कुछ और लिखने का दिल किया ,सबसे पहले हजारो धागो कि बुनावट वाले अध्यात्मिक रास्ते और उनपे चलने वालो के विभिन्न भिन्न भिन्न अनुभव ... सब एक ही यात्रा की अलग-अलग पर मिली जुली कड़िया है ,
कई जगह लोग वाद विवाद में अटक के मूल से भटक जाते है। मेरा कोई संस्थान नहीं ना ही किसी संस्थान से जुड़ाव , न ही किसी एक गुरु जी के साथ सिमित शारीरिक शक्तियों के साथ प्रतिबधता है , मेरा साथ सीधा परमात्मा से है और प्रकर्ति से है , मेरे अनुभव बहुत नैसर्गिक है सिर्फ मेरी निजी यात्रा की परिणिति है। हो सकता है किसी को प्रेरणा मिले , और हो सकता है कि न भी मिले। हाँ मैं ये नहीं कह सकती कि मैंने किसी का सहयोग नहीं लिया , पर मैंने स्वयं इसकी खोज में कोई विशेष प्रयास नहीं किया , तरंगो से जुड़ाव रहा है मेरा और गुरु श्रंखला में हर एक से नैसर्गिक मित्रभाव है । हर एक ने मेरी मदद की है। प्रकृति ने सुलभ किया सब कुछ। प्रकृति का सहयोग प्राथमिक है। आभारी हूँ
इसीलिए मैं ये मानती हूँ की तरंगो की इस यात्रा में तरंगे ही सहयोगी होती है , जो आपके हृदय के दवरा अपना रास्ता बनाती है और जब वो आपके ह्रदय में उचित अवसर और वातावरण के मध्य प्रवेश पाती है फिर वो सब मिल कर परम से आपकी भेंट करवाती है।
अन्य सब भटकाव ही है
कुछ मन के भटकाव और आकर्षण अति सामान्य है वो मैं सबसे बांटना चाहती हूँ
ये भी सच है योग ध्यान , कुण्डलनी और चक्र जागरण इन सबका योगदान अप्रत्य़क्ष और प्रत्यक्ष रूप से है .... जिसको कितना उपयोग करना है ये भी आपका ही अति संवेदनशील तंत्र आपको सूचित करता है। अक्सर लोग भटकते है ............ क्यूंकि विषय और वस्तु मिले जुले से है , इंद्रधनुष जैसे , जैसे ध्यान योग , योग निंद्रा , प्राणायाम , ध्यान की अलग अलग पद्धतिया , और सुनिये ! चक्र वो भी सात , और हर चक्र का अलग महत्त्व , हर चक्र को साधना फिर सहस्त्रधार तक पहुंचना।
.... इसके बाद संदेह का अंत नहीं और बढ़ता है , क्यूंकि रीढ़ तो छूट ही गयी ... शुरू हो जाता है कुण्डलिनी जागरण विधियों में भटकना
जो सबसे प्रमुख है जो अध्यात्म का मेरुदंड बताया गया है एक चक्र साधना और दूसरा कुण्डलिनी जागरण … काफी जादू भरा सफ़र रुपहला चमकदार लगता है , इसी लिए कई बार लोग अद्भुत दृश्य देखने लगते है , जिसमे दिमाग प्रमुख भूमिका निभाता है |और मैं आपको बताऊँ गलत या सही का प्रश्न नहीं , पर साधना को तथा उसकी मात्र को अपने सन्दर्भ में समझना अति आवश्यक है , ये सिर्फ और सिर्फ साधक ही समझ सकता है कि उसको कितना चाहिए।
कई लोग अन्य साधनायों में भी उलझते देखे गए है जैसे तंत्र मन्त्र साधना , जादू टोने कि साधना कहीं से भी यदि सही सीधा रास्ता नहीं पकड़ा तो यही हर्ष होता है - जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए न !
