O fish come out from Pot , Rumi ..
अब कौन तुझे समझाए, मानस-मत्स्य , कैसे दिखाऊ उस विशाल समंदर का रास्ता ....... ये वो समंदर है ही नहीं , ये तो एक बर्तन है मात्र एक साधारण दूसरा मिटटी का बर्तन है , थोडा अलग रंग में रंगा हुआ है , भ्रमित कर रहा है , वैसा ही सीमित छोटा सा , समंदर तो वो जो सीमा रहित , जिसकी न गहराई न ऊंचाई .......... अथाह अनंत समंदर जहाँ तुझे जाना है , और एक तू है , पास पड़े बर्तनो में ही कूद छलांग लगा के खुश है। देख जो भी दिखायी देते है या तेरी इन बाहरी आँखों से दिख सकते है सब मर्यादित सीमित बर्तन है , सभी बंधे है अपने नियम और सीमाओं में , खुद बंधे है तुझे वो कैसे सीमा _ रहित व्योम दे पाएंगे ? थोडा और जोर लगा , थोडा और साहस दिखा , अबके कूद पड़ना सीधा विशाल समंदर में।
संशय उठता है मिलेगा क्या ?
उत्तर सिर्फ एक ; कुछ नहीं ।
( कोई जादू , कोई जुगत , कोई धनसंपदा , कोई चमत्कारिक शक्ति , कुछ नहीं कुछ भी नहीं )
वर्षो की मेह्नत से चढ़ाये तेरे रंग छिन जायेंगे , तेरे अहंकार गिर जायेंगे .... संगीत जन्मेगा , रंग भी चढ़ेगा , पर वो नहीं जिसको तूने अब तलक जाना है , ये पहचान अनोखी है निराली है पर तेरी अपनी है झूठी नहीं , खोखली नहीं , सुख दुःख अनुभव करने वाले सभी नकली रंग धूल जायेंगे। घृणा द्वेष के मैल धूल जायेंगे , जिस संगीत में रूचि थी तेरी वो सरगम भी खो जायेगी ; तू सिर्फ एक मछली इस का अहसास भी क्षणिक कुछ वक्त का यही रह जायेगा। ........ सिर्फ वास्तविक स्थति का ज्ञान होना ही क्या काफी नहीं ? तेरे सारे घमंडों का महल ढह जाना क्या काफी नहीं ? क्या है तेरा और क्या चाहिए ? न रंग तेरे न रूप तेरा न हवा तेरी न पानी तेरे , क़र्ज़ का जीवन जीती रही तू। ये पता चल जाना क्या काफी नहीं ? जिनपे कल तक नाज़ था , जिनके लिए तूने सारे जाल रचे , जिनके सुख ने सुखी और दुःख ने दुखी किया , जिनकी खातिर तूने हर बैर लिए , अचानक सब अस्थिर और चंचल हुआ , तुझसे न सिर्फ तेरे प्रिय छीने , बल्कि तेरा मुकुट, तेरा साम्राज्य , तेरा समाज तेरे रिश्ते नाते , सब छीने। सिर्फ वो ही नहीं जो तुझसे जुड़े थे , बल्कि तू जो स्वयं खुद से जुड़ा था , वो भी छिन गया , देखा क्या बचा है तेरे पास , अब कर हिसाब जरा ठीक से।
कर ले भान की तूने सिर्फ बर्तन बदल लिया ! तुझे तो गिरना था समंदर में और तू गिरा भी तो फिर से एक छोटी सी कटोरी में।
चेत अभी भी वख्त है शेष , चेत !
sadar pranam saprem naman
ReplyDeletedhanyavad , Bhayi ji . Pranam
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