" आत्म पूजा उपनिषद " एक बहुत छोटा सा 17 श्लोकों वाला उपनिषद है
आत्म पूजा उपनिषद ज्ञान और भक्ति के वर्तुल को पूरा करता है , ये रहस्यमयी अदृश्य पायदान है , आध्यात्मि साधक प्रथम से लेकर अंतिम सूत्र तक एक एक को आध्यात्मिक तल मान के चलें -
1- आत्मपूजा उपनिषद के पहले श्लोक -
" ॐ तस्य निश्चिन्त्नम ध्यानम"
( ॐ का निरंतर स्मरण ही उसका ध्यान है - Ceaseless remembrance of ॐ is His meditation )
1- OM! TASYA NISHCHINTANAM DHYANAM
AUM! MEDITATION IS THE CONSTANT CONTEMPLATION OF THAT.
CESSATION OF THE CAUSE OF ALL ACTIONS IS AAWAHANAM -- THE INVOCATION.
NON-WAVERING KNOWING IS ASANA -- THE POSTURE.
THE UPWARD FLOW OF THE MIND IS PADDYAM -- THE WATER OF DIVINE WORSHIP.
MIND CONSTANTLY ARROWED TOWARDS THAT IS ARGHYAM -- THE OFFERING.
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AUM! MEDITATION IS THE CONSTANT CONTEMPLATION OF THAT.
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2-आत्म पूजा उपनिषद के दूसरे श्लोक -
सर्वकर्म निराकरण आवाहनम ( सब कर्मों के कारण की समाप्ति ही आवाहन है - cessation of the cause of all actions is the invocation or avahanm )
2- SARVA KARMA NIRAAKARANAM AAWAHANAMCESSATION OF THE CAUSE OF ALL ACTIONS IS AAWAHANAM -- THE INVOCATION.
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3- "आत्म पूजा उपनिषद" के तीसरे श्लोक
निश्चलं ज्ञानं आसनम ( निश्चल ज्ञान ही आसन है - non-wavering knowing is Asan or the posture )
3- NISCHAL GYANAM ASANAMNON-WAVERING KNOWING IS ASANA -- THE POSTURE.
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4- "आत्म पूजा उपनिषद" के चौथे श्लोक-
उन्मनि भावः पाद्यम ( मन का ऊपर की ओर बहना ही पाद्यम है, परमात्मा की पूजा के लिये जल है - the upward flow of the mind is "padyam" the holy water for divine worship )
4-UNMANI BHAAVAH PADDYAMTHE UPWARD FLOW OF THE MIND IS PADDYAM -- THE WATER OF DIVINE WORSHIP.
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5- "आत्म पूजा उपनिषद" के पांचवें श्लोक-
सदामनस्कं अघ्र्यम ( मन के तीर का निरंतर उसी की ओर लक्ष्य होना ही अघ्र्य है, अर्पण है. - mind constantly arrowed toward That is the offering, arghyam. )
5-SADAAMANSKAM ARGHYAMMIND CONSTANTLY ARROWED TOWARDS THAT IS ARGHYAM -- THE OFFERING.
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6- "आत्म पूजा उपनिषद" के छठे श्लोक -
सददीप्तिः अपार अमृतवृत्तिः स्नानम .( आंतरिक प्रकाश में तथा अंतर के अनंत अमृत में निरंतर केन्द्रित रहना ही पूजा की तैयारी के लिये स्नान है. - to be centered constantly in the inner illumination and in the unbounded inner nectar is the preparatory bath for the worship )
6-SADAADEEPTIH APAAR AMRIT VRITTIH SNAANAM
TO BE CENTERED CONSTANTLY IN THE INNER ILLUMINATION AND IN THE INFINITE INNER NECTAR IS THE PREPARATORY BATH FOR THE WORSHIP.
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7-"आत्म पूजा उपनिषद" के सातवें श्लोक -
सर्वत्र भावना गन्धः ( सब जगह उसी की अनुभूति ही एकमात्र गंध है. -
the feeling of That everywhere is gandha, the only fragrance )
7-SARVATRA BHAVANA GANDHAH
THE FEELING OF THAT EVERYWHERE IS GANDHA -- THE ONLY FRAGRANCE.
TO BE ESTABLISHED IN ONE'S OWN WITNESSING NATURE IS AKSHAT -- THE UNPOLISHED AND UNBROKEN RICE USED FOR THE WORSHIP.
WHAT ARE THE FLOWERS FOR THE WORSHIP? -- TO BE FILLED WITH CONSCIOUSNESS.
10- "आत्म पूजा उपनिषद" के दसवें श्लोक -
चिदाग्नि स्वरूपं धूपः
( स्वयं के भीतर चैतन्य की अग्नि को जलाना ही धूप है.- igniting fire of consciousness within is "dhoop" for the worship. )
10-CHIDAGNI SWAROOPAM DHOOPAH
TO CREATE THE FIRE OF AWARENESS IN ONESELF IS DHOOP, THE INCENSE.