जब की अध्यात्म का रास्ता अति सरल है , भाव युक्त है , प्रेमयुक्त है , अति मधुर और खुशबूदार है , ये आपको साफ़ सुथरा और ह्रदय से सहज बनाता है , जिसके परिणाम आपको दिखने भी लग जाते है। कोई जादू नहीं सिर्फ प्रकर्ति सहयोग करती है आपको वो सब ज्ञान और अनुभव सहज सुलभ होता है जो भी आपके लिए आवश्यक है और अनावश्यक स्वयं ही समाप्त हो जाते है। उस रास्ते पे खुशबु और भारहीनता आप स्वयं महसूस कर सकते है ....
सब कुछ परिस्थितियां और कारन मायाजनित उत्पन्न होते है और समाप्त भी होते है। आपका धैर्य और एक छोर इस धागे का आप स्वयं पे और दूसरा छोर इस डोर का परम के पास ..... आपकी यात्रा को पूर्ण करता है। और इस तरह आपको बिखरी हुई कड़ियों के सिलसिले मिलने लगते है ,चलिए देखें कैसे ये बिखरी कड़िया एक दूसरे में जुड़ती चली जाती है .....
* निंद्रा वो है जिसमे आप दूसरे सपने में गिर जाते है , योग निंद्रा वो है जो आपको सपने में गिरने नहीं देती , आपमें सजगता बनी रहती है। ये तो एक सत्य है इसी का दूसरा सत्य है कि शारीरिक प्राकृतिक एक प्राकृतिक जरुरत है शरीर की .... और .... योग निंद्रा अध्यात्म की क्यूंकि योग निंद्रा ही आपको सजगता का मूल मन्त्र देती है।
* फिर ध्यान है योग निंद्रा में आप ध्यान कि तरह ही आंतरिक यात्रा में रहते है ये आंतरिक यात्रा आपको सोर्स से जुड़ने का जरिया देती है।
* फिर ध्यान भी कई तरह के है , शरीर में उपस्थित चक्रो और आपके आंतरिक रंगों के ताल मेल कि उपस्थिति के अनुसार कौन सा ध्यान आपकेलिये ज्यादा प्रभावी होगा। .
फिर ये भी सच है कि ध्यान ही आपकी आंतरिक यात्रा और उस से जुड़ने कि प्रक्रिया में मदद करता है।
कुछ गलत कहाँ ? सब सच ही तो है , इसीकारण लोग तर्क में उलझ जाते है , क्यूंकि अपनी अपनी दृष्टि से सब सही ही होते है।
यहाँ प्रश्न सही और गलत का नहीं
यहाँ प्रश्न सही राह पकड़ना और उस सही राह पे धैर्य पूर्वक चलने का है , और इस राह में मौन इसीलिए कारगर है क्यूंकि ये आपमें सुनने कि शक्ति बढता है और तर्क शक्ति क्षीण करता है। वास्तव में तर्क आपको कहीं नहीं ले जा रहे , सिर्फ और सिर्फ भटका देते है। यथासम्भव तर्क से बचना ही अच्छा है।
जब मौन मुखर होता है तो ध्यान स्वाभाविक रूप से घट जाता है ,मस्तिष्क को विराम मिलता है। … जब ध्यान स्वाभाविक होता है तो योगनिन्द्रा भी सहज घटित होती है। और जब योग और योग निंद्रा घटित होने लगे तब आपसे वो आपका वांछित फिर दूर नहीं रहता। वो तो है ही आपके अंदर , बस दिखने लग जाता है।
दो बांते अति प्रमुख पहला मौन और दूसरा ध्यान। आपका ह्रदय आपका संस्थान है और आपका मस्तिष्क आपका गुरु , जो आज्ञां चक्र तक तो ले ही आएगा ,
इसके बाद कि छलांग का कोई रास्ता नहीं
कोई गुरु नहीं ...................
कोई संस्थान नहीं .....................
