Tuesday, 25 March 2014

यह जन्म अवसर है इसको जानो (note)


ॐ 


तुमको तुम्हारे सहज विचारो और अनुभव के साथ तुमको आज़ादी देता हूँ , तुम मुझे चमत्कार में देखो या चमत्कार के दर्शन मेरे द्वारा करो , मैं ही शुन्य हूँ या शुन्य मुझमे है , ब्रह्माण्ड को मुझमे मानो या मैं ब्रह्माण्ड में , तुम अपने अनुभव से चल के मुझ तक आओ , या अनुभव तुमको मुझ तक लेके आये। ये सब आज़ादी है तुमको। किसी भी रास्ते पे चलो पर अंततोगत्वा आना तुमको मुझ तक ही है ; इसका विश्वास मैं तुमको देता हूँ। इसके अलावा तुम्हारी और कोई गति है ही नहीं। मेरे विस्तार में अपने अद्वित्य , छोटे किन्तु सम्पूर्ण अस्तित्व को मत खो जाने देना ..... ब्रह्माण्ड शब्द का गठन जो तुम्हारे पूर्वजों ने किया अपने अनुभव के आधार पे किया है , जिसका अर्थ है ब्रह्म का एक अति छोटा सा अंश या अण्ड ; तुम्हारा ब्रह्माण्ड है , ऐसे कई ब्रह्माण्ड से भरा हुआ है आकाशगंगाओं का रास्ता। और इनका भी जो केंद्र है वह तुम मुझे समझ सकते हो। 


इस ब्रह्माण्ड की यात्रा करो रोमांचकारी है ,आकाशगंगा की यात्रा करो , जहाँ तक तुम्हारे विषय से प्रमाण मिले उनसे प्रमाण लो , पर उसके बाद की छलांग तुम्हारी ही है ! ध्यान करो अनुभव करो और ज्ञान तुम्हारे समक्ष खड़ा होगा , जो सारे रहस्य खोलेगा। तुम्हारी सशरीर जीवित अवस्था मे सिर्फ तुम्हारे द्वारा अनुभव ही एक उपाय है , जो तुमको संकेत दे सकता है , 


अब तुम्हारे मन में जिज्ञासा उठ सकती है कि आखिरकार इतना सब किसलिए ? वो इसलिए कि मात्र तुम ही हो जो स्वयं के मायाजाल काट के ; सत्कर्म के पथ पे जीवन यापन के लिए स्वयं को प्रेरित कर सकते हो। और ये तब होगा जब इस जीवन की असारता तुम्हारी समझ में आजाये, पृथ्वी के लिए भी तुम सभी कर्त्तव्य निर्वाह उसके बाद ही कर पाओगे जब स्वयं के नित्य उपद्रव से अपना पीछा छुड़ा पाओगे। तुम्हारे ही बंधन तुमपे हावी रहेंगे तो क्या सोच पाओगे इस जीवन से आगे भी और जीवन है ! माया तुम्हारी वासना को दिगुणित करती है और तुम उलझ जाते हो , तुम्हारी सोचने कि क्षमता माया की मुठी में। क्रोध लोभ मोह तुमको जकड लेते है किसी शक्तिहीन बालक के सामान तुम उनकी कैद से निकल ही नहीं पाते, नतीजा स्वयं को ही मारना काटना शुरू कर देते हो। अपनी पहचान भूल जाते है अपने कर्त्तव्य भूल जाते हो। इससे अलग हट कर .... स्व जागरण जरुरी है। सम्मोहन का टूटना आवश्यक है , निद्रा से उठना आवश्यक है .... बुध्ही को अपने वश में करना जरुरी है। माया मैंने ही बनायीं पर तुम उसमे खो जायो इसलिए नहीं , तुम्हारे जीवन में वो रंग भरे इसलिए बनी थी कि वो तुम्हारी सहायक हो ; तुम्हारे बंधन का कारन नहीं। 






खुद ही न्यायालय खोल के स्वयं को अपराधी बनाके स्वयं को दंड देते हो , और अपराधी बन के अपने को ही मारते हो , शासन करते हो और शासित होते हो , त्रास भी देते हो और त्रसित भी होते हो. माया के अज्ञान के ही कारन अपने ही दो अंग स्त्री पुरुष में भेद करके शासित और शासन का कार्यक्रम चलाते हो , जैसे किसी दिन आधे दर्पण के सामने खड़े होकर स्वयं के ही अद्धे शरीर को दूसरा शरीर मान अपने से अलग कर दो। यही कार्य कर रहे हो स्त्री और पुरुष में द्वैत डाल के। क्यूँ ? माया के अज्ञान के कारन ही न ! 

मैं बार बार कहता हूँ , स्वयं को जानो और जीवन को आनंदित करो , धरती को कर्मभूमि बना इसका यश और सौंदर्य बढ़ाओ। यही तुम्हारे जन्म का उद्देश्य भी है। 

सोचो सोचो , ध्यान और मुझको जानना असध्या नहीं मैं तो तुम्हारे ह्रदय में ही हूँ , सरलता और सहजता और प्रेम से नित्य उजागर हूँ , माया से खुद को बचा पाना तुम्हारे लिए ज्यादा दुष्कर है , और जिसके प्रभाव से यह जन्म भी व्यर्थ जाता है। यह जन्म अवसर है इसको जानो , कर्म को जानो , प्रेम को जानो। 



मुझ तक तुम्हे आने की आवश्यकता नहीं , मैं आउंगा तुम तक। 


भरोसा रखो !


ॐ ॐ ॐ

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