जी हाँ , बचपन कि कहानिया , सुनते सुनते बड़े हो गए , कहानिया पीछे छूट गयी , वैषयिक ज्ञान आगे आ गया। रामायण की कथा , भगवद कथा , महाभारत कथा , कृष्ण कथा , राम कथा , देवी देवताओं की कथाये , राक्षस देव और मुनियो के संघर्ष की कथाएं मुल्ला नसरुद्दीन , जातक कथाये , अमर कथाये , पंचतंत्र कथाये , बेताल पच्चीसी , आदि अदि , ढेरो मनोरंजक और नैतिक कथाये , हम सभी का बचपन भरा पड़ा है ऐसी कथायों से , कभी खुद पढ़ा तो कभी नानी और दादी और माँ बाबूजी या फिर बड़े भाई बहन से सुना , पर सुना तो सभी ने जरुर होगा।
धीरे धीरे विषयों ने घेरा , कथाये कहीं स्वप्न सी हो गयी , फिर बिना अवसर और अवकाश दिए जिम्मेदारियों ने घेरा , फिर धर्म और समाज ने घेरा , कथायों के स्थान बड़े बड़े भाव वाले सूक्ष्म बीज मंत्रो ने ले लिया। माला हाथ में आगयी। राजनीती ने अपना असर डाला , समाज के अनेक जहर मन मस्तिष्क को दूषित करते ही रहे। प्रपंच सामने आगया , होड़ प्रतिस्पर्धा ने पट्टी बांध दी और आप बालक से रुग्ण और फिर वृध्द हो गए। और न जाने कब से अपने को मानसिक रूप से सिर्फ सम्भावित भयानक और पीड़ा देने वालीऔर अपनों से अलग करने वाली म्रत्यु के लिए तैयार करने में लगे पड़े है। और यही डर आपको आपके तथाकथित प्रचलित पारम्परिक धर्म की ओर भी खींचता है और अधिकतर को अध्यात्म की ओर भी।
जबकि वास्तविक चित्र बिलकुल अलग है।
चलो अच्छा हुआ कि इन दोषो ने सोचने के लिए पृष्ठभूमि बनायीं , कि आखिर हम कर क्या रहे है ? कहाँ गयी हमारी सरलता , सहजता , आपसी भाई चारे और प्रेम के भाव , हर रिश्ते में बच गयी है सिर्फ प्रतिद्वंद्विता , चाहे वो पति पत्नी हो , भाई भाई हो , पिता बेटा या बेटा पिता , ऊपर से दिखने वाले परम मित्र हो , सभी में एक अजीब सा प्रतिद्वंद्विता दिखाई पड़ती है , जरुरी नहीं कि एक दूसरे के रास्ते मिलते ही हो , व्यवसायिक तौर पे , फिर भी द्वेष है , कहीं न कहीं किसी न किसी बात पे , क्रोध है और असंतोष है स्वयं की स्थिति पे। जिसके कारन सम्बन्ध दूषित हो रहे है , वातावरणऔर समाज दूषित हो रहा है , प्रेम सिर्फ ऊपर ऊपर ही दिखायी पड़ता है , वो भी अगर दिखने भर से काम हो जाये तो बस ठीक , इससे ज्यादा का कोई मतलब ही नहीं । ऐसी कैसी व्यवस्था बन गयी है हमसे अनजाने में।
चलिए वापिस लौट चले ,एक बालक के विचारों में , सोचे ऐसा क्या था वहाँ , जो चिड़िया से हलके होके खेलते घूमते और मौज से रहते थे। तितली के उड़ने में और आपमें ज्यादा फर्क नहीं था , याद है न ! ! उसी बालपन से विचार करें , उन्हीं कथायों को एक बार फिर से जरा अलग नजरिये से पढ़ें , इस नजरिये में बालपन तोहो पर बालक बुध्ही न हो , ये अवसर भी सजह सबको नहीं मिलता। किसी भी गहरे भारी भरकम , गहरे भाव और क्लिष्ट भाषा के कारण न समझ में आने वाले धर्म शास्त्रों से कम महत्त्व नहीं है इन बालकथाओं का, यदि आपमे भी ऐसा कोई भाव जगा है , तो इसका पोषण कीजिये।
कुछ पल के लिए ही सही विस्मरण कर दीजिये ,अलग अलग धर्मो के भारी भारी धर्म शास्त्र , मंत्रो के अनगिनत उच्चारण, दिशायों का , नक्षत्रो का ज्ञान ,भूत और भविष्यकाल की लम्बी लम्बी योजनाये , आपका अध्यात्म आपको आज में और इस पल में लेके आएगा। प्रकृति से आपका प्रथम सहज मेल करवाएगा , ईश्वर की दिव्यता का ज्ञान कराएगा और वास्तविक धर्म से परिचय भी आपका अध्यात्म ही करवाएगा , तब आपको ज्ञात होगा कि जो धर्म दिख रहा था वो तो दिखावा है वास्तविक धर्म का तो अर्थ ही कुछ और है … वो ही ऊर्जा , वो ही जागरण , आपको आपकी सरलता और सहजता देगा , और आपका ही सोया हुआ मानव धर्म शक्ति देगा आपके प्रयासो को।
तब आपको अहसास होगा , कि भूत भविष्य की योजनाये अपना काम कर रही है, जीवन कि जिम्मेदारियां अपना कर्त्तव्य निभा रही है। और आप सहज , प्रसन्न सिर्फ आज में रुक के जीवन को अति हल्का और प्रसन्न प् रहे है। आपकी प्रसन्नता आपके शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य को भी बढ़ाएगी। … है ना ! सोने पे सुहागा।
सिर्फ एक अध्यात्म और उसमे भी एक ध्यान साधने मात्र से कितना कुछ सहज ही उपलब्ध हो जाता है। वो भी , वो ही काम हलकी फुलकी मनोरंजक कथाएँ कर रही है , तो शुरू कीजिये वृध्धावस्था से बालपन की यात्रा की शुरुआत।
आपका आंतरिक तत्व और अध्यात्म , आपको एक ऐसी ही पृष्ठभूमि देगा , जहाँ से आप अपने ही बनाये और पोषित संतापों से बाहर आ सकेंगे , ध्यान और अंतर्दृष्टि आपको स्वक्छ स्नान कराएँगे।
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