दूसरा प्रश्न: जीवन प्रतिपल बीत रहा है, ऐसा लगता है। सदगुरु भी मिल गए, फिर भी अगला कदम अस्पष्ट क्यों है?
अगला कदम है ही नहीं। अगले कदम की सोच क्यों रहे हो?
अगले कदम की सोचने का अर्थ है, कि यह कदम आनंदपूर्ण नहीं है, अगला चाहिए। यह क्षण काफी नहीं है, अगला चाहिए। आज पर्याप्त नहीं है, कल चाहिए। वर्तमान में कहीं पीड़ा है, भविष्य चाहिए।
अगला कदम दुखी आदमी के मन की चिंतना है। सुखी आदमी के लिए यही कदम आखिरी कदम है। सुखी आदमी के लिए मार्ग ही मंजिल है। अगर तुम प्रसन्न हो मेरे साथ, बात बंद कर दो अगले कदम की। अगला कदम होता ही नहीं। अगला कदम रुग्ण चित्त की दशा से पैदा होता है। जब तुम आज सुखी नहीं हो, तब तुम कल का विचार करते हो। आज के दुख को भुलाने के लिए कल का विचार करते हो, कल की आशा बांधते हो, कल का सपना संजोते हो, कल में तल्लीन हो जाते हो, ताकि आज का दुख भूल जाए।
ऐसे ही तो तुमने जन्म-जन्म गंवाए हैं अगले कदम के पीछे। अब तुम कृपा करो। अब तुम अगले कदम की बात मत उठाओ। यह कदम काफी नहीं है? यह क्षण पर्याप्त नहीं है? कमी क्या है? इस क्षण क्या है कमी? सब पूरा है। बस, इस क्षण की मौज में उतर जाने की जरूरत है।
ऐसे ही तो तुमने जन्म-जन्म गंवाए हैं अगले कदम के पीछे। अब तुम कृपा करो। अब तुम अगले कदम की बात मत उठाओ। यह कदम काफी नहीं है? यह क्षण पर्याप्त नहीं है? कमी क्या है? इस क्षण क्या है कमी? सब पूरा है। बस, इस क्षण की मौज में उतर जाने की जरूरत है।
तो मैं तुमसे कहता हूं, एक ही कदम है। और वह यही कदम है। दूसरा कोई कदम नहीं है। दूसरे की बात ही मन का जाल है।
मन या तो सोचता है अतीत की, जो जा चुका; या सोचता है भविष्य की, जो आया नहीं। मन कभी यहां और अभी नहीं होता। और यही अस्तित्व है--अभी और यहां। जो बीत गया, वह जा चुका। जो आया नहीं, आया नहीं। यह छोटा सा संधि का क्षण है, संध्या का काल है, जहां अतीत और वर्तमान मिलते हैं, जहां वर्तमान और भविष्य मिलते हैं। इस बीच के मिलन-बिंदु पर ही अस्तित्व है। यहीं से तुम अगर डूब सको, तो डूब जाओ। द्वार खुला है परमात्मा का। लेकिन अगर तुमने भविष्य की बात की, तुम चूक गए। फिर चूक गए।
तुम कहते हो, "जीवन पल-पल बीत रहा है।' नहीं तुमने सुन लिया होगा किसी को कहते हुए। अगर सच में तुम्हें ही लग गया है कि जीवन पल-पल बीत रहा है, तुम फिर पलों का उपयोग करना शुरू कर दोगे। तुम फिर इस पल को पूरा का पूरा आत्मसात कर लेना चाहोगे। तुम इस पल को इस तरह निचोड़ लेना चाहोगे, इस तरह जी लेना चाहोगे, जैसे कोई आम को चूस लेता है, फिर गुठली को फेंक देता है। फिर तुम फिक्र करते हो गुठली की, कहां गई?
अतीत की तुम्हें याद आती है क्योंकि तुम आम ठीक से चूस नहीं पाए। गुठली में रस लगा रह गया। अन्यथा कोई याद करता अतीत की! कल जा चुका है। अगर तुमने जी लिया था तो बात खतम हो गई। लेकिन वह तुमने जीया नहीं। जब वह चल रहा था, तब तुम आज की सोच रहे थे। और जब आज आ गया, तो वह जो कल बीत गया, जो अब हाथ में नहीं है, जिसके संबंध में अब कुछ भी नहीं किया जा सकता, अब तुम उसकी सोच रहे हो। तुम्हारी मूढ़ता की कोई सीमा है!
