विज्ञानं में भी सभी कणो की गति ऐसी ही है गोलगोल चक्कर लगा रहे है , अपनी धुरी पर , अत्यधिक गति के साथ। जो हमको नजर भी नहीं आते , सम्पूर्ण पृथ्वी चक्कर लगा रही है , सम्पूर्ण सौरमंडल चक्कर लगा रहा है , विद्युत जो हम उपयोग करते है इसकी भी गति ऐसी ही है सीधी चलती है पर चक्कर काटती हुई .
इसी प्रकार हमारे अंदर और आस पास भी ऊर्जा क्षेत्र है , जिनमे फंसे हम तरंगित से मानसिक रूप से चक्कर काट रहे है। अजब गजब ये चक्करों की उर्जामयी दुनिया है। सभी में गति है।
बहुत सारे घेरे है , और सब गोल गोल घूम रहे है , इन घेरों में जीव घूम रहे है , बिना इनकी गति के प्रभाव को जाने इनकी गतिशीलता में फंसे जीव चक्कर काटते रह जाते है। सिर्फ विशेष प्रयास से ही इन घेरों से निकल पाते है , पर इन घेरों की मात्र इतनी है की एक से निकले तो दूसरे में अटके। और फिर वो ही चक्कर पे चक्कर।
मुख्य रूप अगर देखे तो सम्पूर्ण जीवन ही आधा -आधा दो सिरों में विभाजित है , एक सिरा है जीवन का और दूसरा मृत्यु का , और सम्पूर्ण जीवन का चक्र भी दो भाग में बंटा है जिसमे एक जीवन से लेकर मृत्यु तक का धागा और दूसरा है मृत्यु से जीवन को जोड़ता धागा और इन दोनों के सिरे अगर आपस में मिला दे तो बन जाता है एक बड़ा गोल चक्कर।
ये तो बात हुई बड़े चक्कर की , अब उससे नीचे के स्तर पे उतरते है तो पाते है जीवन से मृत्यु तक फैला असंख्य चक्करों का जाल है। और नजदीक से देखें तो इनको विषयों में विभाजित करना ही पड़ेगा , क्यूंकि विभाजन द्वारा ही जीवन को छोटे छोटे टुकड़ो में समझने का एक मात्र उपाय है , एक बार रहस्य समझ आ जाये तो फिर इन टुकड़ों को एकत्रित करके सारे छोटे घेरे सिर्फ ज्ञान द्वारा नष्ट तो नहीं पर शक्तिहीन किये जा सकते है।
जन्म से इन फेरो का सिलसिला शुरू होता है , कुछ जन्म से मिलता है और कुछ कर्म से , कुछ स्वभाव से हम स्वीकार करते है तो कुछ समाज से हमे पालन करने पड़ते है। ध्यान दीजियेगा ! यहाँ सही गलत की चर्चा हम नहीं कर रहे , सिर्फ फेरो को समझ रहे है जिनमे हमारा मन और मस्तिष्क फंसे हुए चक्कर लगा रहे है।
जन्म से मिली स्थतियां है धर्म ,पीढ़ियों से अर्जित .... खून के सम्बन्ध , संपत्ति , स्वभाव ( वंशानुगत) , कद काठी , फिर दूसरा फेरा जो इनसे ही जुड़ा हुआ चलता है वो है आपके सम्बन्ध को आपसे अपेक्षाएं और आपको अपने सम्बन्धो से अपक्षाएं , इस अपेक्षाओं की सूचि में लोगों के नाम घटते बढ़ते रहते है। फिर आपको स्वयं से भी अपेक्षाएं है , समाज में एक स्तर में जीने की इक्छा आपकी भी और आपके परिवार की भी। इसी स्वभाव अनुसार आपका मित्र समहू बनने लगता है। समाज में रहते है तो आस पड़ोस जागृत होता है। सभी व्यवहार और अपेक्षाओं से बंधे है और घिरे है , सोच के देखिये तो एक एक व्यक्ति जिससे भी सम्बन्ध होता है वो अपने आप में एक सम्पूर्ण फेरा है।
इन फेरों में अभी तक आपका अपना व्यक्तित्व तो विकसित हो रहा है , अभी हुआ नहीं है , कई फेरो में तो रहने की और जीने की आदत भी है , वो अलग नजर ही नहीं आते।
