Monday, 31 March 2014

रे ! आधे-अधूरे मानव , सीमा-रहित तेरी मूर्खता ( Kavita )

समझ न पाया बालक मन जो , जरा मुझे भी इसका गणित समझा !
मैंने कहा 'सच एक' , तुमने कहा 'एक सच', उसने भी कहा 'एक सच' ..

फिर भी लहू पे लहू बहा दिया , न खुद जिए न किसी को जीने दिया !
याद करो ! जब ये धर्म के टुकड़े न थे; एक ही माँ और एक पिता थे।। 



कैसा धर्मानुसरण , कैसी धार्मिकता , कैसी मनुष्यता या के दानवता 
समझ पे लगा के ताले , आये हो जिरह करने ,कहते पहले समझो मुझे।।

और मुझे समझ के और कुछ समझने का साहस न करना , ये भी कहते, 
ये भी कहते जाते वो मैं ही एक सच हूँ , सिर्फ मुझे जानो मुझे ही मानो।। 



ये कैसा उपहास है ! क्या दिमाग के साथ अपने दिल को भी बंद कर दिया
जहाँ जहाँ तुमने कदम डाले , मनुष्यता का लाल खून ही खून फैला दिया।। 



Photo: सीमा-रहित तेरी मूर्खता :
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समझ न पाया बालक मन जो , जरा मुझे भी  इसका गणित समझा !
मैंने कहा 'सच  एक' , तुमने कहा 'एक सच',  उसने भी  कहा 'एक सच' ..

फिर भी लहू पे लहू  बहा दिया  , न खुद जिए न  किसी को जीने दिया !
याद करो ! जब  ये  धर्म के  टुकड़े न थे; एक ही माँ और एक पिता थे।। 

कैसा  धर्मानुसरण , कैसी धार्मिकता , कैसी मनुष्यता  या के  दानवता 
समझ पे लगा के ताले , आये हो जिरह करने  ,कहते  पहले समझो मुझे।।

और मुझे समझ के  और कुछ समझने का साहस न करना , ये भी  कहते, 
ये भी कहते जाते वो  मैं ही एक  सच  हूँ , सिर्फ   मुझे जानो मुझे ही मानो।। 

ये कैसा उपहास  है ! क्या दिमाग के साथ अपने  दिल को भी  बंद कर दिया 
जहाँ जहाँ तुमने कदम  डाले , मनुष्यता का  लाल  खून ही खून  फैला दिया।। 

धर्म.राजनीती.कला.व्यापार.संगीत.सम्बन्ध.प्रेम.प्रकृति और फिर परम 
सब रंग डाले  इस लहू से  तुमने  ओ  दुर्बुध्हि  ये क्या किया!  ये क्या किया? 

न खुद ही चैन से जी सके  पल भर भी , दूजे के जीवन-हक़ का भी खूं किया 
रे ! आधे-अधूरे मानव, तेरी अधूरी इक्छाओं ने .. सब आधा-आधा कर डाला।।

ॐ ॐ ॐ

र्म.राजनीती.कला.व्यापार.संगीत.सम्बन्ध.प्रेम.प्रकृति और फिर परम सब रंग डाले इस लहू से तुमने ओ दुर्बुध्हि ये क्या किया! ये क्या किया?
न खुद ही चैन से जी सके पल भर भी , दूजे के जीवन-हक़ का भी खूं किया
रे ! आधे-अधूरे मानव, तेरी अधूरी इक्छाओं ने .. सब आधा-आधा कर डाला।।



ॐ ॐ ॐ

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