TO BE ESTABLISHED IN THE SUN OF AWARENESS IS THE ONLY LAMP.
ACCUMULATION OF THE NECTAR OF THE INNER FULL MOON IS NAIVEDYA, THE FOOD OFFERING.
STILLNESS IS PRADAKSHINA, THE MOVEMENT AROUND THAT FOR WORSHIP.
THE FEELING OF I AM THAT -- SO-AHAM -- IS THE SALUTATION.
SILENCE IS THE PRAYER.
TOTAL CONTENTMENT IS VISARJAN, THE DISPERSION OF THE WORSHIP RITUAL. ONE WHO UNDERSTANDS SO IS AN ENLIGHTENED ONE.
I AM THAT ABSOLUTELY PURE BRAHMAN: TO REALIZE THIS IS THE ATTAINMENT OF LIBERATION.
THE FEELING OF THAT EVERYWHERE IS GANDHA -- THE ONLY FRAGRANCE.
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8- "आत्म पूजा उपनिषद" के आठवें श्लोक -
दृक स्वरूप अवस्थानम अक्षताः ( अपने भीतर साक्षी स्वभाव में स्थिर हो जाना ही अक्षत है, जो कि बिना निखारा व बिना टूटा ही पूजा में काम आता है - to be established in one own witnessing nature is " akshat " the unpolished and unbroken rice used for the worship )
8-DRIK SWAROOP AWASTHANAM AKSHATAHAदृक स्वरूप अवस्थानम अक्षताः ( अपने भीतर साक्षी स्वभाव में स्थिर हो जाना ही अक्षत है, जो कि बिना निखारा व बिना टूटा ही पूजा में काम आता है - to be established in one own witnessing nature is " akshat " the unpolished and unbroken rice used for the worship )
TO BE ESTABLISHED IN ONE'S OWN WITNESSING NATURE IS AKSHAT -- THE UNPOLISHED AND UNBROKEN RICE USED FOR THE WORSHIP.
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9- "आत्म पूजा उपनिषद" के नौवें श्लोक -
चिदाप्तिः पुष्पम्
( चेतना से भरे होना ही पूजा के लिये पुष्प हैं - to be filled with consciousness are flowers for the worship )
9-CHIDAAPTIH PUSHPAMचिदाप्तिः पुष्पम्
( चेतना से भरे होना ही पूजा के लिये पुष्प हैं - to be filled with consciousness are flowers for the worship )
WHAT ARE THE FLOWERS FOR THE WORSHIP? -- TO BE FILLED WITH CONSCIOUSNESS.
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10- "आत्म पूजा उपनिषद" के दसवें श्लोक -
चिदाग्नि स्वरूपं धूपः
( स्वयं के भीतर चैतन्य की अग्नि को जलाना ही धूप है.- igniting fire of consciousness within is "dhoop" for the worship. )
TO CREATE THE FIRE OF AWARENESS IN ONESELF IS DHOOP, THE INCENSE.
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11- "आत्म पूजा उपनिषद" के ग्यारहवां श्लोक -
चिदादित्य स्वरूपम् दीपः ( चैतन्य के सूर्य में स्थित हो जाना ही पूजा के लिये दीपक है. - to be rooted in the sun of consciousness is the lamp or Deepak for the worship )
11-CHIDADITYA SWAROOPAM DEEPAHचिदादित्य स्वरूपम् दीपः ( चैतन्य के सूर्य में स्थित हो जाना ही पूजा के लिये दीपक है. - to be rooted in the sun of consciousness is the lamp or Deepak for the worship )
TO BE ESTABLISHED IN THE SUN OF AWARENESS IS THE ONLY LAMP.
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12- आत्म पूजा उपनिषद" के बारहवें श्लोक -
परिपूर्णचन्द्र अमृत रसैकीकरणं नैवेद्यम्.
( अंतस के पूर्ण चन्द्र के अमृत को इकट्ठा करना ही नैवेद्य है. - collecting the nectar of full moon of witnessing shining in the sky of consciousness is the oblation or bhog for the worship.)
12-PARIPOORN CHANDRA AMRIT RASAIKI KARANAM NAIVEDYAMपरिपूर्णचन्द्र अमृत रसैकीकरणं नैवेद्यम्.
( अंतस के पूर्ण चन्द्र के अमृत को इकट्ठा करना ही नैवेद्य है. - collecting the nectar of full moon of witnessing shining in the sky of consciousness is the oblation or bhog for the worship.)
ACCUMULATION OF THE NECTAR OF THE INNER FULL MOON IS NAIVEDYA, THE FOOD OFFERING.