इन घेरो / फेरों को ऊर्जा-क्षेत्र भी कह सकते है क्यूंकि इनकी अपनी सत्ता है निश्चित दायरे में और इनकी अपनी ऊर्जा भी है। जिस फेरे में आप उलझे होते है , वहीं की ऊर्जाएं सक्रीय हो जाती है। इनकी ताकत के आगे आप स्वयं को निर्बल महसूस करते है। पर सिर्फ आपकी अज्ञानता ही इनका बल है। संज्ञानता के साथ स्वयं ही ये दुर्बल हो जाती है।
फिर आपकी आयु के पायदान में एक समय आता है जब की व्यक्तित्व स्वतंत्र रूप से जीवन जीने योग्य हो जाता है , और आप स्वयं को युवा जिम्मेदार और करता धर्ता मानने लगते है , परिवार बनता है , अपने समाज में सम्बन्ध बनने शुरू हो जाते है। ध्यान दीजियेगा , पुराने फेरो से आप मुक्त नहीं हुए , वो साथ ही है उनके गुण खून में रचे बसे है, किस खून में ? जो तत्व निर्मित है। ये सब आपको याद रखना है। इस गुणों के साथ अब आप में लगातार नए नए गुणों का वास हो रहा है। पद भी बढ़ रहे है , बेटे से पति , पति से पिता , आपकी साथी के भी अपने फेरे है जन्म से और सामाजिक विकास से , आप दोनों मिलके अपनी संतान को भी ऐसे फेरे उपहार में दे रहे है।
यहाँ हम सिर्फ फेरो की चर्चा कर रहे है। एक एक फेरा हमारे व्यक्तित्व की पहचान बनता जाता है। और हम भूल भी जाते है की ये मैं नहीं , मैं की सत्ता अलग ही है।
इस मैं की सत्ता को ही याद करने के लिए ध्यान पद्धतियाँ है जो आपको आपकी जड़ खोजने में मदद करती है।
जन्म से संजोये फेरे जो कुछ आपकी जानकारी में है , वो क्षणिक ध्यान से उजागर हो जाते है , परन्तु कुछ फेरे ऐसे है जो आपकी भी जानकारी में नहीं , वो गहरे ध्यान से उजागर होते है। इनको जान लेना ही मात्र इनसे छुटकारे का उपाय है। क्यूंकि जानते ही इनके गुण दोष गिर जाते है , जो स्वयं के अंदर थे , स्वयं को पीड़ा दे रहे थे , इनका किसी बाहरी सम्बन्ध से कोई सरोकार नहीं। बाहर की दुनिया वैसी ही है जैसे पहले थी। बाहरी मतलब आपके शरीर के अलावा सब बाहरी आपका जाया पुत्र भी। आपके जन्म देने वाले माता पिता भी। सिर्फ आप और आपकी निजिता और इस निजिता से भी अधिक गहरा सम्बन्ध आत्मा रूप में आपका अपने शरीर के साथ।
और जैसे ही आपका अपनी आत्मा और शरीर से सम्बन्ध स्पष्ट होता है , आपको सारा रहस्य समझ आने लग जाता है। आपकी जानकारी के लिए आप आत्मा ही है , शरीर आपने धारण किया है , जन्म लिया है आपने इस शरीर में। परन्तु सामाजिक संरचना में हर एक का नाम होता है , एक अलग पहचान होती है , जो आपको आपकी ही आत्मा से पृथक कर देती है। और आप शरीर नाम सम्बन्ध से जुड़ जाते है।
ध्यान आपको आपके असली मैं से परिचय कराता है। बाकी सब जुड़ाव है , जो आपने अपनी गठरी में बांधे है , और इस गठरी में सिर्फ बड़े बड़े पथरो के कार्मिक बोझ है , जिनको आप प्रेम पूर्वक वहन कर रहे है।
अपने कार्मिक फेरो का अहसास होना ही , सन्यासी की अंतर्दशा का प्रथम साक्षात्कार है , एक सन्यासी जो कर्म से नहीं आत्मा से सन्यासी है उसके आगे सारे फेरे स्पष्ट है। अब वो ज्यादा प्रेम पूर्वक अपने कर्मो को निभाता है क्यूंकि भाव रूप से उसको प्रेम तो है मोह नहीं , लोभ नहीं क्रोध नहीं इनकी व्यर्थता को समझ चूका है। माया का फेरा सबसे बड़ा फेरा है बाकी समस्त फेरे इसीके अंदर है। जैसे एक बहुत बड़े गुब्बारे में छोटे छोटे तमाम असंख्य रंगीन लुभावने गुब्बारे भरे हो। और आप हर गुब्बारे के पीछे भाग रहे दौड़ रहे है , हे गुब्बारे की चिंता कर रहे है , हर गुब्बारे को बचने का प्रयास कर रहे है। प्रयास भरपूर है , पर शक्ति सीमित है। आपकी शक्ति सीमित है। एक निश्चित परिधि में ही आपके प्रयास आपको फल देंगे। गौर कीजियेगा यहाँ भी फेरा है , परिधि का। आपको अपनी सीमा शक्ति का।