बस आप और आपकी पूर्ण विश्वास के साथ ... छलाँग ...... उस अथाह की तरफ ...............उस अनंत की गोद में .......... उस परम कि तरफ।
शुभकामनाये ... शुभेक्षा।
ॐ प्रणाम
कई जगह लोग वाद विवाद में अटक के मूल से भटक जाते है। मेरा कोई संस्थान नहीं ना ही किसी संस्थान से जुड़ाव , न ही किसी एक गुरु जी के साथ सिमित शारीरिक शक्तियों के साथ प्रतिबधता है , मेरा साथ सीधा परमात्मा से है और प्रकर्ति से है , मेरे अनुभव बहुत नैसर्गिक है सिर्फ मेरी निजी यात्रा की परिणिति है। हो सकता है किसी को प्रेरणा मिले , और हो सकता है कि न भी मिले। हाँ मैं ये नहीं कह सकती कि मैंने किसी का सहयोग नहीं लिया , पर मैंने स्वयं इसकी खोज में कोई विशेष प्रयास नहीं किया , तरंगो से जुड़ाव रहा है मेरा और गुरु श्रंखला में हर एक से नैसर्गिक मित्रभाव है । हर एक ने मेरी मदद की है। प्रकृति ने सुलभ किया सब कुछ। प्रकृति का सहयोग प्राथमिक है। आभारी हूँ
इसीलिए मैं ये मानती हूँ की तरंगो की इस यात्रा में तरंगे ही सहयोगी होती है , जो आपके हृदय के दवरा अपना रास्ता बनाती है और जब वो आपके ह्रदय में उचित अवसर और वातावरण के मध्य प्रवेश पाती है फिर वो सब मिल कर परम से आपकी भेंट करवाती है।
अन्य सब भटकाव ही है
कुछ मन के भटकाव और आकर्षण अति सामान्य है वो मैं सबसे बांटना चाहती हूँ
ये भी सच है योग ध्यान , कुण्डलनी और चक्र जागरण इन सबका योगदान अप्रत्य़क्ष और प्रत्यक्ष रूप से है .... जिसको कितना उपयोग करना है ये भी आपका ही अति संवेदनशील तंत्र आपको सूचित करता है। अक्सर लोग भटकते है ............ क्यूंकि विषय और वस्तु मिले जुले से है , इंद्रधनुष जैसे , जैसे ध्यान योग , योग निंद्रा , प्राणायाम , ध्यान की अलग अलग पद्धतिया , और सुनिये ! चक्र वो भी सात , और हर चक्र का अलग महत्त्व , हर चक्र को साधना फिर सहस्त्रधार तक पहुंचना।
.... इसके बाद संदेह का अंत नहीं और बढ़ता है , क्यूंकि रीढ़ तो छूट ही गयी ... शुरू हो जाता है कुण्डलिनी जागरण विधियों में भटकना
जो सबसे प्रमुख है जो अध्यात्म का मेरुदंड बताया गया है एक चक्र साधना और दूसरा कुण्डलिनी जागरण … काफी जादू भरा सफ़र रुपहला चमकदार लगता है , इसी लिए कई बार लोग अद्भुत दृश्य देखने लगते है , जिसमे दिमाग प्रमुख भूमिका निभाता है |और मैं आपको बताऊँ गलत या सही का प्रश्न नहीं , पर साधना को तथा उसकी मात्र को अपने सन्दर्भ में समझना अति आवश्यक है , ये सिर्फ और सिर्फ साधक ही समझ सकता है कि उसको कितना चाहिए।
कई लोग अन्य साधनायों में भी उलझते देखे गए है जैसे तंत्र मन्त्र साधना , जादू टोने कि साधना कहीं से भी यदि सही सीधा रास्ता नहीं पकड़ा तो यही हर्ष होता है - जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए न !
