एक प्रश्न है कि अहंकार की शक्ति को किस में परिणत किया जाए?
Osho : मैंने पीछे आपको बताया कि अगर क्रोध की शक्ति पैदा हो, तो उसे हम समपरिवर्तित कर सकते हैं सृजनात्मक रूप से। मैंने आपको यह भी बताया कि अगर सेक्स की शक्ति है, तो वह भी समपरिवर्तित की जा सकती है। अहंकार उस अर्थों में शक्ति नहीं है, जिस अर्थों में क्रोध, सेक्स, लोभ इत्यादि शक्तियां हैं। अहंकार उस अर्थों में शक्ति नहीं है।
क्रोध कभी पैदा होता है, सेक्स का भाव भी कभी प्रबल होता है, लोभ भी कभी चेतना को पकड़ता है। अहंकार कभी नहीं, जब तक समाधि उत्पन्न न हो, सदा आपके साथ होता है। वह शक्ति नहीं है, वह आपकी स्थिति है। समझें इस फर्क को।
अहंकार शक्ति नहीं है, वह आपकी स्थिति है। वह कभी पैदा नहीं होता, वह है आपके साथ। वह आपके सब कामों के पीछे खड़ा हुआ है। वह आपकी स्थिति है। उसके कारण बहुत-सी चीजें पैदा होती हैं, लेकिन वह पैदा नहीं होता।
अहंकार के कारण क्रोध पैदा हो सकता है। अगर आप अहंकारी हैं, तो आप ज्यादा क्रोधी होंगे। अगर आप अहंकारी हैं, तो आप ज्यादा यश-लोलुप होंगे, लोभी होंगे, पद-लोलुप होंगे। अगर आप अहंकारी हैं, तो ये सारी बातें आपमें पैदा होंगी। अहंकार के कारण ये शक्तियां पैदा होंगी आपके भीतर, लेकिन अहंकार आपके चित्त की एक स्थिति है। और जब तक अज्ञान है, तब तक अहंकार होता है। और जब ज्ञान आता है, तो अहंकार विलीन हो जाता है और उसकी जगह आत्मा का दर्शन होता है।
अहंकार आत्मा को घेरे हुए एक आच्छन्न पर्दा है। आत्मा को घेरे हुए अहंकार एक पर्दा है। वह शक्ति नहीं है, अज्ञान है। उसके द्वारा बहुत-सी शक्तियां पैदा होती हैं--उस अज्ञान के द्वारा। और अगर उनका हम विनाशात्मक उपयोग करें, तो अहंकार की स्थिति और मजबूत होती चली जाती है। और अगर उन पैदा हुई शक्तियों का हम सृजनात्मक और क्रिएटिव उपयोग करें, तो अहंकार की शक्ति क्षीण होती चली जाती है; अहंकार की स्थिति क्षीण होती चली जाती है। अगर सारी पैदा की हुई शक्तियों का सृजनात्मक उपयोग हो, तो एक दिन अहंकार विलीन हो जाता है। और जब अहंकार का धुआं विलीन हो जाता है, तो नीचे पता चलता है, आत्मा की लौ है।
अहंकार का धुआं घेरे हुए है आत्मा की लौ को। जब निर्धूम होता है चित्त, सारा धुआं अहंकार का दूर होता है, जब 'मैं' भाव की सारी पर्तें दूर हो जाती हैं, जब यह स्मरण भी नहीं आता है कि 'मैं भी हूं', तब गहराई में उपलब्धि होती है।
रामकृष्ण कहा करते थे कि एक बार ऐसा हुआ, एक नमक का पुतला समुद्र के किनारे एक मेले में गया। एक मेला लगा और एक नमक का पुतला मेले को देखने समुद्र के किनारे गया। और समुद्र के किनारे उसने देखा, बड़ा अथाह सागर है। कोई रास्ते में पूछने लगा, 'कितना गहरा होगा?' उस पुतले ने कहा कि 'मैं अभी खोजकर आता हूं।' और वह नमक का पुतला पानी में कूद पड़ा। और बहुत दिन बीते और बहुत वर्ष बीते, वह पुतला अब तक वापस नहीं लौटा है। उसने कहा था, मैं अभी खोजकर आता हूं, लेकिन वह नमक का पुतला था और सागर में कूदते ही नमक पिघल गया और विलीन हो गया और वह सागर की तलहटी को नहीं पा सका।
वह जो 'मैं' खोजने निकला था परमात्मा को या सागर की गहराई को, वह खोजने में ही विलीन हो जाता है। वह केवल नमक का पुतला है, वह कोई शक्ति नहीं है।
