Sunday, 9 March 2014

जोई जाना , वोई डूबा , जो डूबा , सोई पार: Note

जो डूब गया , उसको क्या सुध , कि इस पानी के ऊपर क्या घट रहा है , उसका सम्पूर्ण शरीर तो गहरे पानी के अंदर हो गया , उसकी चेतना शरीर से ऊपर उठ गयी। अब उसको पूछोगे भी तो क्या हासिल होगा , कुछ नहीं सिर्फ मौन में ही उत्तर मिलेगा , ऐसे मौन हो चुके व्यक्ति से विधिया पूछो , व्याख्या विश्लेषण पूछो तो कैसे मिलेंगी ?

व्याख्या / विश्लेषण / विधियाँ उनके पास है जो न पूरी तरह डूबे और न उतरे , वो ही बता सकेंगे दोनों जहाँ का किस्सा।

जो डूब गया उसका अपना कोई शास्त्र नहीं, कोई ग्रन्थ नहीं, कोई रचना नहीं , सिर्फ दृष्टि है और मौन है।

मीरदाद का कहा जैसे कोई सूफी कलम हो , मीरा के गीत हो ,कबीर रहीम खान खाना के दोहे .

सिद्धार्थ ज्ञान पाने तो गुरुओं के पास गए थे , कहते है १२ गुरु बदले उन्होंने , कोई भी उनको संतुष्ट न कर सका , या उल्टा भी सोच सकते है , वो किसी गुरु को समझ नहीं आये , बहरहाल जंगल चले गए एकांत में , वर्षो मन चिंतन के बाद अचानक एक दिन उन्हें सत्य के दर्शन हुए , उसके बाद जो पहला शब्द उन्होंने कहा " अप्पो गुरु आपो भव " . और फिर चालीस साल चुप रहे। अस्सी की आयु में उनका देहावसान हुआ ऐसा बौद्ध साहित्य में मिलता है। 





ये चार शब्द अति दुर्लभ ग्रन्थ है , 
"अप्पो गुरु आपो भव " और सम्पूर्ण वेद ज्ञान भी इन्ही में छिपा है।


* स्व मनन 

* स्व चिंतन 
* स्व ज्ञान ; यही एक उपाय है।

परन्तु व्यक्ति की जिज्ञासा इन चार शब्दो से कैसे शांत हो ? उसे तो मस्तिष्क की क्षुधा शांत करनी है। उसे शास्त्र चाहिए विधि चाहिए मन्त्र चाहिए , जादू दिखना चाहिए इसलिए तंत्र चाहिए , जो जितना बड़ा जादूगर वो उतना भगवान् के करीब और पूज्यनीय। जबकि वास्तविक स्तिथि बिलकुल उलटीहै , शुध्ह ज्ञानी के पास बोलने को कुछ रह ही नहीं जाता।

बहुत ही कम और अर्थ पूर्ण वार्ता करने वाले बुधः के जीवन काल में उनके कहे शब्द लोग सिर्फ सुनते थे , बुधः ने स्वयं किसी शास्त्र कि रचना नहीं की , जो सर्वथा विपरीत थे , धर्म परंपरा और अनुष्ठानो के , आज स्वयं उनके ही नाम से बोधः धर्म संसार में फैला हुआ है।

ओशो: बुद्ध धर्म शास्त्र संग्रह के कारण पर (piv piv lagi Pyas -4)

" ऐसा हुआ, बुद्ध की मृत्यु हुई। तो जब तक बुद्ध जीवित थे, किसी ने फिक्र भी न की थी, कि उनके वचनों का संग्रह हो जाए। बुद्ध जीवित थे, किसी को याद भी न आया। फिर अचानक होश हुआ, जैसे एक सपना टूटा। इतने बहुमूल्य वचन खो जाएंगे ऐसे ही। तो संग्रह ही करें । तो , जो जाग चुके थे बुद्ध के समय में बुद्ध के बहुत शिष्य, जो बुद्धत्व को पा चुके थे, उनसे प्रार्थना की गई। उन्होंने कहा, हमने कुछ सुना ही नहीं, कि बुद्ध ने क्या कहा। यह बकवास बंद करो। बुद्ध कभी बोले ही नहीं। इनका तो उनके मौन से संबंध जुड़ गया था। तो उन्होंने कहा, हमने तो सुना ही नहीं, तुम भी क्या बात कर रहे हो? बुद्ध और बोले? कभी नहीं! बुद्धत्व के बाद चालीस साल चुप रहे, हमने तो चुप्पी सुनी। बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई। जिन पर भरोसा किया जा सकता था, जो जाग गए थे, जिनकी वाणी का मूल्य होता, जिनकी रिपोर्ट सही होने की संभावना थी, वे कहते हैं हमने सुना ही नहीं, कहां की बात कर रहे हो? सपने में हो?उनमें जो परमज्ञानी था एक महाकाश्यप, उसने तो कहा-बुद्ध कभी हुए ही नहीं। किस की बात उठाते हो? कोई सपना देखा होगा यह तो द्वार बंद हो गया। जो सर्वाधिक कीमती व्यक्ति था महाकाश्यप, जिसको बुद्ध ने कहा था--जो मैं शब्द से दे सकता हूं, वह मैंने दूसरों को दे दिया महाकाश्यप, और जो शब्द से नहीं दिया जा सकता, वह मैं तुझे देता हूं। उस आदमी ने तो कह दिया, बुद्ध कभी हुए ही नहीं। कौन बोला? किसने सुना? कहां की बातें करते हो? तब आनंद का सहारा लेना पड़ा। आनंद, बुद्ध के समय में ज्ञान को उपलब्ध नहीं हुआ। वह अज्ञानी ही रहा। वह अंधेरे में ही रहा, उसने शून्य को नहीं सुना, उसने शब्द को सुना। लेकिन उसके पास पूरा संग्रह था। उसकी स्मृति ने सब सम्हालकर रखा था। उसने सब बोल दिया, सब संगृहीत कर लिया गया। "

संसार में बोलने वालो का अपना महत्त्व है क्यूंकि वो ही मौन और शब्द के बीच पुल बनते है ! वो ही शास्त्रो के जनक है वो ही धर्म के खम्बे हैं। समाज को सामाजिकता का पाठ पढ़ा सकते है , राजनीती कर सकते है , व्यायाम कर सकते है। मनुष्य में संतुलन लाने के उपाय बता सकते है। ईश्वर दर्शन करा सकते है। पर वास्तविक सत्य इन सबसे सर्वथा विपरीत है शब्दो और साहित्यों के संगृह से कैसे मिलेगा " ध्यान रहे !! हर तरफ सिर्फ इशारा मिलेगा " और इतना विशाल कि ये नेत्र बंद करके अंतर्दृष्टि से ही दिखेंगे।

सर्वथा शुध्ह ग्यानी की तुलना एक जन्म लिए बालक से हो सकती है , मौन के अर्थ में , एक को भाषा आती नहीं , दूजा भाषा की निरर्थकता को जान मौन हो गया।

वो संज्ञानी क्या बोलेगा और कितना बोलेगा ? और ज्ञानी जितना बोलेगा उस परम तक पहुँच भी नहीं सकता कोई शब्द। बोलते ही शब्द तर्क और विवेचनाओं के जाल में फंस के भाव अशुध्द हो जायेगा सर्वोच्च वास्तविकता से दूर हो जायेगा। 





बुध्ह के सामान जो स्रोत खोज सकेगा वो ही प्यास बुझा सकेगा, शुध्ह निर्मल जल से।

Om Pranam

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