जब की अध्यात्म का रास्ता अति सरल है , भाव युक्त है , प्रेमयुक्त है , अति मधुर और खुशबूदार है , ये आपको साफ़ सुथरा और ह्रदय से सहज बनाता है , जिसके परिणाम आपको दिखने भी लग जाते है। कोई जादू नहीं सिर्फ प्रकर्ति सहयोग करती है आपको वो सब ज्ञान और अनुभव सहज सुलभ होता है जो भी आपके लिए आवश्यक है और अनावश्यक स्वयं ही समाप्त हो जाते है। उस रास्ते पे खुशबु और भारहीनता आप स्वयं महसूस कर सकते है ....
सब कुछ परिस्थितियां और कारन मायाजनित उत्पन्न होते है और समाप्त भी होते है। आपका धैर्य और एक छोर इस धागे का आप स्वयं पे और दूसरा छोर इस डोर का परम के पास ..... आपकी यात्रा को पूर्ण करता है। और इस तरह आपको बिखरी हुई कड़ियों के सिलसिले मिलने लगते है ,चलिए देखें कैसे ये बिखरी कड़िया एक दूसरे में जुड़ती चली जाती है .....
* निंद्रा वो है जिसमे आप दूसरे सपने में गिर जाते है , योग निंद्रा वो है जो आपको सपने में गिरने नहीं देती , आपमें सजगता बनी रहती है। ये तो एक सत्य है इसी का दूसरा सत्य है कि शारीरिक प्राकृतिक एक प्राकृतिक जरुरत है शरीर की .... और .... योग निंद्रा अध्यात्म की क्यूंकि योग निंद्रा ही आपको सजगता का मूल मन्त्र देती है।
* फिर ध्यान है योग निंद्रा में आप ध्यान कि तरह ही आंतरिक यात्रा में रहते है ये आंतरिक यात्रा आपको सोर्स से जुड़ने का जरिया देती है।
* फिर ध्यान भी कई तरह के है , शरीर में उपस्थित चक्रो और आपके आंतरिक रंगों के ताल मेल कि उपस्थिति के अनुसार कौन सा ध्यान आपकेलिये ज्यादा प्रभावी होगा। .
फिर ये भी सच है कि ध्यान ही आपकी आंतरिक यात्रा और उस से जुड़ने कि प्रक्रिया में मदद करता है।
कुछ गलत कहाँ ? सब सच ही तो है , इसीकारण लोग तर्क में उलझ जाते है , क्यूंकि अपनी अपनी दृष्टि से सब सही ही होते है।
यहाँ प्रश्न सही और गलत का नहीं
यहाँ प्रश्न सही राह पकड़ना और उस सही राह पे धैर्य पूर्वक चलने का है , और इस राह में मौन इसीलिए कारगर है क्यूंकि ये आपमें सुनने कि शक्ति बढता है और तर्क शक्ति क्षीण करता है। वास्तव में तर्क आपको कहीं नहीं ले जा रहे , सिर्फ और सिर्फ भटका देते है। यथासम्भव तर्क से बचना ही अच्छा है।
जब मौन मुखर होता है तो ध्यान स्वाभाविक रूप से घट जाता है ,मस्तिष्क को विराम मिलता है। … जब ध्यान स्वाभाविक होता है तो योगनिन्द्रा भी सहज घटित होती है। और जब योग और योग निंद्रा घटित होने लगे तब आपसे वो आपका वांछित फिर दूर नहीं रहता। वो तो है ही आपके अंदर , बस दिखने लग जाता है।
दो बांते अति प्रमुख पहला मौन और दूसरा ध्यान। आपका ह्रदय आपका संस्थान है और आपका मस्तिष्क आपका गुरु , जो आज्ञां चक्र तक तो ले ही आएगा ,
इसके बाद कि छलांग का कोई रास्ता नहीं
कोई गुरु नहीं ...................
कोई संस्थान नहीं .....................
बस आप और आपकी पूर्ण विश्वास के साथ ... छलाँग ...... उस अथाह की तरफ ...............उस अनंत की गोद में .......... उस परम कि तरफ।
शुभकामनाये ... शुभेक्षा।
ॐ प्रणाम
Hello lata ji.
ReplyDeleteI still have few questions for you. It would be great if you can help me with it. Thank you waiting for your reply.