" ज्ञानी वही है , जिसने जागकर देखा कि पाने को यंहा कुछ भी नहीं है । जिसे हम पाने चले है वह पाया हुआ है ।फिर आश्रय की भी क्या खोज ! फिर आदमी निराश्रय निरालंब होने को तत्पर हो जाता है। उस निरालंब दशा का नाम ही सन्यास है ।ओशो : अष्टावक्र :महागीता"
इसीलिए कहती हूँ ................... ह्रदय के द्वार खुले रखना ,पता नहीं कब कहाँ से उस परम कि अनुकम्पा कि वर्षा हो जाये , और आपकी हर जिज्ञासा शांत हो जाये , आपकी हर जिज्ञासा आपके मन और मन से अधिक मस्तिष्क के अंतर्द्वंद को दर्शात है। समुद्र के पानी में जितनी उथल पुथल उतना ही वो अशांत होता है।
जिज्ञासा शांत होने से इस भ्रम में मत रहना कि आपके मस्तिष्क से सवाल निकलते रहेंगे और इधर से कोई बैठा आपके प्रश्नो के उत्तर देता रहेगा। नहीं नहीं , उल्टा होगा। आपकी जिज्ञासा का स्रोत ही सूख जायेगा फिर न नदी बनेगी और न समंदरमे अनवरत संदेह की लहरे उठेंगी।
अपना ह्रदय स्वयं टटोले , कितना ह्रदय जिज्ञासु है और कितना मस्तिष्क में उथल पुथल। ये मस्तिष्क छद्म करने में माहिर है , आपको बहलता रहता है , अपने बुध्ही जनित तर्कों से आपको भटकता रहता है। अनजाने में आप स्वयं से ज्यादा दुसरो कि जिज्ञासा शांत करने का माध्यम बन जाते है।
जरा सोचे !
आपकी अपनी जिज्ञासा शांत होने का जो रास्ता है , वो ही दुसरो की भी जिज्ञासा शांत होने का रास्ता है।
क्षणिक सुख है , किसी ने कुछ आपसे पूछा और आपने तुरंत समाधान बता दिया पर ये प्रक्रिया अनवरत है। कभी न समाप्त होने वाली। बेहतर है कि अपनी जिज्ञासा अपनी भाव साधना से दूर करे , और दुसरो को भी यही सलाह दें। किसी की भी जीवन यात्रा का किसी अन्य कि जीवन यात्रा से कोई तुलना नहीं है। जरुरी नहीं कि आपका समाधान अगले का भी समाधान हो , यहाँ रेडीमेड कुछ नहीं , अपनी अपनी सिलाई खुद ही करनी है।अपनी अपनी यात्रा है। बाकी सभी सहयात्री है। हमेशा इस तथ्य को ध्यान में रखे। भ्रामक स्थितियों में अपने को कमल के सामान स्वक्छ रखना ही किसी जिज्ञासु की साधना का पहला चरण हो सकता है। दूसरा , अवसर को पहचानने कि कला। पृकृति अवसर देती है , किसी भी रूप में आपके लिए वो आपका पथ प्रशस्त करती है। उसपे चलना आपका कार्य है , यदि आप चुक गए तो वो फिर फिर अवसर लाएगी। तब तक जब तक आपको गंतव्य तक न ले गए।
सब कुछ इतना मौन में घटता है कि यदि आप मौन का अभ्यास नहीं करेंगे तो आप हर बार चूक जायेंगे। मौन का अभ्यास इसीलिए आवशयक है। ध्यान मौन की पहली सीढ़ी है। आपका मौन ही आपको आगे का रास्ता भी दिखायेगा।
ॐ प्रणाम
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