एक ऐसी विशेषता है जो किसी व्यक्ति की ताकत भी है , और यही उसकी हार की सबसे बड़ी वजह , मनोदृष्टि आपके व्यक्तित्व का वो फल है जो कई विषयो के मेल से आपको विशेष रंग में रंगता है , यही हर वक्त आपके हर विचार और कर्मो के बीच खड़ा रहता है पूरे अधिकार के साथ , जैसे आप और आपका विचार कुछ है ही नहीं यही , यही मनोदृष्टि आपके व्यक्तित्व को भी वस्त्र देती है। इस अद्भुत संसार में , यदि एक डोर भी माया की गलती से भी पकड़ ली तो उसके अगले सिरे के फल और गुण के लिए भी पूरा तैयार रहना ही है , कभी भी आपको प्राप्त हो सकता है इस मनोदृष्टि के भी ऐसे ही दो पहलु है , पहला जो आपको सशक्त बनती है , आपको संघर्ष की क्षमता देती है , बलवान बनाती है और दूसरा पहलु आपको हठी बनाती है , अज्ञानता देती है , लालच देती है क्रोध के बीज डालती है , और उस क्रोध को प्रकट करने का साहस भी यही से आता है , ये गुण आपको जहाँ आगे बढ़ना सिखाता है , दूसरी तरफ बिना आपके चाहे आपको पीछे भी धकेलता है , है न अद्भुत , अगर ये आपका स्वामी हो गया , तो आप कठपुतली की तरह अभिनय इसके आदेश पे करते जाते है , और आपको लगता है कि आप अति बुध्हिमानी से निर्णय ले रहे है , जबकि इस धागे का ही दूसरा सिर आपकी पीछे धकेल रहा है उसी गति से जिस गति से आप आगे को बड़ रहे है , यही संतुलन है शायद प्रकर्ति का , तभी तो कितना भी प्रयास कर ले कितना भी झोली में उपलब्धियां ड़ाल ले अंत में हाथ खाली ही रहते है , सम्बन्धो से लेकर कार्यक्षेत्र में सभी जगह ये तत्व और ये फल हावी रहते है।
हनीमून की सैर पे निकले दो नव विवाहित पति पत्नी नौका विहार के लिए चले , हाथ में उनके उपहार सुंदर पैकेज में , सोचा अभी बैठ जाए फिर आराम से खोल लेंगे और उपहार का घूमने का लुत्फ़ एक साथ उठाएंगे। नाव चल पड़ी , धीरे धीरे मांझ धार कि तरफ , तो पत्नी ने पति से कहा अब इस पाकेट को खोला जाए , पति ने कहा ठीक और जेब से छोटी सी चाकू निकल के काटने लगा , तभी पत्नी ने कहा , कैंची से ज्यादा अच्छा और साफ़ कटेगा , ये लीजिये कैंची और इसी से काटिये , पति ने कहा , क्या फर्क पड़ता है , चाकू या कैंची , अभी काट के अंदर का उपहार निकाल के दोनों देखते है , जैसे ही चाकू से काटने लगा पत्नी से नहीं रहा गया , बोली स्वामी कैची से काटिये। । फिर क्या था शुरू हो गया मनोदृष्टि का द्वंद्व
पति ने कहा , चाकू से काटूंगा
पत्नी ने कहा कैंची से काटिये
इसी प्रयास में छीना झपटी भी शुरू हो गयी
नाव हिलने लगी , पत्नी पलट के पानी के अंदर
गहरा पानी वो डूबने लगी
पर किसको परवाह
चाकू कैंची की लड़ाई जोर पे थी
पत्नी ने कहा बचाओ बचाओ
पति ने कहा बचा लूंगा परमैं चाकू से ही काटूंगा
पत्नी ने कहा नहीं कैंची ही सही है
अब पत्नी का मात्र हाथ दिख रहा था कभी कभी ऊपर को उछलती तो भी उँगलियों से इशारा चाकू और कैची का ही चल रहा था।
पति ने कहा अब भी वख्त है , कह दे कि कैंची नहीं चाकू,
पत्नी ने कहा नहीं नहीं कैंची ही सही
और धीरे धीरे किस्सा ही खतम हुआ झगडे का; वो हाथ भी दो उँगलियों से कैंची का इशारा करता हुआ पानी के अंदर डूब गया .......
अज्ञानतावश ऐसे ही बे_बुनियाद झगड़ो से जीवन पटा हुआ है ....