संसार में दो ही चीजें अनंत हैं, एक परमात्मा और एक मूढ़ता। उनका कोई अंत नहीं आता मालूम पड़ता। जो भूल तुमने कल की थी, वही तुम आज कर रहे हो। फिर कल जब "आज' आ जाएगा, जब आने वाला कल आज बन जाएगा तब तुम फिर पछताओगे। क्योंकि फिर गुठली में रस लगा रह गया। ऐसे कब तक चूकते चले जाओगे आज ही है, जो कुछ है।
जीसस ने अपने शिष्यों को कहा है, एक जंगल के मार्ग में गुजरते हुए, कि देखो लिली के फूलों को। ये कल की चिंता नहीं करते। इनका सौंदर्य कैसा अपरंपार है! सोलोमन सम्राट भी अपनी महामहिम अवस्था में इतना सुंदर न था।
तुम भी कल की चिंता मत करो। कल कल की फिक्र कर लेगा। तुम लिली के फूलों की भांति इसी क्षण जी लो। और मैं तुमसे कहता हूं, जीने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए। सिर्फ इतनी ही योग्यता चाहिए; कि तुम इसी क्षण में डूबने की क्षमता जुटा लो, बस! यही ध्यान है, यही पूजा है। इसी को दादू कहते हैं--"सुख-सुरति सहजे सहजे आव।' इस क्षण में ही डूब जाना सहज स्मरण है।
अगर तुम इस क्षण में ठीक से डूब जाओ, तो तुम इतने सिक्त हो जाओगे आनंद से, कि परमात्मा के लिए धन्यवाद का स्वर अपने आप उठने लगेगा। वही प्रार्थना है। प्रार्थना के लिए कोई मंदिर की जरूरत थोड़ी है। उसके लिए क्षण में प्रवेश पाने की जरूरत है। उसके भीतर समय की धारा में डुबकी लगाने की जरूरत है। वहीं से उठता है अहोभाव और तब तुम्हारे सारे जीवन के दिग-दिगंत को घेर लेता है।
नहीं, तुम यह पूछो ही मत, कि अगला कदम क्या है? अगला कदम है ही नहीं। एक ही कदम है। अभी उठाओ यही कदम कल भी उठाओगे, यही कदम परसों भी उठाओगे। कल की राह मत देखो। आज ही दिल खोलकर उठा लो। अगर आज का कदम ठीक उठ गया, तो इसी कदम से कल का कदम भी निकलेगा। और कहां से आएगा?
तुमसे ही तुम्हारा भविष्य निकलता है। जैसे बीज से वृक्ष निकलता है, ऐसे तुमसे तुम्हारा भविष्य निकलता है। अगर इस क्षण में तुम आनंदित हो, तो आने वाला कल भी आनंदित होगा। फिक्र छोड़ो उसकी। उसकी बात ही मत उठाओ। उसकी बात क्या करनी! उसकी बात में भी समय मत गंवाओ। क्योंकि उतना समय गंवाया, उतना ही आम अनचूसा रह जाएगा। फिर कल तुम पछताओगे।
पीते हो जल, पूरा पी लो। भोजन करते हो, पूरा कर लो। सोते हो, दिल खोलकर सो लो। सुनते हो, मनभर के सुन लो। क्षण से यहां-वहां मत डांवाडोल होओ। घड़ी के पेंडुलम मत बनो। रुको। उस रुकने का नाम ही ध्यान है।
क्या कमी है इस क्षण में, मैं पूछता हूं? पक्षी गीत गा रहे हैं, तुम नहीं गा पाते। क्योंकि पक्षियों को अगले कदम की चिंता नहीं है। फूल खिल रहे हैं, तुम नहीं खिल पाते। क्योंकि फूलों को अगले कदम की चिंता नहीं है। आदमी को छोड़कर सब प्रसन्न मालूम पड़ता है। आदमी विषाद में है। अगला कदम जान ले रहा है।
भविष्य से मुक्त जो हो जाए, वही संसार से मुक्त हो जाता है। वर्तमान में है, संन्यास; भविष्य में है संसार।
भविष्य से मुक्त जो हो जाए, वही संसार से मुक्त हो जाता है। वर्तमान में है, संन्यास; भविष्य में है संसार।
तो मैं तुमसे नहीं कहता, घर द्वार छोड़कर भाग जाओ। मैं तुमसे कहता हूं, घर-द्वार में। यह छोड़कर भागने की बात ही फिर भविष्य को बीच में ले आना है। तुम जहां हो--घर में हो, द्वार में हो, बाजार में हो--वहीं तुम उस क्षण को पूरा जीना सीख जाओ। तुम तत्क्षण पाओगे घर भी गया, द्वार भी गया, संसार दूर रह गया, तुम परमात्मा में उतर गए।