तो अगर आप परमात्मा को खोजने निकले हैं, तो जब आप खोजने निकलते हैं, तब यही खयाल होता है कि मैं परमात्मा को खोजने निकल रहा हूं। लेकिन जब जैसे-जैसे आप प्रवेश करते हैं, पाते हैं, परमात्मा तो नहीं मिल रहा है, 'मैं' विलीन होता चला जा रहा है। एक घड़ी आती है, जब 'मैं' बिलकुल शून्य होता है, तब आप पाते हैं कि परमात्मा मिल गया है।
इसका मतलब यह हुआ कि 'मैं' को कभी परमात्मा का मिलन नहीं होगा। जब 'मैं' नहीं होगा, तब परमात्मा मिलेगा। और जब तक 'मैं' होगा, तब तक परमात्मा नहीं मिलेगा।
इसलिए कबीर ने कहा है, 'प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाय। प्रेम की गली बहुत संकरी है, उसमें दो नहीं बन सकते। या तो तुम बन सकते हो या परमात्मा बन सकता है। और जब तक तुम हो, तब तक परमात्मा नहीं बन सकता। और जहां तुम विलीन हो गए, तब परमात्मा है।
यह जो हमारा अहंकार है, यह केवल हमारा अज्ञान है। इस अज्ञान के कारण हमारे जीवन की बहुत-सी शक्तियों का दुरुपयोग होता है। अगर हम उनका सदुपयोग करें, तो अहंकार को पोषण नहीं मिलेगा और अहंकार धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगा।
तो जिसको मैंने जीवन-शुद्धि के लिए तीन प्रयोग कहे हैं, अगर वे तीन प्रयोग चलें-- शरीर-शुद्धि का, विचार-शुद्धि का और भाव-शुद्धि का--तो उन तीनों प्रयोगों को करते-करते पता चलेगा, अहंकार विलीन हो गया।
क्रोध विलीन नहीं होगा इस अर्थों में, अहंकार विलीन हो जाएगा। क्रोध की शक्ति नए रूपों में मौजूद रहेगी। अहंकार की कोई शक्ति मौजूद नहीं रह जाएगी। जब अहंकार विलीन होगा, तो कुछ पीछे, रेसिडयू जिसको कहें, पीछे कुछ बचा हुआ कुछ भी नहीं रहेगा। क्रोध या सेक्स विलीन नहीं होते इस अर्थों में, ट्रांसफार्म होते हैं। दूसरी शक्ल में वे मौजूद रहेंगे। क्रोध की शक्ति कायम रहेगी। दूसरा प्रयोग करती रहेगी। हो सकता है, करुणा बन जाए, लेकिन शक्ति वही रहेगी।
और इस जगत में जो बहुत क्रोधी हैं, अगर उनकी शक्ति परिवर्तित हो, तो उतनी ही करुणा से भर सकते हैं, क्योंकि शक्ति नया रूप ले लेगी। शक्ति नष्ट नहीं होती, नए रूप ले लेती है। जैसा मैंने कहा कि जो बहुत कामुक हैं, बहुत सेक्सुअल हैं, वे ही लोग ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हैं। क्योंकि वह जो सेक्स की उनकी शक्ति है, वही समपरिवर्तित होकर उनके लिए ब्रह्मचर्य बन जाती है।
लेकिन अहंकार जब विलीन होता है, तो किसी में परिणत नहीं होता। क्योंकि वह केवल अज्ञान था। उसकी परिणति का कोई सवाल नहीं, वह केवल भ्रम था। जैसे अंधेरे में किसी ने रस्सी को सांप समझा हो। और जब पास जाकर देखे कि रस्सी है, सांप नहीं है, और हम पूछें कि सांप का क्या हुआ? तो हम कहेंगे, सांप का कुछ भी नहीं हुआ, क्योंकि सांप था ही नहीं। उसके परिवर्तन का कोई सवाल नहीं है। वैसे ही अहंकार आत्मा को भ्रांत रूप से समझने का परिणाम है। वह आत्मा की भ्रांति है, आत्मा का इलूजरी, भ्रामक दर्शन है। जैसे रस्सी में सांप दिख जाए, ऐसा आत्मा में अहंकार दिख रहा है। जब हम आत्मा के करीब पहुंचेंगे, तो हम पाएंगे, अहंकार तो नहीं है। वह किसी चीज में परिणत नहीं होगा। परिणति का कोई सवाल ही नहीं था, वह था ही नहीं। वह केवल भ्रम था और दिखायी पड़ता था।
अहंकार अज्ञान है, शक्ति नहीं है। लेकिन अज्ञान अगर हो, तो शक्तियों का दुरुपयोग करवा देता है। क्योंकि अज्ञान में क्या होगा? अज्ञान शक्तियों का दुरुपयोग करवा सकता है।
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