ऐसा हुआ, बुद्ध की मृत्यु हुई। तो जब तक बुद्ध जीवित थे, किसी ने फिक्र भी न की थी, कि उनके वचनों का संग्रह हो जाए। बुद्ध जीवित थे, किसी को याद भी न आया। फिर अचानक होश हुआ, जैसे एक सपना टूटा। इतने बहुमूल्य वचन खो जाएंगे ऐसे ही। तो संग्रह ही करें ।
तो जो जाग चुके थे बुद्ध के समय में बुद्ध के बहुत शिष्य, जो बुद्धत्व को पा चुके थे, उनसे प्रार्थना की गई। उन्होंने कहा, हमने कुछ सुना ही नहीं, कि बुद्ध ने क्या कहा। यह बकवास बंद करो। बुद्ध कभी बोले ही नहीं। इनका तो उनके मौन से संबंध जुड़ गया था। तो उन्होंने कहा, हमने तो सुना ही नहीं, तुम भी क्या बात कर रहे हो? बुद्ध और बोले? कभी नहीं! बुद्धत्व के बाद चालीस साल चुप रहे, हमने तो चुप्पी सुनी।
बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। जिन पर भरोसा किया जा सकता था, जो जाग गए थे, जिनकी वाणी का मूल्य होता, जिनकी रिपोर्ट सही होने की संभावना थी, वे कहते हैं हमने सुना ही नहीं, कहां की बात कर रहे हो? सपने में हो?
उनमें जो परमज्ञानी था एक महाकाश्यप, उसने तो कहा-बुद्ध कभी हुए ही नहीं। किस की बात उठाते हो? कोई सपना देखा होगा!
यह तो द्वार बंद हो गया। जो सर्वाधिक कीमती व्यक्ति था महाकाश्यप, जिसको बुद्ध ने कहा था--जो मैं शब्द से दे सकता हूं, वह मैंने दूसरों को दे दिया महाकाश्यप, और जो शब्द से नहीं दिया जा सकता, वह मैं तुझे देता हूं। उस आदमी ने तो कह दिया, बुद्ध कभी हुए ही नहीं। कौन बोला? किसने सुना? कहां की बातें करते हो?
तब आनंद का सहारा लेना पड़ा। आनंद, बुद्ध के समय में ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ। वह अज्ञानी ही रहा। वह अंधेरे में ही रहा, उसने शून्य को नहीं सुना, उसने शब्द को सुना। लेकिन उसके पास पूरा संग्रह था। उसकी स्मृति ने सब सम्हालकर रखा था। उसने सब बोल दिया, सब संगृहीत कर लिया गया।
अब सवाल यह है, कि अगर आनंद भी ज्ञान को उपलब्ध हो गया होता बुद्ध के जीते, तो बुद्ध के संबंध में तुम्हें कुछ पता भी नहीं हो सकता था। रेखा भी न छूट जाती क्योंकि महाकाश्यप तो यह भी मानने को राजी नहीं कि यह आदमी कभी हुआ!
अज्ञानी आनंद की ही अनुकंपा है, कि बुद्ध के वचन संगृहीत हैं।
तो मेरे मौन को जो समझ सकते हैं, वे तो एक दिन कह देंगे कि यह आदमी कभी हुआ? कहां की बात कर रहे हो? यह कुर्सी सदा से खाली थी। सपना देखा है।
लेकिन जो नहीं मेरे मौन को समझ पा रहे हैं, मेरे शब्द को ही समझ सकते हैं, उनका भी उपयोग है। शायद वे ही उस शब्द की नौका को दूसरों तक पहुंचा देंगे। शब्द की नौका का प्रयोजन तो शून्य के तट पर लगना है। लक्ष्य तो शून्य है। लेकिन लक्ष्य तो मिलेगा, तब मिलेगा। आज तो नौका भी मिल जाए, तो काफी है।
Piv Piv Lagi Pyas - 04
तो जो जाग चुके थे बुद्ध के समय में बुद्ध के बहुत शिष्य, जो बुद्धत्व को पा चुके थे, उनसे प्रार्थना की गई। उन्होंने कहा, हमने कुछ सुना ही नहीं, कि बुद्ध ने क्या कहा। यह बकवास बंद करो। बुद्ध कभी बोले ही नहीं। इनका तो उनके मौन से संबंध जुड़ गया था। तो उन्होंने कहा, हमने तो सुना ही नहीं, तुम भी क्या बात कर रहे हो? बुद्ध और बोले? कभी नहीं! बुद्धत्व के बाद चालीस साल चुप रहे, हमने तो चुप्पी सुनी।
बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। जिन पर भरोसा किया जा सकता था, जो जाग गए थे, जिनकी वाणी का मूल्य होता, जिनकी रिपोर्ट सही होने की संभावना थी, वे कहते हैं हमने सुना ही नहीं, कहां की बात कर रहे हो? सपने में हो?
उनमें जो परमज्ञानी था एक महाकाश्यप, उसने तो कहा-बुद्ध कभी हुए ही नहीं। किस की बात उठाते हो? कोई सपना देखा होगा!
यह तो द्वार बंद हो गया। जो सर्वाधिक कीमती व्यक्ति था महाकाश्यप, जिसको बुद्ध ने कहा था--जो मैं शब्द से दे सकता हूं, वह मैंने दूसरों को दे दिया महाकाश्यप, और जो शब्द से नहीं दिया जा सकता, वह मैं तुझे देता हूं। उस आदमी ने तो कह दिया, बुद्ध कभी हुए ही नहीं। कौन बोला? किसने सुना? कहां की बातें करते हो?
तब आनंद का सहारा लेना पड़ा। आनंद, बुद्ध के समय में ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ। वह अज्ञानी ही रहा। वह अंधेरे में ही रहा, उसने शून्य को नहीं सुना, उसने शब्द को सुना। लेकिन उसके पास पूरा संग्रह था। उसकी स्मृति ने सब सम्हालकर रखा था। उसने सब बोल दिया, सब संगृहीत कर लिया गया।
अब सवाल यह है, कि अगर आनंद भी ज्ञान को उपलब्ध हो गया होता बुद्ध के जीते, तो बुद्ध के संबंध में तुम्हें कुछ पता भी नहीं हो सकता था। रेखा भी न छूट जाती क्योंकि महाकाश्यप तो यह भी मानने को राजी नहीं कि यह आदमी कभी हुआ!
अज्ञानी आनंद की ही अनुकंपा है, कि बुद्ध के वचन संगृहीत हैं।
तो मेरे मौन को जो समझ सकते हैं, वे तो एक दिन कह देंगे कि यह आदमी कभी हुआ? कहां की बात कर रहे हो? यह कुर्सी सदा से खाली थी। सपना देखा है।
लेकिन जो नहीं मेरे मौन को समझ पा रहे हैं, मेरे शब्द को ही समझ सकते हैं, उनका भी उपयोग है। शायद वे ही उस शब्द की नौका को दूसरों तक पहुंचा देंगे। शब्द की नौका का प्रयोजन तो शून्य के तट पर लगना है। लक्ष्य तो शून्य है। लेकिन लक्ष्य तो मिलेगा, तब मिलेगा। आज तो नौका भी मिल जाए, तो काफी है।
Piv Piv Lagi Pyas - 04
No comments:
Post a Comment