Friday 20 February 2015

आस्था के स्वर

आज दिखने वाले  कर्म के कारण की शुरुआत पहले ही हो जाती है , लक्षण भी बाद में प्रकट होते है . अवस्था शारीरिक हो या आत्मिक , बीज बहुत पहले पड़ता है , पौधे का अंकुरण उचित समय पे ही होता है। 

ऐसा ही सुना है व्योमवासी-नियंत्रणकर्ता-नक्षत्र भी अपनी चाल से और चुंबकत्व ऊर्जा से हमारी शारीरक शक्ति और मानसिक उद्वेगों को नियंत्रित करते है। जो हमारे इस जन्म के कर्मो का कारण बनते है , प्रारब्ध और कर्मो का चक्र नक्षत्रीय कारणों से गुथमगुथा है। और मनुष्य के पास एक शक्ति है वो है केंद्र से संपर्क , जिसका माध्यम भी उसका अपना स्वयं का केंद्र है। बाकी सब शक्तियां उसी एक शक्ति से संचालित है। दोस्तों , कोई भेद और संशय है ही नहीं , नक्षत्रो के जीवन पे प्रभाव और और ये अन्धविश्वास नहीं की नक्षत्रो के चुम्बक शक्ति होती है , जो शरीर तत्व के द्वारा आत्माओं के कर्म और तत्जनित फल पे काबू करते है ( ये जरूर है की सब प्राकृतिक है , प्रकर्ति के अपने नियम है , ब्रह्माण्ड के अपने नियम है जो वैज्ञानिक रूप से वैज्ञानिको के अथक बौद्धिक प्रयास से प्रमाणित भी है ), अक्सर जब समय ठीक नहीं होता तो लोग कहते है की लगता है ग्रहों की चाल सही नहीं , और " विनाशकाले विपरीत बुद्धि " ऐसा भी कहा जाता है  की समय सही न हो तो  बुद्धि साथ नहीं देती।  ये समय क्या है ?  इसकी चाल  क्या है ? क्या ये  उस  नक्षत्रीय चाल के सूचक तो नहीं ?    
ये  सब कहने का और लिखने का इतना ही अर्थ है की , हर व्यक्ति के अंदर अच्छे बुरे गुणों और कर्मो का सामंजस्य है , जो जन्म से , संस्कार से प्रभावित है , और फिर बहुत कुछ नक्षत्रो की चाल हमें काबू में रखती है  पर कोई कोई भाव दशा इस कदर व्यक्ति के  मस्तिष्क को प्रभावित करती है  जो कर्म करने को प्रेरणा या धक्का देते है तब तक  जब तक वह जीव उस कर्म को करने को  प्रेरित न हो जाये , सारे तर्क उसी दिशा में  दौड़ने लगते है , जो उसको उसके कर्म की गुणवत्ता के प्रति  आश्वस्त करते है , पर परिणाम बताते है की  मन की प्रेरणा  से किया गया कर्म हर कर्म  सुफल देने वाला नहीं होता , और मन प्रेरित  होता है बुद्धि से  इक्छाओं से लोभ से  ( दौड़ का कारन कोई भी हो सकता है ) किन्तु फल भोगने का कारण देह ही बनती है , और  जो भी थोड़ा सा भी  खगोल ज्ञान रखते है   उनको  आभास होता है  की धरती पे उत्पन्न  जीवों को  कैसे  तारागण  अपने प्रभाव से प्रभावित करते है  , थोड़ा सा मैं आपसे  वो प्रभाव बाटना चाहती हूँ  विज्ञानं के सूत्रों से पता चलता है की  नक्षत्र  भी  कभी न कभी  समय के गर्त में  में अपने मूल से अलग हुए  टुकड़े है और ये भी तथ्य है की जो जिस पिंड से अलग हुआ  वो उसी के  चुंबकीय  प्रभाव  में  उसी की परिधि में घूम रहा है , और इस नाते हमारी धरती   जिसपे हम सब मानवीय जीवन भोग रहे है  वो सूर्य से अलग हुई है  और धरती से चंन्द्रमा टूट  के अलग हुआ  इसी प्रकार  जो चुंबकीय घेरे में आते है  वो हमारे नक्षत्र है जिनसे हमारा अटूट नाता  है चूँकि धरती का चुम्बक और नक्षत्रो का चुम्बक एक है  इसी कारन धरती पे  उत्पन्न जीव और  प्रकर्ति भी अलग अलग गुणरूप में इनसे प्रभावित होती है ,  ऋषि  मुनियों  के खगोलशास्त्र  ज्ञान से पाया गया  की  ऊर्जा का कारक सूर्य है  मंगल भी ऊर्जावान है  किन्तु   धरती से  दूर है इसीलिए काम प्रभावी है   इसी अनुसार  बृहस्ति नामक गृह  बुद्धि को काबू करता है , चन्द्रमा भावनाओ को ,  बुध   व्यक्तित्व को  और शुक्र सौंदर्य को , शनि और राहु छाया गृह है ,  इनका तात्पर्य  मात्र इतना है  की ग्रहों की चाल में  परिधि पे घूमते हुए ऐसे भी  घेरे बनते है जब  कुछ गारो ही छाया बनती है , उनका एक नाम शनि और राहु  दिया गया क्यूंकि इनका भी  जीव  जीवन पे प्रभाव है ,  माना  की  ग्रहों की अपार शक्ति के आगे अन्य जीव को तो ज्ञान ही नहीं  वो तो मात्र जीवन जी रहे है  किन्तु मनुष्य का जुड़ाव दिव्य है ,  मनुष्य नामके जीवधारी  की शक्ति सिमित है किन्तु  उसकी क्षमता असीमित और परम केंद्र से जुड़ती है , इसी लिए वो पुरुषार्थ  का अर्थ भी समझता है   इन सबके बाद भी वो मानता है की  पुरुषार्थ वही है , जो हार नहीं मानता पर कैसे ! 

