समझ न पाया बालक मन जो , जरा मुझे भी इसका गणित समझा !
मैंने कहा 'सच एक' , तुमने कहा 'एक सच', उसने भी कहा 'एक सच' ..
फिर भी लहू पे लहू बहा दिया , न खुद जिए न किसी को जीने दिया !
याद करो ! जब ये धर्म के टुकड़े न थे; एक ही माँ और एक पिता थे।।
कैसा धर्मानुसरण , कैसी धार्मिकता , कैसी मनुष्यता या के दानवता
समझ पे लगा के ताले , आये हो जिरह करने ,कहते पहले समझो मुझे।।
और मुझे समझ के और कुछ समझने का साहस न करना , ये भी कहते,
ये भी कहते जाते वो मैं ही एक सच हूँ , सिर्फ मुझे जानो मुझे ही मानो।।
ये कैसा उपहास है ! क्या दिमाग के साथ अपने दिल को भी बंद कर दिया
जहाँ जहाँ तुमने कदम डाले , मनुष्यता का लाल खून ही खून फैला दिया।।
धर्म.राजनीती.कला.व्यापार.संगीत.सम्बन्ध.प्रेम.प्रकृति और फिर परम सब रंग डाले इस लहू से तुमने ओ दुर्बुध्हि ये क्या किया! ये क्या किया?
न खुद ही चैन से जी सके पल भर भी , दूजे के जीवन-हक़ का भी खूं किया
रे ! आधे-अधूरे मानव, तेरी अधूरी इक्छाओं ने .. सब आधा-आधा कर डाला।।
ॐ ॐ ॐ
मैंने कहा 'सच एक' , तुमने कहा 'एक सच', उसने भी कहा 'एक सच' ..
फिर भी लहू पे लहू बहा दिया , न खुद जिए न किसी को जीने दिया !
याद करो ! जब ये धर्म के टुकड़े न थे; एक ही माँ और एक पिता थे।।
कैसा धर्मानुसरण , कैसी धार्मिकता , कैसी मनुष्यता या के दानवता
समझ पे लगा के ताले , आये हो जिरह करने ,कहते पहले समझो मुझे।।
और मुझे समझ के और कुछ समझने का साहस न करना , ये भी कहते,
ये भी कहते जाते वो मैं ही एक सच हूँ , सिर्फ मुझे जानो मुझे ही मानो।।
ये कैसा उपहास है ! क्या दिमाग के साथ अपने दिल को भी बंद कर दिया
जहाँ जहाँ तुमने कदम डाले , मनुष्यता का लाल खून ही खून फैला दिया।।
धर्म.राजनीती.कला.व्यापार.संगीत.सम्बन्ध.प्रेम.प्रकृति और फिर परम सब रंग डाले इस लहू से तुमने ओ दुर्बुध्हि ये क्या किया! ये क्या किया?
न खुद ही चैन से जी सके पल भर भी , दूजे के जीवन-हक़ का भी खूं किया
रे ! आधे-अधूरे मानव, तेरी अधूरी इक्छाओं ने .. सब आधा-आधा कर डाला।।
ॐ ॐ ॐ
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