ये मनोदृष्टि ; ये दृढ़ता का भाव देती हुई आपको धकेलती है , आपको लगता है कि आपकी अंतर_शक्ति है। पर कब ये आपकी सोच पे हावी हो जाती है , पता भी नहीं चलता। और शीघ्र ही अच्छे और बुरे के गुणो से लिप्त ये मनोदृष्टि आपके जीवन पे छा जाती है , सिर्फ रिश्तो में और प्रेमसम्बन्धो में ही नहीं नहीं , आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पे , ये आपके कर्मो से जुड़ जाती है और आपके प्रारब्ध का एक अटूट हिस्सा बन जाती है।
निष्कर्ष : अपनी इन्द्रियो के स्वामी बने , दास नहीं।
कब ! क्या ! कितना !! ये आपके निर्णय क्षेत्र है , आपकी मनोदृष्टि का नहीं , क्यूंकि इसके फल आपको मिलंगे आपकी मनोदृष्टि को नहीं । और इनके फल के प्रति दोषारोपण नहीं पूर्ण स्व उत्तरदायित्व का भाव होना ही है।
अब सवाल ये कि जो रगरग में बसी है जो खून में घुली हुई है , इस मनोदृष्टि को स्वयं से अलग कैसे जाने ? उत्तर सिर्फ एक है ; साक्षी भाव द्वारा , और इस भाव को निमंत्रण देता है सिर्फ और सिर्फ ध्यान। साक्षी भाव ही आपको आपके एक एक शत्रु से परिचय करवाएगा। न सिर्फ परिचय करवाएगा अपितु उनकी असारता का भी दर्शन कराएगा।
Om Pranam
एक बड़ी प्रतीक कथा है इसी मनोदृष्टि और दृढ़ता को लेकर :
हनीमून की सैर पे निकले दो नव विवाहित पति पत्नी नौका विहार के लिए चले , हाथ में उनके उपहार सुंदर पैकेज में , सोचा अभी बैठ जाए फिर आराम से खोल लेंगे और उपहार का घूमने का लुत्फ़ एक साथ उठाएंगे। नाव चल पड़ी , धीरे धीरे मांझ धार कि तरफ , तो पत्नी ने पति से कहा अब इस पाकेट को खोला जाए , पति ने कहा ठीक और जेब से छोटी सी चाकू निकल के काटने लगा , तभी पत्नी ने कहा , कैंची से ज्यादा अच्छा और साफ़ कटेगा , ये लीजिये कैंची और इसी से काटिये , पति ने कहा , क्या फर्क पड़ता है , चाकू या कैंची , अभी काट के अंदर का उपहार निकाल के दोनों देखते है , जैसे ही चाकू से काटने लगा पत्नी से नहीं रहा गया , बोली स्वामी कैची से काटिये। । फिर क्या था शुरू हो गया मनोदृष्टि का द्वंद्व
पति ने कहा , चाकू से काटूंगा
पत्नी ने कहा कैंची से काटिये
इसी प्रयास में छीना झपटी भी शुरू हो गयी
नाव हिलने लगी , पत्नी पलट के पानी के अंदर
गहरा पानी वो डूबने लगी
पर किसको परवाह
चाकू कैंची की लड़ाई जोर पे थी
पत्नी ने कहा बचाओ बचाओ
पति ने कहा बचा लूंगा परमैं चाकू से ही काटूंगा
पत्नी ने कहा नहीं कैंची ही सही है
अब पत्नी का मात्र हाथ दिख रहा था कभी कभी ऊपर को उछलती तो भी उँगलियों से इशारा चाकू और कैची का ही चल रहा था।
पति ने कहा अब भी वख्त है , कह दे कि कैंची नहीं चाकू,
पत्नी ने कहा नहीं नहीं कैंची ही सही
और धीरे धीरे किस्सा ही खतम हुआ झगडे का; वो हाथ भी दो उँगलियों से कैंची का इशारा करता हुआ पानी के अंदर डूब गया .......
अज्ञानतावश ऐसे ही बे_बुनियाद झगड़ो से जीवन पटा हुआ है ....
ये मनोदृष्टि ; ये दृढ़ता का भाव देती हुई आपको धकेलती है , आपको लगता है कि आपकी अंतर_शक्ति है। पर कब ये आपकी सोच पे हावी हो जाती है , पता भी नहीं चलता। और शीघ्र ही अच्छे और बुरे के गुणो से लिप्त ये मनोदृष्टि आपके जीवन पे छा जाती है , सिर्फ रिश्तो में और प्रेमसम्बन्धो में ही नहीं नहीं , आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पे , ये आपके कर्मो से जुड़ जाती है और आपके प्रारब्ध का एक अटूट हिस्सा बन जाती है।
निष्कर्ष : अपनी इन्द्रियो के स्वामी बने , दास नहीं।
कब ! क्या ! कितना !! ये आपके निर्णय क्षेत्र है , आपकी मनोदृष्टि का नहीं , क्यूंकि इसके फल आपको मिलंगे आपकी मनोदृष्टि को नहीं । और इनके फल के प्रति दोषारोपण नहीं पूर्ण स्व उत्तरदायित्व का भाव होना ही है।
अब सवाल ये कि जो रगरग में बसी है जो खून में घुली हुई है , इस मनोदृष्टि को स्वयं से अलग कैसे जाने ? उत्तर सिर्फ एक है ; साक्षी भाव द्वारा , और इस भाव को निमंत्रण देता है सिर्फ और सिर्फ ध्यान। साक्षी भाव ही आपको आपके एक एक शत्रु से परिचय करवाएगा। न सिर्फ परिचय करवाएगा अपितु उनकी असारता का भी दर्शन कराएगा।
Om Pranam
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