अवश्य ही स्वयं के केंद्र पे विश्वास और प्रेम केंद्र  उसके प्रति परम आस्था  जिसने जन्म दिया , ये अटूट विश्वास  पूर्व निर्धारित कर्मो पे मरहम तो है , जो ध्यान के फलित होने से पूरा आभासित होता है।  बाकी सारे मध्यस्तो  को ज्ञानी ने ध्वस्त कर दिया।  गृह नक्षत्र प्रभाव  पूर्व कर्म  , प्रारब्ध  सभी एक साथ परास्त हो गए।  कैसे ?  की अब वो  हराने की चष्ट तो करते है  किन्तु  संयम  और धैर्य को नहीं तोड़ पाते  , नतीजा  ध्यानी  परम योग में स्थित  अप्रभावी रहता है।  

आप ये सब  माने या न माने ये आपके ऊपर है , आप सिमित बौद्धिक शक्ति और तर्क का सहारा ले सकते है , पर किसी के मानने या न मानने से , सत्य नहीं बदलता । वो अखंड है । इस नियम के तहत आप नक्षत्रो की चाल नहीं बदल सकते , विज्ञानं भी मात्र ज्ञान करता है  परिवर्तन उसके लिए भी संभव नहीं । किन्तु आध्यात्मिक स्तर  पे आपकी प्रार्थनाएं आपके अंदर शक्ति जरूर पैदा करती है। और आपका ध्यान आपके होने वाले कर्मो के प्रवाह को निर्धारित करता है , और इन दोनो तरफ के प्रयास से ही प्रचंड कर्म की समुद्री लहरे शांत होती है। इस कर्म और प्रारब्ध के चक्र को तोडना अत्यंत आवश्यक है। 

मैं खगोल विज्ञानं की सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता तो नहीं पर ध्यान में संकेत अवश्य मिले है , इसलिए  मेरे  ध्यान भाव आप वैज्ञानिक प्रमाणों से मिला सकते है , समझती हूँ ये अन्धविश्वास नहीं वरन एक अजब सी कशिश के साथ विश्वास है , 
नक्षत्रो का अपना खिंचाव है जो वैज्ञानिक भी है , प्रकर्ति के नियमों पे , ब्रह्माण्ड की शक्ति पे और अपनी नाल पे जो सीधा जुड़ती है परमात्मा के नाल से।  एक सूक्ष्म  सेल  केंद्र  युक्त उसी प्रकार है  जिसप्रकार धरती समेत  ब्रह्माण्ड  के तारागण  और ब्रह्माण्ड के केंद्र  की पुष्टि विज्ञानं करता है   इतना गहरा संयोग मात्र कल्पना नहीं हो सकता। हाँ ! कल्पना से शुरू जरूर होता है। जिसे ध्यानी का ध्यान कहते है। जो ध्यान समस्त बिखरे हुए विषयों को पहले एक जुट करता है और फिर एकमय कर  एक माला में पिरो  देता है। इस अवस्था में सिर्फ एक ही विषय समग्र रूप से उपस्थित होता है वो है ओम का स्वर ,जहां से सभी विषय शुरू होते है और समाप्त भी यहीं पे होते है ओम का स्वर समग्रता से गुंजित होते ही आप पूर्ण रूप से तैयार हो जाते है उस केंद्र से मिलने के लिए , वर्ना खंडित ज्ञान आपके मस्तिष्क के अधीन  तर्क की भाषा से दबा हुआ  खंड खंड ही रहता है , और आपके समग्र होने का इन्तजार करता है । 

इतना सब लिखने का मेरा उद्देश्य मात्र इतना है की आप अपने केंद्र की शक्ति को पहचाने , ना की छोटे मोटे उपाय सुन के अपना दिल बहलाएं। यदि आपका विश्वास बहिर्मुखी होके आचार्य विद्वानो के चरणो में गिरता है और आप अपने धन के बदले थोड़ा सा उपाय ले के संतुष्ट है , तो मेरे लेख का कोई अर्थ नहीं , कित्नु यदि आपका विश्वास जागता है , आपके केंद्र से उस केंद्र तक जुड़ता है , तो मैं धन्य हुई। हमेशा मूल मन्त्र याद रखियेगा " आपो गुरु आपोभवः "

Om Naman

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