फिर इन फेरों को समझते हुए जब आप स्वयं का आध्यात्मिक उथान करते है , तो सुगन्धित गुण स्वाभाविक रूप से आपमें प्रवेश करने लगते है। और फिर ध्यान यात्रा के द्वारा ही आप जन्म मृत्यु समेत इस जीवन के और इस जीवन के आलावा जिसको पारा जीवन कहते है उसमे प्रवेश कर पाते है। जिस के द्वारा आपको अधिक स्पष्ट होता है की वास्तव में माया का गुब्बारा सच में गुब्बारा ही है। थोड़ा रंगीन है लुभावना है , अन्धकार में रखता है। पर ध्यान आपका सहयोगी है। अध्यात्म की पूरी यात्रा में एक ध्यान ही है जिसके साथ आपने अपने ज्ञान की पहली सीढ़ी पे पैर रखा था। और अब आखिरी सीढ़ी पे पैर भी ध्यान के साथ ही रखेंगे।
और इस अनुभव के साथ ही उन सबको विदा देनी है आभार के साथ जिनका थोड़ा भी आपकी जीवन यात्रा में सहयोग रहा है , समस्त सम्बन्ध गुरु , धर्म समाज सब और यहाँ तक की ध्यान को भी विदा कर देना है। फिर आप स्वतंत्र स्वक्छंद और बुद्ध के सामन जीवन बिता सकते है।
अद्भुत है समस्त मोह की विदाई बहुत आंतरिक घटना है , यहाँ न तो प्रेम कम होता है न ही कर्त्तव्य भाव। बस एक पुष्प खिलता है जिसकी सुगंध फैलती ही जाती है।
सम्पूर्ण यात्रा का औचित्य सिर्फ विभिन्न फेरो से परिचय करवाना था , या यूँ कहिये खटखटाना था। परिचय तो सभी को है। सभी फेरो को न सही शारीरिक मानसिक सुख दुःख और कष्टो से तो परिचत है ही। समस्त संताप क्लेश और व्याधियों के जनक यही फेरे है।
और शुरूआती विषय फिर से दोहराती हूँ , जिस से शुरुआत की थी , एक बड़ा सम्पूर्ण घेरा आपकी अपनी आधा जीवन-मृत्यु के बीच और आधा मृत्यु-जीवन के बीच का। वही तो आपके सारे जीवन के छोटे छोटे फेरों का बीज रूप जन्मस्थान भी है .......
तो फिर अब से ध्यान में स्थित हो अपने फेरो की गिनती शुरू कीजिये , और अपने कष्टों का स्वयं इलाज कीजिये !!
इस चित्र को बड़ी मुश्किल से प्रतीक रूप में रख पा रही हूँ , विषय बहुत वृहत है , शब्दों में समेटना कठिन और चित्र तो और भी कठिन , परन्तु सिर्फ प्रतीक रूप में चित्र है की किस तरह एक बड़े से सम्पूर्ण घेरे में छोटे छोटे घेरे ऊर्जा रूप में सक्रीय रहते है और बड़ा घेरा माया का नहीं आपका अपना है , आपके अपने ही अंदर ये सभी घेरे क्रियाशील है , माया को समझना है तो इस पूरे घेरे को भी लाखों करोड़ों घेरो के साथ एक बड़े से घेरे में कैद करना होगा और वो भी सिर्फ धरती का , धरती से ऊपर समस्त सौरमंडल के भी अपने घेरे है , विज्ञानं के माध्यम से सभी जानते है। बहरहाल मकसद आपके घेरों और फेरो से परिचय करवाना था। वो पूरा हुआ। अब आपकी बारी स्वयं को टटोलने की।
हार्दिक शुभकामनाएं !!
हार्दिक शुभकामनाएं !!
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