Wednesday 11 February 2015

संन्यास - Osho

संन्यास मेरे लिए त्याग नहीं, 
आनंद है.. 
संन्यास मेरे लिए निषेध नहीं है, 
उपलब्धि है..!!
मैं जिस संन्यास की बात तुमसे कह रहा हूँ, 
वह संघर्ष का निमंत्रण है,
तुम्हें जूझना पड़ेगा। समाज तुम्हारे विपरीत होगा, 
भीड़ तुम्हारे
विपरीत होगी, अतीत तुम्हारे विपरीत होगा,
परंपराएं तुम्हारे
विपरीत होंगी, मंदिर-मस्जिद तुम्हारे विपरीत होंगे,
तुम केवल
अकेले रह जाओगे! लेकिन अकेले होने का मजा है, अकेले चलने
का एक अलग रस है, अलग ही मस्ती है! अकेले चलने में
ही तुम्हारे
भीतर सिंहनाद होगा, भेंडें भीड़ में चलती हैं; सिंह
तो अकेले चलते
हैं, उनकी कोई भीड़-भाड़ नहीं होती।
अकेले चलने का साहस हो तो ही मेरा संन्यास तुम्हारे
लिए मार्ग
बन सकता है। सब तरह की लांछनाएं सहने का साहस हो,
तो ही!
पुराने संन्यास में तो सुविधा है, सम्मान मिलेगा,
अहंकार
की तृप्ति होगी। मेरे संन्यास में तो लोग कहेंगे, पागल
हो! तुम
विक्षिप्त हो गए हो, तुमने भी अपना होश खो दिया!
तुम
सम्मोहित हो गए हो, तुम भी किन बातों में पड़
गए हो!
संन्यास लीक छोड़ कर चलने का नाम है। लीक छोड़कर
चलने में
थोड़ा भय तो लगेगा, भीड़-भाड़ में अच्छा लगता है, इतने
लोग
साथ हैं, अकेले नहीं हो, लगता है कोई खतरा नहीं है;
सुरक्षा है,
अकेले हुए कि चारों तरफ खतरा दिखाई पड़ता है।
कोई
संगी नहीं,
कोई साथी नहीं।
मगर अकेले होना हमारा आंतरिक सत्य है। हम अकेले
ही पैदा हुए हैं।
हम अकेले ही हैं और अकेले ही हमें संसार से
विदा हो जाना है।
" इस अकेलेपन को जिस दिन तुम जीने लगोगे, संन्यस्त हो गए।"
जुटाओ साहस!
तुम जिसको अब तक संन्यास कहते रहे हो, वह
सिर्फ
मुर्दा होने की प्रक्रिया है, मैं जिसको संन्यास
कहता हूँ, वह
जीवन है—अहोभाव है, आनंद है, उत्सव है, वसंत है |
ओशो

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