Saturday 28 February 2015

शब्द का मूल्य ही कुछ नहीं -Osho

शब्द का मूल्य ही कुछ नहीं है। शब्द काम-चलाऊ है, उपकरण है। एक दूसरे से बात करने के लिए उपयोगी है। और ध्यान रहे, अगर अस्तित्व से बात करनी हो तो शब्द बिलकुल उपयोगी नहीं है, बाधा है। वहां निशब्द उपयोगी है।

आदमी से बात करनी हो तो शब्द उपयोगी है, शब्द माध्यम है। आकाश से बात करनी हो तो शब्द माध्यम नहीं है। वृक्षों से बात करनी हो, तो शब्द माध्यम नहीं है। तारों से बात करनी हो, तो शब्द माध्यम नहीं है। और अगर तारों के साथ भी तुम शब्दों का उपयोग करो, तो तुम पागल हो। क्योंकि तुम अकेले ही बोल रहे हो। वह एकालाप है--मोनोलॉग है, डायलॉग नहीं है। वहां कोई संवाद नहीं हो रहा है; दूसरी तरफ से कोई उत्तर नहीं आ रहा है।

लेकिन अगर तुम चुप हो जाओ, तो तारे बोलते हैं, अगर तुम चुप हो जाओ, तो आकाश भी बोलता है। अगर तुम चुप हो जाओ, तो कंकड़-पत्थर भी बोलते हैं--लेकिन चुप हो जाओ तब।

जीसस ने कहा है: "तोड़ो लकड़ी को, तुम मुझे वहां मौजूद पाओगे।' उठाओ पत्थर को, तुम मुझे वहां छिपा पाओगे।' लेकिन तुमने कई बार लकड़ी तोड़ी है और जीसस वहां मिले! और तुमने कई बार पत्थर उठाया, और सिर्फ गङ्ढा हो जाता है; कोई जीसस वहां नहीं मिलते। क्योंकि तुम शब्द से भरे हो। अगर तुम पत्थर उठाओ और तुम मौन हो, तो जीसस ठीक कहते हैं, तुम्हें वे वहां मिल जाएंगे।


परमात्मा के लिए किसी मंदिर में जाने की जरूरत नहीं है। तुम जहां मौन हो गए, वहीं वह मौजूद है। वह हर घड़ी मौजूद है।

अस्तित्व पूरे समय बोल रहा है, पल-पल उसकी वाणी गूंज रही है। वह निनाद हो ही रहा है। तुम चुप नहीं हो; तुम शब्दों से भरे हो। तुम्हारी खोपड़ी का एक ही रोग है कि तुम शब्द, शब्द और उनकी भीड़ खड़ी किए जाते हो। तुम चुप होना नहीं जानते। उसी से तुम चूक रहे हो।

फिर लोग हैं, जो बाजार से भरे हैं, दुकान से भरे हैं। वे मंदिर जाते हैं। वे वहां भी कहते हैं, "कोई मंत्र दे दो।'
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, "कोई मंत्र दे दें।' मैं उनसे पूछता हूं, "मंत्र से क्या करोगे? मंत्रों से तो तुम भरे ही हुए हो। तुम अब मौन सीखो।' वे कहते हैं, "मौन तो मुश्किल है। मंत्र आप दे दें, तो हम रटते रहेंगे।'

मंत्र आसान है। क्योंकि मन उस काम को भलीभांति जानता है। वह मन के विपरीत नहीं है। पहले कुछ और रटता था: "रुपया, रुपया, रुपया।' अब रटता है: "राम, राम, राम।' फर्क कुछ नहीं है। दुकान पर बैठा रटता रहता था, अब मंदिर में बैठकर रटता रहता है। रटन जारी है। मन चुप नहीं होता।

एक बीमारी को छोड़कर तुम दूसरी पकड़ लेते हो। पहले खाते वगैरह में आंखें गड़ाए रहे, अब गीता, कुरान, बाइबिल में आंखें गड़ाए रखते हो। लेकिन शब्द से छुटकारा नहीं हुआ। और जब तक शब्द से छुटकारा न हो जाए, तब तक सत्य से कोई मिलन नहीं है।

जब तुम पैदा नहीं हुए थे, तब तुम कौन-सी भाषा जानते थे? तब भी तुम थे--निर्भाषा में, मौन में। जब तुम मरोगे, तब तुम्हारी सब भाषा यहीं छूट जाएंगी; तुम्हारे शब्द सब यहीं बिखर जाएंगे। तुम फिर खाली होकर जाओगे।

खाली तुम आए, खाली तुम जाते हो। बीच में थोड़ी देर के लिए शोरगुल है। काश, तुम बीच में खाली होना सीख लो, तो तुम्हें ध्यान आ गया।


 - "ओशो"....
Sahaj Samadhi Bhali - 10

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