निकाल दिया जाए, तुम लौटकर पीछे के दरवाजे से वापस आ जाओगे। तुम्हारा कारागृह बहुत बहुमूल्य हो गया, अब उसे छोड़ा नहीं जा सकता। दुख में किसी तरह की संपत्ति को नियोजित मत करना।
और जीवन में दोनों हैं। यहां कांटे भी हैं, फूल भी हैं। अब तुम्हारे ऊपर है कि तुम क्या चुन लेते हो।
Osho
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