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13- "आत्म पूजा उपनिषद" के तेरहवें श्लोक -
निश्चलत्वं प्रदक्षिणं
( निश्चलता ही प्रदक्षिणा है, अर्थात उसकी पूजा हेतु परिक्रमा है - inner stillness is the revolution or parikrma for the worship of That )
13-NISCHALATWAM PRADAKSHINAMनिश्चलत्वं प्रदक्षिणं
( निश्चलता ही प्रदक्षिणा है, अर्थात उसकी पूजा हेतु परिक्रमा है - inner stillness is the revolution or parikrma for the worship of That )
STILLNESS IS PRADAKSHINA, THE MOVEMENT AROUND THAT FOR WORSHIP.
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14- "आत्म पूजा उपनिषद" के चौदहवें श्लोक -
सोहं भावो नमस्कारः
( मैं वही हूँ, यह भाव ही नमस्कार है - feeling of 'Iam That' is the regard or salutation for the worship )
14-SOHAM BHAVO NAMASKARAHसोहं भावो नमस्कारः
( मैं वही हूँ, यह भाव ही नमस्कार है - feeling of 'Iam That' is the regard or salutation for the worship )
THE FEELING OF I AM THAT -- SO-AHAM -- IS THE SALUTATION.
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15-"आत्म पूजा उपनिषद" के पन्द्रहवें श्लोक -
मौनं स्तुतिः ( मौन ही प्रार्थना है - silence is the prayer )
15-MOUNAM STUTIHIमौनं स्तुतिः ( मौन ही प्रार्थना है - silence is the prayer )
SILENCE IS THE PRAYER.
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16- "आत्म पूजा उपनिषद" के सोलहवें श्लोक -
सर्व संतोषोविसर्जनमिति स एवं वेद. ( पूर्ण संतोष विसर्जन है, अर्थात पूजा की क्रिया की समाप्ति है, जो ऐसा जानता है, वही ज्ञान को उपलब्ध है - complete contentment is the dissolution, the end of the process of the worship. One, who knows this, has attained the ultimate understanding. )
16-SARVA SANTOSHO VISARJANAMITI YA AEVAM VEDAसर्व संतोषोविसर्जनमिति स एवं वेद. ( पूर्ण संतोष विसर्जन है, अर्थात पूजा की क्रिया की समाप्ति है, जो ऐसा जानता है, वही ज्ञान को उपलब्ध है - complete contentment is the dissolution, the end of the process of the worship. One, who knows this, has attained the ultimate understanding. )
TOTAL CONTENTMENT IS VISARJAN, THE DISPERSION OF THE WORSHIP RITUAL. ONE WHO UNDERSTANDS SO IS AN ENLIGHTENED ONE.
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"आत्म पूजा उपनिषद" के सत्रहवें और अंतिम श्लोक -
सर्व निरामय परिपूर्णोअहमस्मीति मुमुक्षनां मोक्षैक सिद्धिर्भवति. ( मैं ही वह परिपूर्ण ब्रह्म हूँ, ऐसा जान लेना ही मोक्षोपल्ब्धि है - realizing the boundless, absolute, interconnected, indestructible and all pervading nature of the self is the salvation. )
17-SARVA NIRAMAYA PARIPOORNOHAMASMITI MUMUKSHUNAM MOKSHAIK SIDDHIRBHAWATIसर्व निरामय परिपूर्णोअहमस्मीति मुमुक्षनां मोक्षैक सिद्धिर्भवति. ( मैं ही वह परिपूर्ण ब्रह्म हूँ, ऐसा जान लेना ही मोक्षोपल्ब्धि है - realizing the boundless, absolute, interconnected, indestructible and all pervading nature of the self is the salvation. )
I AM THAT ABSOLUTELY PURE BRAHMAN: TO REALIZE THIS IS THE ATTAINMENT OF LIBERATION.
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the end
Collective Talks on Sanskrit and Hindi of Anant shree / Shree Kunal ji at 2007
source youtube https://www.youtube.com/channel/UCx7h6hya-Z1iLCdECzbLCRg
and
source youtube https://www.youtube.com/channel/UCx7h6hya-Z1iLCdECzbLCRg
and
another Source Sutra collected on a set of two books :
The Ultimate Alchemy Volume Vol. 1 & 2-Osho.
Here ends the Atm puja Upanishad,
as contained in Mandukyopnishad, at Atharva-Veda.
where described many ways Soul is Supreme and drop of ultimate Origin Ocean
as contained in Mandukyopnishad, at Atharva-Veda.
where described many ways Soul is Supreme and drop of ultimate Origin Ocean
ATI Sundar vichar ,Om Om Om
ReplyDeleteaabhar , pranam
DeleteOm Shanti....
ReplyDeletePranam
ReplyDeleteअति उत्तम और अध्यात्म अमृत रस से परिपूर्ण। सादर नमन
ReplyDeleteAdhboot, Osho naman.
ReplyDeleteयह किस वेद से उद्धृत है?
ReplyDeleteContain in Mandukyopnishad - Atharveda
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