संन्यास, संसार से भागना नहीं है--संन्यास, संसार में परमात्मा को खोज लेना है।
तुम समय की धार पर ऐसे ही बहते रहते हो, डुबकी नहीं लेते। और फिर धीरे-धीरे यह बहने की आदत मजबूत हो जाती है। फिर तुम कभी भी डुबकी न ले पाओगे। फिर तुम हमेशा कल पर टालते रहोगे। और एक दिन कल आएगा और मौत लाएगा; और कुछ भी न लाएगा। मौत से आदमी इसीलिए इतना डरता है। मौत के डरने का और कोई कारण नहीं है।
संन्यास, संसार से भागना नहीं है--संन्यास, संसार में परमात्मा को खोज लेना है।
तुम समय की धार पर ऐसे ही बहते रहते हो, डुबकी नहीं लेते। और फिर धीरे-धीरे यह बहने की आदत मजबूत हो जाती है। फिर तुम कभी भी डुबकी न ले पाओगे। फिर तुम हमेशा कल पर टालते रहोगे। और एक दिन कल आएगा और मौत लाएगा; और कुछ भी न लाएगा। मौत से आदमी इसीलिए इतना डरता है। मौत के डरने का और कोई कारण नहीं है।
पहली तो बात, मौत को तुम जानते नहीं, डरोगे कैसे? डर उससे पैदा होता है जिसका कोई अनुभव हो। मौत से तुम्हारा कोई अनुभव नहीं है। याद भी नहीं है, कभी अनुभव हुआ हो। हुआ भी हो, तो भी स्मृति नहीं है, तुम डरोगे कैसे? और कौन कह सकता है निर्णीत रूप से कि मौत के बाद जीवन इससे बेहतर न होगा? कोई भी लौटकर तो खबर देता नहीं, कि जीवन मौत के बाद बुरा हो जाता है। भय का कोई कारण नहीं है।
लेकिन कारण कहीं दूसरा है। और वह दूसरा यह है, कि तुम कल पर स्थगित करके जीने की आदत बना लिए हो। मौत कल को मिटा देगी। जिस दिन मौत आती है, उसके बाद फिर कोई कल नहीं है। और तुम पूरे जीवन कल पर ही आधार बनाकर जीए हो। तुम्हारा जीवन सदा एक पोस्टपोनमेंट था। और मौत सब पोस्टपोनमेंट तोड़ देती है। मौत कहती है, आ गई। और मौत हमेशा आज आती है, कल नहीं। मौत जब आएगी तब इस क्षण में आएगी। फिर उसके बाद एक क्षण भी नहीं रहेगा। मौत एक ही कदम उठाती है, दो नहीं उठाती। उसका कोई अगला कदम नहीं है।
और जो मौत के संबंध में सही है, वही जीवन के संबंध में सही है। जीवन भी एक ही कदम उठाता है--यही क्षण। तुम अगर टालते रहे कल पर, तो तुम मौत से डरोगे क्योंकि मौत कहती है, अब कोई कल नहीं है। और तुम जिंदगीभर टालते आए। तुम जीए ही नहीं। तुमने हमेशा सोचा, कल जीएंगे।
बंद करो यह आदत। यह आदत ही संसार है। यह क्षण सब कुछ है। इस क्षण में सारी शाश्वतता है। इस कदम में ही छिपी है मंजिल।
और अगर तुम इसे समझ लो, तो तुम जिसे खोजने जा रहे हो, तुम उसे अपने भीतर पा लोगे। खोजने वाले में ही छिपा है गंतव्य। फिर वह मिलता उसे है, जो अतीत और भविष्य की बात छोड़कर क्षण में खड़ा हो जाता है। क्योंकि फिर अपने को देखने के सिवाय कोई उपाय नहीं रहता। न तो भविष्य है सोचने को, न अतीत है सोचने को। न कोई स्मृति है अतीत की, न कोई कल्पना है भविष्य की। तब तुम अपना साक्षात्कार करते हो। वह आत्मसाक्षात्कार ही मुक्ति है।
एक ही कदम है। मत पूछो, कि अगला कदम स्पष्ट क्यों नहीं है? है ही नहीं। स्पष्ट होगा कैसे?
Piv Piv Lagi Pyas - 10
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